स्वतंत्र भारत में ‘नए सामाजिक आंदोलनों’
प्रश्न:स्वतंत्र भारत में ‘नए सामाजिक आंदोलनों’ से आप क्या समझते है? इस संदर्भ में, ‘नए किसान आंदोलनों’ की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- नए सामाजिक आंदोलनों को संक्षेप में परिभाषित कीजिए।
- स्वतंत्र भारत में नए सामाजिक आंदोलनों को सूचीबद्ध कीजिए।
- नए किसान आंदोलनों (NFM) को परिभाषित कीजिए तथा इसकी मुख्य विशेषताओं एवं मुद्दों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर
नए सामाजिक आंदोलन (NSMs) पद, 1960 के दशक के मध्य में आरम्भ हुए विभिन्न नए आंदोलनों को प्रदर्शित करने का प्रयास करता है, इन आंदोलनों का उद्देश्य जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना था जिसमें स्वच्छ पर्यावरण, मानव गरिमा सुनिश्चित करना आदि सम्मिलित थे। स्वतंत्र भारत के कुछ प्रमुख ‘नए सामाजिक आंदोलन’ निम्नलिखित हैं:
पर्यावरण आधारित आंदोलन:
- सेव साइलेंट वैली मूवमेंट, 1973: इसका उद्देश्य साइलेंट वैली का संरक्षण करना था। इस घाटी में जल विद्युत परियोजनाओं की स्थापना का विरोध करना ताकि बाढ़ के खतरे को रोका जा सके।
- चिपको आंदोलन, 1973: गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित इस आंदोलन में वनों की कटाई का विरोध किया गया तथा लोगों ने बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को रोकने के लिए वृक्षों को आलिंगनबद्ध किया।
जाति आधारित आंदोलन:
- दलित आंदोलन: यह आंदोलन 1970 के दशक की शुरुआत में महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति के सदस्यों द्वारा आरम्भ किया गया। इसका उद्देश्य अन्यायपूर्ण जाति पदानुक्रम के विरुद्ध आत्म-सम्मान प्राप्त करना था।
- पिछड़ा वर्ग आंदोलन: यह आंदोलन 1970 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों द्वारा सरकारी नौकरियों में अधिक प्रतिनिधित्व प्राप्त करने हेतु आरम्भ किया गया, जिनकी मांग को अंततः 1990 के दशक के आरंभ में स्वीकार किया गया।
वर्ग-आधारित आंदोलन:
- नक्सलबाड़ी आंदोलन: यह पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी जिले में सामंती जमींदारों के विरुद्ध किसानों द्वारा किया गया एक हिंसक आंदोलन था।
- नए किसान आंदोलन: ये 1970 के दशक में पंजाब और तमिलनाडु में आरम्भ हुए। ये आंदोलन प्रकृति में गैर-पक्षपातपूर्ण और क्षेत्रीय रूप से संगठित थे तथा इनमें काश्तकारों के बजाय किसान शामिल थे।
विशेषताएं:
- ऐसा माना जाता है कि किसान वस्तु उत्पादक और खरीददार दोनों के रूप में बाजार में संलग्न रहते हैं। ये आंदोलन स्थानीयता से परे जाने के सिद्धांत में विश्वास करते हैं।
- वे राज्य विरोधी थे और उनका एजेंडा नगर विरोधी था।
- इनका मुख्य एजेंडा, ‘मूल्य और संबंधित मुद्दों‘ (उदाहरण के लिए मूल्य खरीद, पारिश्रमिक मूल्य आदि) पर आधारित था।
- सड़कों और रेलवे को अवरुद्ध करना, राजनेताओं और नौकरशाहों को गांवों में प्रवेश करने से रोकना, इत्यादि जैसे आंदोलन के नवीन तरीकों का उपयोग किया गया।
- वे संगठित संघर्ष हेतु खड़े रहे और किसानों की आर्थिक स्थिति के आधार पर सामाजिक श्रेणियों में विभाजित होने को अस्वीकृत कर दिया।
- इन आंदोलनों ने उनके एजेंडे और विचारधारा को व्यापक बनाया। इसमें पर्यावरण और महिलाओं के मुद्दे भी शामिल थे और इसलिए, उन्हें विश्व भर के ‘नए सामाजिक आंदोलनों’ के एक भाग के रूप में देखा जा सकता है।
हालांकि, NFM ने छोटे और सीमांत किसानों की आवश्यकताओं की उपेक्षा करते हुए अपेक्षाकृत बड़े किसानों को लाभान्वित किया। क्षेत्रीय मतभेदों के बावजूद, NFM से भारत में किसानों से संबंधित संवाद, विश्लेषण और धारणा में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ।
Read More