ग्राम पंचायतों और स्वयं सहायता समूहों के बीच संबंध की आवश्यकता

प्रश्न: ग्राम पंचायतों और SHGs के मध्य एक प्रभावी एवं कार्यात्मक कार्यकारी संबंध की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए। दोनों के मध्य एक कार्यक्षम सहक्रियता किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है?

दृष्टिकोण:

  • SHGs और समुदाय में सेवा प्रदाताओं के रूप में इनकी भूमिका का संक्षिप्त परिचय दीजिए। 
  • ग्राम पंचायतों और SHGs के मध्य एक प्रभावी और कार्यात्मक कार्यकारी संबंध की आवश्यकता का उल्लेख कीजिए।
  • दोनों संस्थानों के मध्य कार्यक्षम सहक्रियता (synergy) स्थापित करने हेतु किए जा सकने वाले उपायों की चर्चा कीजिए।

उत्तरः

स्वयं सहायता समूह (SHGs) समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के लोगों का एक छोटा स्वैच्छिक संगठन होता है, जो स्वयं सहायता और पारस्परिक सहायता के माध्यम से अपनी समस्याओं का समाधान करने के उद्देश्य से एक साथ मिलकर कार्य करते है।

SHGs, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में समुदाय-आधारित विकास, उद्यमिता, वित्तीय मध्यस्थता समाधान और सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करने का एक प्रभावी साधन रहा है। भारत में SHGs को दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जैसी केंद्रीय योजनाओं तथा केरल में कुडुम्बश्री एवं बिहार में जीविका जैसी राज्य सरकारों की पहलों के माध्यम से राज्य द्वारा प्रोत्साहन प्रदान किया जा रहा है।

ग्राम पंचायतों और SHGs के मध्य एक प्रभावी और कार्यात्मक कार्यकारी संबंध की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है:

  • समान उद्देश्यों और अधिदेश को पूरा करना: ग्राम पंचायतें और SHGs जन-केन्द्रित विकास और वंचित लोगों के सशक्तिकरण को बढ़ावा देने हेतु समन्वय स्थापित कर सकते हैं।
  • पंचायतों के कार्यों को अधिक लोकतांत्रिक और सहभागी बनाना: SHGs लोकतांत्रिक सत्ता की कार्यप्रणाली को सीखेंगे और सहभागितापूर्ण नियोजन के माध्यम से निर्णयों को प्रभावित करेंगे। इससे उन्हें अपने अधिकारों और हक के संबंध में जानकारी प्राप्त होगी।
  • पूरक प्रकृति: SHGS ग्राम पंचायतों की प्रासंगिक योजनाओं और कार्यक्रमों के संदर्भ में कार्यान्वयन और निगरानी एजेंसियों के रूप में कार्य कर सकते हैं अर्थात इसके माध्यम से लोगों द्वारा स्वयं के लिए ही कार्य किया जा सकता है। यह अधिक नियोजित, कुशल और सहमति आधारित कार्यान्वयन में सहायता करेगा।
  • अधिक पारदर्शिता को प्रोत्साहित करना: जब ग्राम पंचायतें SHGs की सतत निगरानी और सतर्कता के अंतर्गत कार्य करती हैं, तो उन्हें अपने कर्तव्यों और दायित्वों का अधिक प्रभावी और पारदर्शी तरीके से निर्वहन करना होगा, इस प्रकार, ग्राम पंचायतों की परिचालन दक्षता में गुणात्मक परिवर्तन संभव होगा।
  • ग्राम सभाओं की सहायता: ग्राम पंचायतें SHG नेटवर्क का उपयोग ग्राम सभा को सशक्त बनाने के लिए, विशेष रूप से स्थानीय स्तर के नियोजन को बेहतर बनाने के लिए तथा पहुँच, विस्तार, सेवा वितरण और फीडबैक हेतु उनका उपयोग कर सकती हैं।

दोनों संस्थानों के मध्य कार्यक्षम सहक्रियता स्थापित करने हेतु निम्नलिखित मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है:

  • ग्राम पंचायतों को वित्तीय शक्ति का हस्तांतरण करना: संसाधनों के नियोजन और ग्राम पंचायतों को इनके आवंटन हेतु बेहतर व्यवस्था होनी चाहिए। ग्राम पंचायतों की सहायता के माध्यम से SHGs द्वारा आरम्भ की गई राजस्व सृजन परियोजनाएँ, ग्राम पंचायतों और समुदाय के लिए वित्तीय स्वतंत्रता का स्रोत भी बन सकती हैं।
  • दोनों के मध्य बेहतर समन्वय स्थापित करना: ग्राम पंचायतों के साथ-साथ SHGs की तकनीकी और संगठनात्मक क्षमताओं को भी सशक्त और समन्वयित करने की आवश्यकता है।
  • ग्राम पंचायतें SHGs के लिए सक्षमकारी एजेंसियाँ बन सकती हैं: SHGs को वित्तपोषण के लिए अधिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए और प्रशिक्षण के माध्यम से उनकी तकनीकी क्षमता को सुदृढ़ किया जाना चाहिए। ग्राम पंचायतें इनके समन्वय हेतु एक सक्षमकारी मंच के रूप में कार्य कर सकती हैं।
  • ग्राम पंचायतों में SHGs का बेहतर प्रतिनिधित्व: SHG के सदस्यों को वैधानिक रूप से पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) के सभी स्तरों की स्थायी समितियों का सदस्य बनाया जाना चाहिए।
  • संयोजन (लिंकेज) और निर्भरता में वृद्धि करना: भागीदारी को क्रियाशील और सुचारू बनाने हेतु संरचनात्मक संयोजन, वित्तीय संयोजन, विकास संबंधी संयोजन आदि जैसे संयोजनों पर पहले से ही कार्य करने की आवश्यकता है।

केरल और आंध्र प्रदेश में SHGs और ग्राम पंचायतों की सहक्रियता सफल रही है। इसे देश के अन्य हिस्सों में भी आदर्श उदाहरण के रूप में अपनाया जाना चाहिए।

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