जल-संभर (वाटरशेड) की अवधारणा और वाटरशेड के विकास के अर्थ : इस संबंध में की गई पहलों उल्लेख

प्रश्न: भारत में जल संभर (वाटरशेड) विकास के महत्व पर प्रकाश डालिए। भारत में जल संभर प्रबंधन की दिशा में की गई पहलों की सीमित सफलता के पीछे निहित कारण प्रस्तुत कीजिए। साथ ही, जल संभर कार्यक्रमों की अभिकल्पना में सुधार लाने हेतु कुछ उपायों का भी सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • जल-संभर (वाटरशेड) की अवधारणा और वाटरशेड के विकास के अर्थ की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। 
  • तत्पश्चात भारत में वाटरशेड के विकास के महत्व को रेखांकित कीजिए।
  • इस संबंध में की गई कुछ पहलों को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
  • इनकी सीमित सफलता के कारणों का उल्लेख कीजिए।
  • अंत में उपयुक्त सीमाओं में सुधार लाने हेतु कुछ उपायों का भी सुझाव दीजिए।

उत्तर

जल-संभर (वाटरशेड) को ऐसे सतही क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है जहां से वर्षा का जल अपवाहित होकर एकत्रित होता है और तत्पश्चात एक साझा बिंदु से प्रवाहित होता है। वाटरशेड विकास, वाटरशेड के अंतर्गत सभी संसाधनों के संरक्षण, पुनरुद्धार और विवेकपूर्ण उपयोग को दर्शाता है।

भारत में वाटरशेड विकास का महत्व:

  • विश्व बैंक के हालिया अनुमानों के अनुसार, जनसंख्या में अधिक वृद्धि तथा आर्थिक विकास के साथ जल की बढ़ती मांग के परिणामस्वरूप वर्ष 2030 तक देश में जल की लगभग आधी मांग अपूरित रह जाएगी। बेहतर वाटरशेड प्रबंधन पद्धतियों के क्रियान्वयन से भारत को अपने जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन और संवर्द्धन में सहायता प्राप्त हो सकती है।
  • वाटरशेड विकास और उसका प्रभावी प्रबंधन संधारणीय कृषि विकास में सहायक हो सकता है और जलवायु परिवर्तन से संबंधित सूखे एवं अन्य चुनौतियों के प्रभाव को कम करने में सहायता प्रदान करेगा।
  • कृषि योग्य भूमि संसाधनों के कम होने के कारण वाटरशेड विकास और प्रबंधन निम्नीकृत मृदा का पुनरुद्धार करने तथा वर्तमान उत्तम कृषि भूमियों की उत्पादकता में वृद्धि करने संबंधी रणनीतियों को लागू करने में सहायता प्रदान करेगा।
  • यह अन्य विभिन्न पहलुओं, जैसे- अपरदन की रोकथाम, बाढ़ नियंत्रण, भौमजल पुनर्भरण और कठिनाई की स्थिति में होने वाले प्रवास को रोकने में सहायक होगा।
  •  वाटरशेड प्रबंधन भूमि और जल संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग को प्रोत्साहन देकर अंततः स्थानीय जनसंख्या के जीवन स्तर में सुधार करता है तथा ग्रामीण क्षेत्रों से निर्धनता उन्मूलन के लिए एक प्रमुख साधन के रूप में कार्य करता है।

इस संबंध में की गई पहलें:

  • सरकार ने वर्ष 1985 में MoEFCC के अंतर्गत राष्ट्रीय बंजर भूमि विकास बोर्ड (NWDB) की स्थापना की तथा पारंपरिक जल प्रबंधन दृष्टिकोणों पर आधारित कार्यक्रमों को अपनाया। ये कार्यक्रम 1980 के दशक के उत्तरार्ध से योजना और हस्तक्षेप के आधार के रूप में सूक्ष्म जल-संभरों (micro-watersheds) पर ध्यान केन्द्रित करते रहे हैं।
  • सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (DPAP), मरुभूमि विकास कार्यक्रम (DPP) और समेकित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम (IWDP) सरकार द्वारा कार्यान्वित अन्य कार्यक्रम हैं।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) का उद्देश्य मृदा, जल और वनस्पति जैसे निम्नीकृत प्राकृतिक संसाधनों का समुचित दोहन, संरक्षण और विकास करके पारिस्थितिकी संतुलन को बहाल करना है।
  • नीरांचल विश्व बैंक से सहायता प्राप्त राष्ट्रीय वाटरशेड प्रबंधन परियोजना है, जो PMKSY वाटरशेड घटक को सुदृढ़ करनेऔर इसमें तकनीकी सहायता करने हेतु परिकल्पित की गई है।

हालाँकि इन पहलों को सीमित सफलता मिली, क्योंकि:

  •  इन कार्यक्रमों में विशेष रूप से वाटरशेड और जल संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करने की तुलना में ग्रामीण विकास पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया गया।
  • इस प्रकार की परियोजनाओं का प्रभाव दीर्घकाल में परिलक्षित होता है और सरकारें संसाधन आबंटित करने के प्रति अनिच्छुक होती हैं। इसके अतिरिक्त, वर्ष 2016 से PMKSY के वित्तपोषण पैटर्न में केंद्र-राज्य अनुपात के 90:10 से 60:40 परिवर्तित होने से भी इसकी प्रगति मंद हुई है।
  • कार्यान्वयन और विभिन्न मंत्रालयों में समन्वय में विलम्ब भी अन्य प्रमुख कारण है।

चूँकि वाटरशेड चयन में स्थानीय हितधारकों पर विचार ही नहीं किया जाता है, अतः स्थानीय समुदायों और वाटरशेड उपयोगकर्ताओं के मध्य उत्साह और सशक्तिकरण का अभाव भी इस सफलता को अल्पकालिक बनाता है।

  इस संबंध में आवश्यक उपाय:

  •  परियोजना के सभी चरणों में सभी हितधारकों को शामिल करने के लिए एक सुदृढ़ विकेंद्रीकृत और सहभागी परिवेश विकसित किए जाने की आवश्यकता है।
  • साक्ष्य आधारित सूक्ष्म वाटरशेड योजनाओं को विकसित और कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता है।
  • क्षेत्र के संधारणीय विकास हेतु आजीविका संरक्षण प्रयासों को परस्पर जोड़ना और क्षमता निर्माण एवं सूचना साझाकरण में निवेश करना।
  • विभिन्न कार्यान्वयन एजेंसियों को एक एजेंसी के अंतर्गत लाकर बेहतर समन्वय स्थापित करना। CSR जैसे विभिन्न माध्यमों के द्वारा निजी भागीदारी और निवेश को प्रोत्साहित करना।

चूंकि भारत में कुल कृषि योग्य भूमि (142 मिलियन हेक्टेयर) का 60% भाग वर्षा सिंचित है, वाटरशेड प्रबंधन खाद्य, सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा निर्धारित करने तथा दीर्घकाल में ग्रामीण लोगों को जीवन-समर्थन सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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