केस स्टडीज : एक ईमानदार और उत्तरदायी सिविल सेवक

प्रश्न: आप एक ईमानदार और उत्तरदायी सिविल सेवक हैं। आप प्रायः निम्नलिखित का अवलोकन करते हैं:

(a) यदि कोई व्यक्ति लोगों के जीवन पर प्रभाव डालने के लिए प्रभावी और शक्तिशाली बने रहना चाहता है, तो उसे सत्ता में बने रहने वालों के प्रति निष्ठावान बने रहना चाहिए।

(b) नैतिक साधनों का अनुसरण करना हर समय व्यावहारिक और प्रभावी नहीं हो सकता है।

(c) छोटा-मोटा भ्रष्टाचार सेवा वितरण में तेजी लाता है। उपर्युक्त कथनों का उनके गुण-दोषों के आधार पर परीक्षण कीजिए।

(a) यदि कोई व्यक्ति लोगों के जीवन पर प्रभाव डालने के लिए प्रभावी एवं शक्तिशाली बने रहना चाहता है, तो उसे सत्ता में रहने वालों के प्रति निष्ठावान बने रहना चाहिए।

दृष्टिकोण

  • इस तरह के अवलोकन के लिए संभावित परिस्थितियों पर संक्षिप्त रूप में चर्चा कीजिए।
  • प्रस्ताव के गुण एवं दोषों का उल्लेख कीजिए।
  • उपलब्ध तर्कों के आधार पर दिए गए कथन का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर

लोग विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों के लिए सिविल सेवाओं में सम्मिलित होते हैं। सरकार उन्हें लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से भर्ती करती है। कर्तव्यों के निर्वहन हेतु सिविल सेवकों को विभिन्न हितधारकों, जैसे अपने वरिष्ठों, अन्य विभागों के सहयोगियों, मंत्रियों, राजनीतिक प्रतिनिधियों (जो कि विपक्ष भी हो सकते हैं) और आम नागरिकों के साथ कार्य करना पड़ता है। प्रभावी होने के लिए सौहार्द्रपूर्ण होना और ऐसे तरीके से कार्य करना महत्वपूर्ण है जो समग्र प्रयासों को समन्वित करता हो। इसके लिए सिविल सेवकों को उनके वरिष्ठों और सत्तारूढ़ लोगों का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है।

हालांकि, सौहार्द्रपूर्ण होने से तात्पर्य सत्ता में रहने वालों के प्रति निष्ठावान होना नहीं है। एक सिविल सेवक को तटस्थ और निष्पक्ष रहना होता है। संग्रहित तथ्यों, उनके विश्लेषणों, उनके आधार पर दी गई सलाह और अंततः लिए गए निर्णयों में सत्ता में रहने वालों के प्रति निष्ठा के आधार पर हेर-फेर नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इन्हें वस्तुनिष्ठता पर आधारित होना चाहिए। प्रायः यह देखा गया है कि सत्तारूढ़ व्यक्तियों के अनुरूप कार्य नहीं करने वालों के कार्यों को बाधित कर दिया जाता है। इससे व्यक्तिगत रूप में सिविल सेवक के लिए उसके स्थानान्तरण, तैनाती या पेशेवर प्रगति में बाधा और कार्य परिवेश में विसंगति उत्पन्न हो सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ लोगों की धारणा है कि ‘सत्तारूढ़ व्यक्तियों के प्रति निष्ठावान होना अनिवार्य है।

दोष:

सत्तारूढ़ जनहित के बजाय अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति कर सकते हैं। यह निष्पक्षता एवं राजनीतिक तटस्थता संबंधी सार्वजनिक सेवा के आदर्शों के विपरीत है और पारदर्शिता को बाधित करता है जिसके परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है।

इस प्रकार के राजनीतिक हस्तक्षेप से कार्यपालिका का परिवेश प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है तथा लोक सेवक हतोत्साहित होते हैं। अतः, व्यक्ति को सदैव ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, सच्चाई आदि का प्रदर्शन करने वाले नैतिक आचरण का पालन करना चाहिए। अंतर्निहित संवैधानिक सिद्धांतों और आदर्शों को पेशेवर और व्यक्तिगत आचरण के लिए मार्गदर्शक के रूप में होना चाहिए।

(b) नैतिक साधनों का अनुसरण करना हर समय व्यावहारिक और प्रभावी नहीं हो सकता है।

दृष्टिकोण

  • नैतिक साधनों का अनुसरण करने वाले गुणों और अवगुणों का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर

सामान्यतः, लोगों का मानना है कि हर समय नैतिक सिद्धांतों का पालन करना विभिन्न कारणों से अप्रभावी और अव्यावहारिक होता है: नैतिक रीति से कार्य करना, विलंब और कीमत के संदर्भ में लागत को बढ़ा सकता है।

प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अलग प्राथमिकताएं होती हैं अर्थात् यह आवश्यक नहीं है कि किसी एक व्यक्ति के लिए लाभप्रद वस्तु दूसरों के लिए भी लाभप्रद हो।

  • संभव है कि किसी को परिस्थिति के विषय में पूर्ण जानकारी न हो, अतः सदैव ही नैतिक रूप से कार्य कर पाना कठिन होता है।

उदाहरण के लिए, कोई यह तर्क दे सकता है कि अनैतिक (और अवैध) साधन जैसे गुप्त फोन टैपिंग की आवश्यकता हो सकती है। अनुमतियों की समग्र प्रक्रिया से गुजरने में अधिक समय लग सकता है और हो सकता है कि इससे वांछित परिणाम की प्राप्ति भी न हो। इसलिए इस प्रकार के साधन निष्क्रियता से बेहतर होते हैं।

हालांकि, निम्नलिखित गुणों के कारण प्रत्येक समय नैतिक साधनों का अनुसरण करना आवश्यक है – 

  • यह सिद्धान्तों के अनुरूप और उचित निर्णय लेने में सहायता करता है।
  • सूचना का विश्लेषण करने हेतु किसी व्यक्ति की क्षमता सीमित होती है और इसलिए सभी परिस्थितियों में कानूनों एवं नियमों के रूप में प्रणालीगत नैतिकता का अनुसरण किया जाना चाहिए, भले ही वो एक बाधा के रूप में प्रतीत क्यों न हो रहे हों।
  • अनैतिक निर्णयों की तुलना में नैतिक निर्णयों की स्वीकार्यता और प्रभाव अधिक होता है।
  • नैतिक निर्णय सत्य एवं विवेक पर आधारित होते हैं और इसलिए उनमें अनैतिक निर्णयों की तुलना में अधिक स्पष्टता होती है। एक झूठ को छिपाने के लिए किसी व्यक्ति को और अनेक झूठ बोलने पड़ सकते हैं।
  • निर्णयकर्ता स्वयं के साथ भी तारतम्यता बनाए रहता है और अनुचित तनाव को रोक सकता है।
  • इससे उचित वरीयता और कार्य परिवेश का सृजन होता है और इस प्रकार समावेशी एवं संधारणीय विकास को बढ़ावा मिलता है।

नैतिक साधनों का अनुसरण करने वाले व्यक्ति को सहकर्मियों और नागरिकों से सम्मान एवं स्नेह प्राप्त होता है। नैतिकता के बिना विकास केवल सीमित लोगों को लाभ पहुंचाएगा, असमानता बढ़ाएगा और असंधारणीय होगा।

(c) छोटा-मोटा भ्रष्टाचार सेवा वितरण में तीव्रता लाता है।

दृष्टिकोण

  • दैनिक जीवन में सीमित स्तर तक (छोटे-मोटे) भ्रष्टाचार के संदर्भ में चर्चा कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि सीमित स्तर तक भ्रष्टाचार सेवा वितरण में तीव्रता लाने का एक उपाय क्यों नहीं हो सकता है।

उत्तर

भ्रष्टाचार तब सामान्य हो जाता है जब लोग सोचते हैं कि यह उनके जीवन में एक आवश्यक और स्वीकार्य उपकरण है। इसमें उच्च स्तर के भ्रष्टाचार के साथ छोटा-मोटा (सीमित स्तर तक) भ्रष्टाचार, दोनों सम्मिलित हैं। सीमित स्तर तक भ्रष्टाचार समाज के लिए बड़े घोटाले के समान ही हानिकारक होता है और सेवा वितरण में तीव्रता लाने हेतु एक लघु कीमत के रूप में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यह प्रत्यक्ष रूप में अंतिम उपयोगकर्ता (नागरिकों/व्यवसायों) को प्रभावित करता है और संपूर्ण समाज पर एक लागत अधिरोपित करता है।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल-2014 की एक रिपोर्ट में यह उल्लिखित है कि- “सीमित स्तर तक भ्रष्टाचार सामान्यतः उन सरकारी प्रक्रियाओं या अनुमतियों को अत्यंत नकारात्मक रूप से प्रभावित कर देता है जिन्हें परिचालनात्मक रूप से महत्वपूर्ण एवं अत्यावश्यक समझा जाता है”। उदाहरण के लिए, वस्तुओं की निकासी और आवागमन, जुर्माने संबंधी कार्य, कार्यस्थल पर निरीक्षण या अनुमोदन, उपयोगिताओं तक पहुंच, न्यायालयों एवं अन्य सांविधिक निकायों को दस्तावेज प्रस्तुत करना। इस प्रकार की गतिविधियों में उत्पन्न अवरोध किसी भी व्यवसाय या व्यक्ति को असक्षम बनाने का एक कारण हो सकता है।

निम्नलिखित कारणों से सीमित स्तर तक भ्रष्टाचार को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है:

  •  व्यवसायों और व्यक्तियों की दक्षता और प्रभावशीलता के संदर्भ में अत्यधिक लागत को अधिरोपित करता है।
  • हमारे आर्थिक और सामाजिक तंत्र में अवरोधों का मुख्य कारण है।
  • आत्म-सम्मान की हानि और सशक्तिकरण के अभाव की भावना को अधिरोपित करता है।
  • एक ऐसी प्रणाली को बढ़ावा देता है जिसमें वास्तविक कार्य दलालों या एजेंटों को ‘आउटसोर्स’ कर दिया जाता है और जो पारदर्शिता और निष्पक्षता को बाधित करती है।
  • विद्यमान संसाधनों का अधिकतम लाभ खुद को प्रदान करने की व्यवस्था (culture of rent-seeking), सेवा वितरण का अभाव और निम्नस्तरीय शासन की समस्या उत्पन्न करता है।
  • निवेशक के आत्मविश्वास, उद्यमशीलता व SMEs को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है और इस प्रकार यह आर्थिक विकास को बाधित करता है।
  • निहित स्वार्थों का एक अत्यंत सुदृढ़ परिवेश सृजित करता है, जो प्रणाली में सुधार लाने हेतु उठाये गए किसी भी कदम का विरोध करता है।

यद्यपि इसके कोई लाभ नहीं होते हैं तथापि इस प्रकार के भ्रष्टाचार को प्रायः लोगों/व्यवसायों द्वारा काम में तेजी लाने के एक तंत्र के रूप में स्वीकार किया जाता है। हालांकि, इस तरह के अदूरदर्शी दृष्टिकोण इसके उपर्युक्त दोषों और समाज पर अधिरोपित दीर्घकालिक लागत की अवेहलना कर देते हैं। भ्रष्टाचार के संबंध में शून्य सहिष्णुता (zero tolerance) की नीति अपनाई जानी चाहिए क्योंकि यह देश की समृद्धि और विकास को क्षति पहुंचाता है। भ्रष्टाचार पर अंकुश आरोपित करने हेतु सभी नागरिकों के समावेशी और न्यायसंगत विकास के लक्ष्य के साथ सार्वजनिक हित में वृद्धि करने के लिए प्रतिबद्ध एक नैतिक प्रशासन और सुदृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता है।

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