RCEP के अर्थ एवं महत्व का संक्षिप्त वर्णन : भारत की सक्रिय सहभागिता
प्रश्न: RCEP के महत्व की व्याख्या करते हुए, इस पहल में भारत की सहभागिता के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- प्रस्तावना में, RCEP के अर्थ एवं महत्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- तत्पश्चात RCEP वार्ता में भारत की सक्रिय सहभागिता पर चर्चा कीजिए।
- इस समझौते को बाधित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
- समझौते को शीघ्र संपन्न करने हेतु उपाय सुझाते हुए उत्तर को समाप्त कीजिए।
उत्तर
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है। इस पर ASEAN के दस सदस्य देशों और ASEAN के छह FTA साझेदारों अर्थात् भारत, ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड के मध्य वार्ता जारी है। RCEP में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए अत्यधिक संभावना निहित है। विश्व की लगभग आधी जनसंख्या RCEP के 6 भागीदार देशों में निवास करती है। ये देश वैश्विक GDP में लगभग 30 प्रतिशत और वैश्विक निर्यात में एक चौथाई से अधिक का योगदान करते हैं।
- यह पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापार को प्रभावी रूप से एकीकृत करके भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी को गति प्रदान कर सकता है।
- यह भारत के उन क्षेत्रों के लिए नए बाजार उपलब्ध करा सकता है जिनमें इसे प्रतिस्पर्धी बढ़त प्राप्त है जैसे-सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी, आईटी-सक्षम सेवाएं, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा सेवाएं इत्यादि।
- प्रतिस्पर्धा और उन्नत मानकों तक पहुँच से भारत के नियामकीय परिवेश में सुधार करने का अवसर प्राप्त होगा।
यद्यपि, भारत इस समझौते के प्रारंभिक समर्थकों में से एक है, भारत ने कुछ प्रावधानों के बारे में अपनी असहमति व्यक्त की है।
- ASEAN सदस्य देश आयात शुल्क को समाप्त करने के पक्ष में है, लेकिन भारत आयात शुल्क को हटाने के प्रति उत्सुक नहीं है। चूंकि इससे भारत में चीनी उत्पादों के अबाधित प्रवेश का मार्ग प्रशस्त होगा। चीन RCEP का एकमात्र देश है, जिसके साथ भारत ने किसी FTA पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और न ही इस प्रकार के समझौते पर कोई वार्ता की जा रही है। इसलिए, भारतीय उद्योग RCEP को चीन के साथ एक अप्रत्यक्ष FTA के रूप में देखता है।
- इससे भारतीय कृषि और उद्योग को अत्यधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त, मौजूदा वार्ता शर्तों के अधीन यह 92% वस्तुओं को कवर करेगा। भारत कुछ RCEP देशों की सार्वजनिक खरीद अनुभाग को खोलने की माँगों को पूरा करने का इच्छुक नहीं है।
- RCEP के कई सदस्य TRIPS से भी अधिक कठोर प्रावधान आरोपित करने का प्रयत्न कर रहे हैं। ये प्रावधान भारत में निर्मित जेनेरिक दवाओं तक पहुंच को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं।
- भारत ने त्रिस्तरीय प्रशुल्क प्रणाली प्रस्तुत की थी। इसके तहत भारत द्वारा चीन, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया को टैरिफ लाइन्स (वे उत्पाद जिनके लिए प्रशुल्क संबंधी कोई बाध्यता नहीं है) के रूप में 42.5 प्रतिशत, FTA साझेदारों दक्षिण कोरिया और जापान को 65 प्रतिशत और आसियान के को सर्वाधिक 80 प्रतिशत का प्रस्ताव किया गया था। हालांकि, इसे सभी सदस्यों ने अस्वीकृत कर दिया था।
- दूसरी ओर, भारत सेवा क्षेत्र में उदारीकरण चाहता है। पेशेवरों के आवागमन के लिए कार्य-वीजा सहित सेवा क्षेत्र में अभी तक के प्रस्ताव निराशाजनक रहे हैं। इस संबंध में कोई भी देश सार्थक योगदान करने के तैयार नहीं है।
जबकि भारत ASEAN के साथ अपनी सहभागिता के एक भाग के रूप में RCEP के प्रति प्रतिबद्ध है, किन्तु यह भी इस बात पर निर्भर है कि बाह्य व्यापार समझौते, मेक इन इंडिया जैसी घरेलू प्रतिबद्धताओं का अनिवार्य रूप से समर्थन करें। इस आलोक में, यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि अन्य सदस्य देश भी सेवा क्षेत्र में व्यापार हेतु समान रूप से उत्साहपूर्वक सहभागी हों। RCEP के लिए अपनी क्षमता को प्राप्त करने हेतु भारत एक प्रमुख अभिकर्ता है और इस तरह के महत्वपूर्ण समझौते द्वारा सभी साझेदारों की संवेदनशीलताओं और महत्वाकांक्षाओं को संबोधित किया जाना चाहिए।
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