नैतिक अभिवृत्ति की अवधारणा : सोशल मीडिया और लोगों की नैतिक अभिवृत्ति

प्रश्न: नैतिक अभिवृत्ति की अवधारणा को समझाते हुए, चर्चा कीजिए कि सोशल मीडिया लोगों की नैतिक अभिवृत्ति को कैसे आकार दे रहा है।

दृष्टिकोण

  • नैतिक अभिवृत्ति की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
  • सोशल मीडिया लोगों की नैतिक अभिवृत्ति को कैसे आकार प्रदान कर रहा है, चर्चा कीजिए।

उत्तर

नैतिक अभिवृत्तियां वे अभिवृत्तियां हैं, जो किसी वस्तु या किसी व्यक्ति के सही या गलत होने की नैतिक धारणा पर आधारित हैं। जैसा कि नैतिक धारणाएं व्यक्ति दर व्यक्ति भिन्न हो सकती हैं, नैतिक अभिवृत्तियां भी सार्वभौमिक नहीं हैं। सभी अभिवृत्तियां नैतिकता से नहीं जुड़ी हो सकती हैं जैसे कि आहार संबंधी प्राथमिकताएं। इसका कारण यह है कि अभिवृत्ति अपने आप में एक मूल्य नहीं है। नैतिक अभिवृत्ति के कुछ उदाहरण हैं- संपूर्ण सृष्टि के प्रति श्रद्धा (reverence) अर्थात् प्रत्येक जीवन के लिए सम्मान चाहे वह मानव हो, पशु हो या पौधा हो; निष्ठा (faithfulness) अर्थात किसी व्यक्ति या किसी वस्तु के प्रति वफादार या निष्ठावान रहना और उस निष्ठा को किसी भी बात से निरपेक्ष निरंतर अभ्यास में लाना।

नैतिक अभिवृत्तियां आम तौर पर भावनाओं से सम्बद्ध होती हैं। एक ओर, यह एक व्यक्ति को परोपकारिता, करुणा, ईमानदारी का पाठ पढ़ाकर सामाजिक रूप से जिम्मेदार बनने को बढ़ावा दे सकती हैं, जबकि दूसरी ओर, ये नकारात्मक भावनाएं भरने की भी शक्ति रखती हैं, जैसे कि किसी व्यक्ति को हिंसा,बल का उपयोग करने के लिए प्रेरित करना आदि।

नैतिक अभिवृत्तियां परिवार, समाज, स्कूल, धर्म आदि के गहरे प्रभाव से सृजित होती हैं। हाल के दिनों में सोशल मीडिया नैतिक अभिवृत्तियों के गठन को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारकों में से एक के रूप में उभर रहा है।

यह निम्नलिखित प्रकार से नैतिक अभिवृत्तियों को प्रभावित करता है:

  • असीमित दृश्य एवं श्रव्य सामग्रियों तक पहुँच और उनका व्यसन: सूचना क्रांति के आगमन के साथ, लोगों की अब हर समय सूचनाओं तक पहुँच है। यद्यपि यह निश्चित रूप से उन्हें अत्यधिक जागरूक बनाता है किन्तु इसके कारण अतिशय सक्रियता के मामले भी देखने को मिलते हैं, इसके अलावा लोग सोशल मीडिया के आदी भी हो जाते हैं।
  • बढ़ती सुभेद्यता: जिस प्रकार लोगों को स्वयं को व्यक्त करने हेतु एक मंच मिला है, सोशल मीडिया भी लगातार ऑनलाइन ट्रोलिंग और कभी-कभी अनुचित आलोचना का एक स्रोत बन जाती है। उचित पर्यवेक्षण और मार्गदर्शन के बिना यह एक नकारात्मक और विध्वंसकारी वातावरण बना सकता है। इसके अतिरिक्त, विनियमन की कमी के कारण बच्चे और युवा कई बार अनुचित सामग्री के संपर्क में आ जाते हैं गलत चीजों की ओर आकर्षित हो जाते हैं।
  • जिम्मेदारी का त्याग: यद्यपि सोशल मीडिया जागरूकता बढ़ाता है, तथापि यह संभवतः ही कभी वास्तविक परिवर्तन लाता है क्योंकि लोगों का योगदान वास्तव में जमीनी स्तर पर संलग्न हुए बिना स्वयं को ऑनलाइन गतिविधियों के माध्यम से व्यक्त करने तक ही सीमित हो जाता है।
  • सार्वजनिक और निजी गठन के प्रति अस्पष्टता: गोपनीयता की धारणा परिवर्तित हो गई है, लेकिन इससे लोगों से सम्बंधित जानकारी के दुरुपयोग का खतरा भी है। भ्रम यह समझने की कमी से उत्पन्न होता है कि वास्तव में ऑनलाइन प्रोफाइल के निजी और सार्वजनिक तत्व कैसे काम करते हैं।
  • एक कृत्रिम स्वरूप का चित्रण: समुदाय के साथ चुनिंदा पोस्ट्स को साझा करना समाज के नैतिक ताने-बाने को प्रभावित करने वाले ईर्ष्या, घृणा, नकारात्मक प्रतिस्पर्धा आदि जैसे मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है।

इस प्रकार, सोशल मीडिया कई रूपों में नैतिक अभिवृत्तियों को प्रभावित कर रहा है। यद्यपि सोशल मीडिया सूचनाओं के साझाकरण, सीखने के परिणामों, समाज में जुड़ाव और नेटवर्किंग को बढ़ावा दे रहा है, तथापि कुछ नैतिक निहितार्थों पर भी विचार करने की अवश्यकता है और प्रभावों की निगरानी हेतु आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए।

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