फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (FPTP) सिस्टम
प्रश्न: टिप्पणी कीजिए कि क्या फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम पर फिर से विचार किए जाने और इसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व या मिश्रित प्रणाली से प्रतिस्थापित किए जाने की आवश्यकता है।
दृष्टिकोण:
- परिचय में, समझाइए कि फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (FPTP) सिस्टम क्या है।
- इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क देते हुए बताइए कि क्यों यह भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के लिए उपयुक्त नहीं है।
- FPTP सिस्टम के विकल्पों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (FPTP) सिस्टम का तात्पर्य है कि जो उम्मीदवार अधिकतम मत प्राप्त करता है वह चुनाव में विजयी होता है। FPTP सिस्टम को सबसे सरल चुनावी प्रणाली माना जाता है और यह विभिन्न लाभ है जैसे- मतदाताओं को लोगों और दलों के मध्य चयन करने की अनुमति प्रदान करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने आर. सी. पौड्याल बनाम भारत संघ वाद में यह चिन्हित किया था कि यह आम चुनाव में बहुमत प्राप्त दल को सरकार बनाने का लाभ प्रदान करता है।
हालांकि, FPTP सिस्टम का एक बड़ा दोष यह है कि यह लोकतंत्र में वास्तविक बहुमत के नियम को निर्धारित नहीं करता है। उदाहरण के लिए, 2014 के आम चुनावों में लोकसभा में एकमात्र सबसे बड़े दल ने लगभग 31% वोटों की हिस्सेदारी के साथ आधे से अधिक सीटें प्राप्त की थी, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 4.2 प्रतिशत के साथ एक दल को लोकसभा में एक भी सीट प्राप्त नहीं हुई थी।
इसके अन्य दोष निम्नलिखित हैं:
- इसके परिणामस्वरूप संसद से छोटे अथवा क्षेत्रीय दलों का अपवर्जन होता है।
- निर्वाचन क्षेत्रों में जहां दो से अधिक उम्मीदवार होते हैं, निर्वाचित होने के लिए विजयी उम्मीदवार को कम वोटों की आवश्यकता होती है। यह लोकप्रिय बने रहने और पुन: निर्वाचन सुनिश्चित करने के लिए लोकप्रियता, वोट बैंक, प्रतिस्पर्धी राजनीति या क्षेत्रीय राजनीति को प्रोत्साहित करता है।
इन चिंताओं का समाधान करने के लिए, FPTP से भिन्न विकल्पों में निम्नलिखित प्रस्तावित हैं:
आनुपातिक प्रतिनिधित्व
इस प्रणाली में किसी पार्टी या उम्मीदवारों के समूह द्वारा प्राप्त की गई सीटों की संख्या प्राप्त मतों की संख्या के अनुपात में होती
इस प्रणाली के निम्न लाभ हैं:
- सीटों और मतों की हिस्सेदारी के मध्य असंगतता को दूर किया जाना।
- प्रतिनिधित्व चूँकि यह सुनिश्चित करता है कि छोटे दलों को विधानमंडल में सीटें प्राप्त हो, विशेषकर तब जब उन्हें निर्वाचन क्षेत्रों में व्यापक आधार प्राप्त होता है।
दोष
- गठबंधन सरकारों (इसकी चुनौतियों के साथ) के गठन की बारंबारता आनुपातिक प्रतिनिधित्व में अधिक है।
- मतदाता और उम्मीदवार के मध्य संबंध कमजोर हो सकते हैं, क्योंकि उम्मीदवार को दल का प्रतिनिधित्व करने के रूप में देखा जा सकता है, न कि निर्वाचन क्षेत्र का।
- चुनाव पश्चात नए गठबंधन सहयोगियों के माध्यम से सरकार का एक बहिष्कृत दल सत्ता में रह सकता है। इस प्रकार, PR सिस्टम मतदाताओं के प्रति उत्तरदायित्व में कमी लाता है।
मिश्रित प्रणाली: इस प्रणाली में, कुछ सीटें FPTP प्रणाली के आधार पर निर्वाचित होती हैं और शेष सीटें चुनावों में दलों द्वारा सुरक्षित मतों के आधार पर प्राप्त होती हैं। यह सरकार की स्थिरता और सभी सामाजिक समूहों के प्रतिनिधित्व के मध्य संतुलन स्थापित करने का कार्य करता है। जर्मनी और न्यूजीलैंड जैसे देशों में मिश्रित प्रणाली को सफलतापूर्वक अपनाया गया है।
विभिन्न चुनावों में यह देखा गया है कि “बहुमत की आकांक्षा (majority aspirations)” और लोगों की इच्छा चुनाव परिणामों में प्रतिबिंबित नहीं होती है। यदि FPTP सिस्टम को समाप्त नहीं किया जाता है तो भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को लोगों की इच्छा के प्रति अधिक उत्तरदायी और विचारशील बनाने के लिए, FPTP सिस्टम की विसंगतियों और संबंधित त्रुटियों को कम किया जाना चाहिए। इस प्रकार, 170वीं और 255वीं विधि आयोग की रिपोर्टों की सिफारिशों को गंभीरतापूर्वक लिया जाना चाहिए और चरणबद्ध तरीके से, FPTP और आनुपातिक प्रतिनिधित्व दोनों का मिश्रण किया जाना चाहिए।
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