राष्ट्रीय पोषण रणनीति का महत्व : ग्लोबल हंगर इंडेक्स
प्रश्न: ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की गिरती रैंकिंग के आलोक में आरंभ की गई राष्ट्रीय पोषण रणनीति के महत्व की व्याख्या कीजिए। साथ ही, पोषण से संबद्ध पहलों को बढ़ावा देने, उनकी निगरानी करने और उन्हें सतत बनाए रखने में स्थानीय स्व-शासन द्वारा निभाई जा सकने वाली भूमिका पर उदाहरण सहित चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
दृष्टिकोण
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की गिरती रैंकिंग का संक्षिप्त विवरण दीजिए तथा इसके परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय पोषण रणनीति का महत्व बताइए।
- पोषण स्तर सुधारने में स्थानीय स्वशासन के महत्व पर प्रकाश डालिए। उचित निष्कर्ष देते हुए उत्तर का समापन कीजिए।
उत्तर
119 देशों पर आधारित वर्ष 2017 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग 97 से गिर कर 100 हो गई है। इसके साथ ही, भारत के 30 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषित हैं तथा भारत सर्वाधिक कुपोषण व्याप्त राष्ट्रों में शामिल है। ऐसे में ‘कुपोषण मुक्त भारत’ की परिकल्पना करने वाली राष्ट्रीय पोषण रणनीति (NNS) एक स्वागत योग्य पहल है।
NNS का महत्व
- एक समग्र दृष्टिकोण: इस रणनीति का उद्देश्य महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य, भोजन और सार्वजनिक वितरण, स्वच्छता, पेयजल तथा ग्रामीण विकास जैसे विभिन्न क्षेत्रकों की पोषण संबंधी पहलों का समेकन करना है।
- इसके अंतर्गत मातृ देखभाल और पोषण पर विशेष ध्यान दिया गया है जिससे निर्देशित पोषण कार्यक्रम के माध्यम से मातृ मृत्यु दर में 1/5 हिस्से तक की कटौती की जा सके।
- इसका उद्देश्य निगरानी योग्य लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित कर कुपोषण को कम करना है।
- यह जीवन-चक्र दृष्टिकोण (Life Cycle Approach) स्वीकार करता है जिससे कुपोषण का पीढ़ी-दर -पीढ़ी चलने वाला चक्र नियंत्रित हो सके।
- यह निवारक कार्यवाही पर, उसे स्वच्छता और समय पर हस्तक्षेप से सम्बद्ध करके, फोकस करता है।
स्थानीय स्वशासन की भूमिका
73वें और 74वें संशोधनों में कुपोषण के तात्कालिक और अंतर्निहित निर्धारकों को संबोधित करने वाले विषयों जैसे स्वास्थ्य, स्वच्छता और पीने का पानी तथा अन्य को सम्मिलित किया गया है। इसलिए यह आवश्यक है कि स्थानीय स्वशासन का पोषण सम्बन्धी पहलों पर अधिकार हो, वह उन्हें प्रोत्साहित करे, उनकी निगरानी करे और साथ ही उन्हें संधारणीय बनाए रखे अर्थात् कार्यवाही का जमीनी स्तर पर प्रभावी संकेन्द्रण किया जाए। यह चौदहवें वित्त आयोग की संस्तुतियों (जिसमें राज्यों के साथ साथ और PRIs तथा ULBs के लिए भी संसाधनों का वृहत्तर वितरण सम्मिलित है) के कार्यान्वयन के आलोक में और भी अधिक प्रासंगिक है।
एक विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण अपनाने से, स्थानीय स्व-शासन (LSG) इकाइयाँ स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार कार्यक्रम तैयार करने की बेहतर स्थिति में होंगी। उदाहरणार्थ, यदि किसी क्षेत्र के लोगों में आयरन की कमी नहीं है और आयरन के सप्लीमेंट प्रदान करने का एक समान दृष्टिकोण कार्यान्वित किये जाने के कारण वहाँ भी ये उपलब्ध कराए जाते हैं, तो यह लाभ देने की अपेक्षा हानिकारक अधिक होगा। इसलिए, वास्तविक कमी का पता लगाने का कार्य उस क्षेत्र विशेष की LSG को सौंपा जाना चाहिए।
इसी प्रकार, LSGs कार्यक्रम की प्रत्यक्ष निगरानी कर सकती हैं, जिससे कार्यान्वयन के चरण की कमियों का पता लगाने में सहायता मिलती है। यथा, मनरेगा में सामाजिक लेखा परीक्षा की अवधारणा कार्यक्रम के जवाबदेही तंत्र को उन्नत बनाती है। NNS का भी कार्यान्वयन इसी प्रकार किया जाना चाहिए।
पोषण रणनीति फ्रेमवर्क में स्वच्छ भारत और स्वस्थ भारत से जुड़े एक कुपोषण मुक्त भारत की परिकल्पना की गयी है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि राज्य स्थानीय आवश्यकताओं एवं चुनौतियों को संबोधित करते हुए, राज्य व जिले के लिए विशेषीकृत कार्यवाही योजनाओं का निर्माण करें। यह राज्यों के पास संसाधनों की बढ़ी हुई उपलब्धता के सन्दर्भ में विशेष रूप से प्रासंगिक है, ताकि पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों की वृहत्तर भूमिका के साथ प्राथमिकता केंद्रित पहलों का निर्धारण किया जा सके।
Read More
- स्वास्थ्य वित्तपोषण : दीर्घावधिक रणनीति के रूप में बीमा को सुदृढ़ करने से संबंधित मुद्दे
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन : गैर-संचारी रोगों से संबंधित चिंता
- केस स्टडीज : मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के प्रति प्रचलित सामाजिक दृष्टिकोण की विवेचना
- सामाजिक मूल्यों और परंपरा : महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों का उल्लंघन
- सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज़ : आयुष्मान भारत योजना का महत्त्व और चुनौती