सामाजिक मूल्यों और परंपरा : महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों का उल्लंघन

प्रश्न: महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों का उल्लंघन प्राय: सामाजिक मूल्यों और परंपराओं में गंभीरतापूर्वक अंतर्निविष्ट हैं। टिप्पणी कीजिए।

दृष्टिकोण

  • आंकड़ों का उपयोग करते हुए महिलाओं के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी अधिकारों के उल्लंघन को रेखांकित कीजिए।
  • उपयुक्त उदाहरणों के माध्यम से सामाजिक मूल्यों एवं परंपराओं और इन अधिकारों के उल्लंघन के मध्य अंतर्संबंध स्थापित कीजिए।
  • उपर्युक्त तर्कों के आलोक में, उत्तर को उपयुक्त निष्कर्ष के साथ समाप्त कीजिए।

उत्तर

व्यापक यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य तथा संबंधित अधिकारों तक पहुंच एक मूलभूत मानवाधिकार है। हालांकि, उपलब्ध आंकड़े प्रदर्शित करते हैं कि संपूर्ण विश्व में महिलाओं एवं कन्याओं को यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी अधिकारों से वंचित किया जाता है। विश्व भर में 214 मिलियन महिलाओं की गर्भनिरोधक उपायों तक पहुँच नहीं है; प्रतिदिन 800 से अधिक महिलाओं की मृत्यु गर्भावस्था एवं प्रसव से संबंधित ऐसे कारणों से हो जाती है जिनका निवारण किया जाना संभव होता है। प्रायः इन अधिकारों का उल्लंघन पारंपरिक रूप से समाज द्वारा निर्धारित और अनुसरित किए जाने वाले अमूर्त भावनाओं तथा सांस्कृतिक मानकों द्वारा किया जाता है, जिसे निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है: 

  • पितृसत्तात्मक समाजों में, महिलाओं को उनकी प्रजनन क्षमता के आधार पर आंका जाता है। इसके कारण उन्हें कम आयु में विवाह एवं गर्भावस्था का सामना करना पड़ता है, या लड़का उत्पन्न करने के प्रयास में बार-बार कम अवधि के अंतराल पर गर्भधारण करना पड़ता है।
  • गौरवान्वित मातृत्व की अवधारणा बच्चे की आवश्यकताओं के समक्ष महिलाओं की प्रसवोत्तर देखभाल को गौण बना देती है।
  • मासिक धर्म स्वास्थ्य भी एक ऐसा महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसके साथ सांस्कृतिक वर्जना (टैबू) एवं अन्धविश्वास गहराई से जुड़ चुके हैं। इसके अतिरिक्त, इससे सम्बंधित स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधी प्रथाओं के विषय में जागरुकता का अभाव, मासिक धर्म के सुरक्षित रूप से प्रबंधन हेतु आवश्यक सामग्रियों की अनुपलब्धता, शौचालय तक पहुँच के अभाव संबंधी समस्याएं आदि इसे और भी जटिल बना देती हैं।
  • लैंगिक भेदभाव के कारण दहेज प्रथा को प्रोत्साहन मिलता है, जो कन्या शिशु के प्रति पक्षपात को प्रेरित करता है। इसके कारण बलात और असुरक्षित गर्भपात को बढ़ावा मिलता है।
  • महिलाओं को अंतः गर्भाशयी (इंट्रा यूटेराइन) युक्तियों के उपयोग संबंधी भार का सामना करना पड़ता है तथा नसबंदी/गर्भाशय-उच्छेदन से भी गुजरना पड़ता है, जो उन्हें मूत्र पथ के संक्रमण और अन्य जटिलताओं के प्रति सुभेद्य बना देता है।
  • विभिन्न रूढ़ियों, जैसे- महिलाओं की लैंगिकता और असमान शक्ति संबंधों के कारण महिलाएं प्रायः यौन संबंधों को अस्वीकार करने अथवा सुरक्षित यौन संबंधों हेतु दबाव डालने में असमर्थ होती हैं, जो उन्हें HIV/एड्स सहित अनेक यौन संक्रमित रोगों के प्रति सुभेद्य बना देता है।
  • पवित्रता के नियम (सामान्यतः धर्म द्वारा स्वीकृत) अनावश्यक हस्तक्षेपों को उत्पन्न करते हैं, जैसे कि महिला जननांग विकृति, बलात कौमार्य परीक्षण और योनिच्छद का उपचार करना। कई समाजों में परिवार नियोजन, गर्भपात और गर्भ निरोध संबंधी उपायों के उपयोग को वर्जित माना जाता है।
  • शिक्षा तक पहुंच का अभाव अंतत: यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी अधिकारों के प्रति महिलाओं की अनभिज्ञता सुनिश्चित करता है।

राजनीतिक-आर्थिक परिस्थितियाँ, जैसे कि प्रजनन स्वास्थ्य, परिवार नियोजन इत्यादि पर बजटीय व्यवधान, महिलाओं हेतु यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों की उपलब्धता को निर्धारित करने में सामाजिक मूल्यों और मानदंडों की भूमिका को सुदृढ बना देती हैं।

इसे चिन्हित करते हुए भारत सरकार द्वारा कुछ कदम उठाए गए हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • प्रजनन, मातृ, नवजात शिशु, बाल और किशोर स्वास्थ्य (RMNCH+A) दृष्टिकोण (जिसे ‘निरंतर देखभाल’ की समझ प्रदान करने के लिए विकसित किया गया है) को अपनाना ताकि विभिन्न जीवन चरणों पर समान रूप से ध्यान केंद्रित किया जा सके।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में महिलाओं के स्वास्थ्य और लैंगिक मुद्दों को मुख्यधारा में लाने का उल्लेख किया गया है; जिसमें प्रजननशील आयु वर्ग से अधिक आयु (40+) की महिलाओं की प्रजनन रुग्णता और स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए संवर्धित प्रावधान सम्मिलित हैं।
  • राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसी योजनाओं, जिनमें यौन प्रजनन स्वास्थ्य एक मुख्य क्षेत्र है, का संचालन करना।
  • वहनीय बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी नैपकिन प्रदान करना।

बीजिंग में आयोजित चौथी वर्ल्ड कांफ्रेंस ऑन वीमेन की घोषणा के अनुरूप, महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के साथसाथ शिक्षा को भी बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है ताकि सभी महिलाओं के लिए समानता, विकास और शांति के लक्ष्यों को आगे बढ़ाया जा सके। प्राथमिक और माध्यमिक स्वास्थ्य सेवाओं का सार्वभौमीकरण, महिलाओं एवं नवजातों हेतु प्रसव पूर्व तथा प्रसवोत्तर देखभाल का मानकीकरण तथा व्यवहार संबंधी परिवर्तन के माध्यम से महिलाओं के प्रजनन और यौन स्वास्थ्य के संदर्भ में पूर्ण शारीरिक, सामाजिक और मानसिक कल्याण की स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए अभी अनेक प्रयास किये जाने शेष हैं।

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