भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी आंदोलन : भगत सिंह का योगदान
प्रश्न: भगत सिंह के योगदान पर विशेष बल देते हुए, 1920 और 1930 के दशक के दौरान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी आंदोलन की कार्यप्रणाली को रेखांकित कीजिए।
दृष्टिकोण
- 1920-30 के दशक में क्रांतिकारी आंदोलन की लोकप्रियता का कारण प्रस्तुत करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
- इन वर्षों के दौरान घटित प्रमुख घटनाओं पर चर्चा कीजिए।
- भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने में भगत सिंह द्वारा किए गए योगदान पर चर्चा कीजिए।
- भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष पर क्रांतिकारी आंदोलन के प्रभाव को स्पष्ट करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।
उत्तर
1922 में असहयोग आंदोलन के अचानक वापस लिए जाने के कारण लोगों के मध्य भ्रांतियां उत्पन्न हुईं तथा साथ ही राष्ट्रीय नेतृत्व के सिद्धांत पर भी सवाल खड़े हो गए। इसके परिणामस्वरूप लोग अन्य विकल्पों की ओर प्रेरित हुए और इस प्रकार क्रांतिकारी या गरमपंथी विचारधारा को मज़बूती मिली।
क्रांतिकारी आंदोलन को कई महत्वपूर्ण घटनाओं के रूप में संदर्भित किया जाता है, जैसे कि :
- हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन/सेना या HRA का गठन (1924) रामप्रसाद बिस्मिल, जोगेश चंद्र चटर्जी तथा शचींद्रनाथ सान्याल द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने हेतु एक सशस्त्र क्रांति का आरंभ करना था।
- काकोरी डकैती काण्ड (1925): HRA की गतिविधियों के वित्तपोषण हेतु ट्रेन को लूटा गया था। इसके आरोप में कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया तथा रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी दे दी गई।
- हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA), 1928 : काकोरी कांड की विफलता के पश्चात, चंद्र शेखर आजाद के नेतृत्व में HSRA की स्थापना की गई।
- चटगांव शस्त्रागार छापा (1930): बंगाल में सूर्य सेन द्वारा अपने सहयोगियों के साथ मिलकर टेलीफोन और टेलीग्राफ लाइनों को नष्ट करने तथा क्रांतिकारियों को हथियार उपलब्ध कराने हेतु दो शस्त्रागारों पर कब्जा करने हेतु हमला किया गया था। सूर्य सेन को 1934 में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें फांसी दे दी गई। सूर्य सेन की नेतृत्व में महिलाओं की व्यापक स्तर पर भागीदारी रही जैसे कि कल्पना दत्त, प्रीतिलता वादेदार आदि।
भगत सिंह का योगदान
- क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए स्थापित HSRA और पंजाब नौजवान भारत सभा के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
- भगत सिंह मार्क्सवाद में विश्वास करते थे और उन्होंने कहा कि क्रांति का अर्थ क्रांतिकारी बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा समाज के शोषित और दमित वर्गों के हितों हेतु जन आंदोलन का विकास और संगठन करना है। इस प्रकार उन्होंने क्रांति के अर्थ और उसकी समझ को व्यापक बनाया। अब क्रांति का तात्पर्य केवल हिंसा करना ही नहीं रह गया था। इसका प्रथम उद्देश्य साम्राज्यवाद को उखाड़ फेंकना था तथा एक ऐसी नई समाजवादी सामाजिक व्यवस्था का विकास करना था जिसमें व्यक्ति द्वारा व्यक्ति का शोषण न हो।
उन्होंने बटुकेश्वर दत्त के साथ 1929 में केंद्रीय विधान सभा में बम फेंका, इसका उद्देश्य किसी को हानि पहुँचाना नहीं था बल्कि लोगों को परिवर्तित उद्देश्यों और सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता से अवगत कराना था।
- वह नस्लीय भेदभाव के खिलाफ थे तथा श्वेत और स्थानीय कैदियों के मध्य हो रहे विभेदीकृत व्यवहार के विरोध में उन्होंने अपने कैदी साथियों के साथ भूख हड़ताल की थी। उन्होंने कैदियों के साथ ‘राजनीतिक कैदियों’ के रूप में व्यवहार किए जाने की भी मांग की थी। भूख-हड़ताल पर बैठे कैदियों को पूरे देश का समर्थन प्राप्त हुआ और भगत सिंह अत्यंत चर्चित व्यक्ति बन गए।
- वह पूर्णतः एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति थे और सांप्रदायिकता को उपनिवेशवाद की भांति सबसे बड़ा शत्रु मानते थे। उन्होंने अपने निबंध – ‘मैं नास्तिक क्यों हूं‘ में लोगों को धर्म और अंधविश्वास के मानसिक बंधन से मुक्त होने पर बल दिया।
भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई थी। किंतु इतनी कम आयु में शहीद होने के बावजूद उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के राजनीतिक दर्शन पर एक अमिट छाप छोड़ी। इसके अतिरिक्त, 1930 के दशक के प्रारंभ में, क्रांतिकारी आंदोलन कमजोर पड़ गया; हालाँकि, इसने स्वतंत्रता संघर्ष में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया। क्रांतिकारियों की देशभक्ति, अदम्य साहस और बलिदान ने लोगों की भावनाओं को जागृत किया तथा राष्ट्रीय चेतना के प्रसार में सहायता प्रदान की।
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