अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में राज्येत्तर कर्ताओं की भूमिका और भारत के राजनयिक संबंध

प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में राज्येत्तर कर्ताओं की भूमिका और भारत के राजनयिक संबंधों एवं सामरिक हितों पर उनके प्रभाव का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • राज्येत्तर कर्ताओं की संक्षिप्त परिभाषा देते हुए अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में उनकी भूमिका को वर्णित कीजिए।
  • भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और सामरिक हितों पर राज्येत्तर कर्ताओं के प्रभावों (सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों रूपों में) का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।

उत्तर

राज्येत्तर कर्ता ऐसी गैर-संप्रभु संस्थाएं हैं जो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण आर्थिक, राजनीतिक या सामाजिक शक्तियों तथा प्रभाव का उपयोग करती हैं। विभिन्न परिभाषाओं के द्वारा व्यापार संघों, सामुदायिक संगठनों, धार्मिक संस्थाओं, सजातीय समूहों, विश्वविद्यालयों, गैर-सरकारी संगठनों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा प्रभावशाली व्यक्तियों को राज्येत्तर कर्ताओं के रूप में परिभाषित किया जाता है।

राज्येत्तर कर्ताओं का अंतर्राष्ट्रीय संबंधों तथा सामरिक हितों पर प्रभाव:

  • राज्य केन्द्रित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था पर प्रभाव: राज्येत्तर कर्ता अंतर्राष्ट्रीय मामलों में जनमत निर्माण को आकार प्रदान करते हैं तथा समकालीन विश्व व्यवस्था में ये शक्तिशाली गैर-राजनीतिक, वाणिज्यिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं व्यापारिक कर्ताओं के रूप में उभरे हैं। उदाहरणार्थ बहुराष्ट्रीय कंपनियां एवं गैर-सरकारी संगठन राष्ट्रों के मध्य संबंधों को विकसित करने में सहायता और आर्थिक विकास एवं शांति में वृद्धि करते हैं। इसी प्रकार “ट्रैक-II डिप्लोमेसी” एवं ट्रांस-नेशनल डायस्पोरा द्वारा परम्परागत कूटनीति की रूढ़िवादिता में कमी की जा सकती है तथा दुःसाध्य (intractable) समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। हाल ही में, भारत और पाकिस्तान के मध्य एक ट्रैक II पहल के रूप में नीमराणा वार्ता’ पुनरिंभ की गयी है, जो इस पक्ष को सही सिद्ध करती है।
  • विकास संबंधी मुद्दों पर प्रभाव: राज्येत्तर कर्ता ऐसी गतिविधियों में संलिप्त हो सकते हैं जो भारत जैसे विकासशील देशों के हितों के विरुद्ध विकसित देशों के हितों में और अधिक वृद्धि कर सकती हैं। उदाहरण के लिए इंटेलिजेंस ब्यूरो रिपोर्ट,द्वारा भारत में विदेशों से वित्तपोषित कुछ गैर-सरकारी संगठनों की विकास-विरोधी भूमिका को उजागर किया गया था। इसी प्रकार, भारतीय न्यायालयों में पेटेंट से संबंधित मामलों में शामिल फार्मास्युटिकल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोपीय संघ द्वारा सहायता की गई थी। इससे यह प्रमाणित होता है कि राज्येत्तर कर्ता स्वास्थ्य देखभाल जैसे मुद्दों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • संप्रभुता की अवधारणा के समक्ष संभावित चुनौती: ये अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में समस्याएं उत्पन्न करने के साथ-साथ सामरिक हितों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए:
  • पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैय्यबा ने जम्मू और कश्मीर तथा देश के अन्य भागों में अस्थिरता उत्पन्न की है। इस प्रकार भारत के सामरिक हितों को क्षति पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है।
  • बब्बर खालसा इंटरनेशनल (एक सिख आतंकवादी संगठन) को कुछ कैनेडियाई सरकारी अधिकारियों द्वारा प्रदत्त समर्थन के कारण कैनेडियाई प्रधानमंत्री की हालिया भारत यात्रा में भारत के समक्ष समस्या उत्पन्न हुई।
  • भारतीय तमिल समुदाय की LTTE के प्रति सहानुभूति ने भारत और श्रीलंका के मध्य संबंधों को जटिल बना दिया था।
  • वर्ष 2012 में निजी रूप से नियोजित इतालवी मरीन द्वारा दो भारतीय मछुआरों की हत्या तथा जांच क्षेत्राधिकार संबंधी चिंताओं को यूरोपीय संघ-भारत द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौतों पर धीमी प्रगति के एक प्रमुख कारण के रूप में उद्धृत किया गया है।
  • पूर्वोत्तर भारत के विद्रोही समूह जो प्राय: बचाव हेतु म्यांमार में शरण लेते हैं, द्विपक्षीय संबंधों में बाधा उत्पन्न करते

यद्यपि जहाँ कुछ ऐसे राज्येत्तर कर्ता हैं जो संवृद्धि और विकास के अग्रदूत हैं तथा भारत की सॉफ्ट पॉवर में वृद्धि करते हैं। इसके विपरीत कुछ राज्येत्तर कर्ता ऐसे भी हैं जिनसे भारत को अपने राष्ट्रीय हितों के संरक्षण तथा अन्य देशों के साथ अपने कूटनीतिक एवं सामरिक संबंधों के संदर्भ में सावधान रहने की आवश्यकता है।

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