राजकोषीय परिषद (IFC) : भारत में राजकोषीय प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही का समावेश करने हेतु

प्रश्न: भारत में राजकोषीय प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही का समावेश करने हेतु एक स्वतंत्र राजकोषीय परिषद (IFC) की आवश्यकता की चर्चा कीजिए।(150 words)

दृष्टिकोण

  • वर्तमान राजकोषीय व्यवस्था से संबंधित मुद्दों का संक्षेप में उल्लेख करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार राजकोषीय परिषद राजकोषीय प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही का समावेश करके इन मुद्दों का समाधान करने में सहायक होगी।
  • इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य और समिति/आयोग की अनुशंसाओं को उद्धृत करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

हाल के दिनों में, भारत में समष्टिगत अर्थव्यवस्था संबंधी राजकोषीय व्यवस्था को खराब बजटीय पूर्वानुमान, ‘रचनात्मक लेखांकन’ (creative accounting) के उपयोग से राजकोषीय घाटे को कम दर्शाने, अतिरिक्त बजटीय संसाधनों (EBRs) पर निर्भरता बढ़ाने, केंद्र और राज्यों के लिए एक समान राजकोषीय समेकन नियमों के अभाव, राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम के लक्ष्यों का पालन न करने आदि के संबंध में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है।

वर्तमान राजकोषीय नीति व्यवस्था में व्याप्त इन कमियों को एक स्वतंत्र राजकोषीय परिषद (IFC) की स्थापना करके उपयुक्त रूप से कम किया जा सकता है। बहु-वर्षीय राजकोषीय पूर्वानुमान तैयार करने और सार्वजनिक ऋण के संधारणीय स्तर को निर्धारित करने के अतिरिक्त, यह केंद्र सरकार की उधारी का स्वतंत्र आकलन प्रदान करेगी। इस प्रकार के संस्थागत तंत्र से विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन पद्धतियों का विकास होगा जिससे राजकोषीय प्रक्रिया में निम्नलिखित रूप से पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार होगा:

  • इससे सरकार के बजट-निर्माण में आवश्यक विश्लेषणात्मक और तकनीकी जानकारी उपलब्ध होगी जिससे सरकार की राजस्व और व्यय संबंधी योजनाओं के बेहतर निर्देशन में सहायता मिलेगी।
  • यह बजटीय आकलनों का बजट-पूर्व एवं बजट-पश्चात्, दोनों प्रकार का विश्लेषण प्रदान करेगा और राजकोषीय नीति संबंधी नियमों (FRBM अधिनियम) के कार्यान्वयन को सुगम बनाकर सार्वजनिक वित्त की दीर्घकालिक संधारणीयता को बढ़ावा देगा।
  • इससे राजकोषीय आंकड़ों में सामंजस्य स्थापित करने और विभिन्न सरकारी स्तरों पर वित्त का आवधिक मूल्यांकन करने में सहायता मिलेगी।
  • यह सांसदों को दायित्वों का अनुपालन करने या कम से कम राजकोषीय परिषद के आकलन से आए अंतर की व्याख्या करने के लिए अनुशासित करेगा।
  • यह सरकारी विभागों के भीतर उचित प्रकटीकरण और उत्कृष्ट लेखांकन प्रथाओं की संस्कृति को बढ़ावा देगा।
  • यह विशेष रूप से उन आपात स्थितियों में बेहतर निर्णय लेने में सहायता करेगा, जिनमें सरकार को घाटे के लक्ष्यों से विचलित होना पड़ सकता है। इस स्थिति में यह पुनः सामान्य मार्ग पर लौटने में भी सहायक होगा।

भूमंडलीकृत विश्व में जहां बाजार में उतार-चढ़ाव विभिन्न बाह्य कारकों पर निर्भर है, भारत जैसे देशों के लिए यह आवश्यक है कि वे समष्टिगत आर्थिक प्रबंधन को वर्षपर्यंत सक्रियतापूर्वक संचालित करें। अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों से ज्ञात होता है कि राजकोषीय परिषद से राजकोषीय नीति के अनुमानों की सटीकता में सुधार होता है और देशों को राजकोषीय नियमों के निरंतर अनुपालन में सहायता प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए, अमेरिका के कांग्रेशनल बजट ऑफिस (CBO) और ब्रिटेन के ऑफिस फॉर बजट रिस्पॉन्सिबिलिटी द्वारा प्रभावी ढंग से इन कर्तव्यों का निष्पादन किया गया है।

भारत में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन संबंधी एन.के. सिंह समिति ने स्वतंत्र राजकोषीय परिषद गठित करने की संस्तुति की थी। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। स्वतंत्र राजकोषीय परिषद की स्थापना से भारत में राजकोषीय नीति की दीर्घकालिक संधारणीयता और विश्वसनीयता सुनिश्चित होगी।

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