कृषि के लिए जल मूल्य निर्धारण (Pricing of Water for Agriculture)
केंद्रीय जल आयोग (CWC) ने कृषि के लिए जल मूल्य निर्धारण, इसकी प्रस्तावित क्रियाविधि और सिद्धांतों पर एक पेपर जारी किया है।
मूल्य निर्धारण मानदंड के पुनरीक्षण की आवश्यकता
- सब्सिडियां : सार्वजनिक उपयोगिताओं के माध्यम से प्रदान की गई जल सब्सिडी, 2012 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 0.6%
थीं। ये असमानतापूर्ण थीं और इनके द्वारा उच्च आय समूह विषमतापूर्वक लाभान्वित हुआ। - अप्रचलित पद्धति से मूल्य निर्धारण: राज्य सरकारें फसल-क्षेत्र के आधार पर जल संबंधी शुल्क आरोपित करती हैं और वर्षों से दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है, जो जल की बर्बादी में योगदान करता है।
- निम्न प्राप्तियां : मूल्य निर्धारण की वर्तमान प्रणाली के भौतिक और परिचालन संबंधी अपर्याप्तता के कारण कम और अनिश्चित | उपयोग होता है और इसके परिणामस्वरूप जल संबंधी शुल्कों का कम संग्रह होता है।
- अकुशल कृषि प्रणाली : मौजूदा कृषि प्रणाली में जल गहन फसलों का अधिक उत्पादन किया जाता है और प्रति किलो धान उत्पादन
के लिए किसानों द्वारा वैश्विक औसत से अधिक जल का उपयोग किया जाता है। - संधारणीयता: जल के संधारणीय उपयोग के लिए किसानों को दिए जाने वाले प्रोत्साहनों की कमी के परिणामस्वरूप सतही और
भू-जल दोनों के उपयोग में वृद्धि हुई है जो मृदा की लवणता और जल स्तर में गिरावट में प्रदर्शित होता है।
अनुशंसाएं
क्रियाविधि
- सिंचाई की निश्चित लागत को कवर करने के लिए जल की मूल्य-दर पर्याप्त होनी चाहिए।
- 14 वें वित्त आयोग ने अनुशंसा की है कि आवधिक संशोधन के साथ जल आपूर्ति की मात्रा और समयबद्धता (मात्रात्मक आधार)
दोनों के मूल सिद्धांतों को उचित रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए। - एक ही राज्य में जल मूल्य-दर एक नहर प्रणाली से दूसरे नहर प्रणाली में भिन्न होनी चाहिए।
- नहर कमांड, जहां राज्य द्वारा लिफ्ट प्रणाली द्वारा जल की आपूर्ति की जाती है, जल मूल्य-दर को लिफ्ट प्रणाली की अतिरिक्त
लागत को ध्यान में रखते हुए गुरुत्व प्रवाह की मूल्य-दर से अधिक रखा जाना चाहिए।
विधिक और संस्थान
- एक स्वतंत्र सांविधिक जल नियामक प्राधिकरण के माध्यम से सभी के लिए जल की न्यायसंगत पहुंच तथा पेयजल एवं स्वच्छता,
कृषि और औद्योगिक जैसे अन्य उपयोगों के संबंध में इसका उचित मूल्य निर्धारण किया जाना चाहिए। - जल उपयोगकर्ता संघों (Water Users Associations: WUA) को जल संबंधी शुल्कों के एक भाग का संग्रह करने और बनाए
रखने के लिए वैधानिक शक्तियां प्रदान की जानी चाहिए और इसे आधार दर के अधीन दरों को निर्धारित करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। - जल मूल्य दर ऐसी होनी चाहिए जो जल के दुर्लभता मूल्य को उपयोगकर्ताओं तक संप्रेषित कर सके और जल उपयोग में
मितव्ययिता के लिए प्रेरित कर सके।
सहायक उपाय
- जल के पुनर्चक्रण एवं पुन:उपयोग को टैरिफ सिस्टम के माध्यम से प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
- राष्ट्रीय जल नीति, 2012 के अनुसार भू-जल के निष्कर्षण में विद्युत् के उपयोग को विनियमित करके इसके अत्यधिक निष्कासन को
कम किया जाना चाहिए। कृषि उपयोग के लिए भू-जल के निष्कर्षण हेतु अलग इलेक्ट्रिक फीडर पर विचार किया जाना चाहिए। - जल के उपयोग को कम करने के लिए उन्नत बीज किस्मों के उत्पादन हेतु अनुसंधान संबंधी प्रयास किए जाने चाहिए।
- द्वितीय सिंचाई आयोग, 1972 ने सुझाव दिया था कि पड़ोसी राज्यों / संघ शासित क्षेत्रों में प्रचलित जल मूल्य-दर भी एक
महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और जल मूल्य-दरों के निर्धारण में इन पर भी विचार किया जाना चाहिए।
चुनौतियां
- किसानों की कठिनाईः किसानों के लिए जल मूल्य निर्धारित करना कठिन कार्य होगा क्योंकि वे पहले से ही गंभीर आर्थिक कठिनाई और कृषि संकट का सामना कर रहे हैं।
- नीतिगत कार्यवाहीः सार्वजनिक खरीद नीतियां जल-गहन फसलों की कृषि को बढ़ावा देती हैं, कभी-कभी उन राज्यों में जहां जल का
उपयोग सर्वाधिक अकुशल रूप में होता है। - स्वामित्वः इससे किसानों के विधिक और आर्थिक संकट में वृद्धि होगी क्योंकि, उप-सतही जल संसाधन संपत्ति के मालिक के
अधिकार में होता है। भू-स्वामी अपने अधिकारों के अंतर्गत समग्र जलीय निकाय का दोहन कर सकता है जो उसकी संपत्ति की सीमाओं से अधिक भी विस्तारित हो सकता है। - प्रशासन: जल संबंधी विषय अनेक एजेंसियों से संबंधित हैं, जिस कारण इनके दृष्टिकोण में समन्वय का अभाव है। उदाहरण के लिए कृषि, जो सबसे बड़ा सामूहिक उपयोगकर्ता क्षेत्र है, जल संसाधन मंत्रालय के दायरे से बाहर है।।
आगे की राह
- वाटरशेड प्रबंधन: यह समुदायों की भागीदारी के साथ स्थानीय स्तर पर एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन कार्यक्रम को प्रचालित करने का दायरा प्रदान करता है।
- जल संसाधनों के कुशल उपयोग हेतु भू-जल के अनियंत्रित दोहन को विनियमित करना; जल संसाधनों तक पहुंच के माध्यम से आपूर्ति को बढ़ाने के लिए आधुनिक सिंचाई विधियों का उपयोग करके जल संरक्षण का सक्रिय प्रयास; सिंचाई अवसंरचना (जलाशय/बांध, नहर नेटवर्क) की डिजाईन में परिवर्तन ; वर्षा जल संचयन और इसका पुनर्चक्रण; उन्नत जलाशय/बांध परिचालन;
निकासी जल और अपशिष्ट जल का पुनरुपयोग; और नदी बेसिनों के मध्य जल का स्थानांतरण इत्यादि।
निष्कर्ष
सिंचाई के लिए उपयोग किया जाने वाला जल एक आर्थिक वस्तु है और इसकी कीमत का तार्किक निर्धारण जल आवंटन में सुधार और संरक्षण को प्रोत्साहित करने हेतु महत्वपूर्ण है। जल प्रशासन में प्रत्येक हितधारक जैसे- व्यक्तिगत, समुदाय, सरकार, गैर-सरकारी संगठनों से निपटने हेतु एक व्यापक राष्ट्रीय जल संहिता (एकीकृत जल संसाधन विकास के लिए राष्ट्रीय आयोग द्वारा प्रस्तुत), अर्थात् जल संबंधी कानूनों की एक एकीकृत व्यवस्था आवश्यक है।
Read More
- संविदा कृषि और इसके लाभों की संक्षिप्त अवधारणा : मॉडल संविदा कृषि अधिनियम, 2018
- कृषि में जल उपयोग दक्षता : सिंचाई तक पहुंच सुनिश्चित करने के महत्व
- कृषि के लिए उर्वरकों के महत्व का संक्षिप्त परिचय : उर्वरकों के लिए DBT योजना के विषय में संक्षिप्त चर्चा
- कृषि संबद्ध गतिविधियों और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसके योगदान के संदर्भ में संक्षिप्त प्रस्तावना
- सूखा : मौसम विज्ञान संबंधी सूखा, जलीय सूखा, कृषि संबंधी सूखा, सामाजिक-आर्थिक सूखा
- विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के प्रति कृषि क्षेत्र की सुभेद्यता