पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) की अवधारणा का संक्षिप्त वर्णन

प्रश्न: पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) क्या है? इस कवायद में सम्मिलित विभिन्न प्रक्रियाओं की पहचान करते हुए, इस मूल्यांकन को पूरा करने के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए। इसके अतिरिक्त, भारत में EIA की स्थिति का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण

  • पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) की अवधारणा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • EIA में सम्मिलित विभिन्न प्रक्रियाओं को दर्शाते हुए, EIA के उद्देश्य पर चर्चा कीजिए।
  • भारत में EIA की स्थिति की व्याख्या कीजिए।

उत्तर

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित ‘पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA)’ एक औपचारिक प्रक्रिया है। यह परमाणु ऊर्जा, नदी घाटी परियोजनाओं, बंदरगाहों, पेट्रोलियम रिफाइनरियों, रासायनिक उर्वरक संयंत्रों, खनन गतिविधियों आदि किसी भी विकास परियोजना के पर्यावरणीय परिणामों का पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रयोग में लायी जाती है।

EIA का उद्देश्य

  •  किसी परियोजना के कार्यान्वयन का निर्णय लेने से पूर्व उससे होने वाले पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की पहचान करना।
  • हानिकारक प्रभाव को कम करना और लाभकारी प्रभावों को अधिकतम बनाना।

EIA में सम्मिलित विभिन्न प्रक्रियाएं

  • स्क्रीनिंग (जाँच): EIA का प्रथम चरण, जो यह निर्धारित करने में सहायता करता है कि प्रस्तावित परियोजना को EIA की आवश्यकता है या नहीं।
  • स्कोपिंग: उन महत्वपूर्ण मुद्दों और प्रभावों की विशेषज्ञों द्वारा पहचान, जिनकी आगे जाँच किए जाने की आवश्यकता है। साथ ही, इसमें सीमारेखा का निर्धारण एवं समय सीमा को तय किया जाना शामिल होता है।
  • प्रभाव विश्लेषण (इम्पैक्ट एनालिसिस): वायु गुणवत्ता, शोर का स्तर, वन्यजीवन और स्थानीय समुदायों आदि पर होने वाले संभावित सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की पहचान करना और पूर्वानुमान लगाना।
  • शमन: प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और इससे बचने के लिए कार्यवाही की सिफारिश करना।
  • निर्णय लेने वाले निकाय की रिपोर्टिंग, सार्वजनिक सुनवाई, EIA की समीक्षा और निर्णयन प्रक्रिया।
  • पोस्ट मॉनिटरिंग: परियोजना आरंभ होने के पश्चात् इसके द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि परियोजनाओं का प्रभाव अनिवार्य कानूनी मानकों से अधिक न हो।

भारत में EIA की स्थिति

1980 तक भारत में लगभग सभी परियोजनाओं को बिना किसी या बहुत कम पर्यावरणीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाता था। हालांकि 1994 में मंत्रालय ने आधिकारिक “पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन अधिसूचना”, 1994 जारी की, जिसके अंतर्गत केंद्र या राज्य स्तर से परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी प्राप्त करने हेतु मानदंड तय किए जाते थे।

1994 के EIA को 2006 के EIA द्वारा प्रस्थापित कर दिया गया। EIA, 2006 में विभिन्न विकास परियोजनाओं को उनकी सीमा क्षमता और संभावित प्रदूषण क्षमता के आधार पर पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता हेतु दो श्रेणियों, यथा- A और B में पुन: वर्गीकृत किया गया।

2006 के अधिसूचना की अनुसूची में सूचीबद्ध सभी नई परियोजनाओं के संबंध में पर्यावरण मंजूरी आवश्यक है, साथ ही इसमें कुछ विशेष परिस्थितियों और छूट प्राप्त मानदंडों को भी परिभाषित किया गया है। यह तीव्र औद्योगिकीकरण के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम करने तथा दीर्घकाल में उन प्रवृत्तियों को उलटने में कारगर हो सकता है जो जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं।

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