प्लास्टिक प्रदूषण(Plastic Pollution)

भारत ने 2022 तक देश में सभी सिंगल यूज प्लास्टिक को समाप्त करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।

पृष्ठभूमि

  •  भारत 2018 के विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून 208) का वैश्विक मेजबान देश था। इसकी थीम “बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन” थी जो सिंगल यूज प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की वैश्विक प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार, यदि वर्तमान प्रदूषण दर जारी रहती है, तो 2050 तक समुद्र में मछलियों की तुलना में प्लास्टिक अधिक होगी, क्योंकि विश्व स्तर पर केवल 14% प्लास्टिक ही पुन:चक्रित किया जाता है।
  • केवल 24 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के द्वारा पैकेजिंग या रैपिंग अनुप्रयोगों के लिए कम्पोस्टेबल प्लास्टिक, और प्लास्टिक शीट सहित प्लास्टिक कैरी बैग के निर्माण, बिक्री, वितरण और प्रयोग को नियंत्रित करने हेतु केंद्र सरकार के प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 का पालन किया गया।
  • सिंगल यूज प्लास्टिक: ये हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक का 50% भाग है। भारत के किसी भी राज्य में सिंगल यूज प्लास्टिक से निपटने की योजना नहीं है।
  • मई, 2012 में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अगली पीढ़ी को परमाणु बम की तुलना में प्लास्टिक प्रदूषण से अधिक गंभीर खतरा उत्पन्न होगा यदि “प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जाता” है।
  • राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने दिल्ली के बाजारों में 50 माइक्रोन से कम की “प्लास्टिक कैरी बैग” पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिए भी कहा है।

प्लास्टिक :

  • यह एक हल्की, स्वच्छ और प्रतिरोधी क्षमता वाली सामग्री है। इसे विभिन्न रूपों से ढाला जा सकता है और विभिन्न अनुप्रयोगों में इसका उपयोग किया जा सकता है। धातुओं के विपरीत, प्लास्टिक में जंग अथवा संक्षारण नहीं होता है। अधिकांश प्लास्टिक जैवनिम्नीकृत नहीं होते हैं, बल्कि इसके बजाय ये फोटोडीग्रेड होते हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि ये धीरे-धीरे माइक्रो प्लास्टिक नामक छोटे टुकड़ों में टूट जाते हैं।
  • माइक्रो प्लास्टिक अथवा माइक्रोबीड्स प्लास्टिक के टुकड़े या फाइबर होते हैं जो अत्यधिक सूक्ष्म होते हैं। सामान्यतया यह 1 मिमी से भी सूक्ष्म होते हैं। ये जल निकायों में प्रवेश करते हैं और अन्य प्रदूषकों के लिए वाहक के रूप में कार्य करते हैं। ये खाद्य श्रृंखला में कैंसरजन्य रासायनिक यौगिकों के वाहक होते हैं।
  • सिंगल-यूज प्लास्टिक: इसे डिस्पोजेबल प्लास्टिक के रूप में भी जाना जाता है, इसका उपयोग सामान्यत: प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए भी किया जाता है तथा वस्तुओं को फेंकने या पुनर्नवीनीकरण से पूर्व केवल एक बार इनका उपयोग किया जाता है।
  • इनका कार्बन फुटप्रिंट उच्च हैं और उत्पादन के लिए अधिक संसाधन और जल का उपयोग होता हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव:

  • पर्यावरणीय प्रदूषण: प्लास्टिक अपशिष्ट पर टॉक्सिक लिंक स्टडी, 2014 के अनुसार भूमि, वायु और जल प्रदूषण में इसका प्रत्यक्ष योगदान है।
  • मृदा प्रदूषण: लैंडफिल साइट के माध्यम से विषैले रसायनों का प्लास्टिक से बाहर रिसाव, फसल उत्पादकता में कमी, खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव, जन्म-दोष, बाधित प्रतिरक्षा, एंडोक्राइन (अंतःस्रावी) व्यवधान और अन्य बीमारियों से संबंधित है।
  • महासागरों की विषाक्तता: प्रतिवर्ष महासागरों में 13 मिलियन टन प्लास्टिक का रिसाव होता है। ये प्रवाल भित्तियों को प्रभावित
    करते हैं और सुभेद्य समुद्री जीवों के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं। महासागरों में पहुंचने वाले प्लास्टिक एक वर्ष में ही संपूर्ण पृथ्वी को चार बार घेर सकती हैं, और यह पूर्णतः विघटित होने से पूर्व 1000 वर्ष तक पर्यावरण में विद्यमान रह सकती है।
  • वायु प्रदूषण: खुली हवा में प्लास्टिक को जलाने से । फूरान (furan) और डायऑक्सिन जैसी हानिकारक गैसें उत्सर्जित होती हैं।
  • सामजिक लागत: सामाजिक क्षति में निरंतर वृद्धि  हो रही है क्योंकि इससे जीवन का प्रत्येक क्षेत्र जैसे, पर्यटन, मनोरंजन, व्यवसाय, मानव स्वास्थ्य, जानवर, मछलियाँ और पक्षी आदि प्रभावित होते
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: प्लास्टिक बैग प्रायः मच्छर  और कीटों आदि के लिए प्रजनन स्थान बन जाते हैं। इस प्रकार, इनसे मलेरिया जैसे वेक्टर जनित रोगों के संचरण में वृद्धि होती है।
  • जैवसंचयन (Bioaccumulation): प्लास्टिक बैगों को प्रायः जानवर भोजन समझ कर निगल जाते हैं,  जिसके कारण विषाक्त रसायन उनके द्वारा मानव भोजन श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं।
  • वित्तीय हानि: प्लास्टिक के कारण विश्व के समुद्री पारिस्तिथिकी तंत्र को हुई कुल हानि कम से कम 13 बिलियन अमेरिकी डालर प्रति वर्ष है।
  • प्राकृतिक आपदा की अधिकता: प्लास्टिक और ठोस अपशिष्ट शहरों के जल निकासी मार्गों का अतिक्रमण कर उन्हें अवरुद्ध कर देते हैं, जिसके फलस्वरूप बाढ़ आती है। उदाहरण के लिए मुम्बई । में जल-मार्ग अवरुद्ध होने से प्रत्येक वर्ष बाढ़ जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है।

प्लास्टिक प्रदूषण के निपटने के लिए उठाए गए कदम

प्लास्टिक प्रदूषण के निपटने के लिए उठाए गए कदम प्लास्टिक अपशिष्ट (प्रबन्धन एवं संचालन) नियम 2016

  •  यह प्लास्टिक कैरी बैग्स की न्यूनतम मोटाई (50 माईक्रोन) को परिभाषित करता है। इससे लागत में वृद्धि आएगी और मुफ्त कैरी बैग देने की प्रवत्ति कम हो जाएगी।
  • स्थानीय समुदायों का उत्तरदायित्व: ग्रामीण क्षेत्रों
    को भी नियमों के अंतर्गत लाया जायेगा क्योंकि  प्लास्टिक गाँवों में भी पहुंच चुका है। ग्राम सभाओं को इसके कार्यान्वयन का उत्तरदायित्व दिया गया
  • विनिर्माता का विस्तारित उत्तरदायित्वः निर्माता और ब्रांड मालिकों को उनके उत्पादों से उत्पन्न अपशिष्ट एकत्रित करने हेतु उत्तरदायी बनाया गया है।
  • विनिर्माताओं को अपने उन विक्रेताओं का रिकार्ड रखना है, जिन्हें उन्होंने उत्पादन के लिए कच्चा माल दिया है। इससे उत्पादों का असंगठित क्षेत्र में विनिर्माण रोका जा सकेगा।
  • अपशिष्ट उत्पन्न करने वाले का उत्तरदायित्वः संस्थागत रूप से प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न करने वालों को ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन नियमों के अनुसार अपशिष्ट को पृथक करना और एकत्रित करना होगा। साथ ही वे उसे अधिकृत अपशिष्ट निपटान सुविधाओं को अलग-अलग कचरा सौंपेंगे।
  • सड़क विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं का उत्तरदायित्वः ये प्लास्टिक के कैरी बैग नहीं देंगे अन्यथा उन पर जुर्माना लगाया जायेगा। केवल पंजीकृत दुकानदार ही स्थानीय निकायों को फ़ीस देने के पश्चात मूल्य लेने पर ही कैरी बैग देंगे।
  • सड़क निर्माण या ऊर्जा बहाली में प्लास्टिक के उपयोग को प्रोत्साहित किया जायेगा।
  • नई केंद्रीय पंजीकरण प्रणाली- यह निर्माता / आयातक / ब्रांड स्वामी के पंजीकरण के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)
    द्वारा स्थापित की जाएगी।
  • राज्य सरकारों द्वारा प्रतिबन्ध: हाल ही में महाराष्ट्र सरकार के द्वारा राज्य में प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लागू किया गया है।

इस प्रकार के प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध संबंधी मुद्देः

  • रोज़गार और राजस्व की हानि: एक अध्ययन के अनुसार, महाराष्ट्र में राज्यव्यापी प्रतिबन्ध के परिणामस्वरूप 15,000 करोड़ रूपए
    और लगभग 3 लाख नौकरियों की हानि होगी।

कार्यावन्यन संबंधी मुद्दे:

उत्तर प्रदेश सरकार ने 2015 के बाद से तीसरी बार, 15 जुलाई 2018 से राज्य में प्लास्टिक पर पुनः प्रतिबन्ध आरोपित किया है। यह निम्नलिखित कारणों से पूर्व में आरोपित प्रतिबंधों के निम्नस्तरीय कार्यावन्यन को दर्शाता है।

  • निर्माता, व्यवसायिक इकाई और उपभोक्ता के मध्य प्रतिबंध पर अस्पष्टता है।
  • प्रतिबन्ध के सम्बन्ध में विभिन्न हितधारकों में जागरूकता की कमी।
  • जल्दबाजी में लिए गये निर्णयों के कारण खराब नियोजन और प्रवर्तन।
  • तस्करी के मामले और प्लास्टिक थैलों की काला बाजारी के जोखिम के कारण प्लास्टिक बैग की व्यापक उपलब्धता और मांग की जा रही है।

  • प्लास्टिक बैग को पूर्णतः प्रतिबंधित करना उचित नहीं है। प्लास्टिक स्वाभाविक रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है, लेकिन प्लास्टिक अपशिष्ट एकत्र करने की अक्षमता स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को प्रेरित करती है।
  • प्रारंभ में प्लास्टिक बैग वनोन्मूलन को नियंत्रित करने हेतु प्रारंभ किए गए थे।इन पर पूर्ण प्रतिबंध आरोपित करने से वनोन्मूलन में वृद्धि हो सकती है।प्लास्टिक बैग का सर्वाधिक उपयोग सब्जियों, फल, मांस और मछली को रखने में किया जाता है और इनका उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि ये सुविधाजनक, सुगमता से उपलब्धऔर लागत प्रभावी होते हैं। इन पर प्रतिबंध लगाने से पूर्व हमें प्लास्टिक के व्यवहार्य विकल्प प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • नीलगिरि प्लास्टिक मुक्त बना किन्तु इसका कारण केवल प्रतिबंध लगाना नहीं था। अपितु “जन आंदोलन” ने प्लास्टिक बैग पर रोक लगाने के साथ पर्यावरण के प्रतिकूल गतिविधियों के साथ निकटवर्ती कचरा क्षेत्र में जमा प्लास्टिक बैग की समस्या का समाधान किया।

आवश्यकता आधारित प्लास्टिक पार्क की स्थापना के लिए योजना

  • इस योजना के अंतर्गत, भारत सरकार, प्रति परियोजना 40 करोड़ रुपये की अधिकतम सीमा के साथ परियोजना लागत के 50% तक के अनुदान का वित्त पोषण प्रदान करती है।
  • उद्देश्य: प्रतिस्पर्धात्मकता और निवेश में वृद्धि करना, पर्यावरणीय दृष्टि से संधारणीय विकास को प्राप्त करना और प्लास्टिक क्षेत्र में क्षमताओं को सुदृढ़ करने के लिए क्लस्टर आधारित विकास दृष्टिकोण को अपनाना।
  • नोडल कार्यालय: रसायन और उर्वरक मंत्रालय के अंतर्गत रसायन और पेट्रोकेमिकल्स विभाग।

आगे की राह

  • सशक्त नीतियों का अधिनियमन जो 2022 तक देश की समस्त सिंगल यूज प्लास्टिक को समाप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता हेतु प्लास्टिक के डिजाइन और उत्पादन के अधिक सर्कुलर मॉडल पर बल देती हों। (इन्फोग्राफिक देखें)।
  • प्रतिबंधों के विकल्प के रूप में सार्वजनिक-निजी भागीदारी और स्वैच्छिक समझौतों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि इससे नागरिकों को अपने उपभोग पैटर्न को परिवर्तित करने और वहनीय व पर्यावरण अनुकूल विकल्पों के अवसर अपनाने का समय मिलेगा।
  • स्वभाविक रूप से जैव निम्नीकरणीय वैकल्पिक सामग्री जैसे पुन:प्रयोज्य कपास या कागज, जूट बैग तथा कैसीन (दूध का मुख्य प्रोटीन) जैसे विकल्पों की खोज करना जिसका उपयोग इन्सुलेशन, पैकेजिंग और अन्य उत्पादों में उपयोग के लिए स्वभाविक रूप से जैव निम्नीकरणीय सामग्री बनाने में किया जा सकता है। ब्लूमबर्ग के अनुसार, यह ऑक्सीजन से भोजन की रक्षा में पारम्परिक प्लास्टिक की तुलना में 500 गुणा बेहतर है।
  • जैव-प्लास्टिक को प्रोत्साहित करना क्योंकि उन्हें सरलता से विघटित किया जा सकता है और वे उच्चतम रूप से जैव निम्नीकरणीय होते हैं।
  • SDG लक्ष्य को प्राप्त करना: प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए किए गए प्रयास से SDG लक्ष्यों यथा SDG-3, SDG-11, SDG-12 और SDG-14 को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
  • हरित सामजिक दायित्व की अवधारणा को प्रोत्साहन प्रदान करना ताकि नागरिकों को संवेदनशील बनाया जा सके। उन्हें उत्पाद के संपूर्ण जीवन चक्र में दक्षताओं के आधार पर स्मार्ट, नवोन्मेषी और संधारणीय उत्पादन और उपभोग प्रणाली की ओर स्थानांतरण के द्वारा व्यावहारिक परिवर्तन के माध्यम से उनके दृष्टिकोण को अधिक संधारणीय बनाने हेतु प्रोत्साहित करना।
  • प्रतिबंध का प्रभावी विनियमन: विगत दो दशकों में भारत के 25 राज्यों ने विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया है, परन्तु प्रतिबंध का कार्यान्वयन निराशाजनक रहा है।
  • नीतिगत प्रोत्साहन: सिंगल-प्लास्टिक उपयोग को रोकने के लिए सरकारों द्वारा UN एनवायरनमेंट 10-स्टेप रोडमैप को लागू करना।

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