वायु प्रदूषण(Air Pollution)

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के वैश्विक वायु प्रदूषण डेटाबेस के अनुसार PM 2.5 सांद्रता के संदर्भ में विश्व के 15 सबसे प्रदूषित  शहरों में से 14 भारत में है।

 प्रदूषक के प्रकार

 प्राथमिक प्रदूषक: ये प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से उत्सर्जित होते हैं। और प्राथमिक स्रोतों अथवा माध्यमिक स्रोतों के कारण उत्पन्न हो सकते हैं। उदाहरण- कारखानों से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड।

द्वितीयक प्रदूषक: ये प्राथमिक प्रदूषकों के अंतर संयोजन या प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप उत्सर्जित होते हैं। उदाहरण के लिए विभिन्न प्राथमिक प्रदूषणों की अंतःक्रियाओं द्वारा निर्मित  धुंध।

ग्राउंड या क्षोभमंडलीय (ट्रोपोस्फेरिक) ओजोन: यह सूर्य के प्रकाश और नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और अस्थिर कार्बनिक यौगिकों (VOC) जैसी गैसों के मध्य रासायनिक अभिक्रिया के परिणामस्वरूप निर्मित होती है। ओजोन प्रदूषण अधिकांशतः वर्ष के सबसे गर्म माह  के दौरान उच्चतम होता है। इसके हानिकारक प्रभावों में निम्न शामिल हैं:

  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं:इसके संपर्क के तुरंत बाद अल्पकालिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे त्वचा  एवं श्वसन प्रणाली में जलन इसके साथ ही दीर्घावधि तक इसके संपर्क में रहने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं जैसे फेफड़ों से संबंधित रोगों की उच्च दर और श्वसन-शोथ (ब्रोंकाइटिस) का और बिगड़ जाना, वातस्फीति(emphysema)  और दमा।
  • पर्यावरण पर प्रभाव: ग्राउंड लेवल ओजोन वनों के पारिस्थितिक तंत्र और वृक्षों एवं वन्यजीव के आवासों की वृद्धि को क्षति पहुंचा सकती है,
  • कण प्रदूषण: यह वायु प्रदूषण में काली धूल (sooty) का जमाव होता हैं जो इमारतों को काला करते हैं तथा श्वसन सम्बन्धी समस्याओं का कारण बनते हैं। कणों का आकार स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न करने उनकी क्षमता से प्रत्यक्ष रूप से सम्बंधित होता है। 10 माइक्रोमीटर व्यास से भी सूक्ष्म कण वृहद समस्याएं उत्पन्न करते हैं, क्योंकि ये कण मनुष्य के फेफड़ों में अन्दर जा सकते हैं और कुछ रक्त प्रवाह में भी पहुंच सकते हैं।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, 31 और 195 शहरों ने क्रमशः निर्धारित PM2.5 और PM10 सीमा को पार कर लिया है। 2015 में दिल्ली के वायु प्रदूषण पर IIT कानपुर द्वारा किये गए अध्ययन ने सड़कों पर पायी जाने वाली धूल को शहर में निलंबित कणों के सबसे बड़े स्रोतों में से एक के रूप चिन्हित किया।

भारत में वायु प्रदूषण के कारण

जीवाश्म ईंधनों का दहन: कोयला, पेट्रोलियम और अन्य फैक्ट्री दहन जैसे जीवाश्म ईंधनों के दहन से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण हैं। जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और फ्लोरिनेटेड गैसों सहित प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें पाई जाती हैं।

  • वाहनों से होने वाला उत्सर्जन भी जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन और वायु प्रदूषण का स्रोत है। वाहनों में हाइड्रोकार्बन के अपूर्ण दहन
    से कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, जो नाइट्रोजन ऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करके एक विषाक्त मिश्रण बनाता
    औद्योगिक उत्सर्जन: विनिर्माण उद्योग बड़ी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, कार्बनिक यौगिकों और रसायनों
    को वायु में निर्मुक्त करते हैं।
  • पेट्रोलियम रिफाइनरियां भी हाइड्रोकार्बन एवं विभिन्न अन्य रसायनों को निर्मुक्त करती हैं जो वायु को प्रदूषित करते हैं तथा
    भूमि प्रदूषण का कारण बनते हैं।
  • विद्युत् संयत्र (पावर प्लांट्स): भारत, चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कोयला दहन करने वाला देश है, जो वार्षिक रूप
    से 210 GW विद्युत् का उत्पादन करता है, जिसमें अधिकांश मात्रा का उत्पादन कोयले से होता है।

कृषि गतिविधियों जैसे कि पराली (स्टबल) दहन से दिल्ली और NCR क्षेत्र में वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है। अमोनिया कृषि से संबंधित गतिविधियों से उत्सर्जित होने वाला सामान्य उप-उत्पाद है और वायुमंडल में सबसे खतरनाक गैसों में से एक है। कृषि गतिविधियों में पीडकनाशक, कीटनाशक और उर्वरकों का उपयोग वायु में हानिकारक रसायनों को भी उत्सर्जित करता है जो जल प्रदूषण का भी कारण भी बन सकता है।

खनन गतिविधियां: खनन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वृहद उपकरणों का उपयोग करके पृथ्वी के नीचे से खनिजों का निष्कर्षण किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान वायु में धूल एवं रसायन निर्मुक्त होते हैं, जो व्यापक पैमाने पर वायु प्रदूषण का कारण बनता

इनडोर वायु प्रदूषण: यह हानिकारक रसायनों और अन्य सामग्रियों द्वारा इनडोर वायु गुणवत्ता का निम्नीकरण करता है। घरेलू सफाई उत्पाद, पेंट इत्यादि विषाक्त रसायनों को वायु में उत्सर्जित करते हैं।

धूलयुक्त तूफान: ये वायु प्रदूषण में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक हैं और विश्व भर में बीमारियों के प्रसार में वृद्धि करने वाले हानिकारक कणों से युक्त हो सकते हैं। उदाहरण के लिए- धरातल पर पाए जाने वाले वायरस बीजाणु (virus spore) वायु में उड़ा दिए जाते हैं और ये अम्लीय वर्षा अथवा शहरी धुंध के माध्यम से फैलते हैं।

वनाग्नि: वनाग्नि से वायु में पार्टिकुलेट मैटर निर्मुक्त होते हैं जो वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं। ये मानव श्वसन तंत्र में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे ऊतकों में जलन होने लगती है।

वनोन्मूलन: वनोन्मूलन, वायुमंडल को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता है क्योंकि वन कार्बन प्रच्छादन प्रक्रिया के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड के लिए सिंक के रूप में कार्य करते हैं।

अपशिष्ट: कचरा भराव क्षेत्र (लैंडफिल) से मीथेन उत्पन्न होती है। यह न केवल एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है, बल्कि एक श्वसन रोधी (ऐस्फिक्सीअन्ट) और अत्यधिक ज्वलनशील गैस है। लैंडफिल अनियंत्रित होने की स्थिति में यह अत्यंत खतरनाक सिद्ध हो सकती है।

इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट: भारत में अधिकांश लोगों द्वारा वायर/ अपशिष्ट इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रॉनिक घटकों के दहन के माध्यम से
अपशिष्ट का अनुचित निपटान किया जाता है। इससे वायुमंडल में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है।

वायु प्रदूषण का प्रभाव

स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं: वायु प्रदूषण के प्रभाव अत्यंत हानिकारक होते हैं। ये शरीर में कैंसर तथा अनेक श्वसन एवं हृदय । सम्बन्धी रोगों सहित अन्य रोगों हेतु उत्तरदायी होते हैं।

  • 2015 में प्रदूषण के कारण विश्व भर में 9 मिलियन लोंगों की मृत्यु हुई थी। वैश्विक स्तर पर छह लोगों में से एक व्यक्ति की
    मृत्यु प्रदूषण के कारण होती है तथा उनमें से अधिकांश मृत्यु भारत जैसे विकासशील देशों में होती है।
  • प्रदूषण के कारण होने वाली मृत्यु दर, उच्च सोडियम युक्त आहार (4.1 मिलियन), मोटापे (4 मिलियन), शराब (2.3 | मिलियन), सड़क दुर्घटनाओं (1.4 मिलियन) तथा बच्चे एवं मातृ कुपोषण (1.4 मिलियन) से होने वाली मृत्युओं से अधिक थी।
  • भारत में कोयला विद्युत् संयंत्र, परिवहन, घरेलू प्रदूषण, अपशिष्ट, शिपिंग, कृषि एवं अन्य विभिन्न स्रोतों की तुलना में
    पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5) वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है।

आर्थिक नुकसान: प्रदूषण से संबंधित मृत्यु, बीमारी और कल्याण की वित्तीय लागत वैश्विक अर्थव्यवस्था का लगभग 6.2% है। GDP के अनुपात में जलवायु संबंधित आपदाओं के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान उच्च आय वाले देशों की तुलना में निम्न आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में बहुत अधिक है।

  • बढ़ते तापमान के कारण 2000 के बाद से ग्रामीण श्रम की उत्पादकता में औसत 5.3% की गिरावट देखी गई है। इसने 2016
    में वैश्विक स्तर पर प्रभावी रूप से 920,000 से अधिक लोगों को कार्यबल से बाहर कर दिया, जिनमें से 418,000 केवल भारत से थे।

ग्लोबल वार्मिंग: CO2 जैसी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में धीरे-धीरे वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप जलवायु (मौसम का दीर्घकालिक पैटर्न) में परिवर्तन हो रहा है तथा समुद्र स्तर में वृद्धि के साथ-साथ प्राकृतिक विश्व पर विभिन्न प्रकार के अलग-अलग प्रभाव दर्ज किए जा रहे हैं।

अम्लीय वर्षाः जब वर्षा होती है, तब नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें जल की बूंदों के साथ मिश्रित हो जाती हैं, जिससे ये बूंदें अम्लीय हो जाती हैं और अम्लीय वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरती हैं। अम्लीय वर्षा मानव,
जानवरों और फसलों को अत्यधिक क्षति पहुंचा सकती है।

सुपोषण (यूट्रोफिकेशन): यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें कुछ प्रदूषकों में उपस्थित नाइट्रोजन की उच्च मात्रा समुद्र की सतह पर
विकसित होती है और स्वयं को शैवाल में परिवर्तित कर देती है और मछली, पौधों और पशु प्रजातियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। वन्यजीवन पर प्रभाव: वायु में मौजूद विषाक्त रसायन वन्यजीवन प्रजातियों को नए स्थान पर जाने और अपने आवास को परिवर्तित करने के लिए विवश कर सकते हैं।

ओजोन परत का क्षरण: वायुमंडल में उपस्थित क्लोरोफ्लोरोकार्बन, हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बन पृथ्वी की ओजोन परत का क्षरण कर रहे हैं। जिससे ओजोन परत क्षीण हो जाएगी और यह पृथ्वी पर हानिकारक UV किरणों को उत्सर्जित करेगी। ये किरणें त्वचा एवं आंख से संबंधित समस्याओं का कारण बन सकती हैं। UV किरणें फसलों को प्रभावित करने में सक्षम होती हैं। भारत में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

ताप विद्युत् संयंत्र (TPP) द्वारा कार्बन उत्सर्जन: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2015 में पर्यावरण मानदंडों को अधिसूचित किया गया था तथा इन संयंत्रों को PM 10, SO2 और नाइट्रोजन के ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए निर्देशित किया गया था। हालांकि, कोयले का दहन करने वाले 90% TPP इन मानदंडों का अनुपालन नहीं किया है। अतः, कुछ संयंत्रों को फ्लू गैस डी-सल्फराइजेशन प्रणाली की रेट्रो फिटिंग में लगने वाली उच्च लागत के कारण अनुपालन की निर्धारित समय सीमा में विस्तार दिया गया है। TPP से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करना आवश्यक है क्योंकि:

  • SO2 का बढ़ता अनुपात: विगत 10 वर्षों में, भारत के SO2 उत्सर्जन में 50% की वृद्धि हुई है और यह विषाक्त वायु प्रदूषकों  का विश्व का सबसे बड़ा उत्सर्जक बन सकता है।
  • नागरिकों के लिए जोखिम: लगभग 33 मिलियन भारतीय अत्यधिक सल्फर-डाइऑक्साइड प्रदूषण वाले क्षेत्रों में निवास करते
    हैं – इनकी संख्या 2013 के बाद से दोगुनी हो गई है। ऊर्जा की बढ़ती मांग के चलते यह संख्या और बढ़ सकती है।
  • प्रमुख कारण: भारत, विद्युत् उत्पादन हेतु कोयले के दहन से हानिकारक प्रदूषकों को निर्मुक्त कर रहा है- जिसमें लगभग 3%
    सल्फर होता है। देश के कुल विद्युत् उत्पादन का 70% से अधिक भाग कोयले से उत्पादित किया जाता है।

स्वच्छ वायु-भारत पहल (Clean Air- India Initiative): भारतीय स्टार्ट-अप और डच कंपनियों के मध्य साझेदारी को बढ़ावा देने और स्वच्छ वायु के लिए व्यावसायिक समाधानों पर कार्य कर रहे उद्यमियों के नेटवर्क का निर्माण करके भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए इस पहल को प्रारंभ किया गया है। इसके अंतर्गत, ‘इंडस इम्पैक्ट’ (INDUS impact) प्रोजेक्ट का लक्ष्य ऐसी व्यापार साझेदारियों को बढ़ावा देकर धान की पराली के हानिकारक दहन को रोकना है जिससे पराली को “अप साइकिल” (अर्थात् पुनर्पयोग करके उन्नत उत्पादों का निर्माण) किया जा सके। इसमें फीडस्टॉक के रूप में धान की पुआल का उपयोग करना शामिल है जिसका प्रयोग निर्माण और पैकेजिंग में किया जाएगा।

पेट कोक (कोयले से तैयार किया जाने वाला ठोस ईंधन) और फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध: हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा,
राजस्थान और उत्तर प्रदेश में फर्नेस ऑयलऔर पेट-कोक के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। 2017 में पर्यावरण संरक्षण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) ने NCR क्षेत्र में फर्नेस ऑयल और पेट-कोक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने हेतु निर्देश दिए थे।

प्रतिबंध से सम्बंधित विभिन्न चिंताएं निम्नलिखित हैं:

  • भारत एशिया में कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा शोधनकर्ता है और इसने 2016-2017 में 13.94 मिलियन टन पेट कोक उत्पादित किया था। यह देखते हुए कि निकट भविष्य में भारत में पेट कोक का उत्पादन जारी रहेगा, इसके निपटान का एक पर्यावरण अनुकूल तरीका खोजने की एक स्पष्ट आवश्यकता है, और इस संदर्भ सीमेंट भट्टियां सबसे बेहतर विकल्प प्रदान करती
  • कई सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने ईंधन की बढ़ती मांग को देखते हुए हाल ही में महत्वपूर्ण लागत पर पेटकोक क्षमता को सृजित किया है, इस पर प्रतिबंध इन कंपनियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा।
  • सीमेंट उद्योग के साथ इनके लिंकज की उपलब्धता न होने के कारण घरेलू कोयले के संदर्भ में खरीद संबंधी चुनौतियां विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त जिस ग्रेड का कोयला उपलब्ध है उसे केवल कैप्टिव पावर प्लांट्स के लिए उपयोग किया जा सकता है और यह भट्टी में उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं है।
  • प्रतिबंध अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 1,000 इकाइयों को और प्रत्यक्ष रूप से लगभग 10,000 संबद्ध इकाइयों को प्रभावित कर सकता है तथा इससे 25 लाख से अधिक कर्मचारियों के बेरोजगार होने का अनुमान है।

डस्ट मिटिगेशन प्लान: हाल ही में, केंद्र सरकार ने धूल प्रदूषण को कम करने के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत डस्ट मिटिगेशन मापदण्ड अधिसूचित किये हैं। इसके द्वारा मानदंडों का पालन न करने के लिए कंपनियों और एजेंसियों पर जुर्माना लगाने हेतु CPCB को शक्तियां प्रदान की गयी हैं।

अन्य क़दमों में शामिल हैं

  • 2017 तक BS-IV का सार्वभौमीकरण; 1 अप्रैल, 2020 तक BS-IV से सीधे BS-VI के ईंधन मानकों को अपनाना।
  • इनडोर प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) के तहत रसोई ईंधन पर सब्सिडी प्रदान की जाती है।
  • पराली दहन में संलग्न किसानों पर खेतों के आकार के आधार पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा 2,500 रूपए से 15,000 रुपये तक का जुर्माना आरोपित किया सकता है।
  • NCR के आस-पास पेट कोक जैसे प्रदूषण हेतु उत्तरदायी ईंधन के उपयोग पर प्रतिबंध। ० पटाखे जलाने पर सर्वोच्च न्यायालय का प्रतिबंध।
  • विकल्पों को प्रोत्साहित करना: सार्वजनिक परिवहन एवं मेट्रो के नेटवर्क, ई-रिक्शा, कार पूलिंग आदि को बढ़ावा देना।

अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों (Short lived climate pollutants:SLCP) पर ध्यान केन्द्रित करना: SLCP में विभिन्न प्रकार की गैसें शामिल होती हैं जिनका अल्पावधिक तापन प्रभाव प्रायः CO2 की तुलना में अधिक होता है, हालाँकि ये गैसे दीर्घकाल तक वायुमंडल में नहीं बनी रहतीं। इनमें मीथेन, HFCs, ब्लैक कार्बन (कालिख), क्षोभमंडलीय ओजोन इत्यादि गैसे शामिल होती हैं। एक अनुमान के अनुसार, SLCP शमन से शताब्दी के मध्य तक 0.6°C वैश्विक तापन को टाला जा सकता है, जबकि तुलनात्मक परिदृश्य में CO2 के प्रभावी शमन से निर्धारित उत्सर्जन कटौती अवधि के भीतर वैश्विक तापन में केवल आधी कटौती संभव होगी।

डस्ट मिटिगेशन प्लान की मुख्य विशेषताएं

  • पर्यावरणीय मंजूरी मांगने वाले सभी भवनों अथवा अवसंरचनात्मक परियोजनाओं के लिए डस्ट मिटिगेशन प्लान अनिवार्य है। इन
    स्थानों पर पर्याप्त डस्ट मिटिगेशन उपायों के बिना मृदा का उत्खनन नहीं किया जाएगा।
  • किसी भी ढीली मृदा, बालू, निर्माण अवशिष्ट को खुला नहीं छोड़ा जा सकता है। पीसने और पत्थर काटने के लिए गीले जेट के उपयोग के साथ वाटर स्प्रिंकल सिस्टम अनिवार्य है।
  • किसी भी खुले वाहन में निर्माण सामग्री और कचरे को ले जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी और सड़कों को पक्की और ब्लैकटॉप | (अर्थात धातु से निर्मित सड़क) किया जाना चाहिए।
  • उचित ऊंचाई अर्थात् इमारत की एक तिहाई ऊंचाई के विंड-ब्रेकर।
  • सुगम सार्वजनिक जांच के लिए निर्माण स्थल पर डस्ट मिटिगेशन उपायों को प्रमुख रूप से प्रदर्शित किया जाएगा।
  • निर्माण स्थल को छोड़ने से पूर्व सभी वाहनों को साफ किया जाना।

भारत, अमेरिका के पेट-कोक का डंपिंग ग्राउंड बन रहा है, जिसने प्रदूषण के कारण इसके आंतरिक उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। सीमेंट कारखानों, रंगाई इकाइयों, पेपर मिलों, ईंट भट्टियों और सेरेमिक व्यवसायों द्वारा सल्फर-युक्त पेटकोक और फर्नेस ऑयल जैसे अन्य प्रदूषणकारी ईंधनों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

पेट कोक के बारे में

  • पेट्रोलियम कोक अथवा पेट कोक, तेल शोधन से प्राप्त एक ठोस कार्बन समृद्ध (90% कार्बन और 3% से 6% सल्फर) सामग्री है।
  • इसे “बॉटम आफ द बैरल” ईंधन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • यह कोयले का एक बेहतर विकल्प नहीं है और कोयले की तुलना में 11% अधिक ग्रीनहाउस गैसों को उत्सर्जित करता है।
  • भारत पेट्रोलियम कोक का विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
  • आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात और कर्नाटक जैसे विभिन्न राज्यों में यह एक अनुमोदित ईंधन है।

फर्नेस ऑयल के बारे में

  • यह एक डार्क चिपचिपा अवशिष्ट ईंधन है जिसे मुख्य रूप से कच्चे तेल की आसवन इकाई के भारी घटकों, लघु अवशेष एवं कैटेलिटिक
    क्रैकर यूनिट से प्राप्त क्लेरीफाइड ऑयल (clarified oil) को मिलाकर प्राप्त किया जाता है।
  • यह उपलब्ध सभी ईंधनों में से सबसे सस्ता ईंधन है और उद्योगों में बॉयलर, टर्बाइन इत्यादि चलाने के लिए विद्युत् उत्पन्न करने के
    लिए उपयोग किया जाता है।

पेट-कोक और फर्नेस ऑयल के बढ़ते उपयोग के कारण:

  • सस्ता विकल्प: कोयले की तुलना में पेट कोक के लिए प्रति यूनिट वितरित ऊर्जा बहुत सस्ती है जो इसे खरीदारों के लिए आकर्षक बनाता है।
  • अनुकूल कर व्यवस्था: हालांकि इन दोनों ईंधनों पर GST के तहत 18% कर लगाया जाता हैं, परन्तु वे उद्योग जो विनिर्माण के लिए इन ईंधनों का उपयोग करते हैं ईंधन पर लगे पूरे कर को वापस प्राप्त करते हैं। दूसरी ओर प्राकृतिक गैस पर, जो GST में शामिल नहीं है, कुछ राज्यों में 26% वैट है।
  • कोयला पर 400 रूपए प्रति टन क्लीन एनर्जी सेस लगाया जाता है, जो पेट-कोक के उपयोग को बढ़ावा देता हैं।
  • पेट कोक में शून्य एश सामग्री होती है जो कोयले की तुलना में एक सबसे बड़ा लाभ है जिसमें राख सामग्री की मात्रा अधिक होती है। यह सीमेंट फर्मों को कम ग्रेड के चूना पत्थर का उपयोग करने की अनुमति भी देता है। यह एक बड़ा लाभ है क्योंकि भारत के चूना पत्थर भंडार का लगभग 60% प्रकृति में निम्न श्रेणी (लो ग्रेड) का है।

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