पुलिस सुधार (Police Reforms)

  • पुलिस संगठन, पुलिस एक्ट,1861 पर आधारित है।
  • पुलिस को संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत राज्य सूची में रखा गया है। हालांकि, संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच कार्यकारी और विधायी कार्यों के विभाजन की व्यवस्था की गई है।
  • इसे अधिकारवादी शासन के तहत स्थापित किया गया था। इस प्रकार, भारतीय समाज में बढ़ती जटिलता, आधुनिकीकरण और लोकतांत्रिककरण के साथ-साथ अपराध की परिवर्तित होती प्रकृति पुलिस संगठन में संरचनात्मक, कार्यात्मक और कार्मिक सुधारों की मांग करती है।
  • इसके अतिरिक्त, कानून एवं व्यवस्था की कमी भी निवेश को आकर्षित करने में विफल रही है। निवेश आर्थिक विकास के प्रोत्साहन हेतु आवश्यक है।
  •  पुलिस सुधारों पर विभिन्न विशेषज्ञ

समूह निम्न प्रकार रहे हैं:

  •  1977-81 का राष्ट्रीय पुलिस आयोग |
  • रिबेरो समिति 1988 |
  • पद्मनाभैया समिति 2000
  • मलिमथ समिति 2002-03
  •  प्रकाश सिंह बनाम केंद्र सरकार 2006
  •  द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग, 2007
  •  पुलिस एक्ट ड्राफ्टिंग कमेटी ।।, 2015

पुलिस बल आधुनिकीकरण (MPF) योजना

  • MPF योजना को वर्ष 1969-70 में शुरू किया गया था। हाल की कैबिनेट की घोषणा के अनुसार इसके अंतर्गत आवंटित
    राशि को दोगुना कर दिया गया है।
  •  इस कोष का उपयोग आंतरिक सुरक्षा, कानून एवं व्यवस्था, महिला सुरक्षा, आधुनिक हथियार उपलब्ध कराने, पुलिस बलों की लामबंदी, लॉजिस्टिक सहायता, हेलीकॉप्टरों को किराए पर लेने, पुलिस वायरलेस को अपग्रेड करने, नेशनल सेटेलाइट नेटवर्क, CCTNS प्रोजेक्ट, ई-प्रिजन प्रोजेक्ट (E-prison project) आदि के लिए किया जाएगा।
  • अपराध और अपराधियों से सम्बंधित सूचनाओं का डेटा बेस बनाने के लिए पुलिस थानों को एकीकृत किया जाएगा। इस डेटा बेस को आपराधिक न्याय प्रणाली से जुड़े अन्य स्तम्भों जैसे जेल, फोरेंसिक साइंस लैबोरेट्रीज और अभियोजन कार्यालयों से जोड़ा जाएगा।
  • 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं का अनुसरण करते हुए MPF योजना को 2015-16 से केन्द्रीय अनुदान से अलग कर दिया  गया। राज्यों से अपेक्षा की गई थी कि वे अपने स्वयं के संसाधनों से इस योजना का वित्त पोषण करेंगे।

इस योजना के तहत अमरावती (आंध्रप्रदेश) में एक अत्याधुनिक फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना करने तथा जयपुर में स्थित सरदार पटेल ग्लोबल सेंटर फॉर सिक्यूरिटी, काउंटर टेररिज्म एंड एंटी-इनसर्जेसी और गाँधीनगर में गुजरात फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय को अपग्रेड करने का प्रावधान है।

अपेक्षित लाभ

  •  स्मार्ट पुलिसिंग (SMART Policing) अर्थात स्ट्रिक्ट एंड सेंसिटिव, मॉडर्न एंड मोबाइल, अलर्ट एंड अकान्टबल, रिलाएबल एंड रेस्पोंसिव, टैक सैवी एंड ट्रेन्ड पुलिसिंग की प्राप्ति का उद्देश्य।
  • यह वामपंथी उग्रवाद, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के विभिन्न समूहों द्वारा उत्पन्न होने वाली सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने में एक उत्प्रेरक का कार्य करेगा।।
  • पुलिस ढांचे, फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरीज़, संस्थाओं और उनमें उपलब्ध उपकरणों का अपग्रेडेशन, जिससे आपराधिक न्याय प्रणाली की महत्वपूर्ण कमियों को दूर करने में सहयता प्राप्त होगी।
  • पुलिस को नवीनतम उपकरणों से लैस करने से अर्धसैनिक बलों पर निर्भरता कम होगी।

उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के कार्यान्वयन की स्थिति

न्यायालय के निर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी हेतु न्यायालय द्वारा स्थापित न्यायमूर्ति थॉमस समिति के अनुसार:

  • जम्मू-कश्मीर और ओडिशा के अतिरिक्त सभी राज्यों में राज्य सुरक्षा आयोग स्थापित किए गए थे। परंतु कुछ राज्यों में, इस पर सरकार और पुलिस अधिकारियों का प्रभुत्व था।
  • राज्य सुरक्षा आयोगों और पुलिस संस्थापन बोर्डो की संरचना और शक्तियां उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों से भिन्न थीं।
  • कई आयोगों के पास बाध्यकारी अनुशंसाएं जारी करने की शक्ति नहीं थी।
  • निदेशकों और महानिरीक्षकों (IGs) का कार्यकाल निश्चित नहीं किया गया था और इस प्रकार, उन्हें अत्यंत अपुष्ट और काल्पनिक आधारों पर आधी अवधि में ही हटाया जा रहा था। उदाहरण के लिए, केरल में टी.पी. सेनकुमार मामला।
  • राज्यों की एक बड़ी संख्या द्वारा इसका अनुपालन न किये जाने के कारण उच्चतम न्यायालय ने स्वयं भी इसका कार्यान्वयन सुनिश्चित करने में असमर्थता व्यक्त की है।

पुलिस सुधार से संबंधित मुद्दे

• पुलिस बलों का आधुनिकीकरण
० हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पुलिस बल के आधुनिकीकरण (MPF) हेतु एक अम्ब्रेला योजना के क्रियान्वयन को मंजूरी
दी है और 2017-18 से 2019-20 की अवधि के लिए 25,060 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की है।
० यह बताया गया है कि राज्यों ने MPF योजना के तहत पूर्व में आवंटित 1 9,203 करोड़ के कुल अनुदान का केवल 14%
ही उपयोग किया था।
० पुलिस आधुनिकीकरण को नेशनल ई-गवर्नेस प्लान (NeGP) के अंतर्गत एक इंटीग्रेटेड मिशन मोड प्रोजेक्ट (MMP) के
रूप में शामिल किया गया है।
० मेगा सिटी पुलिसिंग (MCP) की योजना भी प्रारंभ की गई है जिसमें मुंबई, बंगलुरु, दिल्ली आदि सहित सात शहरों में
पुलिस बल का आधुनिकीकरण किया जा रहा है।
० हाल ही में गृह मंत्री ने अपराध एवं आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम (CCTNS) परियोजना के तहत एक डिजिटल
पुलिस पोर्टल लॉन्च किया है।

  • बोझ तले दबा पुलिस बलः
    ० पिछले दशक (2005-2015) के दौरान प्रति लाख जनसंख्या पर होने वाले अपराधों में 28% तक की वृद्धि देखी गई।
    जबकि अधिकांश राज्यों में प्रति लाख लोगों पर मात्र 137 पुलिसकर्मी ही उपलब्ध हैं। यह संख्या पुलिस कर्मियों की
    स्वीकृत सीमा 181 और संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनुशंसित संख्या 222 प्रति लाख जनसंख्या के अनुरूप नहीं है।
    ० वर्ष 2016 में पुलिस के 24% पद रिक्त थे। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने रेखांकित किया है कि ट्रैफिक प्रबंधन, आपदा राहत और अतिक्रमण हटाने जैसी अतिरिक्त जिम्मेदारियों ने पुलिस बल के कार्यों में वृद्धि कर दी है।
    जाँच की गुणवत्ता
    ० विधि आयोग (2012) के अनुसार अपराध जांचों की निम्न गुणवत्ता के कारण अभियोजन की दर मात्र 47% रही। पुलिस संगठन में पेशेवर जाँच के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और विशेषज्ञता का नितांत अभाव है। इस संगठन में आवश्यक कानूनी जानकारी और बुनियादी फोरेंसिक व साइबर इंफ्रास्ट्रक्चर का भी अभाव है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने संस्तुति दी कि अपराधों की बेहतर जाँच के लिए राज्यों को पलिस बल के भीतर ही जाँच की अलग इकाइयाँ बनाने की आवश्यकता है।
  • इसके लिए,अपराध एवं आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम (CCTNS) योजना को कार्यान्वित किया जा रहा है। इसके तहत पुलिस स्टेशनों को केंद्रीकृत डेटाबेस से जोड़कर,अपराध एवं अपराधियों की जांच को सुगम बनाने हेतु सिविल पुलिस के जांच अधिकारियों को उपकरण, प्रौद्योगिकी और सूचना उपलब्ध करायी जा रही है।

 पुलिस की जवाबदेही ।
० राजनीतिक कार्यपालिका के पुलिस पर नियंत्रण होने से पुलिसकर्मियों का दुरुपयोग और उनके निर्णय लेने की शक्ति में ।हस्तक्षेप किया जाता है। इस सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए कुछ दिशा-निर्देश निम्नलिखित हैं:

पुलिस संगठन के लिए तीन संस्थानों की स्थापना

 

  1. राज्य सरकार द्वारा पुलिस पर अनुचित प्रभाव या दबाव को रोकने के लिए एक राज्य सुरक्षा आयोग
  2. पुलिस अधिकारियों के स्थानांतरण, नियुक्ति, पदोन्नति और अन्य सेवा संबंधी मामलों का निर्णय लेने हेतु एक पुलिस संस्थापन बोर्ड।
  3. गंभीर दुर्व्यवहार के संबंध में पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध लोक शिकायतों की जांच करने के लिए एक पुलिस शिकायत प्राधिकरण।
  • पुलिस महानिदेशक (DGP) का चयन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सूचीबद्ध किए गए तीन सर्वाधिक वरिष्ठ अधिकारियों में से किया जाना चाहिए तथा DGP का कार्यकाल न्यूनतम दो वर्षों का होना चाहिए।
  •  महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ फील्ड अधिकारियों (रेंज के प्रभारी महानिरीक्षक, थाना प्रभारी) का कार्यकाल न्यूनतम दो
    वर्षों का होना चाहिए।
  •  जाँच की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए जाँच से सम्बंधित कार्यवाहियों में संलग्न पुलिस बल को क़ानून एवं व्यवस्था । बनाए रखने वाले पुलिस बल से अलग रखा जाना चाहिए।

कर्मचारियों की क्षमता में वृद्धि करना।

  • पुलिस में अधिकांश संख्या (86%) कांस्टेबल स्तर के कर्मियों की है। इन पुलिसकर्मियों को निम्न स्तरीय और अपर्याप्त
    प्रशिक्षण प्राप्त होता है। परिणामस्वरूप कानून एवं व्यवस्था में कुप्रबंधन की स्थिति उत्पन्न होती है।
  •  तनाव का उच्च स्तर, अनियमित कार्य-घंटे, पारिवारिक मुद्दे अथवा अच्छा कार्य करने पर भी प्रशंसा न मिलना आदि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनके चलते पुलिसकर्मियों द्वारा आत्महत्या और अपने सहकर्मियों के साथ झगड़े जैसे मामलें देखने को मिलते है।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की पांचवी रिपोर्ट में पुलिसकर्मियों की भर्ती प्रक्रिया, प्रशिक्षण व सेवा शर्तों में सुधार तथा कार्य के घंटे घटाने और बेहतर आवास सुविधाएं देने का सुझाव दिया गया है।

अवसंरचना की कमी
० अवसंरचनात्मक स्तर पर नई आवश्यकताओं जैसे कि वाहनों की खरीद की प्रक्रिया में अत्यधिक विलंब होता रहा है।
० फोरेंसिक लैबऔर फिंगरप्रिंट व्यूरो जैसी अवसंरचनाओं की अभी तक कमी है।
० अधिकांश राज्यों की प्रशिक्षण अकादमियों में अवसंरचना अत्यंत निम्नस्तरीय है और आधुनिक उपकरणों एवं प्रक्रियाओं | का उपयोग करने हेतु पुलिस कम प्रशिक्षित है।

पुलिस पब्लिक रिलेशन
० लोगों के बीच पुलिस की छवि समस्या सुलझाने वाले की न होकर समस्या पैदा करने वाले की है। जबकि दूसरी तरफ
पुलिसकर्मी अपराध की जांच के लिए गवाहों और मुखबिरों हेतु लोगों पर ही निर्भर होते हैं।

० समुदाय आधारित पुर्लिस व्यवस्था (कम्युनिटी पुलिसिंग मांडल) इन चुनौर्तिर्या से निपटने का एक तरीका है। कई राज्य
ने इस तरह के कार्यक्रमों को लागू भी किया है। इनमें केरल का जनमैत्री सुरक्षा प्रोजेक्ट, राजस्थान की जॉइंट पेट्रोलिंग
कमिटीज, असम की मीरा पैबी तथा महाराष्ट्र की मोहल्ला कमेटियां प्रमुख हैं।

 अन्य मुद्दे
० हाल ही में, NHRC ने पाया है कि विगत 12 वर्षों में मुठभेड़ों के 206 मामले हुए हैं।
० जनता से प्रत्यक्ष संपर्क में रहने वाले अधिकारियों की सॉफ्ट स्किल्स, जैसे कि अंतर्वैयक्तिक संचार कौशल इत्यादि, के संदर्भ में | उचित प्रशिक्षण की कमी।
० पुलिस बलों के पक्षपातपूर्ण, राजनीतिकृत और सामान्यतः सक्षम न होने की की पूर्वधारणा। यह इस बात से भली-भांति स्पष्ट होता है कि उन अपराधों के लिए भी लगातार CBI द्वारा जांच की मांग की जाती रही है जिनकी जांच आपराधिक जांच विभागों द्वारा सरलता से की जा सकती है।

निष्कर्ष

क़ानून एवं व्यवस्था, आतंकवाद, वामपंथी उग्रवाद, साइबर अपराध आंतरिक सुरक्षा से जुड़े कुछ ऐसे खतरे हैं जिनके लिए सशक्त और कुशल पुलिस व्यवस्था की आवश्यकता है। इस प्रकार, इन जटिल सुरक्षा चुनौतियों के आलोक में समग्र पुलिस सुधार वर्तमान समय की मांग है।

  • क्षमता और अवसंरचना को बढ़ावा देना- इसके तहत पुलिसकर्मियों की संख्या में वृद्धि, प्रशिक्षण और सेवा-शर्तों में सुधार जैसे कि अवसंरचना, कार्य की अवधि, आवास सुविधाओं इत्यादि में सुधार शामिल है।
  •  प्रशासनिक सुधारों को शामिल करना- इसमें कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी से जांच कार्यों को पृथक करना, सामाजिक और जैसे कि अवसरचना, कार्य की अवधि, आवास सुविधाओं इत्यादि में सुधार शामिल है।
  •  प्रशासनिक सुधारों को शामिल करना- इसमें कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी से जांच कार्यों को पृथक करना, सामाजिक और साइबर अपराधों के लिए विशेषीकृत विंग की स्थापना, पुलिस को मुख्य कार्यों तक सीमित करना, उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्देशित प्राधिकरणों की स्थापना करना, राज्य मशीनरी को सुदृढ़ बनाना और अभियोजन को पुलिस के साथ सम्बद्ध करना शामिल है।
  • तकनीकी सुधार – इसमें कंट्रोल रूम का आधुनिकीकरण, अपराध एवं आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम (CCTNS) की प्रक्रिया को तीव्र बनाना, नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) को आगे बढ़ाना और पुलिस प्रणाली में नई तकनीक को शामिल करने हेतु प्रोत्साहन शामिल है। |
  •  भर्ती प्रक्रिया में परिवर्तन – भर्ती होने वाले लोगों की गुणवत्ता को अपग्रेड करना और साथ ही जनता को दिन -प्रतिदिन दी जाने वाली सेवाओं के वितरण में समर्पण और ईमानदारी सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है।
  • नेतृत्व की भूमिका – पुलिस संबंधी सभी समस्याएँ केवल पुलिस कार्यप्रणाली में राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण ही नहीं है।कार्य निष्पादन में सुधार पुलिस नेतृत्व की भी ज़िम्मेदारी है।
  • सभी राज्यों में मॉडल पुलिस अधिनियम का निर्माण- केंद्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्यों द्वारा मॉडल पुलिस अधिनियम का अनुपालन किया जाए। |
  • साक्ष्य आधारित पुलिसिंग को अपनाना- यह एक शोध आधारित दृष्टिकोण है जिसमें अपराध के ‘प्रमुख स्थलों की पहचान करना, समुदाय में संदिग्ध व्यक्तियों का पता लगाना और यह निर्धारित करना शामिल है कि पुलिसिंग के अंतर्गत क्या प्रभावी  ढंग से पूरा करती है

भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा में आसूचना की भूमिका(Role Of Intelligence In National Security In India)

  • आसूचना, राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रमुख घटकों में से एक है। विशेष रूप से बढ़ते कट्टरपंथ, सीमा-पार आतंकवाद, सामूहिक विनाश के हथियारों का प्रसार और साइबर जासूसी के उभरते खतरे के कारण इसके महत्व में और भी अधिक वृद्धि हुई है।
    सुरक्षा के संदर्भ में आसूचना
    • आसूचना को राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित अथवा राष्ट्रीय रणनीतियों के निर्माण को प्रभावित करने वाली सूचनाओं के संग्रह, संयोजन, विश्लेषण और मूल्यांकन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • आसूचना तंत्र संभावित शत्रु राज्य समूह, व्यक्ति, या गतिविधि के संबंध में सूचनाओं के उपयोग से संबंधित तंत्र है। इसके अतिरिक्त, आसूचना सम्बन्धी गतिविधियां, अन्य राज्यों की विदेश और घरेलू नीति के विकल्पों को प्रभावित करने का प्रयास करती हैं।
  • निम्नलिखित कारणों से आसूचना संबंधी गतिविधियों में सम्मिलित हितधारकों द्वारा अधिक से अधिक सूचनाओं का साझा करना अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है:
    ० हमलों से होने वाली क्षति को न्यूनतम करने हेतुः हाल ही में उरी और पठानकोट एयर बेस पर हुए हमले कुछ ऐसे
    उदाहरण हैं, जो खुफिया जानकारी प्राप्त करने में हुई लापरवाही को प्रदर्शित करते हैं।
    ० खतरे की वैश्विक परस्पर-संबद्धताः आतंकवाद वर्तमान में किसी एक देश की सीमाओं से संबंधित नहीं है, बल्कि यह एक
    वैश्विक चुनौती बन गया है। विश्व के किसी भी हिस्से में घटित होने वाली घटना से हमारी आंतरिक सुरक्षा प्रभावित हो
    सकती है।
    ० खतरे का व्यापक विश्लेषण: देश की सभी आसूचना एजेंसियों को उपलब्ध सूचनाओं के माध्यम से एक साथ मिलकर
    समन्वित रूप से वास्तविक खतरे का विश्लेषण करना चाहिए और क्षेत्राधिकार संबंधी विवाद में उलझे बिना इन सूचनाओं को प्रत्यक्ष रूप से कार्यवाही करने वाली एजेंसियों के साथ साझा करना चाहिए।

सम्बंधित जानकारी
भारत में आसूचना तंत्र
• भारत में आसूचना गतिविधियां विभिन्न केंद्रीय और राज्य एजेंसियों द्वारा संपन्न की जाती हैं जैसे : रिसर्च एंड एनालिसिस
विंग्स (RAW), इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB), डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी (DIA), ऑल इंडिया
रेडियो मॉनिटरिंग सर्विस (AIRMS) इत्यादि।
• कई खुफिया एजेंसियों का नेतृत्व संबंधित मंत्रालय द्वारा किया जाता है और उन्हें एक विशिष्ट कार्य प्रदान किया किया जाता है। IB देश की बाह्य सुरक्षा संबंधी कार्यों और RAW आंतरिक सुरक्षा संबंधी कार्यों की देखरेख करता है।
• सुरक्षा खतरे के अतिरिक्त, ये एजेंसियां तीन अन्य महत्वपूर्ण कार्य करती हैं; सब्वर्शन (स्थापित हानिकारक व्यवस्था को
प्रभावित कर परिवर्तन लाना), सबोटेज (सैन्य या राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए स्थापित हानिकारक व्यवस्था का
नाश करना) और एस्पोनिएज (राजनीतिक सूचना की प्राप्ति के लिए जासूसी) संबंधी गतिविधियाँ

सरकार द्वारा की गयी पहल
• नेटग्रिड: इसमें संभावित सुरक्षा खतरे से निपटने हेतु विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े इंटेलिजेंस डेटा बेस शामिल हैं।
• राष्ट्रीय आतंकवाद प्रतिरोधी केंद्र (NCTC) आतंकवाद रोकथाम संबंधी योजनाओं को तैयार करता है और सभी मौजूदा जांच
और आसूचना एजेंसियों के मध्य समन्वय स्थापित करता है।
• राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र (NCCC) जो राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों के लिए सभी संभावित ऑनलाइन खतरों की जाँच करेगा और आसूचना एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित करेगा।
• आप्रवासन. वीजा और विदेशी यात्री पंजीकरण और टैकिंग (VERT): सभी विदेशी यात्राओं के आंकड़ों को बनाए रखने  के साथ देश में अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए सुरक्षित और सुविधाजनक प्रवेश की सुविधा प्रदान करना। |

चुनौतियां

  •  औपनिवेशिक बोझः भारतीय आसूचना प्रणाली का विकास भारतीय पुलिस व्यवस्था के विस्तार के रूप में हुआ है किन्तु यह नौकरशाही प्रक्रियात्मक बाधाओं से ग्रसित है जो इसके उद्देश्य की प्राप्ति में प्रमुख बाधक है।
  • समन्वयः विभिन्न आसूचना एजेंसियों के मध्य अनुवर्ती कार्यवाही और समन्वय का अभाव हैं उदाहरण स्वरूप कारगिलसमीक्षा समिति द्वारा IB और RAW के मध्य विशेष रूप से सीमा पर समन्वय की कर्मी का उल्लेख किया गया है जबकि विशेष रूप से दोनों की क्षमताओं को रणनीतिक रूप से सुरक्षा दृष्टिकोण हेतु विशेष रूप से एकीकृत किया गया था
  • अप्रासंगिक प्रशिक्षण: 2011 में हुए मुंबई हमले की जाँच हेतु गठित समिति द्वारा निर्दिष्ट किया गया कि विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के अभाव तथा अप्रासंगिक प्रशिक्षण (आउट डेटेड ट्रेनिंग) के कारण विभिन्न खुफिया एजेंसियों की ओर से गंभीर काउंटर इंटेलिजेंस गलतियां हुई थीं।
  • वैधानिक प्रावधानों का अभावः इस सम्बन्ध में विधायी प्रावधानों के अभाव के कारण गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है। क्योंकि सभी खुफिया गतिविधियाँ, कार्यकारी निर्देशों के अंतर्गत संचालित की जाती हैं। कुछ गतिविधियों में लक्षित देश के स्थानीय कानूनों का उल्लंघन भी शामिल हो सकता है।

आगे की राह

  •  वैधानिक चार्टरः पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार द्वारा दिए गए सुझावों के अनुसार खुफ़िया एजेंसियों हेतु कर्तव्यों के निर्वेहन संबंधी चार्टर का निर्माण किया जाना चाहिए। यह निष्पक्षता के साथ सेवा प्रदायगी में सुधार करेगा और उत्तरदायित्व के विभिन्न स्तरों अर्थात- कार्यकारी, वित्तीय और विधायी इत्यादि के लिए विधिक आधार प्रदान करेगा।
  • एजेंसियो के मध्य समन्वय: अतिव्यापन, कार्यों के दोहराव एवं एक ही क्षेत्र में अलग-अलग एजेंसियों के क्षेत्राधिकार में टकराव की समस्या के निवारण और सुरक्षा इनपुट के बेहतर उपयोग को सुनिश्चित करने हेतु एक राष्ट्रीय आसूचना समन्वयक (National Intelligence Coordinator) नियुक्त किया जाना चाहिए। कुशल इनपुट साझाकरण हेतु एक मल्टी एजेंसी सेंटर को पुनः स्थापित किया जाना चाहिए।
  • एकीकृत आसूचना तंत्रः आसूचना तंत्र के कई गैर-पारंपरिक क्षेत्रों जिनमें वित्तीय लेनदेन, तकनीकी लेनदेन, बड़ी कंपनी के संचालन में धोखाधड़ी, संगठित अपराध इत्यादि का संज्ञान लेने की आवश्यकता होती है। इसके लिए आसूचना संग्रहण हेतु । एक उन्नत प्रौद्योगिकी युक्त तंत्र की आवश्यकता है।
  • कार्यात्मक सुधार : सैन्य और डेटा विज्ञान संबंधी विशेषज्ञों को शामिल करने के लिए प्रतिनियुक्ति (डेप्युटेशन) स्लॉट का । उपयोग किया जाना चाहिए। इसके साथ ही विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कार्यों की आउटसोर्सिंग की जानी चाहिए, जैसे इथिकल हैकर्स इत्यादि।
  • प्रौद्योगिकी उन्नयन : मौजूदा सुरक्षा प्रणाली प्रतिमान में साइबर स्पेस प्रौद्योगिकी के संदर्भ में संरचनात्मक सुधार किए जाने की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ – एन्क्रिप्शन/डिक्रिप्शन, क्रिप्टोग्राफी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ओपन सोर्स इंटेलिजेंस इत्यादि।

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