NIA अधिनियम और UAPA अधिनियम : भारत के लिए आतंकवाद के बढ़ते खतरे
प्रश्न: आतंकवाद का मुकाबला करने हेतु NIA अधिनियम और UAPA अधिनियम में हाल ही में किए गए संशोधनों के महत्व की विवेचना कीजिए।
दृष्टिकोण
- भारत के लिए आतंकवाद के बढ़ते खतरे का संक्षेप में परिचय दीजिए।
- साथ ही NIA अधिनियम में किये गए संशोधनों का उल्लेख करते हुए, इनके महत्व को रेखांकित कीजिए।
- UAPA अधिनियम में संशोधनों पर चर्चा करते हुए इनके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- संक्षेप में निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
भारत को आंतरिक और बाह्य, दोनों प्रकार के कारकों के कारण आतंकी कृत्यों के काफी खतरे का सामना करना पड़ता है। इनमें से कई आतंकी गतिविधियों में जटिल अंतरराष्ट्रीय संबंध और संगठित अपराध के साथ कथित संबंध पाए जाते हैं। आतंकवाद एक निरंतर विकसित होती परिघटना है, जिसमें आतंकवादी संगठन अपने कार्य करने के तरीकों को लगातार बदलते रहते हैं, जिससे आपराधिक न्याय संस्थाओं के समक्ष जटिलता और चुनौतियां बढ़ती रहती हैं।
इस संबंध में, संसद ने भारत में आतंकवाद से निपटने के लिए कानूनी और संस्थागत प्रणालियों को मजबूत करने के लिए NIA और UAPA अधिनियमों में संशोधनों को पारित किया।
NIA अधिनियम में किए गए संशोधन और आतंकवाद का मुकाबला करने में इनका महत्व:
- जांच और अभियोजन के दायरे को विस्तृत बनाना : नवीनतम संशोधन NIA को मानव तस्करी, जाली मुद्रा, प्रतिबंधित हथियारों के निर्माण या बिक्री, साइबर आतंकवाद और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 के तहत आने वाले अपराधों से संबंधित जांच करने में सक्षम बनाएँगे।ये संगठन को और अधिक शक्ति प्रदान करेंगे, क्योंकि आतंकवादी संगठन अब अपने संसाधनों को बढ़ावा देने के लिए संगठित अपराध नेटवर्क का उपयोग कर रहे हैं।
- NIA अधिकारियों को अब भारत के बाहर किए गए अपराधों की जांच करने की शक्ति प्राप्त होगी। केंद्र NIA को ऐसे मामलों की इस प्रकार जांच करने का निर्देश दे सकता है जैसे कि वे भारत में ही हुए हों। यह आतंकवादी हमलों के अपराधियों के अन्य देशों को भागने से संबंधित मामलों में बहुत महत्व रखता है।
- ये केंद्र सरकार को इस तरह के मुकदमों के लिए सत्र न्यायालयों को विशेष अदालतों के रूप में निर्दिष्ट करने में सक्षम बनाते हैं। इससे त्वरित जांच और अभियोजन की सुविधा प्राप्त होगी।
- संशोधन विधेयक सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66F को अपराधों की अनुसूची में सूचीबद्ध करता है। धारा 66F साइबर आतंकवाद से संबंधित है।
NIA आतंक से संबंधित मामलों की जांच करती है और आतंकवाद का मुकाबला करने की रणनीति बनाती है। NIA की दोषसिद्धि दर बहुत अधिक है, इसलिए यह उम्मीद की जा रही है कि इन संशोधनों से भारत में आतंकवाद से निपटने में NIA की दक्षता में और वृद्धि होगी।
आतंकवाद से निपटने के लिए UAPA अधिनियम में किये गए संशोधन:
- इनका उद्देश्य केंद्र सरकार को यह अधिकार प्रदान करना है कि वह आतंक के किसी कृत्य को करने, उसकी तैयारी करने या उसका प्रचार करने में शामिल पाए जाने पर किसी व्यक्ति को “आतंकवादी” घोषित कर सके। यह करना आवश्यक है क्योंकि प्रतिबंधित समूह अपना नाम बदलते हैं और अपने कार्य को जारी रखते हैं। साथ ही, किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करना एक अंतरराष्ट्रीय प्रथा है और प्रारंभ में ही आतंकवाद को खत्म करने में इसका प्रमुख महत्व है।
- अधिनियम में संशोधन NIA के इंस्पेक्टर या उससे ऊपर की रैंक के अधिकारियों को मामलों की जांच हेतु सक्षम बनाते हैं। यह अनावश्यक देरी को दूर करेगा और पदानुक्रम में निचले स्तर के अधिकारियों को जिम्मेदारी प्रदान करेगा।
- अधिनियम में संशोधन के माध्यम से आतंकवादी संगठनों से संबंधित संपत्ति की जब्ती के मामले में राज्य सरकारों के साथ विद्यमान संघर्ष के मुद्दों को भी दूर किया गया है। अब, यदि जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के किसी अधिकारी द्वारा की जाती है तो ऐसी संपत्ति की जब्ती के लिए NIA के महानिदेशक की अनुमति की आवश्यकता होगी, न कि राज्य के DGP की।
- आतंकवादी गतिविधियों को परिभाषित करने वाले अधिनियम की अनुसूची परमाणु आतंकवाद तक विस्तारित हो गयी है।
जांच एजेंसियों को मजबत करने और इन संशोधनों के माध्यम से अधिक स्पष्टता लाने से एजेंसियों को आवश्यक शक्ति प्राप्त होगी। हालांकि, कुछ चिंताओं जैसे किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करते समय नियत प्रक्रिया का पालन करना, आतंकवाद (जो अभी भी ठीक से परिभाषित नहीं है) की परिभाषा पर स्पष्टता आदि पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
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