नागरिक विद्रोह : 1817 के पाइका विद्रोह के अंतर्निहित कारणों और परिणामों की व्याख्या
प्रश्न: ब्रिटिश राज के प्रथम 100 वर्षों के दौरान नागरिक विद्रोहों का सिलसिला लगातार चलता रहा। इस संदर्भ में, 1817 के पाइका विद्रोह के अंतर्निहित कारणों और परिणामों की व्याख्या कीजिए।
दृष्टिकोण
- नागरिक विद्रोह के लिए उत्तरदायी कारणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- उन कारणों की व्याख्या कीजिए जिन्होंने विशेष रूप से पाइका विद्रोह में योगदान दिया।
- पाइका विद्रोह के परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
नागरिक विद्रोहों का नेतृत्त्व प्रायः अपदस्थ राजाओं और नवाबों या उनके वंशजों, अपने पद से हटाये गए और साधनहीन जमीदारों, भू-स्वामियों और पोलिगारों, विजित भारतीय राज्यों के पूर्व संरक्षकों और अधिकारियों द्वारा किया जाता था। इन सभी नागरिक विद्रोहों का मुख्य कारण अंग्रेज़ों द्वारा अर्थव्यवस्था, प्रशासन और भू-राजस्व व्यवस्था में किए गए आमूलचूल परिवर्तन थे।
पाइका विद्रोहः
पाइका मूलरूप से ओडिशा के गजपति शासकों के कृषक मिलिशिया (सैनिक) थे जो युद्ध के दौरान राजा को सैन्य सेवा प्रदान करते थे, जबकि शांतिकाल में कृषि कार्य करते थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के उद्देश्य से 1817 में अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
- 1803 में खुर्दा पर विजय के बाद, अंग्रेज़ों द्वारा पाइका लोगों की लगान-मुक्त वंशानुगत भूमि पर अधिकार करके उन्हें उनकी भूमि से बेदखल कर दिया गया।
- कंपनी की सरकार और उसके कर्मचारियों द्वारा उनसे बलपूर्वक वसूली की जाती थी और उनका उत्पीड़न किया जाता था।
- कंपनी की शोषणकारी भू-राजस्व नीति ने किसानों के साथ-साथ जमींदारों को भी समान रूप से प्रभावित किया।
- सामान्य जनता के लिए स्थिति तब और भी अधिक भयावह हो गयी, जब नई सरकार द्वारा नमक पर आरोपित करों के कारण नमक की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हो गयी।
- उड़ीसा पर विजय के पश्चात् कंपनी ने वहां प्रचलित कौड़ी मुद्रा व्यवस्था को समाप्त कर दिया और करों का भुगतान चांदी में किया जाना निर्धारित किया। यह अत्यधिक कठिनाईयों एवं व्यापक असंतोष का प्रमुख कारण बना।
विद्रोह के परिणाम:
गजपति राजा की नागरिक सेना (मिलिशिया) के वंशानुगत प्रमुख बक्सी जगबन्धु के नेतृत्व में पाइका ने आदिवासियों एवं समाज के अन्य वर्गों का समर्थन प्राप्त करते हुए विद्रोह कर दिया। पाइका विद्रोहियों ने खुर्दा की ओर कूच किया तथा इस दौरान उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के प्रतीकों पर हमला करते हुये पुलिस थानों, प्रशासकीय कार्यालयों एवं राजकोष में आग लगा दी, जिससे डरकर अंग्रेज़ वहाँ से भाग गये।
यह विद्रोह अत्याधिक तीव्र गति से पुर्ल, पीपली, कटक एवं प्रांत के अन्य क्षेत्रों में फैल गया। अंग्रेज़ों को इस क्षेत्र में अपना आधिपत्य बनाए रखने के लिए विद्रोहियों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा तथा अंग्रजों द्वारा विद्रोह को पूर्ण रूप से नियंत्रित करने में तीन माह से अधिक का समय लगा।
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