भारत पर मुस्लिम आक्रमण

मध्यकालीन इतिहास के महत्वपूर्ण तथ्य

  • मक्का‘ सऊदी अरब में स्थित है, यहीं पर 570 ई. में इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद का जन्म हुआ था।
  • इसी कारण यह स्थान मुस्लिम अनुयायियों का पवित्र तीर्थ स्थल है।
  • इनकी मृत्यु 632 ई. में हुई थी।
  • ऋग्वेद में उल्लिखित ‘भरत’ कबीले के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा।
  • परंपरानुसार दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा है।
  • कुछ विद्वानों के अनुसार, ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र, भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा है।
  • ईरानियों ने इस देश को ‘हिंदुस्तान‘ कहकर संबोधित किया है तथा यूनानियों ने इसे ‘इंडिया‘ कहा है।
  • हिंद (भारत) की जनता के संदर्भ में हिंदू’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अरबों द्वारा किया गया था।
  • भारत पर पहला सफल मुस्लिम आक्रमण 712 ई. में अरब आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में हुआ था।
  • मुहम्मद बिन कासिम से पूर्व उबैदुल्लाह के नेतृत्व में एक अभियान दल भेजा गया, परंतु वह पराजित हुआ और मारा गया। इराक के हाकिम अल-हज्जाज ने मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में अरबों को सिंध पर आक्रमण करने के लिए भेजा।
  • भारी संघर्ष के बाद अरबों ने 712 ई. में सिंध पर विजय प्राप्त कर ली।
  • उस समय सिंध पर दाहिर का शासन था।
  • फारसी ग्रंथ ‘चचनामा‘ से अरबों द्वारा सिंध विजय की जानकारी मिलती है।
  • गजनी वंश का संस्थापक अलप्तगीन था।
  • गजनी वंश का अन्य नाम यामीनी वंश भी है।
  • अलप्तगीन ने गजनी को अपनी राजधानी बनाया।
  • 998 ई. में महमूद गजनी का शासक बना।
  • सर हेनरी इलियट के अनुसार, महमूद ने भारत पर 17 बार आक्रमण किए।
  • भीमदेव प्रथम (1022-72 ई.) के शासनकाल में महमूद गजनवी ने 1025/1026 ई. में सोमनाथ के मंदिर को लूटा।
  • महमूद गजनवी का चंदेलों पर प्रथम आक्रमण 1019-20 ई. में हुआ।
  • उस समय चंदेल वंश का शासक विद्याधर था, जो अपने वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था।
  • यह अकेला ऐसा हिंदू शासक था, जिसने मुसलमानों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया।
  • 999 से 1027 ई. के बीच महमूद गजनी (या गजनवी) ने भारत पर 17 बार आक्रमण किए, परंतु इन आक्रमणों का उद्देश्य भारत में स्थायी मुस्लिम शासन की स्थापना करना नहीं था, बल्कि मात्र लूट-पाट करना था। बगदाद के खलीफा अल-कादिर बिल्लाह ने महमूद गजनवी को ‘यमीन-उद्-दौला‘ तथा ‘आमीन-उल-मिल्लाह‘ की उपाधियां प्रदान कीं।
  • महमूद गजनवी शिक्षित एवं सुसभ्य था। वह विद्वानों एवं कलाकारों का सम्मान करता था। उसने अपने समय के महान विद्वानों को गजनी में एकत्रित किया था। उसका दरबारी इतिहासकार उत्बी था। उसने ‘किताब-उल-यामिनी’ अथवा ‘तारीख-ए-यामिनी’ नामक ग्रंथ की रचना की। इसके अतिरिक्त उसके दरबार में दर्शन, ज्योतिष और संस्कृत का उच्चकोटि का विद्वान अलबरूनी, ‘तारीख-ए-सुबुक्तगीन’ का लेखक बैहाकी, जिसे इतिहासकार लेनपूल ने ‘पूर्वी पेप्स’ की उपाधि दी थी, फारस का कवि उजारी, खुरासानी विद्वान तुसी एवं उन्सुरी, विद्वान अस्जदी और फार्रुखी प्रमुख व्यक्ति थे। शाहनामा का लेखक फिरदौसी है। यह महमूद गजनवी के दरबार का प्रसिद्ध विद्वान कवि था। इसे पूर्व के होमर की उपाधि दी जाती है।
  • फरिश्ता/फिरिश्ता (1560-1620 ई.) ने तारीख-ए-फरिश्ता या गुलशन- ए-इब्राहिमी नामक किताब लिखी है। इसका पूरा नाम मुहम्मद कासिम हिंदू शाह अस्तराबादी फरिश्ता था। इसकी किताब तारीख-ए-फरिश्ता बीजापुर के शासक इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय को समर्पित थी।
  • महमूद गजनी के साथ प्रसिद्ध इतिहासकार अलबरूनी 11वीं सदी में भारत आया था। उसकी पुस्तक ‘किताब-उल-हिंद’ से तत्कालीन भारत की मुख्यतः सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिति की जानकारी मिलती है।
  • पुराणों का अध्ययन करने वाला प्रथम मुसलमान अलबरूनी था। उसका जन्म 973 ई. में हुआ था। वह खीवा (प्राचीन ख्वारिज्म) का रहने वाला था। अलबरूनी मात्र इतिहासकार ही नहीं था, उसके ज्ञान और रुचियों की व्याप्ति जीवन के अन्य क्षेत्रों तक थी, जैसे-खगोलविज्ञान, भूगोल, तर्कशास्त्र, ओषधि-विज्ञान, गणित, धर्म और धर्मशास्त्र। उसने संस्कृत का अध्ययन किया और अनेक संस्कृत रचनाओं का उपयोग किया जिसमें ब्रह्मगुप्त, बलभद्र तथा वाराहमिहिर की रचनाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उसने जगह-जगह भगवद्गीता, विष्णु पुराण तथा वायु पुराण को उद्धृत किया है। अलबरूनी ने अरबी भाषा में ‘तहकीक-ए- हिंद’ की रचना की थी। सर्वप्रथम एडवर्ड साची/सचाऊ ने अरबी भाषा से इस ग्रंथ का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया। इसका अनुवाद हिंदी में ‘रजनीकांत शर्मा’ द्वारा किया गया।
  • संस्कृत मुद्रालेख के साथ चांदी के सिक्के महमूद गजनवी ने जारी किए थे। महमूद गजनवी द्वारा जारी चांदी के सिक्कों के दोनों तरफ दो अलग-अलग भाषाओं में मुद्रालेख अंकित थे। ऊपरी भाग पर अंकित मुद्रालेख अरबी भाषा में था तथा दूसरी तरफ अंकित लेख संस्कृत भाषा में था।
  • मध्य एशिया के शासक शिहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी ने 1192 ई. में तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय को पराजित किया था। शिहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी का प्रथम आक्रमण 1175 ई. में मुल्तान पर हुआ और 1205 ई. तक वह बराबर साम्राज्य विस्तार अथवा पूर्वविजित राज्य की रक्षा के लिए भारत पर चढ़ाई करता रहा। 1178 ई. में मुहम्मद गोरी ने गुजरात पर आक्रमण किया, किंतु मूलराज II ने अपनी योग्य एवं साहसी विधवा मां नायिका देवी के नेतृत्व में आबू पर्वत के निकट गोरी का मुकाबला किया और उसे परास्त कर दिया। यह गोरी की भारत में पहली पराजय थी। 1191 ई. में पृथ्वीराज तृतीय और गोरी के मध्य तराइन का प्रथम युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुहम्मद गोरी की पराजय हुई। 1192 ई. में तराइन के द्वितीय युद्ध में मोहम्मद गोरी द्वारा पृथ्वीराज तृतीय की पराजय के बाद भारत में मुस्लिम शक्ति की स्थापना हुई। यह युद्ध भारतीय इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण था।
  • 1194 ई. में चंदावर के युद्ध में मुहम्मद गोरी ने कन्नौज के गहड़वाल राजा जयचंद को पराजित किया था। चंदावर, वर्तमान उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले में यमुना तट पर स्थित है। मुहम्मद गोरी के सिक्कों पर देवी लक्ष्मी की आकृति बनी है और दूसरे तरफ कलमा (अरबी में) खुदा हुआ है। गोरी की विजयों के बाद उत्तर भारत में इक्ता प्रथा स्थापित हो गई।
  • 1192 ई. में तराइन के द्वितीय युद्ध में कुतुबुद्दीन ऐबक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वस्तुतः 1192-1206 ई. तक उसने गोरी के प्रतिनिधि के रूप में उत्तरी भारत के विजित भागों का प्रशासन संभाला। इस अवधि में ऐबक ने उत्तरी भारत में तुर्की शक्ति का विस्तार भी किया। बिहार और बंगाल की विजय के बारे में गोरी अथवा ऐबक ने सोचा भी न था। इस कार्य को गोरी के एक साधारण दास इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने किया। उसने बिहार की विजय की तथा नालंदा एवं विक्रमशिला को तहस-नहस कर डाला उसने 1198 से 1203 ई. के मध्य बंगाल पर आक्रमण किया। उस समय वहां का शासक लक्ष्मणसेन था। वह बिना युद्ध किए ही भाग निकला। तुर्की सेना ने राजधानी नदिया में प्रवेश कर बुरी तरह लूट-पाट की। राजा की अनुपस्थिति में नगर ने आत्मसमर्पण कर दिया। लक्ष्मणसेन ने भाग कर पूर्वी बंगाल में शरण ली और वहीं कुछ समय तक शासन करता रहा। इख्तियारुद्दीन ने भी संपूर्ण बंगाल को जीतने का प्रयत्न नहीं किया। इख्तियारुद्दीन ने लखनौती को अपनी राजधानी बनाया।
  • प्रो. हबीब के अनुसार, तुर्कों द्वारा उत्तर-पश्चिम की विजय ने क्रमशः ‘शहरी क्रांति’ और ‘ग्रामीण क्रांति’ को जन्म दिया।

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