मृदाजनन की अवधारणा

प्रश्न: मृदा का निर्माण करने वाले विभिन्न कारकों का विवरण देते हुए, मृदाजनन (मृदा निर्माण) की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • मृदाजनन की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए मृदाजनन की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
  • इसके पश्चात मृदा का निर्माण करने वाले विभिन्न कारकों की चर्चा कीजिए तथा बताइए कि ये किस प्रकार मृदा निर्माण की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।
  • मृदा का निर्माण करने वाले कारकों में मानवीय गतिविधियों की भूमिका को इंगित करते हुए संक्षिप्त निष्कर्ष प्रदान कीजिए।

उत्तर:

मृदाजनन का अर्थ मृदा निर्माण अर्थात मृदा द्वारा रासायनिक विशेषताओं तथा संघटन, रंग, कणों के आकार जैसे अन्य गुणों की प्राप्ति की प्रक्रिया से है।

मृदा निर्माण की प्रक्रिया

मृदा निर्माण में अपक्षय एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। यह शैलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने के लिए उत्तरदायी है, जिससे मृदा निर्माण के लिए आधारभूत सामग्री प्राप्त होती है। जल, वायु और गुरुत्वाकर्षण की क्रिया के माध्यम से सामग्री का संचय भी मृदा निर्माण में योगदान करता है।

  • सर्वप्रथम अपक्षयित पदार्थ या लाए गए निक्षेप, बैक्टीरिया या अन्य निम्न श्रेणी के पौधे जैसे काई एवं लाइकेन द्वारा उपनिवेशित किए जाते हैं।
  • निक्षेप के अंदर कई छोटे जीव भी आश्रय प्राप्त करते हैं। पक्षियों और वायु द्वारा लाए गए बीजों से छोटी घासों और फर्न के पश्चात वृक्ष एवं झाड़ियों में वृद्धि होने लगती है।
  • पौधों की जड़ें नीचे तक घुस जाती हैं तथा बिल बनाने वाले जन्तु कणों को ऊपर लाते हैं, जिससे पदार्थों की संहति छिद्रमय और स्पंज की तरह हो जाती है। इस प्रकार इसमें जल धारण करने की क्षमता आ जाती है और इसमें वायु का प्रवेश सुगमता से हो सकता है, जिसके कारण अंतत: परिपक्व मृदा का निर्माण होता है जो खनिज एवं जैविक उत्पाद युक्त होती है।

इस प्रकार मृदा निर्माण की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं:

मूल पदार्थ (शैल):

मृदा निर्माण चट्टानों के मलबे और शैल निक्षेपों के संघटन एवं संरचना तथा साथ ही उनके खनिज एवं रासायनिक संयोजन पर निर्भर करता है। यह अपक्षय की प्रकृति, उसकी दर तथा आवरण की गहराई/मोटाई को भी प्रभावित करता है।

स्थलाकृति/उच्चावच:

यह सतह के सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने की मात्रा तथा धरातलीय और उप-सतही अपवाह की मात्रा को निर्धारित करती है और इस प्रकार यह मृदाजनन को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए,

  • उत्तरी गोलार्ध में, दक्षिणामुख ढलान उत्तराभिमुख ढलानों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक गर्म और शुष्क होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दोनों क्षेत्रों की मृदा में गहराई, गठन, जैविक गतिविधियों और मृदा परिच्छेदिका के विकास के संदर्भ में भिन्नता विद्यमान होती है।
  • मध्यम से कम ढलानों पर विकसित मृदा प्राय: घाटियों के तल पर पाई जाने वाली मृदा की तुलना में बेहतर जलनिकासी वाली होती है। खराब जल निकासी की परिस्थितियों में, मृदा अपरिपक्व हो जाती है।
  • तीव्र ढलानें अपरदन प्रवण होती हैं। जो सतही अवसाद के स्थानांतरण के माध्यम से मृदा के विकास को अवरूद्ध करती है।

जलवायु:

मृदा के विकास में संलग्न जलवायविक तत्वों में प्रमुख हैं- आर्द्रता और तापमान एवं उनकी मौसमी एवं दैनिक भिन्नताएं।

  • मृदा में उपलब्ध अधिक आर्द्रता आधार-शैल (bedrock) और अवसाद के अपक्षय, रासायनिक अभिक्रियाओं तथा पादप विकास को बढ़ावा प्रदान करती है। यह मृदा pH और कार्बनिक पदार्थों के अपघटन को भी प्रभावित करती है।
  • तापमान आधार-शैल की अपक्षय की दर को प्रभावित करता है। यह दर सामान्यत: मृदा सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों में वृद्धि, मृदा की रासायनिक अभिक्रियाओं की आवृत्ति और परिमाण तथा पादप वृद्धि की दर के कारण उच्च तापमान के साथ बढ़ती है।

जैविक क्रियाएं:

जीवित जीव कार्बनिक पदार्थों के संचय, परिच्छेदिका मिश्रण और जैव भू-रासायनिक पोषक चक्र (जैसे कार्बन और नाइट्रोजन चक्र) को प्रभावित करते हैं।

  • पादप पदार्थों के भूमि पर गिरने (litter-fall) और अपघटन की प्रक्रिया के माध्यम से जीवधारी मृदा में ह्यूमस और पोषक तत्वों की आपूर्ति करते हैं, जिससे मृदा की संरचना और उर्वरता प्रभावित होती है।
  • सतही वनस्पति मृदा की सतह को बांधकर और धरातल पर प्रवाहित होने वाली पवन एवं जल की गति को कम करके मृदा की ऊपरी परतों को अपरदन से भी संरक्षण प्रदान करती है।

कालावधि:

मृदा निर्माण प्रक्रियाओं के घटित होने में लगने वाले कालावधि मृदा की परिपक्वता और परिच्छेदिका विकास को निर्धारित करती है।

इनके अतिरिक्त, कृषि, खनन, कृत्रिम जल निकासी आदि जैसी मानवीय गतिविधियाँ भी उपर्युक्त कारकों में से एक अथवा एक से अधिक को प्रभावित करके मृदा निर्माण की प्रक्रिया को उल्लेखनीय रूप से प्रभावित करती हैं।

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