सैन्य आधुनिकीकरण (Military Modernisation)

सैन्य आधुनिकीकरण (Military Modernisation) निम्नलिखित क्षेत्रों में सैन्य आधुनिकीकरण हो सकता है –

  • युद्धक क्षमताओं में सुधार – प्रभावी सशस्त्र बलों का निर्माण, उन्हें बनाए रखना और उनका उपयोग करना किसी भी राज्य और इसके रक्षा प्रतिष्ठान का केंद्रीय कार्य है।
  • प्रक्रियाओं, संरचनाओं एवं प्रणालियों में सुधार – एक रक्षा प्रतिष्ठान के पास क्या है, इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि वह कैसे कार्य करता है।
  • उच्च सुरक्षा की संरचना – सैन्य नेतृत्व के विभिन्न भाग एक-दूसरे से किस प्रकार जुड़े हुए हैं तथा कैसे सैन्य कमान का नेतृत्व अंततः निर्वाचित नागरिक नेतृत्व से जुड़ा हुआ है।

युद्धक क्षमताओं एवं प्रक्रियाओं में सुधार 

भारत अपनी क्षेत्रीय अखंडता के समक्ष व्याप्त खतरे एवं स्वयं को एक महान शक्ति के रूप में स्थापित करने की आकांक्षा से प्रेरित होकर सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण कर रहा है।

महत्व

वर्षों से भारतीय सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण की गति काफी धीमी रही है एवं तकनीकी रूप से भारतीय सेनाओं का जितना  उन्नयन होना चाहिए वह नहीं हो पाया है।

  •  भारत विश्व में सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है क्योंकि प्रौद्योगिकियों के स्वदेशी उत्पादन में भारत अभी भी पिछड़ा हुआ है।
  •  भारत की थल सेना के पास परिष्कृत हथियारों एवं शस्त्रागारों की कमी है, नौसेना के पनडुब्बी बेड़े का आकार न्यूनतम
    आवश्यकता से 40 प्रतिशत कम है। लड़ाकू स्क्वाड्रन अनिवार्य आवश्यकता के केवल 60 प्रतिशत के स्तर पर हैं, जो भारत के रक्षा आधुनिकीकरण की धीमी गति को देखते हुए एक चिंता का विषय है।
  • संभवतः भारत की रक्षा आवश्यकताएँ चीन की बढ़ती आक्रामक क्षमताओं से प्रभावित हैं।
  • अपने सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन्नत रक्षा उपकरण एवं प्रौद्योगिकी के विकास के मामले में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का समाधान किया जा सकता है।

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता तथा रक्षा तैयारियां

  •  भारत वर्तमान में सर्वाधिक जटिल खतरों एवं चुनौतियों का सामना कर रहा है जिनमें परमाणु हथियारों से लेकर उप
    पारंपरिक हथियार तक शामिल हैं।
  •  चीन तथा पाकिस्तान के साथ अनिर्णीत क्षेत्रीय विवादों जैसे मुद्दे, जम्मू-कश्मीर एवं उत्तर पूर्वी राज्यों में विद्रोह, वामपंथी चरमपंथ की बढ़ती समस्याओं तथा शहरी आतंकवाद के बढ़ते खतरे ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को और बढ़ा दिया है।
  • अतः, वर्तमान भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष गंभीर खतरे उत्पन्न करने वाली चुनौतियों का सामना करने हेतु रक्षा क्षमताओं (अर्थात थल, वायु एवं समुद्री क्षमताओं) को उन्नत करने की आवश्यकता रक्षा क्षेत्र के आधुनिकीकरण (मेक इन इंडिया जैसी पहलों) की दिशा में भारतीय नीतियों में काफी हद तक प्रतिबिंबित हो रही है।
  •  भारत का रक्षा उद्योग वर्तमान परिस्थितियों में भारत की रक्षा आवश्यकताओं को पूर्ण करने में असफल रहा है। यही कारण है। कि आज भारत विश्व का सबसे बड़ा हथियार आयातक है।।
  • भारत की रक्षा तैयारी एक महत्वपूर्ण प्रश्न बना हुआ है, क्योंकि रक्षा उद्योग में व्याप्त गंभीर कमियों के कारण सशस्त्र बलों की विभिन्न सेवाओं में से कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जा सका है।
  • उभरते भू-राजनीतिक परिदृश्य में खतरों की बदलती प्रकृति के कारण भारत को सशस्त्र बलों के निरंतर आधुनिकीकरण हेतु क्षमता निर्माण पर ध्यान देना चाहिए।

भारत के रक्षा क्षेत्र के आधुनिकीकरण सम्बन्धी मुद्दे

  •  आत्म-निर्भरताः भारत को खरीदार-विक्रेता संबंधों से परे हटकर विचार करना चाहिए जो वर्तमान में लगभग पूरी तरह से इसकी रक्षा औद्योगिक नीतियों की विशेषता बन चुका है। इसके लिए उन्नत हथियार प्रणाली एवं रक्षा प्रौद्योगिकी को स्वदेशी बनाने के साधन विकसित करने चाहिए।
  • बजट आवंटन: रक्षा बजट GDP के 2 प्रतिशत से भी कम है। ऊपर से इसका अधिकांश भाग वेतन एवं पेंशन में ही खर्च हो जाता है। अतः थल सेना, नौसेना एवं वायु सेना के आधुनिकीकरण हेतु यह धनराशि पर्याप्त नहीं है।
  •  निर्णय लेने की धीमी प्रक्रिया: पदानुक्रमिक संरचना के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सामरिक मामलों पर निर्णय लेने की धीमी प्रक्रिया समय पर हथियारों के उत्पादन तथा उनका क्रय करने की भारत की क्षमता को प्रभावित करती है।
  • इसके अतिरिक्त सेना के लिए हथियार, उपकरण तथा गोला बारूद के स्वदेशी डिजाइन तथा निर्माण के लिए उत्तरदायी रक्षा मंत्रालय के विभिन्न अंगों अर्थात् DRDO, ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (OFB) एवं रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों (DPSU) में परस्पर सामंजस्य का अभाव है। हाल ही में केंद्र सरकार ने केंद्रीकरण के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए DRDO को अधिक वित्तीय स्वायत्तता प्रदान की है।
  • हथियार डिजाइन एवं प्रौद्योगिकी: इस क्षेत्र में सेना के पास पर्याप्त विशेषज्ञता नहीं है जिसके परिणामस्वरूप स्वदेशी रक्षा उद्योग को सार्थक इनपुट नहीं मिल पाते।
  •  रक्षा खरीद: रक्षा खरीद के संबंध में विशेषज्ञता के विकास हेतु सतत प्रयासों का अभाव है। सेना अभी भी हथियारों की खरीद संबंध कार्यो के लिए विशेषज्ञ’ की बजाय ‘सामान्यज्ञ’ दृष्टिकोण को प्रर्याग में ला रही है।

आगे की राह

  • भारतीय सेना में उपयुक्त संख्या में कर्मियों को बनाए रखते हुए अधिक कुशल टीथ टू टेल अनुपात (teeth-to-tail ratio)(अग्रिम मोर्चे पर लड़ रहे सैनिकों तथा उनके सहायक कर्मचारियों का अनुपात) के साथ एक इष्टतम आधुनिक सैन्यबल बनने हेतु रूपांतरण की प्रक्रिया से गुज़रना होगा।
  • उपकरणों के आधुनिकीकरण में न केवल पुराने उपकरणों को प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए बल्कि, चरणबद्ध ढंग से पुराने सेवायोग्य उपकरणों की चयनित मात्रा का उन्नयन करना भी आवश्यक है।
  • सरकार को प्रारंभ में रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटन (पेंशन को छोड़कर) को बढ़ाकर GDP का 2.5 प्रतिशत कर देना चाहिए, और जब तक सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो जाती इस आवंटन को क्रमशः और बढ़ाकर 3 प्रतिशत तक कर देना चाहिए।
  • सरकार को रक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र को संरक्षण देना बंद कर देना चाहिए। स्वदेशी रक्षा हथियारों एवं उपकरणों के
    उत्पादन में निजी क्षेत्र के लिए भी समान अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए। |
  •  आर्मी डिज़ाइन ब्यूरो (ADB) को प्राथमिकता के आधार पर पूर्ण रूप से कार्यान्वित किया जाना चाहिए। इसे सेना के लिए सभी प्रकार के हथियारों तथा उपकरणों की अत्याधुनिक डिजाइन बनाने की दिशा में योगदान करने के लिए सशक्त किया जाना चाहिए।
  •  सरकार को रक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र को संरक्षण देना बंद कर देना चाहिए। स्वदेशी रक्षा हथियारों एवं उपकरणों के
    उत्पादन में निजी क्षेत्र के लिए भी समान अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
  • आर्मी डिज़ाइन ब्यूरो (ADB) को प्राथमिकता के आधार पर पूर्ण रूप से कार्यान्वित किया जाना चाहिए। इसे सेना के लिए सभी प्रकार के हथियारों तथा उपकरणों की अत्याधुनिक डिजाइन बनाने की दिशा में योगदान करने के लिए सशक्त किया जाना चाहिए।
  •  सेना मुख्यालय में खरीद व्यवस्था के अंतर्गत सभी कार्य सामान्यज्ञों के बजाय विशेषज्ञों द्वारा किये जाने चाहिए, इस प्रकार वर्तमान प्रणाली में व्यापक सुधारों की आवश्यकता है।

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