भारत-प्रशांत रणनीति के संबंध में संक्षिप्त विवरण : भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की चुनौतियां
प्रश्न: आपके अनुसार वे कौन-से कारण हैं जिन्होंने हाल ही में भारत को MEA के तहत एक समर्पित भारत-प्रशांत प्रभाग सृजित करने के लिए प्रेरित किया? साथ ही, भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत के समक्ष चुनौतियों पर भी प्रकाश डालिए।
दृष्टिकोण
- भारत-प्रशांत रणनीति के संबंध में संक्षिप्त विवरण देते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
- उन कारणों पर चर्चा कीजिए जिन्होंने हाल ही में भारत को MEA में एक समर्पित भारत-प्रशांत प्रभाग बनाने के लिए प्रेरित किया।
- भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की चुनौतियों का एक-एक करके वर्णन कीजिए।
- उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष निकालिए।
उत्तर
भारत-प्रशांत एक भौगोलिक अवधारणा है। इसे हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के क्षेत्रों में विस्तारित माना जाता है। भूराजनीति में प्रयुक्त “भारत-प्रशांत” शब्द भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया व ASEAN देशों को संदर्भित करता है। यह हिन्द और प्रशांत महासागरों के परस्पर संपर्क तथा सुरक्षा एवं वाणिज्य हेतु इन महासागरों के महत्व को दर्शाता है।
वर्ष 2018 में शांगरी-ला संवाद के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा व्यक्त की गई नीति को एक सुसंगत संरचना प्रदान करने के उद्देश्य से भारत ने MEA में एक भारत-प्रशांत प्रभाग की स्थापना की। यह प्रभाग हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), ASEAN क्षेत्र और क्वाड को एकीकृत करता है।
MEA का क्षेत्रीय प्रभाग नीति-निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं, इसलिए भारत-प्रशांत प्रभाग का निर्माण सरकार द्वारा उठाया गया एक बड़ा कदम है। जिन कारणों ने भारत को एक समर्पित भारत-प्रशांत प्रभाग का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया, वे निम्नलिखित हैं:
- भू-राजनैतिक वातावरण: भारत-प्रशांत क्षेत्र के भू-राजनैतिक वातावरण में आए परिवर्तन भारत-प्रशांत रणनीति के निर्माण को प्रेरित करने वाले मूल कारण हैं, और फलस्वरूप MEA में भारत-प्रशांत प्रभाग के निर्माण के लिए भी ये मूल कारण के रूप में हैं।
- वैश्विक आकर्षण केंद्र: आर्थिक व रणनीतिक रूप से आकर्षण का वैश्विक केंद्र भारत-प्रशांत क्षेत्र की ओर स्थानांतरित हो रहा है। ASEAN और भारत जैसी अन्य प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाएं, जो वैश्विक व्यापार एवं वाणिज्य के प्रमुख संचालकों के रूप में उभरी हैं, वे इसी क्षेत्र में स्थित हैं।
- चीन की आर्थिक और सैन्य वृद्धि: इसने भारत तथा विश्व के लिए चुनौतियां उत्पन्न कर दी हैं। चीन हिंद महासागर में अपना विस्तार करने में संलग्न है।
- ASEAN देशों के साथ मज़बूत सहयोग: ASEAN क्षेत्र भारत की भारत-प्रशांत रणनीति का एक अभिन्न अंग है। भारत इस क्षेत्र को सुरक्षित रखने और यहाँ एक नियम-आधारित सुव्यवस्था को बनाए रखने के लिए ASEAN क्षेत्र की केंद्रीयता तथा एकात्मकता पर जोर देता है।
- भारत का सुरक्षा संरचना सम्बन्धी विजन: भारत इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को बढ़ाना चाहता है और एक शुद्ध सुरक्षा प्रदाता की भूमिका निभाना चाहता है।
- भारत के प्रभाव में वृद्धि: दक्षिण-पूर्वी एशिया में अपने हितों के औचित्य एवं उनके युक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए; पूर्वीएशिया में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका व उसके सहयोगियों के साथ अपने राजनीतिक, आर्थिक एवं सैन्य सहयोग को मजबूत करने के लिए तथा अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपने प्रभाव को व्यापक रूप से बढ़ाने के लिए भारत इस अवसर का लाभ उठा सकता है।
भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की चुनौतियां इस प्रकार हैं:
- संस्थागत ढाँचे की कमी: “भारत-प्रशांत” एक विकासोन्मुख विचार है। इसकी सफलता के लिए संस्थागत निर्माण की दिशा में ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है।
- परिभाषाओं में अंतर: जहां भारत के लिए भारत-प्रशांत क्षेत्र से आशय संपूर्ण हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत तथा अफ्रीकी तट से संयुक्त राज्य अमेरिका तक फैले हुए क्षेत्र से है वहीं संयुक्त राज्य अमेरिका इसे भारत के पश्चिमी तट और पश्चिमी प्रशांत में फैले क्षेत्र के रूप में देखता है।
- उद्देश्यों में अंतर: सभी देशों के उद्देश्यों में अंतर है। उदाहरण के लिए, USA का उद्देश्य चीन को नियंत्रण में लाना है। वहीं दूसरी ओर भारत, भारत-प्रशांत क्षेत्र को “किसी उद्देश्य” की पूर्ति हेतु देखता है न कि “किसी के विरुद्ध” के रूप में देखता है ताकि वह अमेरिका और चीन दोनों के साथ अपने संबंधों को बरकरार रख सके।
- विषम गठबंधन: “चार देशों के स्तंभ” (USA, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया) का भारत-प्रशांत फ्रेमवर्क पर प्रभुत्व है, और दक्षिण कोरिया, वियतनाम, फिलीपींस, सिंगापुर इत्यादि जैसे छोटे देशों के दर्जे और भूमिका को अधिकारहीन रखा गया है।
भारत-प्रशांत रणनीति भारत को इस क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए समान विचारधारा वाले देशों के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करती है। भारत के लिए एक स्वतंत्र एवं मुक्त भारत-प्रशांत रणनीति सुरक्षा एवं समृद्धि से संबंधित अपने विविध हितों को प्राप्त हेतु महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में, प्रधानमंत्री के शांगरी-ला संवाद में इस क्षेत्र की समावेशी परिकल्पना इस मार्ग को प्रशस्त करने में सहायक हो सकती है।
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