दक्षिण एशिया में जल के संबंध में सहयोग के क्षेत्रों पर चर्चा
प्रश्न: जहां एक ओर, जल में दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण को और अधिक घनिष्ट बनाने की क्षमता है, वहीं दूसरी ओर यह भारत के पड़ोसी देशों के बीच विश्वास की कमी का प्रतीक रहा है। विश्लेषण कीजिए।
दृष्टिकोण
- दक्षिण एशिया में जल के संबंध में सहयोग के क्षेत्रों पर चर्चा कीजिए।
- नदियों से संबंधित असहमति और संघर्ष के क्षेत्रों को रेखांकित कीजिए।
- इन संघर्षों के समाधान हेतु उपाय सुझाते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।
उत्तर
संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद, दक्षिण एशियाई क्षेत्र जल उपलब्धता के गंभीर संकट का सामना कर रहा है। यह स्थलीय क्षेत्र के लगभग 3.3 प्रतिशत भाग को कवर करता है और विश्व के पुनर्भरण योग्य जल की वार्षिक मात्रा का 6.8 प्रतिशत प्राप्त करता है, परंतु इसे जल प्रणालियों के प्रबंधन में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस क्षेत्र के सभी देशों के निर्धनता उन्मूलन और सतत विकास के साझे उद्देश्य जल को संभावित सहयोग का एक प्रमुख स्रोत बनाते हैं। इसके बावजूद, कई वर्षों से इस क्षेत्र के देशों के मध्य विश्वास की कमी ने विभिन्न अन्य मुद्दों की तरह जल संसाधन प्रबंधन को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है। सीमा-पार जल संघर्ष को निम्न उदाहरणों में देखा जा सकता है:
- रावी, सतलज, व्यास, सिंधु, झेलम और चिनाब के जल को साझा करने के विषय में भारत और पाकिस्तान के मध्य संघर्ष;
- भारत और नेपाल के बीच कोसी, गंडक और महाकाली के जल साझा करने पर विवाद; और
- गंगा और तीस्ता के लिए भारत और बांग्लादेश के मध्य विवाद।
इन देशों के मध्य जल बंटवारे और अवसंरचना विकास की मौजूदा संधियां निम्नलिखित हैं:
- भारत और पाकिस्तान के मध्य सिंधु जल संधि 1960 (IWT);
- भारत और नेपाल के मध्य कोसी समझौता 1954, गंडक समझौता 1959 और महाकाली संधि 1996;
- भारत और बांग्लादेश के मध्य गंगा जल बंटवारा संधि 1996।
हालांकि, ये निम्नलिखित कमियों के कारण अप्रभावी रही हैं:
- प्रावधानों में स्पष्टता का अभाव- यह इन जल बंटवारे समझौतों के प्रावधानों की व्याख्या और प्रवर्तन में अस्पष्टता का कारण बनता है जिससे क्षेत्र में विवादों को बढ़ावा मिलता है; उदाहरण के लिए सिंधु जल संधि के तहत उत्पन्न विवाद।
- समय के साथ जल प्रवाह में परिवर्तनीयता और अन्य पर्यावरणीय परिवर्तनों से निपटने और उनके प्रति अनुकूलन के संबंध में आवश्यक मानदंडों और प्रणालियों का अभाव।
भारत और भूटान के मध्य विभिन्न क्षेत्रों जैसे जल विद्युत विकास में सहयोग के अनेक उदाहरण हैं। हालांकि, भारत और नेपाल के मध्य लंबे समय से अवरुद्ध परियोजनाओं के उदाहरण भी हैं। सिंचाई और जल विद्युत उत्पादन के लिए क्षेत्रीय सहयोग का उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, नेपाल वाटरशेड प्रबंधन के माध्यम से नेपाल में जलविद्युत व सिंचाई लाभों का सृजन कर सकता है और साथ ही भारत में बाढ़ नियंत्रण में योगदान कर सकता है। भारत और बांग्लादेश के पारस्परिक लाभ हेतु यही उपाय पूर्वोत्तर भारत में किए जा सकते हैं।
क्षेत्रीय स्तर पर जल संसाधन वार्ता को सार्क (SAARC) के दायरे से बाहर रखा गया क्योंकि इन देशों ने ऐसे मुद्दों के सन्दर्भ में बार-बार द्विपक्षीय वार्ता पर बल दिया है। इसके अतिरिक्त, दक्षिण एशियाई देशों में सीमा-पार जल संबंधी मुद्दों का समाधान करने और उनका प्रबंध करने के लिए आवश्यक अंतर-सरकारी व्यवस्था का अभाव है।
इस प्रकार, जल, सहयोग के संभावित स्रोत के साथ-साथ विश्वास की कमी का प्रतीक बना हुआ है। जलवायु परिवर्तन जैसी नई चुनौतियों का सामना किसी भी एक देश के स्तर पर नहीं किया जा सकता है और इस हेतु क्षेत्रीय सहयोग आवश्यक है। भारत और बांग्लादेश के मध्य अंतर्देशीय जल परिवहन तथा भारत और म्यांमार के मध्य कलादान मल्टी-मोडल परियोजना पर हुई प्रगति में इस सहयोग का प्रारूप ढूंढा जा सकता है।
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