भारत में यूरिया क्षेत्र के संबंध में संक्षिप्त विवरण : यूरिया क्षेत्र में अनेक समस्याएं आवश्यक और उपाय

प्रश्न: हाल के वर्षों में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बावजूद, भारत में यूरिया क्षेत्र में कई समस्याएं निरंतर बनी हुई हैं। चर्चा कीजिए। मौजूदा समस्याओं के समाधान हेतु क्या सुधार किए जाने चाहिए?

दृष्टिकोण

  • भारत में यूरिया क्षेत्र के संबंध में संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • हाल के वर्षों में सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों को रेखांकित कीजिए।
  • भारत में यूरिया क्षेत्र में अनेक समस्याएं निरंतर बनी हुई हैं, चर्चा कीजिए।
  • भारत में यूरिया क्षेत्र से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक उपायों को सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर

भारत, चीन के पश्चात यूरिया उर्वरकों का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। वर्ष 2018-19 में भारत में यूरिया का उत्पादन लगभग 24.4 मिलियन टन रहने का अनुमान है। लगभग 80% स्थानीय मांग की पूर्ति घरेलू उद्योग द्वारा तथा शेष की पूर्ति आयात के द्वारा की जाती है। इसके अतिरिक्त, उर्वरक पर प्रदत्त सब्सिडी का लगभग 70 प्रतिशत भाग यूरिया क्षेत्र को आबंटित किया जाता है। यह खाद्यान्नों पर प्रदत्त सब्सिडी के पश्चात सबसे अधिक सब्सिडी है। भारत का लक्ष्य वर्ष 2022 तक यूरिया आयात को समाप्त करना है।

इसके महत्व को ध्यान में रखते हुए, नीम कोटेड यूरिया, गैस पूलिंग नीति, राष्ट्रीय यूरिया नीति, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, नई निवेश नीति-2012, आदि जैसे विभिन्न उपाए किए गए। उठाए गए कदमों का उद्देश्य सार्वजनिक, सहकारी और निजी क्षेत्रों में निवेश और देश में यूरिया उत्पादन में तीव्र वृद्धि करना है।

हालाँकि, इन क़दमों के बावजूद अनेक समस्याएं निरंतर बनी हुई हैं, जैसे:

  • काला-बाजारी: यूरिया के कम-मूल्य निर्धारण (Under-pricing) के कारण गैर-कृषि क्षेत्रों में इसका उपयोग आरंभ हुआ और बांग्लादेश तथा नेपाल जैसे पड़ोसी देशों तक इसकी तस्करी होने लगी है।
  • विकृत उपभोग प्रतिरूप: पोषक तत्व आधारित सब्सिडी और वर्तमान मूल्य निर्धारण नीति यूरिया के अवैज्ञानिक अति प्रयोग बढ़ावा प्रदान करती है, जो मृदा की उत्पादकता को कम करती है और विशेष रूप से हरियाणा और पंजाब में जल प्रदूषण का कारण बनती है।
  • रिसाव (लीकेज): यद्यपि यूरिया की कीमतें सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं, फिर भी जमाखोरी आदि जैसी प्रथाओं के कारण किसानों को इसके लिए अलग-अलग कीमतें चुकानी पड़ती हैं।
  • महंगा फीडस्टॉक: यूरिया के लगभग 20% संयंत्र अभी भी नेफ्था या ईंधन तेल पर आधारित फीडस्टॉक के उपयोग पर संचालित हैं, जिनमें पूंजी लागत प्राकृतिक गैस आधारित संयंत्रों की तुलना में अधिक होती है। गैस आधारित सयंत्रों में प्राकृतिक गैस की उपलब्धता भी एक प्रमुख चिंता का विषय है।
  • यूरिया आयात का उच्च नियमन: केवल कुछ चुने हुए राज्य उद्यमों को यूरिया आयात करने की अनुमति है जो प्रायः मांग और आपूर्ति में असंतुलन को बढ़ावा देता है।
  • नई क्षमता का सृजन नहीं: विनियमित मूल्य निर्धारण के कारण निवेश में गिरावट होने तथा यूरिया आयात पर निर्भरता बढ़ने से घरेलू उत्पादन में स्थिरता आई है।

सुझाए गए सुधार

  • पोषक तत्व आधारित सब्सिडी कार्यक्रम के अंतर्गत यूरिया को शामिल करने से घरेलू उत्पादक उर्वरक की पोषण तत्व आधारित निश्चित सब्सिडी प्राप्त करते रहेंगे, जबकि बाजार को विनियमित करने से घरेलू उत्पादकों को बाजार मूल्य प्रभारित करने की अनुमति प्राप्त होगी।
  • कंपनियों को कम दर पर नेफ्था, प्राकृतिक गैस जैसी आगतें प्रदान कर यूरिया संयंत्र स्थापित करने के लिए प्रेरित करना। इसके अतिरिक्त, यूरिया उत्पादन में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
  • कृषि प्रथाओं के माध्यम से मृदा की पोषक स्थिति और मृदा की स्थिति में सुधार के संबंध में जानकारी प्रदान कर उर्वरकों के उपयोग को तर्कसंगत बनाना।
  • यूरिया के लक्षित स्थानों पर न पहंचने अर्थात उसके डायवर्जन पर अंकुश लगाने के लिए प्रत्यक्ष नकद अंतरण के माध्यम से सब्सिडी का प्रावधान और JAM ट्रिनिटी के सशक्त कार्यान्वयन के माध्यम से लक्ष्यीकरण में सुधार करना तथा प्रत्येक परिवार में क्रय की जाने वाले सब्सिडीकृत बैगों की संख्या को सीमित करने के साथ सार्वभौमिक सब्सिडी प्रदान करना।
  • यूरिया के आयात के विनियमन से उर्वरक की आपूर्ति, घरेलू मांग में परिवर्तन का तत्काल रूप से समाधान कर सकती है।
  • भारतीय फर्मों को ईरान जैसे उन देशों में संयंत्र स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना जहां ऊर्जा कीमतें कम हैं तथा साथ ही दीर्घकालिक उर्वरक आपूर्ति सुनिश्चित करना। उदाहरण के लिए भारत और ओमान के मध्य संयुक्त उद्यम की सफलता जिसके अंतर्गत भारत में समर्पित उपयोग के लिए ओमान में 1.6 मिलियन टन यूरिया का उत्पादन किया जाना था।

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