अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक अवस्थिति : भारत में जनजातियों को शिक्षा प्रदान करने में सामने आने वाली चुनौतियां
प्रश्न: अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक अवस्थिति में उत्थान के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण मार्ग है। इस सन्दर्भ में, भारत में जनजातियों को शिक्षा प्रदान करने में सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए। साथ ही, जनजातियों की शिक्षा में सुधार के लिए कुछ उपाय सुझाइए।
दृष्टिकोण
- जनजातियों को शिक्षा प्रदान करने के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
- उपर्युक्त समस्या हेतु कुछ समाधान सुझाइये।
उत्तर
जनसंख्या के किसी भी वर्ग के उत्थान करने के लिए शिक्षा एक शक्तिशाली माध्यम है, जनजातियाँ इसका अपवाद नहीं हैं।
जनजातीय आबादी को शिक्षा प्रदान करने में सामने आने वाली चुनौतियाँ :
- अभिगम्यता (Accessibility): अधिकांश आदिवासी आबादी मुख्य धारा से स्थानिक रूप से पृथक होकर रहती है जहाँ शिक्षा सेवाओं की पहुँच कठिन है।
- भाषाई अवरोध: लगभग प्रत्येक जनजाति की अपनी विशिष्ट संस्कृति और भाषा होती है, जबकि शिक्षा, विशेषकर उच्च शिक्षा, अंग्रेजी माध्यम में उपलब्ध है। इसलिए, जनजातीय लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्त करना कठिन लगता है।
- वित्तीय क्षमता का अभाव: अधिकांश जनजातीय जनसंख्या गरीब है और आजीविका हेतु वन उत्पादों पर निर्भर है; जिसके कारण शिक्षा प्राप्त करने के लिए उनके पास पर्याप्त साधन नहीं हैं।
- प्रतिफल का देर से मिलना : चूंकि शिक्षा भी कोई तत्काल आर्थिक लाभ नहीं देती है इसलिए जनजातीय माता-पिता अपने बच्चों को लाभप्रद (रोजगार में संलग्न करना पसंद करते हैं, जिससे परिवार को त्वरित आय प्राप्त होती है।
- शिक्षण की गुणवत्ता: दूरस्थ जनजातीय क्षेत्रों में, शिक्षकों की अनुपस्थिति एक नियमित घटना है और यह काफी हद तक शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। साथ ही, कभी-कभी शिक्षक संवेदनशीलता का अभाव एवं जनजातीय संस्कृति के साथ असम्बद्धता प्रकट करते हैं।
- अपर्याप्त निगरानी: जनजातीय कल्याण विभाग और स्कूल शिक्षा विभाग के मध्य खराब समन्वय से उचित निगरानी बाधित होती है।
- प्रवासन: प्रवासी जनसंख्या अधिकांशतः जनजातीय है। बच्चे माता-पिता के साथ ही रहते हैं और स्कूल छोड़ देते हैं।
सरकार ने उपर्युक्त चुनौतियों से निपटने के लिए विभिन्न उपाय किए हैं, जैसे – उनकी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जनजातीय सघनता वाले क्षेत्रों को ट्राइबल डेवलपमेंट ब्लॉक्स के रूप में नामित करना तथा जनजातियों के शैक्षिक विकास पर विशेष ध्यान देते हुए 1972 से जनजातीय उप-योजना रणनीति का क्रियान्वयन करना। जनजातीय जनसंख्या के शैक्षिक परिणाम में सुधार करने हेतु अभी भी कई उपाय किए जाने की आवश्यकता है:
- शिक्षा के महत्व के बारे में जागरुकता उत्पन्न करने हेतु उचित जागरूकता अभियान आयोजित किया जाना चाहिए।जनजातियों को साक्षरता प्रदान करने हेतु जनजातीय जनजातीय बाहुल्य जिलों जिलों में व्यापक साक्षरता अभियान, प्राथमिकता के आधार पर चलाया जा सकता है।
- शिक्षा के प्रति जनजातीय माताओं और पिताओं के दृष्टिकोण में उचित परामर्श और मार्गदर्शन के माध्यम से सुधार किया जाना चाहिए।
- सभी अध्ययन सामग्रियाँ जनजातियों की स्थानीय भाषा में उपलब्ध करवायी जानी चाहिए।
- जनजातीय क्षेत्रों में अधिक जनजातीय शिक्षकों और महिला शिक्षकों को नियुक्त करने का सुझाव दिया गया है। जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षकों द्वारा जनजातीय बच्चों के पारिस्थितिकीय, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक लक्षणों पर सावधानी से विचार किया जाना चाहिए।
- चूंकि जनजातियों के मध्य उच्च शिक्षा कम है, इसलिए उच्च शिक्षा, विशेषकर चिकित्सा, इंजीनियरिंग और अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमो के अध्ययन, के लिए जनजातीय छात्रों को विशेष अनुसूचित जनजाति छात्रवृत्ति प्रदान की जानी चाहिए।
- प्रस्तावित एकलव्य आदर्श विद्यालयों जैसे अधिक आवासीय विद्यालयों को प्रत्येक राज्य और जिले में स्थापित किया जाना चाहिए और इन्हे जनजातीय क्षेत्रों में स्नातकोत्तर स्तर तक विस्तारित किया जाना चाहिए।
- उच्च स्तर के अधिकारियों द्वारा स्कूलों के कामकाज की समय-समय पर जाँच की जानी चाहिए, जैसे कि शिक्षण विधियों, काम के घंटों एवं अटेन्डेंस रजिस्टरों की जाँच आदि।
- इस संदर्भ में, ज़ाक्सा समिति (Xaxa committee) की सिफारिशों के कार्यान्वयन से जनजातीय बच्चों के शिक्षण पारिस्थितिकी तंत्र पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
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