भारत की भूआकृति : आतंकवाद विरोधी प्रयासों के समक्ष एक चुनौती

प्रश्न: भारत की भूआकृति किस प्रकार इसके आतंकवाद विरोधी प्रयासों के समक्ष एक चुनौती प्रस्तुत करती है? इन चुनौतियों से निपटने के लिए क्या किया जा सकता है?

दृष्टिकोण

  • भारत की स्थल और समुद्री सीमाओं के साथ इसकी भूआकृति की विशेषताओं को बताइए, जो आतंकवादियों और देश में उनके ठिकानों के प्रवेश बिंदु बनते हैं – इस सन्दर्भ में भारत के भौतिक मानचित्र का उपयोग किया जा सकता है।
  • सीमाओं की आतंकवाद और आतंकवाद के प्रतिरोध के प्रयासों में समस्या उत्पन्न करने की भेद्यता के साथ इन भौगोलिक विशेषताओं का संबंध स्थापित कीजिए।
  • इन बाधाओं को दूर करने के लिए उठाये जा सकने वाले कदमों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारत की भूआकृति विविध प्रकार की विशेषताओं से युक्त है, इसकी लंबी स्थलीय और समुद्री सीमाओं का होना इनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। विस्तृत तटरेखा, दुर्गम भू-भाग, विशेष रूप से वन और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं ने भारत के विभिन्न हिस्सों में आतंकवादी समूहों की प्रभावी रूप से सहायता की है। विभिन्न भौगोलिक विशेषताएँ और जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद विरोधी प्रयासों के समक्ष कई चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं। मानचित्र में दिए गए अंकों के अनुसार इनकी चर्चा सारणी में की गई  है।

 

 

सीमा क्षेत्र |  (मानचित्र देखें) प्राकृतिक भूगोल । आतंकवाद विरोधी प्रयासों के समक्ष चुनौतियां
        1 पर्वत श्रेणियाँ, धाराएं, दर्रे सर्दियों के दौरान  भी खुले रहते हैं। निगरानी सीमा से बाहर; आतंकवादियों के लिए प्रवेश कर हमला करने और बाहर निकलने के लिए स्थान प्रदान करते हैं।
        2 घने जंगलों का क्षेत्र- कई नृजातीय समुदायों का घर अवैध दवाएं, हथियार व्यापार और तस्करी; पूर्वोत्तर विद्रोहियों का का निर्बाध आवागमन।
        3 मैदान, नदीय बेल्ट, पहाड़ियां जहाँ प्राकृतिक बाधायें नहीं हैं; बाढ़ जैसी प्रतिकूल जलवायु स्थितियां। अत्यधिक जनसंख्या और कृषि क्षेत्र; भूमि अधिग्रहण कठिन है;   बाड़ इत्यादि का बार-बार जलमग्न होना; अवैध प्रवास/तस्करी।
        4 तीक्ष्ण ऊबड़-खाबड़ ढलानों से युक्त  हिमालयी श्रृंखला। नदियों के बदलते जलमार्ग के कारण सीमाओं का परिवर्तन,नकली मुद्रा, खुली सीमाएं।
        5 गुजरात सीमा से लगे क्षेत्रों में मौसमी बाढ़; पंजाब सीमा पर नदी प्रतिच्छेद (क्रासिंग)। ड्रग्स की तस्करी; सीमा पर रिक्त स्थानों से अवैध व्यापार; आतंकवादी घुसपैठ, रेत के टीलों के स्थानांतरण के कारण बाड़ व्यवस्था अप्रभावी।
    समुद्र तट उथले रेतीले समुद्र तट और टिब्बे, लैगून,  गश्त के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित कर्मियों के साथ विशेष नदी और एश्चरीज द्वारा विच्छेदन अवशिष्ट  पहाड़ियाँ, चट्टानी उच्चभूमियाँ।   गश्त के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित कर्मियों के साथ विशेष वाहन, नावों इत्यादि की आवश्यकता होती है।

सीमा क्षेत्र विकास (बार्डर एरिया डेवलपमेंट) कार्यक्रम जैसी जारी योजनाओं के साथ-साथ भूआकृति विषयक चुनौतियों से निपटने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  • भारत की सभी स्थलीय सीमाओं पर आवधिक रख-रखाव के साथ फ्लड लाइटिंग और बाड़ लगाना, जैसा कि पंजाब और राजस्थान की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर किया गया है।
  • बेहतर पेट्रोलिंग के लिए रणनीतिक सीमा सड़कों और बॉर्डर आउट-पोस्ट्स का निर्माणा।
  • हाई-टेक ई-सर्विलांस उपकरणों जैसे नाइट विजन डिवाइसों, हैंडहेल्ड थर्मल इमेजर्स, अनअटेन्डेड ग्राउंड सेंसर्स इत्यादि का नियोजन, जैसा कि कम्प्रीहेन्सिव इंटीग्रेटेड बॉर्डर मैनेजमेंट सिस्टम (CIBMS) के अंतर्गत प्रस्तावित है, और इसे सभी स्थलीय सीमाओं पर क्रियान्वित करना।
  • समुद्री गतिविधियों में तटीय सुरक्षा बलों और राज्य पुलिस कर्मियों के लिए विशेष प्रशिक्षण।
  • दुर्गम स्थानों की निगरानी करके UAVs सीमा सुरक्षा में सहायता कर सकते हैं।

इन अवसंरचना तंत्रों के अतिरिक्त, सभी पड़ोसी देशों के साथ सीमा समझौतों को अपडेट करना, स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए अपरिहार्य है।

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