भारत के कृषि व्यापार के संबंध में संक्षिप्त में परिचय : कृषि निर्यात में सुधार लाने के उपाय

प्रश्न: तदर्थता और उपभोक्ता समर्थक पक्षपात से प्रभावित, कृषि में भारत की व्यापार नीति ने निर्यात सामर्थ्य की प्राप्ति को बाधित किया है तथा किसानों को लाभ उठाने से रोका है। इस कथन का परीक्षण कीजिए और सरकारी पहलों सहित कृषि निर्यात में सुधार लाने के तरीकों पर चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत के कृषि व्यापार के संबंध में संक्षिप्त में परिचय दीजिए।
  • कृषि और भारत की व्यापार नीति में तदर्थता और उपभोक्ता समर्थक पक्षपात और इसके प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
  • कृषि निर्यात में सुधार लाने के उपायों का आकलन कीजिए।

उत्तर

1991 के आर्थिक सुधारों से भारतीय अर्थव्यवस्था का उदारीकरण हुआ, जिससे कृषि निर्यात और आयात की अनुमति प्राप्त हुई। 1990-91 में, कृषि निर्यात का कृषि-सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 5% से कम था और यह वर्ष 2013-14 में कृषि-सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 20% तक पहुंच गया। हालांकि, कुल निर्यात में कृषि निर्यात का हिस्सा 1990-91 में 18.5% से घटकर 2014-15 में 12.7% हो गया है और यह विश्व कृषि व्यापार का केवल 2% से अधिक है, जो इस क्षेत्र की कुल क्षमता से अभी भी काफी कम है। इसके अतिरिक्त, तदर्थ नीति उपायों के तहत एक अकुशल नीति व्यवस्था का निर्माण किया गया।

ICRIER की रिपोर्ट में यह उल्लिखित है कि पिछले दो दशकों में सरकार द्वारा मुद्रास्फीति संबंधी दबाव को रोकने के लिए निर्यात प्रतिबंध और उच्च न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) जैसे निर्यात प्रतिबंध उपायों का सहारा लिया गया है, जिसने कृषि निर्यात क्षेत्र के विकास में अवरोध उत्पन्न किया और किसानों को उच्च आय से वंचित कर दिया।

उच्च वैश्विक कीमतों के समय निर्यात प्रतिबंध ने किसानों को निर्यात योग्य फसलों की कृषि के लिए हतोत्साहित किया है। इसने कृषि प्रसंस्करण उद्योग में निवेश संबंधी नीतिगत ढांचे में अस्थिरता को उत्पन्न किया, भारतीय कीमतों और अंतरराष्ट्रीय कीमतों के मध्य असंगतता ने फसल उत्पादन संबंधी विकृतियों को उत्पन्न किया है। इस प्रकार तदर्थता, एक निष्पक्ष और प्रतिस्पर्धी परिवेश, जो कि किसानों के लिए लाभप्रद हो सकता है, के निर्माण के लिए असंधारणीय और असंगत है। इसके अतिरिक्त, विपणन श्रृंखलाओं का अभाव और निम्नस्तरीय कृषि अवसंरचना ने कृषि निर्यात क्षेत्र की वृद्धि को प्रतिबंधित किया है।

2022 तक कृषि निर्यात को दोगुना करने और कृषि क्षेत्र में रोजगार उत्पन्न करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है: 

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय और कृषि मंत्रालय को खाद्य कीमतों में कमी लाने और कृषि उपज के लिए उच्च मूल्य सुनिश्चित करने हेतु कार्य करना चाहिए।
  • कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के मध्य बेहतर समन्वय सुनिश्चित करना।
  • अनिवार्य वस्तु अधिनियम और कृषि उत्पाद विपणन समिति (Agricultural Produce Market Committee: APMC) अधिनियम में समय की आवश्यकता के अनुरूप सुधार करना जिससे कि प्रतिस्पर्धात्मकता मूल्य निर्धारण, खरीद, भंडारण और वस्तुओं के व्यापार को प्रोत्साहित किया जा सके।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्यों का निर्धारण करते समय सरकार को विपणन अवसंरचना में निजी क्षेत्र के लिए व्यवहार्य स्थान का निर्माण करना चाहिए साथ ही बाजार संकेतों और वैश्विक मूल्य रुझानों का भी उपयोग किया जाना चाहिए।
  • न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP), निर्यात शुल्क अथवा प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों या जैविक उत्पादों पर प्रतिबंधों को समाप्त करना।
  • एक पुर्वानुमानित और स्थिर नीतिगत व्यवस्था का निर्माण करना।

समग्र रूप में, एक ओर किसान और दूसरे ओर उपभोक्ता की आवश्यकताओं के मध्य सामंजस्य बनाए रखने के लिए नीतिगत कार्रवाइयों की आवश्यकता है।  किसानों को घरेलू या अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपने उत्पादन के लिए लाभकारी मूल्य प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए तथा खाद्य कीमतों को कम रखने के बोझ का वहन नही किया जाना चाहिए।

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