अवसंरचना क्षेत्र : विद्यमान विभिन्न चुनौतियों

प्रश्न: विगत कुछ वर्षों में अवसंरचना क्षेत्रक में निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वार किए गए उपायों के बावजूद, कई चुनौतियाँ अभी भी विद्यमान है। चर्चा कीजिए। इस संबंध में आगे और क्या कदम उठाए जा सकते है?

दृष्टिकोण

  • अवसंरचना क्षेत्रक में वित्त पोषण के संदर्भ में भारत की आवश्यकता के संबंध में संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • तत्पश्चात हाल के वर्षों में अवसंरचना क्षेत्रक में निवेश को बढ़ावा देने के लिए किए गए विभिन्न उपायों पर चर्चा कीजिए।
  • सरकार द्वारा किए जा रहे विभिन्न प्रयासों के बावजूद, इस क्षेत्रक के निवेश के समक्ष में बाधा उत्पन्न करने वाली विद्यमान विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • इस संदर्भ में, स्थिति को सुधारने के लिए उठाए जा रहे कदमों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

आर्थिक सर्वेक्षण 2018 में यह अनुमान लगाया गया है कि आर्थिक विकास और सामुदायिक कल्याण को बेहतर बनाने हेतु अवसंरचना का विकास करने के लिए वर्ष 2040 तक भारत को लगभग 4.5 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता है। इस संबंध में सरकार द्वारा अवसंरचना क्षेत्रक में निवेश को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कदम उठाए गए हैं, जो निम्नलिखित है:

  •  निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए हाइब्रिड एन्यूटी मॉडल की स्थापना द्वारा निवेश मॉडल का पुनरूद्धार। 
  • उत्पादन, पारेषण और वितरण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में FDI में स्वचालित स्वीकृति की अनुमति प्रदान करना।
  • श्रेणी 2 के वैकल्पिक निवेश कोष के रूप में राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना कोष (NIIF) की स्थापना।
  • विनियामक फ्रेमवर्क के साथ-साथ भूमि अधिग्रहण का सुव्यवस्थितिकरण भी इस संबंध में एक महत्वपूर्ण कदम है।
  • बाह्य वाणिज्यिक उधार (ECB) को विनियमित करने वाले नियमों में छूट प्रदान करना।
  • निवेशकों के विश्वास में वृद्धि और बॉन्ड बाज़ार को विस्तृत करने के लिए दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता।
  • इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (InvIT) और रियल इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (ReITs) जैसे मुद्रीकरण साधनों ने भारत में आम निवेशकों के लिए अधिक सुलभ बना दिया है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने पूंजी जुटाने के लिए कॉरपोरेट्स की बॉन्ड बाजार तक पहुंच सुनिश्चित करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

हालांकि, अवसंरचना क्षेत्रक द्वारा महत्वपूर्ण वित्तीय मुद्दों का सामना किया जा रहा है जैसे कि पूंजी की उच्च लागत, गैर-आवर्ती वित्त पोषण प्राप्त करने में चुनौतियां और अन्य के मध्य दीर्घकालिक वित्तपोषण स्रोतों का अभाव। चुनौतियों की एक व्यापक सूची में शामिल हैं:

  • जटिल श्रम कानून, पर्यावरणीय स्वीकृति में विलंब, टैरिफ प्रविष्टियों में अनिश्चितता और खरीद समझौते आदि जैसे कुछ विनियामक मद्दे संस्थागत निवेशकों को इस क्षेत्र में निवेश करने से हतोत्साहित करते हैं। भारत की अवसंरचना परियोजनाओं की दीर्घकालिक समयावधि और अंतर्निहित विलम्ब जैसे परिचालन संबंधी मुद्दे भी महत्वपूर्ण कारक हैं।
  • आर्थिक मंदी के कारण बैंकों के NPA, दोहरे तुलन पत्र की समस्या (TBS) की समस्या इत्यादि जैसे बैंकिंग और वित्त क्षेत्रक संबंधी मुद्दे उत्पन्न हुए।
  • निम्न क्रेडिट रेटिंग: अवसंरचना कंपनियों के लिए क्रेडिट आउटलुक की गुणवत्ता में गिरावट से बैंकों द्वारा इस क्षेत्र को कम ऋण प्रदान किया जा सकता है। परियोजना के पूर्ण होने में विलंब और ऊंची बोली के कारण अवसंरचना डेवलपर्स पर ऋण का बोझ। इक्विटी निवेशकों की सीमित आवश्यकता के कारण पूंजी बाजार में मंदी।
  • परियोजना वित्तीयन संबंधी मुद्दे: परियोजना के मूल्यांकन को पूरा करने के लिए अपर्याप्त विकल्प, जो कि ग्रहणाधिकार (लियन) पर निर्भरता में वृद्धि और गारंटीकृत वित्तपोषण को हतोत्साहित करते हैं।
  • परिसंपत्ति देयता में असंतुलन के कारण दीर्घावधिक वित्तपोषण की कमी: दीर्घकालिक परिसंपत्तियों के अल्पावधि वित्तीयन हेतु और MCLR से संबद्ध अस्थिर दरों पर ऋण प्रदान करने संबंधी मुद्दा।
  • स्व-वित्तीयन के लिए पर्याप्त प्रत्यक्ष आय सृजित करने के लिए अवसंरचना संबंधी परियोजनाओं की अक्षमता।

भारत के विकास की संभावनाओं का लाभ उठाने और GDP के लिए सकारात्मक चक्रित और गुणक प्रभाव सुनिश्चित करने हेतु अवसंरचना विकास में व्यापक क्षमता विद्यमान है। इसलिए, भारत में अवसंरचनात्मक वित्तपोषण संबंधी मुद्दे का समाधान करने के लिए एक व्यापक रणनीति के कार्यान्वयन किए जाने की आवश्यकता है। इस संबंध में कुछ उपाय किए जा सकते हैं:

  • क्रेडिट रेटिंग सुधार: एक मजबूत क्रेडिट रेटिंग मूल्यांकन और रेटिंग प्रणाली अधिक रेटिंग वाली परियोजनाओं में निवेश को आकर्षित कर सकती है।
  • सरल निवेश मॉडल: विभिन्न निवेश मॉडल जैसे TOT (टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर), HAM (हाइब्रिड एन्युटी मॉडल) आदि से संबंधित जटिलताओं में सुधार किए जाने आवश्यकता है।
  • पुननिर्धारण (Renegotiation): पुनर्मूल्यांकन एवं वास्तविक मापदंडों के आधार पर दीर्घकालिक अनुबंधों के पुनर्गठन हेतु प्रावधान करना।
  • विनियामक सुधार: जटिल श्रम कानूनों, भूमि सुधारों में विलंब जैसे विभिन्न अवरोध को संबोधित किए जाने की आवश्यकता है।
  • बॉन्ड मार्केट: परियोजनाओं के वित्तीयन के एक भाग को जुटाने के लिए कॉरपोरेट बॉन्ड बाजारों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • निवेशक के विश्वास में वृद्धि: TBS समस्या का प्रभावी समाधान और देश में व्यष्टिगत और समष्टिगत आर्थिक वातावरण में सुधार किया जाना चाहिए।

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