भारत में ऊर्जा की मांग और इसके स्रोत : नवीकरणीय उर्जा की तुलना में स्वच्छ कोयले के लाभ

प्रश्न: यदि उर्जा उत्पादन की सामाजिक और आर्थिक लागत की गणना की जाए, तो कार्बन उत्सर्जन न्यूनीकरण के संदर्भ में स्वच्छ कोयला भी नवीनीकरणीय स्रोतों से बेहतर विकल्प प्रदान करता है।भारत की बढ़ती उर्जा सम्बन्धी मांग के संदर्भ में इस कथन की चर्चा कीजिये।

दृष्टिकोण

  • संक्षेप में भारत में ऊर्जा की मांग और इसके स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
  • कुछ उदाहरणों के साथ स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों की व्याख्या कीजिए।
  • नवीकरणीय ऊर्जा के कुछ लाभों का उल्लेख करते हुए, नवीकरणीय उर्जा की तुलना में स्वच्छ कोयले के लाभ की चर्चा कीजिये।
  • इसके साथ ही इसकी सामाजिक और आर्थिक लागत का भी वर्णन कीजिये।

उत्तर

BP एनर्जी आउटलुक के अनुसार, 2035 तक भारत का ऊर्जा उपभोग 4.2% प्रति वर्ष की दर से बढ़ने जा रहा है, जोकि विश्व की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक है।

IEA इंडिया एनर्जी आउटलुक, 2015 के अनुसार, भारत में प्राथमिक ऊर्जा मांग की पूर्ति में कोयले का 40% से अधिक और नवीकरणीय स्रोतों का 2% से कम योगदान है। नवीकरणीय स्रोत दीर्घ अवधि में कोयले की तुलना में प्रदूषण रहित और सस्ते विकल्प हैं; लेकिन लघु और मध्यम अवधि में, इनमें शामिल सामाजिक और आर्थिक लागतों के परिप्रेक्ष्य में, मुख्य ध्यान स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों या उच्च दक्षता-निम्न उत्सर्जन (HELE) प्रौद्योगिकियों, जैसे- सुपरक्रिटिकल और अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल दहन प्रौद्योगिकियों पर होना चाहिए।

आर्थिक लागत

  • भारत में कोयला बहुतायत में उपलब्ध है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा की ओर स्थानान्तरण पारंपरिक पॉवर प्लांट के उपयोग को कम कर देगा। इस प्रकार इन प्लांट्स में किया गया निवेश डूब जायेगा और परिणामस्वरूप राजस्व में कमी आएगी। ये फंसी हुई परिसंपत्तियाँ (stranded assets) बैंकिंग क्षेत्र को प्रभावित करेगी।
  • जब सबक्रिटिकल प्लांट की बजाय अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल पावर प्लांट द्वारा बिजली उत्पन्न होती है तब एक टन CO2 उत्सर्जन को कम करने की लागत 875 रुपये होती है। वहीं दूसरी ओर सबक्रिटिकल प्लांट के बजाय SPV (सौर फोटोवोल्टिक) प्लांट से विद्युत उत्पन्न करने पर यह लागत 2,624 रुपये प्रति टन हो जाती है।
  • CO2 उत्सर्जन को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करने हेतु मौजूदा 50% सबक्रिटिकल प्लांट्स को अत्यधिक कुशल अल्ट्रासुपरक्रिटिकल प्लांट्स से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। ऐसा करके, सरकार SPV (सौर फोटोवोल्टिक) प्लांट्स द्वारा CO2 उत्सर्जन में की जाने वाली कमी के लिए आवश्यक लागत की तुलना में 25,000 करोड़ रुपये की बचत कर सकती है।

सामाजिक लागत

  •  नवीकरणीय क्षेत्र में देखे जाने वाले कम टैरिफ में कई अंतर्निहित लागतें शामिल नहीं हैं क्योंकि उन्हें अब तक सब्सिडी दी जा रही है। उदाहरण के लिए सौर और पवन स्रोतों से अस्थायी विद्युत् आपूर्ति की लागत, भूमि अधिग्रहण लागत आदि पर सब्सिडी।
  • नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश की एक सामाजिक लागत (जैसे सौर ऊर्जा के लिए आवश्यक भूमि की अवसर लागत) है जोकि लगभग 11 रुपये प्रति यूनिट है। यह कोयले से उत्पादित विद्युत् की लागत की तुलना में तीन गुनी है।
  • जिन स्थानों पर कोयले की खान उपस्थित हैं, वहां यह रोजगार और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करेगा।
  • पवन और जल विद्युत जैसे अन्य स्रोतों की भी सामाजिक-आर्थिक लागत होती है। उदाहरण के लिए, कोयला तापीय परियोजनाओं को स्थापित होकर उत्पादन प्रारंभ करने में 4 से 5 वर्ष लगते हैं जबकि जलविद्युत परियोजना को शुरू होने में 8 से 10 वर्ष लगते हैं।
  • नवीकरणीय विकल्पों के स्वरुपों जैसे कि नदी प्रवाह पर आधारित लघु जल विद्युत परियोजनाओं का पर्यावरण अनुकूल समझा जाना उनके द्वारा जलीय जीवों, कृषि, सिंचाई, भूमि और पारंपरिक आजीविका पर आरोपित खतरों को छिपा लेता  है।

भारत को जलवायु परिवर्तन से निपटने के भार में अपनी भागीदारी को क्रमशः बढ़ाना चाहिए। अन्य देशों को भी शुरुआत से ही अधिक प्रतिबद्धता का दायित्व लेना चाहिए। कोयले की सामाजिक लागत में इसकी घरेलू बाह्यताओं को शामिल करना चाहिए लेकिन, कम से कम कुछ समय के लिए, इसमें अंतरराष्ट्रीय बाह्यताएं शामिल नहीं होनी चाहिए।

भारत में सुपर क्रिटिकल कोयला आधारित तापीय ऊर्जा के उत्पादन की विश्वस्तरीय क्षमता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा वर्तमान में निष्क्रिय है। इस परिसंपत्ति को व्यर्थ नहीं गँवाया जा सकता। हालाँकि, यह अनिवार्य है कि तापीय ऊर्जा को कुशलता से और पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित तरीके से उत्पन्न किया जाए।

Read More

 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.