युवाओं द्वारा मादक द्रव्यों का सेवन : कारक एवम समस्या के समाधान के लिए उपाय
प्रश्न: युवाओं द्वारा मादक द्रव्यों का सेवन आरम्भ करने अथवा उसे जारी रखने के जोखिम को बढ़ाने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए। इस समस्या के समाधान के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
दृष्टिकोण
- भारत में युवाओं द्वारा मादक द्रव्यों का उपयोग आरम्भ करने और उसे निरंतर जारी रखने हेतु उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिए।
- इसके परिणामों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- इस समस्या के समाधान हेतु क्रियान्वित किए जा सकने योग्य उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
विशेषतया युवा पीढ़ी में मादक द्रव्य व्यसन ने भारत के विभिन्न राज्यों मुख्यतया पंजाब, मणिपुर, सिक्किम और नागालैंड में भयावह आयाम ग्रहण कर लिए हैं। एम्स (AIIMS) के साथ सहयोग में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा संचालित हालिया सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 3.1 करोड़ से अधिक भारतीय कैनेबिस (भांग, गांजा आदि) उत्पादों और शामक औषधियों का उपयोग कर रहे हैं।
युवाओं द्वारा मादक द्रव्यों का उपयोग आरम्भ करने और उसे निरंतर जारी रखने हेतु उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं:
- भौगोलिक कारक: भारत विश्व के दो प्रमुख अफीम उत्पादक क्षेत्रों, यथा- “गोल्डन ट्रायंगल” और “गोल्डन क्रिसेंट” के मध्य एक संयोजक देश है। भारत में उत्तर-पूर्वी राज्य और पंजाब सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र हैं, क्योंकि ये उपर्युक्त अफीम उत्पादक क्षेत्रों के अत्यधिक निकट अवस्थित हैं।
- सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक: चूँकि युवाओं का शरीर एवं मस्तिष्क विकासशील अवस्था में होता है, अत: अपने समकक्षों या साथियों के दबाव के कारण वे मादक द्रव्यों सहित व्यसनकारी पदार्थों के प्रयोग के प्रति अधिक सुभेद्य होते हैं। यह अन्य कारकों के साथ संयोजित हो जाता है जैसे कि पैतृक प्रभाव अथवा उसका अभाव तथा प्रचलित संस्कृति विशेष रूप से सिनेमा और टीवी जैसे साधन युवाओं को मादक द्रव्यों के उपयोग को प्रारम्भ करने एवं उसे जारी रखने हेतु अतिसंवेदनशील बनाते हैं।
- आर्थिक कारक: कुछ तर्कों के अनुसार बेरोजगारी और निर्धनता युवाओं द्वारा मादक द्रव्यों के उपयोग को प्रारम्भ करने एवं उसे जारी रखने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है।
- प्रशासनिक कारक: अक्षम क़ानून प्रवर्तन तथा स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 जैसे कानूनों का कमजोर विनियामकीय नियंत्रण। यह मादक द्रव्यों तक आसान पहुँच का कारण बनता है। यही आसान पहुँच युवाओं द्वारा प्रथम बार मादक द्रव्यों के प्रयोग हेतु उत्तरदायी है।
युवाओं के मध्य मादक द्रव्यों का प्रचलन अपचारी (delinquent) व्यवहार, बाल अपराध आदि जैसे अन्य अपराधों की घटनाओं की संभावनाओं में वृद्धि कर सकता है। इसके अतिरिक्त, मादक द्रव्य प्रयोग और जोखिमपूर्ण यौन व्यवहारों के मध्य दृढ़ संबंध विद्यमान होते हैं। इसके युवाओं में शारीरिक और मानसिक दुष्परिणाम होते हैं तथा वे राष्ट्र के समक्ष विकासात्मक चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं।
समस्या के समाधान हेतु क्रियान्वित किए जा सकने योग्य उपाय:
- मादक द्रव्यों के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए तथा मादक द्रव्यों की उपलब्धता की निगरानी व उस पर नियंत्रण किया जाना चाहिए।
- नशे के प्रति संवेदनशील युवाओं हेतु नशामुक्ति और परामर्शी केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिए।
- सकारात्मक विकल्पों जैसे कि खेलकूद संबंधी क्रियाकलापों में भाग लेना, संगीत सीखना आदि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि युवाओं को रचनात्मक क्रियाओं में संलग्न किया जा सके।
- निवारक शिक्षा, जागरूकता सृजन तथा प्रभावित व्यक्तियों का उपचार और पुनर्वास जैसी एक बहु-आयामी रणनीति अपनायी जानी चाहिए।
- मादक द्रव्यों से संबंधित विधानों, अधिनियमों और कार्यक्रमों की प्रभावकारिता के विषय में जानने हेतु विश्वसनीय सर्वेक्षण एवं प्रभाव आकलन अध्ययन सम्पादित होने चाहिए।
- विद्यालयों और महाविद्यालयों जैसे शैक्षणिक संस्थानों को स्थानीय NGOs की सहायता से मादक द्रव्यों के प्रयोग के दुष्परिणामों के संदर्भ में विद्यार्थियों के मध्य जागरूकता का सृजन करना चाहिए तथा इस संबंध में सेमिनारों का नियमित रूप से आयोजन किया जाना चाहिए।
- नशे को कलंक के रूप में प्रस्तुत न करने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए ताकि युवाओं (जो व्यसन का त्याग करना चाहते हैं) में हेल्पलाइन नम्बरों एवं नशामुक्ति और परामर्शी केन्द्रों से सहायता प्राप्त करने की इच्छा जागृत हो सके।
शराब और मादक पदार्थ (ड्रग्स) दुरुपयोग की रोकथाम के लिए सहायता हेतु केन्द्रीय क्षेत्र की योजना जैसी सरकारी योजनाएं तथा विद्यालयों और महाविद्यालयों में संवेदीकरण एवं निवारक शिक्षा कार्यक्रम युवाओं में मादक द्रव्य व्यसन की समस्या को समाप्त करने हेतु सही दिशा में उठाए गए कदम हैं।
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