भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZS)

प्रश्न: भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZS) की सफलता को सीमित करने वाले मुद्दे क्या हैं? इन्हें दूर करने के लिए उठाए जा सकने वाले कुछ कदमों का उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्रों के बारे में संक्षेप में लिखिए।
  • उन मुद्दों पर प्रकाश डालिए जिन्होंने भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्रों की सफलता को सीमित किया है। 
  • रेखांकित किए गए मुद्दों को संबोधित करने के लिए आवश्यक कदमों को सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर

भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्रों को विकास के ऐसे इंजनों के रूप में योजनाबद्ध किया गया है जो विनिर्माण को बढ़ावा दे सकते हैं, निर्यात में वृद्धि कर सकते हैं और रोजगार उत्पन्न कर सकते हैं। ये अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे और समर्थन सेवाओं के साथ-साथ परेशानी मुक्त संचालन सुनिश्चित करने के लिए विशेष वित्तीय और नियामकीय सहयोग प्रदान करते हैं। इसके अंतर्गत इकाइयों को विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, 2005 के तहत ऐसे ड्यूटी फ्री क्षेत्रों के रूप में स्थापित किया जाता है जिन्हें व्यापार संचालन तथा कर्त्तव्यों और शुल्कों के उद्देश्य से विदेशी क्षेत्र के रूप में माना जाता है।

हालांकि, भारत में SEZs को सीमित सफलता प्राप्त हुई है। उदाहरण के लिए, वर्तमान में 351 SEZ अधिसूचित हैं, जिनमें से केवल 232 SEZ परिचालन में हैं। ऐसे परिदृश्य के कारणों हेतु निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं:

  •  कई SEZs में औद्योगिक इकाइयों के लिए खरीदी गई भूमि अनुपयोगी रही है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न क्षेत्रों के लिए भूमि का उपयोग करने में लचीलेपन की कमी विकास प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करती है।
  • आर्थिक क्षेत्रों के कई मॉडल जैसे- SEZ, तटीय आर्थिक क्षेत्र, राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र आदि के अस्तित्व ने राजकोषीय और नियामक शासन के बारे में भ्रम और अस्पष्टता उत्पन्न की है।
  • मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के चलते अन्य देशों के लिए कम दरों की तुलना में पूरी कस्टम ड्यूटी चुकाने के कारण घरेलू बिक्री के संदर्भ में प्रतिकूल स्थिति।
  • नए SEZs (2017) और नई इकाइयों (2020) पर न्यूनतम वैकल्पिक कर (MAT) (2012) के साथ-साथ आयकर के आरोपण ने इन्हें औद्योगिक स्थापना के लिए कम आकर्षक बना दिया है।
  • जब तीव्र मंजूरी के लिए प्रभावी एकल-खिड़की प्रणाली विकसित करने की बात आती है तो राज्य सरकार से समर्थन की कमी।
  • ऐसे SEZ स्थलों का चयन करने में विफलता जो अधिकतम विकास संभाव्यता रखते हों। स्थलों का चयन किसी क्षेत्र की आर्थिक क्षमता के स्थान पर अचल संपत्ति की अटकलों के आधार पर किया जाता है।

सम्बंधित समस्याओं को संबोधित करने के लिए आवश्यक कदम

  • SEZ में खाली पड़ी भूमि का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करना। साथ ही, भूमि उपयोग में लचीलेपन को अनुमति देना और सेक्टर-विशिष्ट बाधाओं को हटाया जाना।
  • समान योजनाओं के बीच प्रतिस्पर्धा से बचने तथा डेवलपर्स और पट्टेदारों को ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस उपलब्ध कराने के लिए नीतिगत ढांचे को संरेखित करना।
  • सशक्त मध्यस्थता और वाणिज्यिक न्यायालयों के माध्यम से समयबद्ध ऑनलाइन अनुमोदन और विवाद समाधान का उपयोग करके सरल प्रविष्टि (इंट्री) और निकास (एक्ज़िट) प्रक्रिया।
  • उन क्षेत्रों, जो राजमार्गों तथा शहरी समूहीकरण से दूर है, के लिए आवागमन हेतु बुनियादी परिवहन अवसंरचना का विकास करना। ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न मंजूरियों को तेजी से स्वीकृति प्रदान करना।
  • वित्तीयन को सरल बनाने के लिए SEZs के भवनों और औद्योगिक पार्कों को बुनियादी ढांचे का दर्जा प्रदान करना।

आगे बढ़ते हुए चीन से भी सबक लिया जा सकता है, जहां SEZs ने बेहतर परिणाम दिए हैं। बाबा कल्याणी समिति की हालिया सिफारिशें रोजगार और आर्थिक एन्क्लेवों (3Es) के रूप में SEZs के पुनर्निर्माण की परिकल्पना करती हैं। इन सिफ़ारिशों पर भी आगे चर्चा किए जाने की आवश्यकता है।

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