भारत-जापान संबंधों को सुदृढ़ करने वाले कारक : दोनों देशों के मध्य सहयोग के क्षेत्रों का उल्लेख
प्रश्न: 21वीं शताब्दी के आरंभ के बाद से घटित घटनाक्रम भारत-जापान संबंधों की बेहतरी का पूर्वाभास कराते हैं, फिर भी इन्हें प्राकृतिक सहयोगी कहने के लिए संबंधों को आगे और सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता होगी। आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिए।
दृष्टिकोण
- परिचय में, भारत-जापान संबंधों को सुदृढ़ करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- दोनों देशों के मध्य सहयोग के क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
- उन चुनौतियों और सीमाओं को सूचीबद्ध कीजिए, जो उन्हें प्राकृतिक सहयोगी बनने से रोकती हैं।
- एक सकारात्मक निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
भारत और जापान एशिया के सबसे बड़े और विकसित लोकतंत्र हैं। 1952 से दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है। अगस्त 2000 में की गयी घोषणा, ’21वीं शताब्दी में वैश्विक साझेदारी’ ने इन संबंधों को एक नया मंच प्रदान किया।
दोनों देशों के मध्य न तो कोई नकारात्मक ऐतिहासिक विरासत रही है और न ही कोई गंभीर राजनीतिक मुद्दा रहा है। एकदसरे के प्रति दोनों देशों के लोगों की धारणाएं अत्यधिक सकारात्मक हैं। दोनों देश एक बहुध्रुवीय एशिया के निर्माण का समर्थन करते हैं और दोनों के चीन जैसे बड़े पड़ोसी देश के साथ जटिल संबंध हैं।
दोनों देशों द्वारा एकसाथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की मांग की जा रही है। इसके अतिरिक्त, मानव और प्राकृतिक संसाधनों, आर्थिक आवश्यकताओं एवं क्षमता में पूरकता भी ऐसे कारक हैं जिनसे संबंधों को सुदृढ़ बनाया जा सकता है। इन संबंधों को निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा देखा जा सकता है:
- भारत जापान के साथ असैनिक परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला प्रथम गैर-एनपीटी हस्ताक्षरकर्ता देश बन गया हैं।
- दोनों देशों के मध्य खुदरा, टेक्सटाइल, बैंकिंग आदि क्षेत्रों में निवेश 2016-17 में 4.7 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर तक पहुंच गया है।
- भारत और जापान दोनों देशों ने एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर पर संयुक्त रूप से कार्य करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- भारत की अवसंरचना को सुदृढ़ बनाने हेतु, जापान ने पूर्वोत्तर भारत में सड़क निर्माण और मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल जैसी परियोजनाओं पर कार्य प्रारंभ कर दिया है।
- सुरक्षा मोर्चे पर, भारत और जापान ने रक्षा प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण हेतु रक्षा फ्रेमवर्क समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।
- इसने हिंद महासागर क्षेत्र की समुद्री चिंताओं के समाधान में सहायता प्रदान की है साथ ही जापान 2015 में मालाबार नौसेना अभ्यास का स्थायी सदस्य भी बन गया था।
- क्षेत्रीय मुद्दे: भारत और जापान लोकतंत्र के महत्त्व, मूल्य-आधारित कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय कानून के सम्मान के संबंध मेंएक समान भू-रणनीतिक दृष्टिकोण साझा करते हैं।
हालांकि, भारत और जापान को प्राकृतिक सहयोगी के रूप में वर्णित करने के लिए निम्नलिखित मोर्चों पर संबंधों को और अधिक सुदृढ़ करने की आवश्यकता होगी: ।
- चीन कारक: चीन के संदर्भ में, प्रत्येक देश में गहन जटिलताएं विद्यमान हैं जो एक-दूसरे का समर्थन करने की उनकी क्षमता को सीमित करती हैं। उदाहरण के लिए,
- भारत और जापान दोनों देशों का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर भिन्न दृष्टिकोण हैं।
- भारत और जापान चीन के साथ द्विपक्षीय क्षेत्रीय विवादों में स्पष्ट रूप से एक-दूसरे का पक्ष लेने से भी दूर ही रहते हैं।
- दोनों देशों के चीन के साथ व्यापक व्यापारिक सम्बन्ध हैं।
- व्यापार और व्यवसाय के अवसर: दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षरित व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) से अभी भी कोई अपेक्षित लाभ प्राप्त नहीं हुआ है। भारत-जापान के मध्य व्यापार भारत-चीन या चीन-जापान व्यापार की तुलना में बहुत कम है। इसके अतिरिक्त, भारत में कार्यरत जापानी कंपनियों की संख्या चीन में कार्यरत इनकी कम्पनियों की संख्या का केवल आठवां भाग है।
- रक्षा संबंध: जापान एक शांतिवादी राष्ट्र (pacifist state) रहा है और बदलती हुई परिस्थितियों में इसे अपनी प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से पहचानने और “सामान्य (Normal)” सैन्य शक्ति बने रहने की आवश्यकता होगी। भारत के साथ दीर्घकाल से लंबित US-2 एंफीबियंस विमान सौदा, रक्षा सहयोग में अप्राप्य क्षमता का प्रतीक है। ।
इन चुनौतियों के समाधान हेतु, भारत ने जापानी परियोजनाओं को तीव्र गति प्रदान करने हेतु PMO में एक स्पेशल ट्रैक की स्थापना की है। इसके अतिरिक्त, एक चतुर्भुज (क्वाड्रीलेटरल) की स्थापना (जिसमें अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामान्य हितों की बेहतर अभिव्यक्ति में भी सहायक होगी। इनके साथ ही दोनों राष्ट्र आने वाले ‘एशियाई शताब्दी’ के युग में प्राकृतिक सहयोगी बनने के लिए अग्रसर हैं।
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