खाप पंचायतें (Khap Panchayats)

खाप पंचायतें क्या हैं?

  • खाप पंचायतें, जिन्हें भारतीय कंगारू कोर्ट भी कहा जाता है, पारंपरिक सामाजिक संस्थाएं हैं। सामान्यतः ये पुरुष प्रधान संस्थाएँ होती हैं, जो ग्रामीण समुदायों या खाप से संबंधित विवाद के समाधान में संलग्न रहती हैं।
  • वास्तव में ये गैर-कानूनी संगठन नहीं हैं, बल्कि प्राचीन सामाजिक संस्थाएं हैं। ये नातेदारी की भावना या सांस्कृतिक सापेक्षवाद पर आधारित होती हैं, जिससे इन्हें सुदृढ़ता प्राप्त होती है।
  • ये विधिक रूप से निर्वाचित ग्राम पंचायतों से औपचारिक रूप से भिन्न होती हैं। इसके संगठन एवं नेता अनिर्वाचित होते हैं और इन्हें सामाजिक प्रभुत्व के आधार पर चयनित किया जाता है। ये लगभग सम्पूर्ण देश में विद्यमान हैं परन्तु राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक प्रचलित हैं।

खाप क्या है?

यह जाति और भौगोलिक स्थिति के आधार पर संगठित गांवों का समूह होता है। खाप के गठन को उच्च जातियों द्वारा अपनी शक्ति और प्रतिष्ठा को सुदृढ़ बनाने हेतु 14वीं शताब्दी में आरम्भ किया गया था। इसका मुख्य नियम यह होता है कि एक ही खाप के सभी लड़के और लड़कियां भाई- बहन की तरह माने जाएँगे।

इनके प्रभुत्व और लोकप्रियता का कारण

सामाजिक कारण

  •  इनके द्वारा गांव में तीव्रता से बहुतायत में सामाजिक और कानूनी विवादों का समाधान किया जाता है। इनमें छोटे झगड़ों से लेकर बड़े विवाद तक शामिल होते हैं। गांव के लोग इन जाति आधारित पंचायतों पर विश्वास करते हैं क्योंकि सामान्यत: इनके द्वारा किसी मामले पर एक ही बैठक में निर्णय कर दिया जाता है, जबकि न्यायालयों में ऐसे मामले कई वर्षों तक चलते रहते हैं।
  • अनेक मामलों में, विशेष रूप से अनेक भूमि विवादों में, दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते हैं इसलिए लोग न्यायालयों की तुलना में इन पंचायतों को अधिक वरीयता देते हैं।
  •  इन पंचायतों द्वारा प्रायः महिला गर्भपात, मद्यपान, दहेज संबंधी समस्याओं का समाधान और शिक्षा को बढ़ावा देने जैसे सामाजिक मुद्दों पर सकारात्मक निर्णय दिए गए हैं।

राजनीतिक कारण

  • लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित पंचायती राज संस्थानों की अंतर्निहित कमियों और सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के समाधान में इनकी विफलता के कारण खाप पंचायतें शक्तिशाली बन गयी हैं।
  • राजनेताओं की पूर्ण उदासीनता और वोट बैंक की राजनीति खाप पंचायतों को दंड से मुक्ति के साथ अपना प्रभुत्व स्थापित करने की अनुमति देती है। सरकार ने उनकी शक्ति को नियंत्रित करने के लिए कुछ विशेष कदम नहीं उठाया है।

खाप पंचायतों से संबंधित विवादास्पद मुद्दे 

  • कंगारू कोर्ट – खाप पंचायतें संविधानेत्तर प्राधिकरणों के रूप में कार्य करती हैं। वे बिना किसी दस्तावेजी साक्ष्यों के मनमाने तरीके से न्याय प्रदान करती हैं और उनके निर्णयों को न्यायालय में कोई विधिक मान्यता प्राप्त नहीं होती है।
  • प्रतिगामी और अप्रचलित – उनके निर्णय प्राचीन रीति-रिवाजों और परम्पराओं पर आधारित होते हैं, जो प्रायः आधुनिक सामाजिक । समस्याओं के लिए प्रतिगामी उपाय प्रतीत होते हैं।
  • व्यक्तिगत अधिकारों के विरुद्ध- उनके निर्णय प्राय: मानवाधिकारों, मूल अधिकारों जैसे जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, निजता का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अबाध संचरण और संघ बनाने का अधिकार और शारीरिक पवित्रता (bodily integrity) के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
  • आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा देना- इन्होंने ऑनर किलिंग, जबरन विवाह, बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या तथा व्यक्तियों एवं परिवारों के जाति-बहिष्कार को बढ़ावा दिया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और 2016 के मध्य भारत में ऑनर किलिंग से संबंधित 291 मामले थे।
  • पितृसत्तात्मक संस्था – खाप पंचायतों का दृष्टिकोण अत्यधिक पितृसत्तात्मक होता है। इस दृष्टिकोण का ही परिणाम है कि इनके द्वारा गांव की महिलाओं पर विशेष ड्रेस कोड, आवागमन, रोजगार विकल्प इत्यादि सहित दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों पर विभिन्न प्रतिबंधों को आरोपित किया जाता है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में कुछ खापों ने महिलाओं के पुरुषों के साथ संपर्को को प्रतिबंधित करने के लिए सार्वजनिक रूप से मोबाइल फोन के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था।
  •  प्रेम विवाह को खाप पंचायतों द्वारा उनके अधीन क्षेत्रों में कलंक माना जाता है, जो महिलाओं के इच्छानुसार जीवन साथी के चयन के अधिकार को सीमित करता है।

उच्चतम न्यायालय के हालिया निर्णय 

  • न्यायालय ने निर्णय दिया है कि खाप पंचायत या संगठनों द्वारा अंतरजातीय विवाह करने वाले वयस्क पुरुष और महिला के विरुद्ध किया गया कोई भी हमला “पूर्णतः गैर-कानूनी” है।
  • खाप पंचायतों द्वारा किए जाने वाले इस प्रकार के हस्तक्षेप को रोकने के लिए दिशा-निर्देशों का एक समुच्चय भी निर्धारित किया गया।

अन्य न्यायिक निर्णय

  • लक्ष्मी कहवाहा बनाम राजस्थान राज्य वाद में राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि जाति पंचायतों के पास कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। यह किसी भी व्यक्ति पर जुर्माने का आरोपण या सामाजिक बहिष्कार नहीं कर सकती है।
  • अरुमुगम सेवई बनाम तमिलनाडु राज्य वाद में, उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि खाप गैर-कानूनी हैं और उन्हें पूर्णतः समाप्त किया जाना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देश

  • राज्य सरकारों द्वारा उन जिलों, उपखंडों और/या गांवों की पहचान करना, जहां विगत पांच वर्षों में ऑनर किलिंग की घटनाएं या खाप पंचायतों की सभा की सूचना प्राप्त हुई हो।
  • अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह करने वाले युगल और उन क्षेत्रों में उनके परिवार के सदस्यों को भी पूर्ण पुलिस सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए और यदि आवश्यक हो तो उनकी सुरक्षा और खतरे को ध्यान में रखते हुए उन्हें उसी जिले के भीतर या अन्य कहीं एक सुरक्षित घर में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
  • पुलिस द्वारा खाप पंचायत की बैठक की वीडियो रिकॉर्डिंग सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  • दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने या कानून के विपरीत किसी भी आदेश को पारित करने की स्थिति में इस प्रकार की पंचायतों के प्रत्येक प्रतिभागी पर आपराधिक अभियोजन।
  • निर्देशों का अनुपालन करने में पुलिस या जिले के अन्य अधिकारी/अधिकारियों द्वारा विफल होने पर दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए।
  • राज्य और केंद्र सरकार को इस प्रकार की हिंसा को रोकने के लिए सामाजिक पहलों के कार्यान्वयन और जागरूकता के प्रसार लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को संवेदनशील बनाने हेतु कार्य करना चाहिए।
  • राज्य सरकारों को अंतरजातीय विवाह करने वाली दंपत्ति के उत्पीड़न और धमकी की याचिका/शिकायतें प्राप्त करने और उन्हें आवश्यक सहायता/सलाह एवं सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रत्येक जिले में 24 घंटे की हेल्पलाइन के साथ विशेष प्रकोष्ठों (special cells) की स्थापना करनी चाहिए।
  •  युगलों की ऑनर किलिंग या हिंसा से संबंधित मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित किए जाने चाहिए। मामले की सुनवाई अपराध को संज्ञान में लिए जाने की तारीख से छह माह के भीतर की जानी चाहिए।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

 ‘सम्मान एवं परंपरा के नाम पर अपराध निवारण विधेयक, 2010

  • यह विधेयक राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा प्रस्तावित किया गया था;
  •  अंतर जातीय या अंतरधार्मिक विवाह करने वाले युगलों के विरुद्ध अलोकप्रिय और सख्त आदेश पारित करने वाली ग्राम पंचायत की कोई भी सभा गैर-कानूनी होगी। यह युगलों को सामाजिक बहिष्कार के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है।

विधि आयोग द्वारा 2 विधेयकों के मसौदे

खाप पंचायतों से सम्बंधित, विशेष रूप से ऑनर किलिंग को रोकने के लिए, दो विधि आयोगों द्वारा निम्नलिखित विधेयकों का मसौदा तैयार किया गया है:

  • द प्रोहिबिशन ऑफ़ अनलॉफुल असेंबली (इंटरफेरेंस विथ द फ्रीडम ऑफ़ मैट्रिमोनियल अलायन्सेज़) बिल, 2011
  • इंनडेजरमेंट ऑफ़ लाइफ एंड लिबर्टी (प्रोटेक्शन, प्रॉसिक्यूशन एंड अदर मेज़र्स) बिल, 2011

ये दोनों विधेयक केवल प्रस्ताव के रूप में हैं तथा खाप पंचायतों के प्रभाव को कम करने के लिए अब तक कोई ठोस वैधानिक सुधार सामने नहीं आया है। इस सम्बन्ध में सुझाए गए कुछ विधायी कदम या उपाय निम्नलिखित हैं

  • ऑनर किलिंग के मामलों के निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक न्यायालयों का गठन;
  • विवाह के पंजीकरण की अवधि कम करने के लिए विशिष्ट विवाह अधिनियम में संशोधन;
  • अंतरजातीय विवाह करने वाले जोड़ों को पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराना।

महाराष्ट्र सामाजिक बहिष्कार (रोकथाम, निषेध,और निवारण) अधिनियम, 2016 जाति, समुदाय, धर्म, रिवाज़ों तथा परम्पराओं के आधार पर सामाजिक बहिष्कार को प्रतिबंधित करता है।

खाप पंचायतों के प्रभाव को कम करने के लिए न्यायिक निर्णय

  • लक्ष्मी कछवाहा बनाम राजस्थान राज्य मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि जातिगत पंचायतों का कोई न्यायाधिकार क्षेत्र नहीं होता तथा वे किसी पर आर्थिक दंड या बहिष्कार का प्रावधान नहीं कर सकतीं।
  • अर्मुगम सेरवई बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि खाप अवैध होती हैं तथा उन्हें समाप्त किया
    जाना चाहिए।

खाप के विवादास्पद पहलू

  • खाप पंचायतें बहुधा संविधानेत्तर प्राधिकरणों की भाँति कार्य करती हैं। वे प्रायः ऐसे निर्णय सुनाती हैं जिनसे जीवन और स्वतन्त्रता के अधिकार, निजता के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, संगठन बनाने के अधिकार, आवागमन तथा शारीरिक एकात्मकता के अधिकार जैसे मूल मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है।
  • ये ऑनर किलिंग, बलात् विवाह, मादा भ्रूण हत्या, व्यक्तियों तथा परिवारों के सामाजिक बहिष्कार तथा न्याय प्रदान करने के मनमाने तरीकों आदि से जुड़ी रही हैं। ये लोगों को डरा कर चुप करने की संस्कृति को बढ़ावा देती हैं
  • पंचायती राज में विद्यमान कमियों के कारण इन्हें और बढ़ावा मिलता है। इनकी उस क्षेत्र में सशक्त राजनीतिक पकड़ होती है। जिसमें ये कार्य कर रही होती हैं, इसलिए किसी भी राजनीतिक दल को उनके निर्णयों के विरुद्ध जाने की स्वतन्त्रता नहीं होती। यहाँ तक की पुलिस जैसा सरकारी तंत्र भी उनके विरुद्ध कार्रवाई करने में हिचकता है।
  • ये अतिवादी पुरुषसत्तात्मक संगठन हैं तथा अधिकांशतः युवा महिलाएँ उनके मनमाने निर्णयों का शिकार होती हैं। खाप पंचायतें युवा महिलाओं के लिए विशेष वस्त्र अनुशंसित करती हैं, उनके बाहर आने-जाने तथा रोज़गार संबंधी विकल्पों पर भी रोक लगाती हैं तथा मनपसंद जीवन-साथी चुनने के अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाती हैं।
  • इन संगठनों की सतत विद्यमानता सामाजिक गतिशीलता, विकास, पारिवारिक संबंधों व विश्वास को बाधित करती है तथा
    इनमें सामाजिक समानुभूति, करुणा, भ्रातृत्व आदि का अभाव परिलक्षित होता है।

अन्य संबंधित पहलू

  • हालांकि ये अवैध संगठन नहीं, बल्कि युगों पुरानी सामाजिक संस्थाएँ हैं जो एक ही कुल से जुड़े होने की भावनाओं तथा
    सांस्कृतिक जुड़ावों पर आधारित हैं तथा यही इन्हें शक्ति प्रदान करते हैं।
  • ये पंचायतें गाँवों में चारागाहों, खेल के मैदान तथा जल के वितरण, भूमि विवादों, विवाह संबंधी विवादों, पैतृक संपत्ति के बंटवारे तथा गाँवों में आम संसाधनों के बंटवारे को लेकर थोड़ी-बहुत असहमति जैसी अनेक सामाजिक समस्याओं का समाधान करती हैं।
  • इनके द्वारा न्याय को न्यायालयों की अपेक्षा अधिक शीघ्रता से प्रदान किया जाता है। ग्रामीण लोगों के पास न्यायालयों के माध्यम से अपने मामलों के समाधान हेतु आवश्यक धन तथा विशेषज्ञता का अभाव होता है। फलस्वरूप अपने समाज के समकक्षों के समक्ष कोई भी व्यक्ति सरलता से गवाही देने को तैयार हो जाता है तथा सत्य कहता है, जबकि न्यायालयों में ऐसा करने में उन्हें असुविधा का अनुभव होता है।
  • भूमि विवादों जैसे बहुत से मामलों में कई बार दस्तावेज़ संबंधी प्रमाण नहीं होते। सारे प्रमाण केवल बड़े- बुजुर्गों तथा उनकी गवाही के रूप में उपलब्ध होते हैं।
  • इन पंचायतों ने बहुधा मादा भ्रूण गर्भपात, अत्यधिक मद्यपान एवं दहेज़ जैसी समस्याओं से लड़ने तथा शिक्षा को बढ़ावा देने
    को लेकर भी कई निर्णय दिए हैं।

आगे की राह

  • अंतरधार्मिक या अंतरजातीय संबंधों में बाधा उत्पन्न करने वाली खापें इस तथ्य की पुष्टि करती हैं कि सामाजिक परिवेश अभी भी मध्यकालीन युग के प्रभाव में है। इस प्रकार की धारणाओं को केवल सामाजिक अभिवृत्ति में परिवर्तन के द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है।
  • यह लोगों को संविधान तथा खाप निर्णय के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जागरूक बना कर किया जा सकता है। इसके लिए सभी प्रकार के मीडिया माध्यमों को संगठित कर उनका उपयोग शैक्षणिक और जागरूकता अभियानों के प्रसार के लिए किया जाना चाहिए।

कुछ विधायी उपाय किए जा सकते हैं

  •  ऑनर किलिंग से निपटने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया जाना;
  •  विवाह के पंजीकरण की अवधि को कम करने के लिए विशेष विवाह अधिनियम में संशोधन;
  • अंतरजातीय विवाह करने वाले युगल को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करना।
  • “बेटी बचाओ बेटी पढाओ” जैसी सरकारी पहलों को समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना  चाहिए, जो इस प्रकार के स्व-नियुक्त न्यायालयों के प्रभाव को कम करेगा।

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.