भारत में महिलाओं और बच्चों की तस्करी में योगदान देने वाले कारक : तस्करी से निपटने हेतु उठाए गए कदम

प्रश्न: भारत में महिलाओं और बच्चों की तस्करी में योगदान देने वाले कारकों की व्याख्या करते हुए, इससे निपटने के लिए हाल के दिनों में उठाए गए कदमों पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में तस्करी संबंधी आंकड़ों की जानकारी देते हए इसका संक्षिप्त परिचय दीजिए। 
  • भारत में महिलाओं और बच्चों की तस्करी में योगदान करने वाले कारकों को स्पष्ट कीजिए।
  • तस्करी से निपटने हेतु हाल के दिनों में उठाए गए कदमों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

भारत अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी का एक प्रमुख केंद्र है। NCRB के अनुसार, जबरन श्रम और यौन शोषण तस्करी के प्रमुख कारण हैं। जितने लोगों की तस्करी हुई उनमें से 53% बच्चे हैं।

भारत में महिलाओं और बच्चों की तस्करी में योगदान करने वाले कारक:

  • गरीबी: सभेद्य महिलाओं और लड़कियों को रोजगार के वादों से फुसलाया जाता है। कभी-कभी गरीबी माता-पिता को अपने बच्चों को तस्करों के हाथ बेचने के लिए मजबूर कर देती है।
  • तीव्र शहरीकरण: भारत के शहरों में बड़ी संख्या में पुरुषों का प्रवासन, इस बाजार में युवा महिलाओं और बच्चों को बेचने के लिए वाणिज्यिक सेक्स और सेक्स तस्करों हेतु एक बाजार का निर्माण करता है।
  • सामाजिक बुराइयां: लिंग-चयनात्मक गर्भपात प्रथाओं से उत्पन्न लिंग असंतुलन ने व्यावसायिक सेक्स के बाजार को और बढ़ाया है। जाति व्यवस्था भी सेक्स व्यापार में अपनी भूमिका निभाती है क्योंकि जिनकी तस्करी की जाती है उनमें से बड़ी संख्या में महिलाएं वंचित जातियों से आती हैं।
  • भ्रष्टाचार और अक्षमता: कई बार कानून प्रवर्तन कर्मी तस्करों के साथ सांठ-गांठ कर लेते हैं। इसके अतिरिक्त, मामलों का धीमा निपटान और ऐसे अपराध करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध कठोर सजा न होने से निवारण कम हो जाता है।
  • व्यक्तिगत परिस्थितियां: एक विवश परिवार, संवेदनशील रिश्ते, नशीली दवाओं का उपयोग आदि भी महिलाओं और बच्चों को शोषण का शिकार बनाते हैं।
  • सस्ता श्रम: गरीब देशों की महिलाओं और बच्चों को अपेक्षाकृत सस्ते श्रम के रूप में भी देखा जाता है और इनकी अमीर देशों में अधिक मांग है।

महिलाओं और बच्चों की तस्करी से निपटने के लिए उठाए गए कदम:

  • विधान: वाणिज्यिक यौन शोषण हेतु तस्करी को अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (ITPA) के तहत दंडित किया जाता है। इसके अतिरिक्त, बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम एवं किशोर न्याय अधिनियम, भारत में बंधुआ और बलात श्रम को प्रतिबंधित करते हैं।
  • गृह मंत्रालय में एंटी-ट्रैफिकिंग सेल की स्थापना: विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग इकाइयों के साथ कानून प्रवर्तन अनुक्रिया एवं समन्वय हेतु।
  • उज्ज्वला जैसी योजनाओं के अंतर्गत 162 सुरक्षात्मक एवं पुनर्वास गृह स्थापित किए गए हैं और कठिन परिस्थितियों में स्थित महिलाओं के लिए स्वाधार गृह कार्यक्रम भी मौजूद है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत सरकार ने मानव तस्करी के निवारण हेतु बांग्लादेश और संयुक्त अरब अमीरात के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • आश्रय गृहों की ऑडिट: सुप्रीम कोर्ट ने मुजफ्फरपुर और देवरिया की घटनाओं को देखते हुए, पूरे भारत में आश्रय गृहों की स्थिति का ऑडिट करने हेतु राष्ट्रीय महिला आयोग और राज्य-स्तरीय संस्थानों को प्रोत्साहित किया है।
  • विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा उत्प्रवास विधेयक: इसके अंतर्गत विदेशों में शिक्षा या रोजगार तलाशने वाले सभी भारतीय नागरिकों को पूर्व-प्रस्थान प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। साथ ही इसमें भर्ती एजेंसी के विरुद्ध नियमों के उल्लंघन के लिए कठोर दंड का प्रावधान भी किया गया है।
  • मानव तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2018: यह तस्करी के सभी प्रकार की जांच और तस्करी से पीड़ित लोगों के बचाव, संरक्षण और पुनर्वास के लिए एक कानून का निर्माण करता है।

महिलाओं और बच्चों की तस्करी न केवल मनुष्य को अमानवीय बनाती है बल्कि समाज के लिए भी यह शर्मनाक है। अतः कठोर निषेधात्मक और विधि प्रवर्तन उपायों के अतिरिक्त, लैंगिक मुद्दों के संबंध में सकारात्मक सामाजिक-व्यवहार परिवर्तन आरंभ करने की आवश्यकता है।

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