भारत निर्वाचन आयोग से संबंधित मुद्दे (Issues with Election Commission of India)
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) अनुच्छेद 324 के अंतर्गत एक संवैधानिक निकाय है। इसमें चुनावों की प्रक्रिया के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण संबंधी उत्तरदायित्व निहित हैं। इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त शामिल होते हैं।
नियुक्ति से संबंधित मुद्दों के समाधान हेतु उठाए जाने वाले कदम
- कॉलेजियम द्वारा नियुक्ति: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2nd ARC) ने अपनी चौथी रिपोर्ट ‘शासन में नैतिकता’ में कहा है कि भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की नियुक्ति करने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक कॉलेजियम की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- निष्पक्ष एवं पारदर्शी चयन को सुनिश्चित करना: यद्यपि न्यायालय ने स्वीकार किया कि अब तक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति निष्पक्ष और राजनीतिक रूप से तटस्थ रही है, परंतु फिर भी विधि में शून्यता को शीघ्र ही भरा जाना चाहिए।
- EC को संवैधानिक संरक्षण: वर्तमान में केवल एक सदस्य को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। इसमें संशोधन कर तीनों सदस्यों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
- उचित रूप से पदोन्नतिः वरिष्ठ चुनाव आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर स्वतः पदोन्नत करने संबंधी प्रावधानों को कानून में जोड़ा जाना चाहिए। इससे उनमें सुरक्षा की भावना उत्पन्न की जा सकेगी एवं उन्हें कार्यकारी हस्तक्षेप से पृथक रखा
जा सकेगा।
अनुच्छेद 324
अनुच्छेद 324 अनुबंध करता है कि निर्वाचन आयोग मुख्य निर्वाचन आयुक्त और उतने अन्य निर्वाचन चुनाव आयुक्तों से, यदि कोई हों, जितने राष्ट्रपति समय-समय पर नियत करे, से मिलकर बनेगा। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, संसद द्वारा इस निमित्त बनायी गयी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। हालाँकि इसके बाद भी, ECI में होने वाली नियुक्तियां विभिन्न मुद्दों के साथ सम्बद्ध हैं:
- हाल ही में, चुनाव आयुक्तों (ECs) के कार्यकाल संबंधी सुरक्षा के अभाव का मुद्दा चर्चा में था। संविधान का अनुच्छेद 324 (5) केवल उस स्थिति में CEC को पदच्युति से संरक्षण प्रदान करता है, जब उसे पदच्युत करने की रीति एवं आधार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की पदच्युति की रीति एवं आधार के समान न हों। किन्तु मुख्य निर्वाचन आयुक्त की अनुशंसा पर सरकार किसी अन्य चुनाव आयुक्त को अपदस्थ कर सकती है।
- अनुच्छेद 324 के अंतर्गत CEC एवं अन्य ECs की नियुक्ति संसद द्वारा इस संदर्भ में निर्मित कानून के अनुसार की जाएगी। हालांकि, अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं बनाया गया है। इससे एक “अंतराल” निर्मित हुआ है और इस प्रकार इन महत्वपूर्ण पदों पर की जाने वाली नियुक्तियाँ पूर्णतः कार्यपालिका के नियंत्रण में आ गयी हैं।
- संविधान ने चुनाव आयोग के सदस्यों के लिए किसी भी प्रकार की योग्यता (विधिक, शैक्षणिक, प्रशासनिक अथवा न्यायिक) का निर्धारण नहीं किया है।
- संविधान ने सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्त को सरकार द्वारा किसी और नियुक्ति से वंचित नहीं किया है।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों के मध्य शक्ति विभाजन के संबंध में कोई स्पष्टता नहीं है।
ECI स्वतंत्रता के पश्चात से ही प्रतिनिधियों के एक समूह से दूसरे समूह को राजनीतिक सत्ता के लोकतांत्रिक हस्तांतरण को सुनिश्चित करता आ रहा है। हालांकि, हाल में यह विभिन्न मुद्दों और विवादों से घिरा रहा है जो EVM मशीनों की खराबी, सत्तारूढ़ सरकार को लाभान्वित करने वाली चुनावी तिथियों की घोषणा, चुनावों में धन एवं बल की भूमिका आदि से सम्बंधित हैं। अतः इसके समाधान हेतु ECI ने निम्नलिखित उपायों को प्रस्तावित किया है:
- हाल ही में, ECI ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि निर्वाचन कानून के तहत नियम बनाने की शक्ति केंद्र के बजाए इसे दी जानी
चाहिए। वर्तमान में, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम ने ECI के परामर्श के बाद केंद्र सरकार को नियम बनाने की शक्ति प्रदान की है। हालांकि, केंद्र सरकार इसे स्वीकार करने हेतु बाध्य नहीं है। अतः विभिन्न सुधारों जैसे- राजनीतिक दलों को अपंजीकृत करने की शक्ति, मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए धनबल का उपयोग पाए जाने पर चुनाव को स्थगित अथवा रद्द करने की शक्ति के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में नए खंड ’58 बी ‘को सम्मिलित किये जाने आदि को अपनाने की आवश्यकता है। - इससे पूर्व 2017 में ECI ने किसी भी व्यक्ति द्वारा उसके प्राधिकार के प्रति अवज्ञा अथवा अवमानना व्यक्त करने की स्थिति में उसे
दण्डित करने के लिए न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 में तत्काल संशोधन की मांग की थी।
अवमानना शक्तियों के पक्ष में तर्क
- अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण: बहुत से देशों में निर्वाचन प्रबंधन निकायों (उदाहरण- केन्या, पाकिस्तान) के पास अवमानना कार्रवाइयों को
प्रारंभ करने के लिए प्रत्यक्ष शक्तियाँ होती हैं। - विश्वसनीयता को बनाए रखनाः आयोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया के महत्वपूर्ण संरक्षक के रूप में उपस्थित है; अतः इस पर लगाए गए
आरोप इसकी विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकते हैं।
ऐसी शक्ति देने के विरुद्ध तर्क
- आविवेकपूर्ण प्रतिक्रिया की संभावना: पक्षपातपूर्ण कार्य करने के कुछ गंभीर आरोपों के बदले यह एक अवांछित और बिना समुचित विचार-विमर्श के की गयी प्रतिक्रिया हो सकती है।
- पारदर्शिता की आवश्यकता: चूंकि यह निकाय गुप्त मतदान पद्धति का संरक्षक भी है, अतः इसे ईमानदारी एवं निष्पक्षता के अपने ट्रैक रिकॉर्ड को बनाए रखने के लिए अवमानना शक्तियों के बजाय पारदर्शिता का चयन करना चाहिए।
- गैर-लोकतांत्रिक- प्रतियोगिता चुनावों का अनिवार्य खंड है। अतः, आलोचना को समाप्त करने की शक्ति लोकतांत्रिक प्रक्रिया को
कमजोर कर देगी। - ECI की निर्णय लेने की शक्ति, शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत के विरुद्ध होगी।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्धः इसी कारण कनाडा तथा अमेरिका जैसे विशाल लोकतांत्रिक देशों ने भी चुनाव पैनल को अवमानना शक्तियाँ प्रदान नहीं की हैं।
- पूर्व में अस्वीकृत: चुनाव सुधारों पर गठित दिनेश गोस्वामी समिति ने तीन दशक पूर्व ही इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
- लोगों की संतुष्टि ही सर्वोच्च – ECI का लक्ष्य प्रत्येक राजनेता को संतुष्ट करना नहीं है। इसे लोक विश्वास प्राप्त है तथा यह निष्पक्ष निकाय के रूप में जाना जाता है। अतः, इसे केवल लोगों तक पहुंच कर, उनसे पारदर्शिता से प्रक्रिया की व्याख्या करने की आवश्यकता है।