सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 : संशोधनों से यह अधिनियम किस प्रकार कमज़ोर होगा

प्रश्न: सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में हालिया संशोधन इस अधिनियम को कमजोर बनाएगा और सूचना आयुक्तों के प्राधिकार को क्षीण करेगा। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के उद्देश्य का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  • हाल में किये गए संशोधनों का उल्लेख कीजिए।
  • संशोधनों से यह अधिनियम किस प्रकार कमज़ोर होगा और ये संशोधन कैसे सूचना आयुक्तों की शक्ति में सेंध लगाएंगे, इसकी विवेचना कीजिए।
  • एक संक्षिप्त निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

सूचना के अधिकार अधिनियम में हाल ही में किये गए संशोधन केंद्र और राज्यों, दोनों में ही CIC और IC की नियुक्ति के नियमों एवं शर्तों में संशोधन करते हैं तथा केंद्र सरकार को उनके कार्यकाल और पारिश्रमिक निर्धारित करने के लिए सक्षम बनाते हैं।

अधिनियम में संशोधन 

मूल RTI अधिनियम 2019 के संशोधन
आयुक्तों का कार्यकाल: CIC और अन्य ICs (केंद्र और राज्य स्तर पर  नियुक्त) का कार्यकाल 5 वर्षों का होगा। केंद्र सरकार CIC और ICs के कार्यकाल को अधुसूचित करेगी
वेतन निर्धारण:CIC और अन्य ICs (केंद्र और राज्य  स्तर पर) का वेतन मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को दिए जाने वेतन के बराबर होगा (जो एक उच्च न्यायालय के न्यायधीश के बराबर है) इसी प्रकार CIC और ICs  का वेतन क्रमशः चुनाव आयुक्त और मुख्य सचिव के बराबर होगा। केन्द्रीय और राज्य CIC और ICs के वेतन, भत्ते   अन्य नियम और शर्तों को  केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा

यह कहा जा रहा है कि ये संशोधन CIC और IC के ओहदे को युक्तिसंगत बनाए जाने के उद्देश्य से किये गए हैं। उदाहरण के लिए, वेतन संशोधन के सन्दर्भ में यह तर्क दिया जा रहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश संवैधानिक अधिकारी हैं, जबकि CIC केवल एक सांविधिक प्राधिकरण है। भारत के चुनाव आयुक्त और केन्द्रीय व राज्य सूचना आयुक्तों का अधिदेश अलग-अलग है और उन्हें तदनुसार निर्धारित किए जाने की आवश्यकता है।

हालाँकि 2005 के अधिनियम में संशोधनों के विरुद्ध चिंता प्रकट की गई है। RTI तन्त्र तब समृद्ध होता है जब यह कार्यपालिका के हस्तक्षेप और दबाव से मुक्त होता है। CIC और IC को इसके नियन्त्रण में लाने पर यह तर्क दिया जा सकता है कि सरकार ने RTI व्यवस्था को ही परिवर्तित कर दिया है। इस संशोधन से कार्यपालिका CIC पर हावी रहेगी और उसकी स्थिति को दुर्बल करेगी। यह तर्क भी दिया जाता है राज्य सूचना आयोगों पर नियन्त्रण भी संघीय ढांचे और भारतीय लोकतंत्र के विरुद्ध है।

इसके अतिरिक्त संशोधन के पीछे के तर्क पर भी प्रश्न उठाए जा रहे हैं। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित अन्य सभी प्राधिकारियों के निर्णयों को उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है और उनकी प्रस्थिति इन चुनौतियों को रोकती या बाधित नहीं करती है। RTI की उत्पत्ति सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्णय से हुई है जिसमें यह बताया गया था कि सुविचारित मतदान के लिए सूचना का अधिकार कैसे एक पूर्व-शर्त है और इसलिए सूचना एवं चुनाव आयुक्तों के बीच समानता एक विसंगति नहीं है।

यह सरकार का कर्तव्य है कि वह इस प्राकृतिक और लोकतान्त्रिक अधिकार की रक्षा और संरक्षण करे, जिसे इसके संस्थागत समर्थन की आवश्यकता है। इसकी शक्तियों को दुर्बल बनाने के बजाय, RTI अधिनियम में संशोधन द्वारा वास्तविक चुनौतियों को सम्बोधित करना चाहिए, जैसे- आवेदनों का लम्बित रहना, पदों की रिक्तता और अधिनिर्णयों के मानदंडों में गुणात्मक गिरावट इत्यादि।

Read More 

 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.