पूर्वोत्तर क्षेत्र में विद्रोह (Insurgency In North East)

भारत में राज्यों की निर्माण प्रक्रिया के दौरान नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, असम, त्रिपुरा और मेघालय जैसे सीमावर्ती उत्तर-पूर्वी राज्यों में अनेक नृजातीय अलगाववादी विद्रोह हुए हैं। इस क्षेत्र में हुए संघर्षों को व्यापक रूप से निम्नलिखित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है:

  •  राष्ट्रीय संघर्ष: इसके अंतर्गत, पृथक राष्ट्र के रूप में एक विशिष्ट ‘मातृभूमि’ (homeland) की अवधारणा और इसके समर्थकों द्वारा इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु किये जाने वाले प्रयास शामिल हैं।
  • नृजातीय संघर्ष: इसके अंतर्गत प्रमुख जनजातीय समूह के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक प्रभुत्व के विरुद्ध संख्यात्मक रूप से छोटे और कम प्रभावशाली आदिवासी समूहों के दावे को शामिल किया जाता है। असम में इस संघर्ष ने स्थानीय और प्रवासी समुदायों के मध्य तनाव का स्वरूप ग्रहण कर लिया है।
  • उप-क्षेत्रीय संघर्ष: इसमें उप-क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को मान्यता दिलाने हेतु किये जाने वाले आंदोलन शामिल हैं। ये महात्वाकांक्षाएं प्रायः राज्य सरकारों या स्वायत्त परिषदों के साथ प्रत्यक्ष टकराव की स्थिति में होती हैं।

पूर्वोत्तर में विद्रोह के कारण

 स्वतंत्रता पूर्व कारक

जनजातियों को सख्त राजनीतिक नियंत्रण और कठोर नियमों के तहत नहीं लाया गया था। माना जाता है कि ये ब्रिटिश जनजातीय नीति और ईसाई शिक्षा ही थी जिसने स्वतंत्र भारत के लिए पूर्वोत्तर के जनजातीय मुद्दों को और भी जटिल एवं असाध्य बना दिया।

अंग्रेजों द्वारा आरक्षित वनों की स्थापना के परिणामस्वरूप प्राकृतिक संसाधनों पर जनजातीय नियंत्रण को क्षति हुई।

स्वातंत्र्योत्तर कारक

  • 1950 के दशक में राज्य सीमाओं के रेखांकन की प्रक्रिया के दौरान जातीय एवं सांस्कृतिक विशिष्टताओं की उपेक्षा की गयी जिससे पहचान संबंधी दावे और असंतोष उत्पन्न हुआ।
  • इस क्षेत्र में निर्धनता, बेरोजगारी, कनेक्टिविटी का अभाव, अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल एवं शैक्षिक सुविधाओं, उपेक्षा की
    भावना और स्वयं के मामलों के संचालन में गैर-भागीदारी ने विद्रोह को भड़काने में योगदान दिया।
  • सुशासन की कमी, व्यापक भ्रष्टाचार व्याप्त होने की जनधारणा और उत्तरदायित्व के अभाव ने स्थानीय आबादी के बड़े
    वर्गों में अलगाववाद की भावना के सृजन में भी योगदान दिया है।
  • नीतियां प्रायः स्थानीय ज़मीनी स्तर की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित और स्थानीय संवेदनाओं को पर्याप्त रूप से
    संबोधित नहीं करती हैं। इसके अतिरिक्त, जो नीतियां हैं, उनका भी कार्यान्वयन संतोषजनक नहीं होता है।
  • शेष भारत के लोगों में उत्तर-पूर्व के प्रति अभिरुचि, इस क्षेत्र की समस्याओं के प्रति समझ एवं इनकी चिंताओं के संदर्भ में
    जागरूकता का अभाव है जो अत्यंत चिंताजनक है। मैदानी क्षेत्रों से लोगों के प्रवासन के कारण जनजातियों के लिए आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक खतरा उत्पन्न हुआ
  • प्रतिद्वंदी पड़ोसी देशों द्वारा छिद्रिल अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के माध्यम से नैतिक और भौतिक समर्थन में वृद्धि।
  • बेहतर नेतृत्व और जन समर्थन की कमी।
  • सुरक्षा बलों की ज्यादतियों तथा उनके द्वारा मानवाधिकार हनन के कारण अलगाव की प्रबल भावना।
    दुर्गम क्षेत्रों और अपर्याप्त आधारभूत संरचना के कारण संघर्ष में शामिल विद्रोहियों को सहायता मिलती है।

पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों में विद्रोह का वर्तमान परिदृश्य

  •  गृह मंत्रालय के अनुसार, 90 के दशक की तुलना में विद्रोह से संबंधित घटनाओं में 85% की कमी हुई है। नागरिक और सुरक्षा बल संबंधी जनहानि में 96% की कमी आई है।
  • इस क्षेत्र की कुल हिंसक घटनाओं में लगभग 54 प्रतिशत केवल मणिपुर में घटित हुईं। वर्ष 2017 के दौरान इस क्षेत्र की कुल 308 घटनाओं में से 167 घटनाएँ केवल मणिपुर राज्य में दर्ज की गयी हैं। इसका मुख्य कारण मणिपुर स्थित छह आतंकवादी संगठनों के एक समूह कोरकॉम (समन्वय समिति) द्वारा संचालित गतिविधियां हैं।
  • अरुणाचल प्रदेश निरंतर चिंता का विषय बनता जा रहा है, यद्यपि इस राज्य में स्वयं का कोई विद्रोही समूह नहीं है। इसका प्राथमिक कारण NSCN गुटों, ULFA (I) व NDFB (S) की आतंकवादी गतिविधियां हैं जो म्यांमार में अपनी शरण-स्थली तक पहुंचने के लिए इस राज्य का ट्रांजिट कॉरिडोर के रूप में उपयोग करते हैं।
  • विगत वर्ष त्रिपुरा और मिजोरम में विद्रोह से संबंधित कोई घटना दर्ज नहीं हुई थी।
  • असम में विद्रोह का उद्भव 1979 में आल असम स्टूडेंट यूनियन (AASU) के साथ ऑल असम गण संग्राम परिषद (AAGSP) द्वारा आरम्भ किए गए असम आंदोलन में हुआ था। यह तथाकथित “विदेशियों” और उन जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के विरुद्ध आंदोलन था जो 1947 के पश्चात् प्रवासियों के अत्यधिक अंतर्वाह के कारण घटित हुए थे। अगस्त 1985 के असम समझौते के कारण AASU को राज्य में सत्ता प्राप्त हुई परन्तु यह समझौता राज्य में शांति स्थापित करने में असफल रहा। AASU द्वारा अपनाए गए हिंसक साधनों की सफलता से प्रोत्साहित होकर एक अन्य आतंकवादी संगठन – यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) ने स्वतंत्र असम के लिए आंदोलन आरम्भ कर दिया। ULFA का विद्रोह वर्तमान में भी सक्रिय है और यह अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी फैल गया है
  • नागा विद्रोह, पूर्वोत्तर भारत में संचालित सबसे पुराना विद्रोह है। यह 1997 से विभिन्न युद्धविराम वार्ताओं के माध्यम से एक दशक से अधिक समय तक अधिकांशतः शांत स्थिति में रहा है, परन्तु अभी तक समाधान नहीं मिला है।

नागा विद्रोह

पृष्ठभूमि

  • नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड- इसाक मुइवा, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड -खापलांग, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड -युनिफिकेशन और नागा राष्ट्रीय परिषद जैसे नागालैंड के कई सशस्त्र समूह
  • 1947: नागा राष्ट्रीय परिषद (NNC) द्वारा स्वतंत्रता की मांग और विद्रोह करने के साथ ही नागालैंड में संघर्ष प्रारम्भ
    हो गया।
  • 1975 शिलांग समझौता: NNC सदस्यों के एक प्रतिनिधि मंडल ने तत्कालीन असम के राज्यपाल से भेंट करते हुए भारतीय संविधान को स्वीकार करने, शस्त्र विद्रोह को समाप्त करने और सामान्य जीवन जीने के लिए सहमति व्यक्त की।
  • 1980: 1980 में NSCN का गठन जिससे इस संगठन में खापलांग के नेतृत्व में म्यांमारी नागाओं का एक वर्ग भी सम्मिलित हो गया।
  • 1988: NSCN, खापलांग और इसाक-मुइवा (I-M) गुटों में विभाजित हो गया।
  • 1997: सरकार और NSCN (I-M) समूह के मध्य युद्धविराम की घोषणा हुई और समझौते के लिए वार्ता आरम्भ की गयी।
  • पांच वर्ष पश्चात खापलांग ने सरकार के साथ संघर्ष के समापन की घोषणा की, जिसके परिणामस्वरूप एक समझौता संपन्न हुआ।
  • NSCN (IM) के विपरीत, NSCN (K) के म्यांमार में स्थित होने के कारण, इसके साथ कोई संवाद नहीं हुआ।
  • 2015: NSCN-IM की अध्यक्षता में भारत सरकार और नागा सशस्त्र समूहों के मध्य नागा फ्रेमवर्क समझौते या नागा शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
  • 2015 में NSCN (K) ने युद्धविराम का उल्लंघन करते हुए एक सैन्य रक्षक दल पर हमला किया।
  •  हाल ही में सरकार ने NSCN/नियोकपाओ-खितोवी (NSCN/NK) और NSCN/रिफॉर्मेशन (NSCN/R) के साथ
    अप्रैल, 2019 तक एक वर्ष की अवधि के लिए सस्पेंशन ऑफ़ ऑपरेशन का विस्तार करने का निर्णय लिया था।

नागा शांति समझौता 2015

  • फ्रेमवर्क समझौता नागाओं के “अद्वितीय” इतिहास पर आधारित है तथा इस सार्वभौमिक सिद्धांत को मान्यता प्रदान करता है कि लोकतंत्र में संप्रभुता लोगों में अन्तर्निहित होती है।
  • NSCN ने ‘ग्रेटर नागालैंड’ की मांग को त्याग दिया और भारत के संविधान के प्रति निष्ठा व्यक्त की है। समझौते के विवरण को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। |
  • भारत सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि राज्यों की मौजूदा सीमाओं में परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

शांति के समक्ष विद्यमान चुनौतियां 

  •  नागालैंड में जनजातीयता सुदृढ़ता से स्थापित है और किसी भी एक समूह के सभी नागाओं का प्रतिनिधित्व करने के
    दावों का अन्य समूहों द्वारा विरोध किया गया है।
  • NSCN-IM द्वारा नागा-निवास क्षेत्रों के एक ‘ग्रेटर नागालैंड’ में एकीकरण पर बल दिया गया है, जिसे वे नागालिम के रूप में अभिव्यक्त करते हैं। इसमें वे तीन भारतीय राज्यों – असम, मणिपुर एवं अरुणाचल प्रदेश तथा म्यांमार के क्षेत्रों
    को शामिल करते हैं।
  •  इस प्रकार नागालिम की मांग का सीमावर्ती राज्यों द्वारा विरोध किया जा रहा है।
  • भारत और म्यांमार के नागाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति भिन्न है और इसलिए नागाओं के लिए एक साझा घोषणापत्र पर एकमत होने के प्रयास अतीत में विफल रहे हैं।
  • खापलांग द्वारा म्यांमार में स्वतंत्र और स्वायत्त सरकार के संचालन हेतु प्रयास किया गया और 2015 में युद्धविराम का उल्लंघन किया गया।

विद्रोह के प्रभाव

  •  इस क्षेत्र में विद्रोह तथा विभिन्न गुटों के मध्य परस्पर संघर्ष के कारण निरंतर अशांति की स्थिति बनी हुई है।
  • नागा विद्रोह इस क्षेत्र के ULFA, NFLT और बोडो जैसे अधिकांश अन्य समूहों के लिए दार्शनिक तथा लॉजिस्टिक सम्बन्धी आधार प्रदान करता है।
  • क्षेत्र में निवेश का अभाव; विशेष रूप से जल-विद्युत् के लिए इसकी अप्रयुक्त क्षमता।
  • स्थानीय लोगों विभिन्न गुटों, व्यवसायों, अधिकारियों आदि द्वारा “करों” की जबरन वसूली के कारण इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। हिंसा भी इस क्षेत्र की निवेश संभावनाओं को कमजोर करती है।
  • विद्रोही समूहों ने विद्रोह को जारी रखने हेतु धन जुटाने के लिए मुक्त आवागमन क्षेत्र और स्वर्णिम त्रिभुज (golden
    triangle) के माध्यम से अवैध मादक पदार्थों का व्यापार आरम्भ कर दिया है।

सरकार द्वारा उठाये गए उपाय

पूर्वोत्तर में विद्रोह को समाप्त करने के लिए नई दिल्ली द्वारा जो नीतियां अपनाई जा रही हैं, वह सैन्य शक्ति, सैन्य अभियानों का निलंबन, संवाद और युद्धविराम का मिश्रित रूप हैं: ।

  •  छठीं अनुसूची में उल्लिखित संवैधानिक संरक्षण न केवल जनजातीय कानूनों, प्रथाओं और भूमि अधिकारों की रक्षा करता है; बल्कि जनजातियों को न्यूनतम बाहरी हस्तक्षेप के साथ स्वयं को प्रशासित करने के लिए पर्याप्त स्वायत्तता भी प्रदान करता है।
  • प्रोटेक्टेड एरिया परमिट: सुरक्षा कारणों से कुछ क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र/प्रतिबंधित क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया है। यहां कोई भी विदेशी सक्षम प्राधिकारी से परमिट प्राप्त किए बिना प्रवेश या निवास नहीं कर सकता है।
  • दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए अंगीकृत एक्ट ईस्ट पॉलिसी पूर्वोत्तर क्षेत्र को लाभ पहुंचाएगी।
  • मिजोरम शांति समझौता और हाल ही में किया गया नागा शांति समझौता, स्थायी शांति की स्थापना और उत्तर-पूर्व क्षेत्र के विकास के उद्देश्य से संपन्न किये गए हैं।
  • किसी भी ऐसे युवा उद्यमी या स्टार्ट-अप के लिए प्रारंभिक पूंजी सहायता के रूप में “वेंचर फंड” की स्थापना करना। जो उत्तर पूर्वी क्षेत्र में एक प्रतिष्ठान या उद्यम प्रारंभ करने के इच्छुक हों।
  • उत्तर पूर्व के विकास हेतु हाइड्रोकार्बन क्षमता का लाभ उठाने के लिए विजन हाइड्रोकार्बन 2030।
  •  उत्तर पूर्व में बागवानी और जैविक कृषि को प्रोत्साहन प्रदान करना। सिक्किम भारत का प्रथम जैविक राज्य है। •
  • नागालैंड स्वास्थ्य परियोजना: स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और नागालैंड में लक्षित स्थानों पर समुदायों द्वारा उनके उपयोग मेंवृद्धि।

अवसंरचनात्मक विकास

  •  कालादान मल्टीमॉडल परियोजना मिजोरम के माध्यम से उत्तर पूर्व को शेष भारत के साथ निर्बाध कनेक्टिविटी प्रदान करेगी।
  •  त्रिपक्षीय राजमार्ग मोरेह (मणिपुर) -मांडले- थाईलैंड) दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ पूर्वोत्तर भारत के व्यापार को सुगम
    बनाएगा।
  •  उत्तर-पूर्व सड़क क्षेत्र विकास योजना (NERSDS) भारत में एक क्षेत्र आधारित सड़क विकास कार्यक्रम है।

विद्रोह के समाधान के समक्ष विद्यमान चुनौतियां

  • दोहरी ज़िम्मेदारी: पूर्व-असम राइफल्स (देश का सबसे पुराना अर्धसैनिक बल) छिद्रिल भारत-म्यांमार सीमा की रक्षा करने के साथ-साथ विप्लव-रोधी कार्यवाही की दोहरी सेवा प्रदान करता है।
  • खुली सीमा की रक्षा करना, जहां दोनों देशों के लोगों द्वारा एक-दूसरे के क्षेत्रों में निर्बाध यात्रा के लिए एक स्वतंत्र आवगमन व्यवस्था विद्यमान है।
  • म्यांमार, भूटान आदि मित्र राष्ट्रों की कूटनीतिक संवेदनाओं का ध्यान रखना।
  • अन्य राष्ट्र राज्य द्वारा प्रदत्त बाह्य सहायता: उदाहरण के लिए- उत्तर पूर्व में चीन द्वारा कथित रूप से हथियारों की तस्करी।
  • NEC, DoNER और हाल ही में निर्मित नार्थ ईस्ट फोरम जैसे निकायों और एजेंसियों की बहुलता। इन निकायों की भूमिकाओं के संबंध में स्पष्टता की आवश्यकता है।

अन्य मुद्देः परियोजना कार्यान्वयन में देरी, धन का अभाव।

आगे की राह

  •  उत्तर-पूर्वी परिषद (NEC) एक फोरम के रूप में: NEC (जिसके सदस्य उत्तर-पूर्वी राज्यों के राज्यपाल और मुख्यमंत्री हैं)व्यापक रूप से सुरक्षा पहलुओं पर चर्चा के लिए एक मंच प्रदान कर सकता है।
  • बहु-हितधारक दृष्टिकोण: उत्तर-पूर्व की समस्याओं के समाधान हेतु गठित किसी भी मंच पर न केवल सिविल सोसाइटी,विद्वानों एवं अन्य लोगों का बल्कि पेशेवरों का भी व्यापक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • उत्तर-पूर्व के विभिन्न राज्यों की समस्याओं के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को समझना: उत्तर-पूर्व के लिए कोई भी सार्थक नीति ऐसी होनी चाहिए जो प्रत्येक राज्य और क्षेत्र की विशिष्ट समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हो।
  • आर्थिक विकास: इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के विकास हेतु शीघ्रता से नए निवेश के लिए मार्ग प्रशस्त किया जाना चाहिए और साथ ही उत्पादक परिसंपत्तियों की उपलब्धता एवं पर्यटन की संभावित क्षमता की प्राप्ति को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • पड़ोसी देशों से अवैध आप्रवासन संबंधी समस्या का समाधान: रोजगार की खोज में आने वाले लोगों के लिए पहचान पत्र और कार्य परमिट अनिवार्य किया जाना चाहिए।
  • सरकार और प्रशासन के शासन एवं वितरण तंत्र में सुधार।
  • सभी हितधारकों को शामिल करते हुए किसी ठोस समाधान तक पहुंचने के लिए एक अनवरत प्रक्रिया के रूप में संवाद पर बल दिया जाना चाहिए। विद्रोही समूहों को दिन-प्रतिदिन संकीर्ण होती नृजातीय और भाषायी पहचान पर आधारित नए राज्यों और क्षेत्रों की मांग करने के बजाय (जिन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता) संवैधानिक अधिदेश के अंतर्गत अधिक स्वायत्तता प्राप्त करने का अपेक्षाकृत अधिक यथार्थवादी प्रयास करना चाहिए।
  • पड़ोसी देशों के साथ मिलकर समन्वित कार्यवाही का संचालन किया जाना चाहिए और सैन्य बलों का उपयोग केवल अपरिहार्य परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए।
  • AFSPA जैसे अत्यधिक कठोर कानूनों को निरस्त कर दिया जाना चाहिए क्योंकि यह उत्तर-पूर्व में विद्रोह को प्रेरित करने वाले कारणों में से एक है।
  • राज्यों के साथ सहयोग: इस क्षेत्र के राज्यों की पुलिस और केंद्रीय बलों को आतंकवादियों के विरुद्ध जाँच एवं कार्यवाही के संदर्भ में आसूचना साझाकरण के माध्यम से सहयोग करना चाहिए। सेना ने आरोप लगाया है कि हाल ही में सेना पर किया गया हमला राज्य पुलिस द्वारा हमले के बारे में ख़ुफ़िया जानकारी साझा नहीं करने के कारण संभव हुआ।
  • नागा विद्रोह रोकने के लिए: नागालैंड के नागाओं के साथ-साथ देश में अन्य स्थानों में निवासित नागाओं के हितों के संरक्षण हेतु एक जनजातीय सांस्कृतिक सामूहिक निकाय का गठन किया जा सकता है। साथ ही, नागा विद्रोहियों को नेपाली माओवादियों की तर्ज पर राज्य बलों में शामिल करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है।

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