रक्षा नियोजन समिति (Defence Planning Committee: DPC) : DPC की विशेषताओं और रक्षा तैयारियों से सम्बंधित मुद्दे

प्रश्न: नियोजन समिति (डिफेन्स प्लानिंग कमेटी) की प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या कीजिए। यह विश्वसनीय रक्षा तैयारी में कैसे सहायता कर सकता है?

दृष्टिकोण

  • रक्षा नियोजन समिति (Defence Planning Committee: DPC) को संक्षिप्त में संदर्भित और परिभाषित कीजिए।
  • इसकी मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  • रक्षा तैयारियों से संबंधित मुद्दों को लिखिए।
  • DPC की विशेषताओं और रक्षा तैयारियों से सम्बंधित मुद्दों के मध्य एक स्वीकार्य समाधान-उन्मुख संबंध की व्याख्या कीजिए।

उत्तर

रक्षा मामलों के लिए व्यापक और एकीकृत योजना को बढ़ावा देने हेतु सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) की अध्यक्षता में रक्षा नियोजन समिति (DPC) को स्थायी निकाय के रूप में स्थापित किया है।

मुख्य विशेषताएं: 

  • समिति में सिविल और सैन्य सेवाओं जैसे तीनों सैन्य सेवाओं के प्रमुख, रक्षा सचिव, विदेश सचिव और वित्त मंत्रालय के सचिव (व्यय) के उच्च विभागों से सदस्यों को शामिल किया जाता है।
  • इसे निम्नलिखित सभी प्रासंगिक आगतों का विश्लेषण और मूल्यांकन करने का कार्य सौंपा गया है
  • राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा संबंधी प्राथमिकताएं,
  • विदेश नीति की अनिवार्यताएं,
  • परिचालन निर्देश और संबंधित आवश्यकताएं,
  • प्रासंगिक रणनीतिक और सुरक्षा संबंधी सिद्धांत,
  • रक्षा अधिग्रहण और अवसंरचनात्मक विकास योजनाएं,
  • रक्षा प्रौद्योगिकी और भारतीय रक्षा उद्योग का विकास
  • DPC के कार्य संचालन में सहायता करने हेतु, नए तंत्र के तहत चार उप-समितियों की व्यवस्था की गयी है,
  • नीति और रणनीति
  • योजनाएं और क्षमता विकास
  • रक्षा कूटनीति
  • रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र।

DPC की रिपोर्ट रक्षा मंत्री को सौंपी जाती है तथा आगे के लिए स्वीकृति प्राप्त करना अपेक्षित होता है। मौजूदा नियोजन प्रक्रिया में रक्षा तैयारियों से संबंधित विभिन्न समस्याग्रस्त क्षेत्र विद्यमान हैं, जैसे कि:

  • अनके सुरक्षा चुनौतियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधनों की कमी
  • लक्ष्यों को प्राथमिकता प्रदान करना 
  • रक्षा मामलों के लिए एकीकृत दृष्टिकोण का अभाव
  • कार्यबल संचालित सैन्य स्वदेशीकरण के क्रम में नई प्रौद्योगिकीय प्रगति पर कम ध्यान केंद्रित करना
  • रक्षा खरीद मामलों के संबंध में स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता पर कम ध्यान देना
  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS), जिसकी कल्पना सशस्त्र बलों और रक्षा नियोजन तंत्र से संबंधित सभी आवश्यकताओं के लिए मध्यस्थ के रूप में की गई थी, परन्तु इसका गठन राजनीतिक कारणों के चलते नहीं किया गया था।

मौजूदा प्रणाली का उन्नयन DPC के रूप में हुआ है:

  • इसके द्वारा दीर्घकालिक रक्षा आवश्यकताओं संबंधी रणनीति निर्माण हेतु भारत की क्षमता को बढ़ाने के लिए अंतर विभागीय समन्वय का लाभ प्राप्त किया जाएगा।
  • DPC के पास अपने क्षेत्राधिकार से संबंधित डोमेन पर विशिष्ट ध्यान केन्द्रित करने हेतु चार उप-समितियां हैं।

DPC महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा और सैन्य लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से निर्धारित करने के साथ-साथ उपलब्ध संसाधनों के आधार पर रक्षा और सुरक्षा आवश्यकताओं को प्राथमिकता प्रदान करेगी। इसके अतिरिक्त यह उभरती सुरक्षा चुनौतियों, प्रौद्योगिकीय प्रगति और एक सुदृढ़ स्वदेशी रक्षा विनिर्माण आधार की स्थापना करने पर पर्याप्त ध्यान केन्द्रित करेगा। इसलिए, यह तर्क दिया जा सकता है कि DPC भारत की रक्षा तैयारियों को सुव्यवस्थित करने के लिए समय पर उठाया गया कदम है।

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