वामपंथी चरमपंथ (Left Wing Extremism)

भारत में वामपंथी चरमपंथ (LWE)

  • भारत में नक्सली विद्रोह का उद्भव 1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) द्वारा पश्चिम बंगाल के नक्सलबारी क्षेत्र में हुआ था।
  • यह संघर्ष देश के पूर्वी हिस्से में, विशेष तौर पर लाल गलियारे (रेड कॉरिडोर) के रूप में प्रसिद्ध विवादित क्षेत्र में केंद्रित है।
  • यह सरकार की कार्यप्रणाली में कठिन परिस्थितियां उत्पन्न करता है और जबरन नियंत्रण के अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के साधन के रूप में विकास में सक्रिय रूप से  व्यवधान उत्पन्न करता है। यह कानून का पालन करने वाले नागरिकों के मध्य भय उत्पन्न करता है।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि माओवादी विद्रोही और  सुरक्षा बल दोनों ही हिंसा के एक चक्र में संलग्न हैं, और इस चक्र के मध्य साधारण नागरिक फंसे हुए है, जिन्हें मृत्यु, आजीविका संबंधी क्षति हो रही है तथा डर और धमकी भरे माहौल में जीवन यापन करना पड़ रहा है।

LWE परिदृश्य में  सुधार

भारत द्वारा जिन मुख्य आंतरिक सुरक्षा  चुनौतियों का सामना किया जा रहा है, उनकी  सूची में वामपंथी चरमपंथ (LWE) या नक्सलवाद की समस्या शीर्ष स्थान पर है। परन्तु । विगत कुछ वर्षों में LWE परिदृश्य में काफी सुधार हुआ है।

  • LWE की हिंसक घटनाओं की कुल संख्या  2016 के 1048 से घटकर 2017 में 908 हो गई। संबंधित घटनाओं में होने वाली मृत्युओं में 2013 की तुलना में 2017 में 34% की  गिरावट आई है, जो सरकार के प्रयासों की सफलता को इंगित करती है।
  • 2013 की तुलना में, 2016 में LWE के कार्यकर्ताओं/नेतृत्व द्वारा आत्मसमर्पण में 411 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • सुरक्षा बल कर्मियों के दुर्घटना के शिकार होने के मामलों में 43% की कमी आई है।
  • हाल ही में, गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा रेड कॉरीडोर को पुनः अंकित किया गया है, जिसके अंतर्गत नक्सल से प्रभावितजिलों की संख्या 106 से घट कर 90 तक आ गई है, ये जिले 11 राज्यों में विस्तृत हैं और सर्वाधिक प्रभावित जिलों कीसंख्या 36 से 30 हो गई है।
  •  छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और बिहार को LWE से गंभीर रूप से प्रभावित घोषित किया गया है।
  •  जिलों को हटाने और नए जिलों को शामिल करने का प्रमुख मापदंड, उनमें होने वाली “हिंसा की घटनाएं” थीं।

हिंसा में आई गिरावट के कारण

  •  LWE प्रभावित राज्यों में सुरक्षा बलों की वृहद उपस्थिति।
  •  गिरफ्तारी, आत्मसमर्पण और नक्सलवादी गतिविधियों को त्याग के कारण कार्यकर्ताओं/नेतृत्व की संख्या में कमी
  • सरकार द्वारा चलाए जा रहे पुनर्वास कार्यक्रम।
  • प्रभावित क्षेत्रों में विकास योजनाओं की बेहतर निगरानी।
  •  निरंतर संचालित विद्रोही गतिविधियों के कारण माओवादी कार्यकर्ताओं में थकान।
  •  धन, हथियार और गोला बारूद की कमी।

हालांकि, LWE द्वारा नए राज्यों को लक्षित किया जा रहा है तथा इसके द्वारा कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के ट्राई-जंक्शन को अपना बेस बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

वामपंथी चरमपंथ के प्रसार के कारण

भूमि संबंधित कारण

  • भूमि हदबंदी कानून (land ceiling laws) का अपवंचन
  • भू -स्वामित्व व्यवस्था की विशिष्ट प्रणाली का विद्यमान होना (हदबंदी कानून के अंतर्गत विशेष रियायत)।
  • समाज के प्रभावशाली वर्गों द्वारा सरकार और सामुदायिक भूमि (यहां तक कि जल निकायों) का अतिक्रमण और इन पर कब्जा करना।
  • भूमिहीनों (कृषकों) द्वारा खेती की गई सार्वजनिक भूमि पर अधिकार (शीर्षक) का अभाव।
  • पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों को जनजातीय भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगाने वाले कानूनों का अप्रभावी क्रियान्वयन।
  • पारंपरिक भूमि अधिकारों को वैधानिक न बनाया जाना।

शासन संबंधित कारण

  • भ्रष्टाचार तथा प्राथमिक स्वास्थ्य उपचार और शिक्षा सहित आधारभूत सार्वजनिक सेवाओं के संबंध में निम्नस्तरीय एवं अप्रभावी प्रावधान।
  • अयोग्य, अप्रशिक्षित और अत्यल्प प्रेरित सार्वजनिक कर्मचारी जो प्रायः तैनाती के स्थान से अनुपस्थित रहते है।
  •  पुलिस द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग और कानून के मानदंडों का उल्लंघन।
  • विकृत चुनावी राजनीति और स्थानीय सरकारी संस्थानों का असंतोषजनक रूप से कार्य करना।
  • वन अधिकार अधिनियम को वर्ष 2006 में लागू किया गया था। परन्तु वन नौकरशाही का इसके प्रति निरंतर विरोध बना हुआ है।

विस्थापन और बलात् निष्कासन

  • पारंपरिक रूप से जनजातियों द्वारा उपयोग की जाने वाली भूमि से निष्कासित किया जाना।
  • पुनर्वास की उचित व्यवस्था के बिना खनन, सिंचाई  और बिजली परियोजना के कारण विस्थापन।
  • उचित मुआवजे या पुनर्वास के बिना ‘सार्वजनिक  उद्देश्यों के लिए वृहद् स्तर पर भूमि अधिग्रहण।

आजीविका संबंधित कारण

  •  खाद्य सुरक्षा का अभाव – सार्वजनिक वितरण प्रणाली (जो सामान्यतः गैर-कार्यात्मक होती है) में भ्रष्टाचार।
  • पारंपरिक व्यवसायों में व्यवधान और वैकल्पिक कार्य अवसरों की कमी।
  • सार्वजनिक संपत्ति संसाधनों में पारंपरिक अधिकारों से वंचित करना।

LWE प्रभावित राज्यों के लिए आरम्भ की गई महत्वपूर्ण पहलें:

पुलिस’ और ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ राज्य सूची का विषय है, वामपंथी चरमपंथ की चुनौती का सामना करने की प्राथमिक जवाबदेही राज्य सरकार की है। हालांकि, गृह मंत्रालय और अन्य केंद्रीय मंत्रालय विभिन्न योजनाओं के माध्यम से राज्य सरकारों के सुरक्षा प्रयास के लिए अनुपूरक का कार्य कर रहे हैं, जो निम्न है :

  •  वर्ष 2015 से गृह मंत्रालय द्वारा लागू राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना वामपंथी चरमपंथ से निपटने के लिए सुरक्षा, विकास,स्थानीय समुदायों के अधिकारों और हकदारी को सुनिश्चित करने के क्षेत्रों में एक बहुपक्षीय रणनीति है।

राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना 2015

  • सुरक्षा संबंधी उपायों में CAPF Bns, हेलीकॉप्टर, UAVs, सुदृढ़ पुलिस स्टेशनों का निर्माण, राज्य पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिए धन, हथियार और उपकरण, प्रशिक्षण सहायता, खुफिया जानकारी साझा करके LWE प्रभावित राज्यों को सहायता आदि शामिल है।
  • विकास संबंधी उपाय: केंद्र सरकार की प्रमुख योजनाओं के अतिरिक्त LWE प्रभावित क्षेत्रों (विशेष रूप से 35 सर्वाधिक प्रभावित जिलों में) के विकास हेतु कई पहल की गई हैं। इनमें सड़कों का विकास, मोबाइल टावरों की स्थापना, कौशल विकास, बैंकों व डाकघर के नेटवर्क में सुधार तथा स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाओं से संबंधित पहलें सम्मिलित हैं।
  • अधिकार और अधिकारिता संबंधी उपाय

पुलिस आधुनिकीकरण योजना 2017-20 के अंतर्गत प्रमुख उप -योजनाएँ

सुरक्षा संबंधित व्यय (SRE) योजना (2017 में अनुमोदित):

  • इसका उद्देश्य प्रभावशाली ढंग से LWE समस्या का सामना करने के लिए LWE प्रभावित राज्यों की क्षमता का
    सुदृढीकरण करना है।
  • इस योजना के अंतर्गत, केंद्र सरकार 106 जिलो में LWE की हिंसा में मारे गए नागरिकों/सुरक्षा बलों के परिवारों को अनुग्रह भुगतान, सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण एवं परिचालन आवश्यकताओं की आपूर्ति, आत्मसमर्पित LWE कैडर को मुआवजा, सामुदायिक पुलिस व्यवस्था, ग्रामीण सुरक्षा समितियों के लिए सुरक्षा संबंधी अवसंरचना और प्रचार
    सामग्री आदि के सन्दर्भ में किए गए सुरक्षा संबंधी व्यय का पुनर्भुगतान करेगी।

35 सर्वाधिक LWE प्रभावित जिलों के लिए विशेष केंद्रीय सहायता (SCA), इसका लक्ष्य सार्वजनिक बुनियादी ढांचे
और सेवाओं में उभरती प्रकृति के महत्वपूर्ण अंतराल को भरना है।

LWE प्रभावित राज्यों में 250 सुदृढ़ पुलिस स्टेशनों के निर्माण सहित विशेष आधारभूत संरचना योजना (SIS)। इस
योजना का उद्देश्य राज्यों के सुरक्षा तंत्र को सुदृढ़ करके राज्यों का क्षमता निर्माण करना है।

LWE प्रबंधन हेतु केंद्रीय एजेंसियों की सहायता योजना: LWE प्रभावित उन राज्यों में जिनकी क्षमता सीमित है; CAPFs, कोबरा (कमांडो बटालियन फॉर रिजोल्यूट एक्शन), भारतीय वायु सेना जैसी केन्द्रीय एजेंसियों को LWE के विरुद्ध ऑपरेशन के लिए सहायता प्रदान की जाती है।

समाधान (SAMADHAN)

यह LWE से निपटने के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक नीतियों की रूपरेखा तैयार करने के लिए गृह मंत्रालय की एक रणनीति है। इनमें समाविष्ट हैं: ।

  • S- Smart leadership (कुशल नेतृत्व )
  • A- Agressive strategy (आक्रामक रणनीति)
  • M- Motivation and training (प्रोत्साहन और प्रशिक्षण)
  • A- Actionable Intelligence (कार्यवाही योग्य आसूचना)
  • D – डैश बोर्ड आधारित प्रमुख प्रदर्शन संकेतक’ (Key Performance Indicators : KPI) और ‘प्रमुख परिणाम क्षेत्र(Key Result Areas : KRA)
  • H- Harnessing technology (प्रौद्योगिकी का दोहन)
  • A- Action plan for each theatre (प्रत्येक मोर्चे के लिए कार्ययोजना)
  • N- No access to financing (वित्तपोषण तक पहुंच रोकना)

 सिविक एक्शन प्रोग्राम (CAP)

सिविक एक्शन प्रोग्राम (CAP) को 2010-11 से कार्यान्वित किया जा रहा है। इसका लक्ष्य व्यक्तिगत संपर्क और स्थानीय
लोगों के समक्ष सुरक्षा बलों का मानवीय पक्ष प्रस्तुत करके सुरक्षा बलों और स्थानीय लोगों के बीच के अंतराल को समाप्त करना है। इस योजना के अंतर्गत, LWE प्रभावित क्षेत्रों में CAPFs को धन प्रदान किया जाता है, जिससे उनके द्वारा
स्थानीय लोगों के कल्याण हेतु विभिन्न नागरिक गतिविधियों का संचालन किया जा सके।

मीडिया प्लान स्कीम: माओवादी के तथाकथित निर्धन-अनुकूल क्रांति के दुष्प्रचार द्वारा निर्दोष जनजातियों/स्थानीय लोगों
को गुमराह करने और प्रलोभन का प्रत्युत्तर देना।

अवसंरचना विकास पहल

  •  सड़क आवश्यकता योजना-1 (Road requirement plan-1: RRP-1) इसका संचालन सड़क परिवहन और राजमार्ग
    मंत्रालय द्वारा वर्ष 2009 से LWE प्रभावित जिलों में सड़क कनेक्टिविटी में सुधार के लिए किया गया है। इसके द्वारा 8 राज्यों के 34 LWE प्रभावित जिलों में सड़क कनेक्टिविटी में सुधार किया गया है। इसमें LWE प्रभावित राज्यों में 5,422 किमी लंबी सड़क और 08 महत्वपूर्ण पुलों के निर्माण की परिकल्पना की गई है।
  • LWE प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क संपर्क योजना (RRP-2): इसे वर्ष 2016 में 9 LWE प्रभावित राज्यों के 44 जिलों में सड़क कनेक्टिविटी में और अधिक सुधार के लिए अनुमोदित किया गया था। ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) इस
    परियोजना के लिए नोडल मंत्रालय है।
  •  LWE मोबाइल टॉवर परियोजना LWE क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी में सुधार के लिए निर्मित की गई है।
  •  USOF के अंतर्गत परियोजनाओं का अनुमोदन – केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा LWE प्रभावित राज्यों के 96 जिलों में
    मोबाइल सेवा प्रदान करने के लिए यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फण्ड (USOF) समर्थित योजना को मंजूरी दी गई है।
    इससे न केवल सुरक्षा कर्मियों अपितु यहाँ के स्थानीय निवासियों से भी संपर्क स्थापित करने में मदद मिलेगी।
  •  राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO) द्वारा मानव रहित वायुयान (UAVs) प्रदान करके नक्सली विरोधी । संचालन में सुरक्षा बलों की सहायता की जा रही है।

 कौशल विकास से संबंधित योजनाएं

  •  पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना के अंतर्गत ‘रोशनी’ एक विशेष पहल है, जिसमें 27 LWE प्रभावित
    जिलों से निर्धन ग्रामीण युवाओं के प्रशिक्षण और नियोजन की परिकल्पना की गई है।
  •  वर्ष 2011-12 से LWE प्रभावित 34 जिलों में कौशल विकास कार्यक्रम का कार्यान्वयन किया जा रहा है। इसका उद्देश्य
    LWE प्रभावित जिलों में ITIs और कौशल विकास केंद्र की स्थापना करना है।

आत्मसमर्पण और पुनर्वास संबंधी नीतियां:

इस सन्दर्भ में राज्य सरकारों की अपनी नीतियां है, जबकि केंद्र सरकार LWE प्रभावित राज्यों के लिए सुरक्षा संबंधित व्यय (SRE) योजना के माध्यम से राज्य सरकारों के प्रयासों को पूरकता प्रदान करती है। हथियार/गोला बारूद के साथ आत्मसमर्पण करने पर अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है। आत्मसमर्पण करने वालों को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है और 36 महीने की अधिकतम अवधि के लिए प्रतिमाह वेतन भी प्रदान किया जाता है।

संस्थागत उपाय

  • ब्लैक पैंथर कॉम्बैट फ़ोर्स – यह छत्तीसगढ़ के लिए तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में ग्रेहाउंड यूनिट की तर्ज पर गठित किया
    गया एक विशेष नक्सल विरोधी युद्ध बल है
  •  बस्तरिया बटालियन – यह एक नवगठित CRPF बटालियन है जिसमें छत्तीसगढ़ के चार सर्वाधिक नक्सल प्रभावित जिलों से 534 से अधिक जनजातीय युवाओं के साथ-साथ महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व (महिलाओं के लिए सरकार की 33% आरक्षण की नीति के अनुरूप) प्रदान किया गया है। इस प्रकार यह अर्द्ध सैनिक बलों की प्रथम संयुक्त बटालियन है
  • LWE से संबंधित महत्वपूर्ण मामलों की जांच के लिए NIA में एक अलग विभाग बनाने के लिए प्रक्रिया भी शुरू की गई
  • नक्सलियों के वित्तपोषण की जांच हेतु बहु-विषयक समूह- केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा IB, NIA, CBI, ED और DRIऔर केंद्रीय एजेंसियों के विभिन्न अधिकारियों के समूह और राज्य पुलिस को समन्वित कर एक बहु-विषयक समूह का गठन किया है ताकि माओवादियों के लिए वित्तीय प्रवाह को रोका जा सके।

शिक्षा के माध्यम से युवाओं को रचनात्मक रूप से शामिल करना: दंतेवाड़ा जिले में शैक्षणिक केंद्र और आजीविका केंद्र की सफलता को देखते हुए, सरकार द्वारा अब सभी जिलों में ‘आजीविका कॉलेज’ नाम से आजीविका केंद्र खोले गये हैं।

अन्य उपाय: वित्तीय समावेशन को सुनिश्चित करने के लिए बैंक की और अधिक शाखाएं खोली गई हैं। बस्तर के तीन दक्षिणी जिलों में प्रारंभ किए गए अखिल भारतीय रेडियो स्टेशन अब मनोरंजन विकल्पों को बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय कार्यक्रमों को प्रसारित करेंगे। बस्तर में नई रेल सेवा के परिचालन से काष्ठ कलाकृतियों और धातु की घंटियों के लिए एक नए बाजार कासृजन होगा।

LWE के समाधान से संबंधित मुद्दे

  •  समय-समय पर स्थापित मानक ऑपरेटिंग प्रक्रियाओं के प्रति लापरवाही से सुरक्षा कर्मियों के मूल्यवान जीवन की क्षति हो जाती है। उदाहरणस्वरुप सुकमा हमले में कम से कम 25 CRPF कर्मियों की जान गई थी।
  • कुछ सुभेद्यतायें भी विद्यमान हैं, जैसे- निम्नस्तरीय योजना, अपर्याप्त संख्या, अपर्याप्त इंटेलिजेंस बैकअप इत्यादि।
  • संरचनात्मक कमी और अपूर्णताएँ, जैसे- CRPF में लगभग प्रत्येक वरिष्ठ पद पर आईपीएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति तथा बल के भीतर के अधिकारियों के दशकों के अनुभव को अनदेखा किया जाना।
  • पुलिस बल के क्षमता निर्माण के मामले में निष्क्रियता, उदाहरण स्वरुप छत्तीसगढ़ में, राज्य पुलिस में विभिन्न रैंकों में लगभग 10,000 रिक्तियां हैं और 23 स्वीकृत पुलिस स्टेशनों की स्थापना की जानी अभी बाकी है।
  • LWE गुरिल्ला युद्ध में भली-भांति प्रशिक्षित है।
  • बारूदी सुरंगों का पता लगाने के लिए अप्रभावी तकनीक का प्रयोग: हाल ही में छत्तीसगढ़ के सुकमा में नौ CRPF जवानों की मौत हो गई थी। जब एक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) को ट्रिगर करके माइन प्रोटेक्टेड वाहन उड़ा दिया गया था। वर्तमान तकनीक सड़क के नीचे गहराई में बिछाई गई बारूदी सुरंगों का पता लगाने में असमर्थ है।
  • प्रौद्योगिकी अधिग्रहण में विलंब: उदाहरण के लिए,157 स्वीकृत माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल्स (MPVs) में से अभी तक CAPFs को OFB द्वारा केवल 13 की आपूर्ति की गई है।
  • गैर सरकारी संगठनों (NGOs) के माध्यम से वित्तपोषण: प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी जांच का विस्तार करते हुए उन NGOs को अपनी जाँच के दायरे में लिया है, जिन पर राज्य में नक्सल गतिविधियों के वित्तपोषण के मामले में संदेह है। धन का शोधन: बिहार और झारखंड में कार्यरत नक्सली नेताओं द्वारा चल और अचल संपत्तियों के अधिग्रहण के द्वारा वसूले गए
  • धन का शोधन किया जा रहा है।

आगे की राह

  •  छत्तीसगढ़ पुलिस मॉडल का अनुसरण: चूंकि छत्तीसगढ़ पुलिस को बस्तर में माओवादियों से निपटने का अनुभव प्राप्त है, अब वे आसूचना और अपनी स्थानीय उपस्थिति को सुदृढ़ करने के लिए सीमावर्ती राज्यों के साथ समन्वय स्थापित कर रहे हैं। इस तरह के उपायों को नए क्षेत्रों में भी अपनाया जा सकता है, जहां माओवादी स्वयं को स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं।
  • इस क्षेत्र में जनजातियों को अलगाव की ओर अग्रसर करने वाली समस्या के मूल कारण को समाप्त करना। अब सड़कों के निर्माण, संचार टावरों को स्थापित करने, जनजातियों की प्रशासनिक और राजनीतिक पहुंच में वृद्धि, विभिन्न सरकारी योजनाओं तक उनकी पहुंच में सुधार पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए।
  • केंद्र-राज्य सहयोग: केंद्र और राज्यों को उनके समन्वित प्रयासों को जारी रखना चाहिए, जहां केंद्र को राज्य पुलिस बलों के नेतृत्व में सहायक की भूमिका निभानी चाहिए।
  • तकनीकी उपायों को अपनानाः सुरक्षा कर्मियों के जीवन को होने वाली क्षति को कम करने के लिए माइक्रो या मिनी-UAVs या छोटे ड्रोन का उपयोग करना।
  • परस्पर विश्वास का निर्माण: माओवादियों के विरुद्ध मनोवैज्ञानिक युद्ध जीतना अभी भी एक अपूर्ण कार्य है। इस विश्वास की कमी को दूर करने के लिए, ग्रामीणों के विकास के अधिकार की प्राप्ति हेतु सिविल सोसाइटी को सरकार के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए।
  • जागरूकता सृजन: सरकार द्वारा जागरूकता और पहुँच (आउटरीच) कार्यक्रम एवं समावेशी विकास कार्यक्रम आरंभ किए जाने चाहिए।
  • वन अधिकारः अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 को प्रभावी रूप से लागू किया जाना चाहिए।
  • वित्तीय सशक्तिकरण: ‘स्व सहायता समूहों (SHGs)’ के गठन को प्रोत्साहित करने वाले उपायों को अपनाना चाहिए, जिससे क्रेडिट और विपणन तक पहुंच सुनिश्चित हो और वंचित वर्गों का सशक्तिकरण किया जा सके।
  • धन आपूर्ति को बाधित करना: राज्य पुलिस द्वारा एंटी-इक्स्टॉर्शन और एंटी मनी लॉन्डरिंग सेल की स्थापना के माध्यम से अवैध खनन/वन ठेकेदारों एवं ट्रांसपोर्टरों तथा चरमपंथियों के बीच सांठ-गांठ समाप्त किए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि इस सांठ-गांठ के द्वारा ही चरमपंथी आंदोलन के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
  • अवसंरचनात्मक विकास: चरमपंथियों द्वारा अवसंरचना परियोजनाओं का दृढ़ता से विरोध किया जाता है या वे स्थानीय ठेकेदारों से धन उगाही करते हैं। इसलिए, बड़े पैमाने पर आधारभूत परियोजनाओं के कार्यान्वयन, विशेष रूप से सड़क नेटवर्क के निर्माण के कार्यभार को अस्थायी उपाय के तौर पर स्थानीय ठेकेदारों के स्थान पर सीमा सड़क संगठन जैसी विशेषीकृत सरकारी एजेंसियों को सौंपा जा सकता है।
  • हिंसक वामपंथी चरमपंथ के दुष्प्रचार के प्रति सुभेद्य वर्गों के मध्य असंतोष को नियंत्रित करने के लिए संवैधानिक और सांविधिक सुरक्षा उपायों, विकास से संबंधित योजनाओं और भूमि सुधार पहलों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
  • विकास के साथ-साथ प्रत्यक्ष कार्यवाही की सुरक्षा बलों की द्वि-स्तरीय नीति के परिणाम परिलक्षित हो रहे हैं – सरकार ने सर्वाधिक प्रभावित जिलों को पहले से ही चिन्हित कर लिया है और वह यहाँ पर माओवादियों के विस्तार को रोकने के लिए दृढ़ संकल्पित है। सक्रिय पुलिस और समग्र विकास के प्रतिमान के द्वारा भविष्य में इससे भी अधिक महत्वपूर्ण परिणाम सुनिश्चित किए जा सकते हैं।

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