हिन्द महासागर क्षेत्र में वास्तविक सुरक्षा : भारत की आकांक्षा

प्रश्न: हिन्द महासागर क्षेत्र में वास्तविक सुरक्षा प्रदाता बनने की भारत की आकांक्षा के आलोक में, इसके द्वीपीय प्रदेशों के महत्व की चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • वास्तविक सुरक्षा प्रदाता को परिभाषित करते हुए इसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • तत्पश्चात, वर्तमान स्थिति का उल्लेख करते हुए वर्णित कीजिए कि किस प्रकार हिन्द महासागर क्षेत्र बहुध्रुवीय एवं जटिल बनता जा रहा है।
  • इसके पश्चात भारत की रक्षा संरचना के एक महत्वपूर्ण भाग के रूप में इसके द्वीपों के महत्त्व की चर्चा कीजिए।
  • इस संदर्भ में उठाए गए कुछ क़दमों का संक्षेप में उल्लेख करते हुए, भावी पहलों की चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारत का द्वीपीय क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है, जिसमें बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा अरब सागर में स्थित लक्षद्वीप द्वीपीय समूह शामिल हैं। भारत के द्वीपीय क्षेत्रों के साथ-साथ इसकी भौगोलिक अवस्थिति, भारत को हिंद महासागर में एक महत्वपूर्ण स्थिति प्रदान करती है।

इसके अतिरिक्त, भारत द्वारा कई हिंद महासागरीय देशों की नगण्य सैन्य क्षमताओं के साथ-साथ स्वयं की कई सुरक्षा संबंधी अनिवार्यताओं जैसे कि समुद्री डकैती, तस्करी, चीन से बढ़ती प्रतिस्पर्धा इत्यादि के कारण इस क्षेत्र में वास्तविक सुरक्षा प्रदाता के रूप में स्वयं को स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

भारत का, स्वयं को एक वास्तविक सुरक्षा प्रदाता के रूप में स्थापित करने का उद्देश्य न केवल अपने बल्कि अन्य पड़ोसी देशों की, उन्हें अपनी क्षमता में विस्तार में सहायता प्रदान करके, रक्षा प्रयासों के लिए सैन्य सहायता प्रदान करके या किसी प्रतिकूल स्थिति से निपटने हेतु वहां अपने सैन्य बलों की तैनाती करके, सुरक्षा संबंधी अवरोधों का निवारण करना है।

इस संदर्भ में, निम्नलिखित कारणों से भारत का विशाल द्वीपीय क्षेत्र महत्वपूर्ण हो जाता है:

  •  हिंद महासागरीय क्षेत्र में विस्तारित पहुंच प्राप्त करना: लक्षद्वीप तथा अंडमान और निकोबार के द्वीपीय क्षेत्रों के कारण भारत को लाखों वर्ग किलोमीटर के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) पर अधिकार प्राप्त हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप भारत को लगभग समस्त हिंद महासागर क्षेत्र में पहुंच प्राप्त होती है।
  • बेहतर निरीक्षण और निगरानी: मलक्का जलडमरूमध्य से अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह की निकटता, समुद्री व्यापारिक मार्गों (Sea lines of communication: SLOC) को सुरक्षित करने के लिए इसके रणनीतिक महत्व में वृद्धि करती है। यह भारत को प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग लेन की मेजबानी करने वाले क्षेत्र में सैन्य और आर्थिक गतिविधियों का सूक्ष्म निरीक्षण करने हेतु सक्षम बनाता है।
  • सैन्य संचालन एवं प्रशिक्षण हेतु अपेक्षाकृत सुरक्षित: ये क्षेत्र भारत के संभावित प्रत्यक्ष रूप से विवादित क्षेत्र से दूर स्थित होने के कारण सैन्य अड्डों की स्थापना हेतु सुरक्षित स्थल हैं। ये क्षेत्र भारतीय सैन्य बलों के द्वारा संचालित किए जाने वाले नियमित सैन्य अभ्यासों हेतु भी सर्वोत्तम स्थल हैं।
  • देश की सुरक्षा क्षमताओं में वृद्धि: भारत की मुख्य भूमि से लगभग 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इन द्वीपों पर फॉरवर्ड एयर बेस की स्थापना से, भारतीय वायुयानों के युद्धक क्षेत्र (कॉम्बैट रेडियस) में विस्तार होगा।
  • वैश्विक शक्ति का प्रदर्शन: भारत के द्वीपीय क्षेत्र को देश का विस्तारित क्षेत्र माना जाता है। भारत इन द्वीपों के माध्यम से हिन्द महासागर क्षेत्र में शक्ति प्रदर्शन कर सकता है तथा इसका उपयोग किसी भी बाहरी हस्तक्षेप से निपटने हेतु किया जा सकता है।

हालांकि, वास्तविक सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत द्वारा अपनी क्षमताओं में वृद्धि करने के लिए विभिन्न कदम उठाए गए हैं, जैसे कि इंटीग्रेटेड ट्राई-सर्विस थिएटर कमांड का गठन, द्वीप विकास एजेंसी की स्थापना, SAGAR (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) को क्रियान्वित करना इत्यादि।

इसके अतिरिक्त, भारत की महासागरीय कूटनीति में अपने द्वीपीय देशों को प्रमुखता प्रदान करने हेतु अन्य कदम उठाने की भी आवश्यकता है। इसके लिए दोनों ही द्वीपों पर अपनी क्षमताओं में सुधार करने की आवश्यकता है जैसे कि निर्जन द्वीपों से कनेक्टिविटी में सुधार तथा सतर्कता में वृद्धि करना, वहां पर सैन्य अवसंरचना को सुदृढ़ करना, तटीय सुरक्षा योजना के कार्यान्वयन में सुधार करना, अंडमान क्षेत्र में एकीकृत कमान के अंतर्गत विभिन्न मुद्दों का समाधान करना आदि। ऐसे कदम भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में स्वयं को एक प्रभावशाली और जिम्मेदार नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करने में सहायता करेगा।

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