भारत में पार्टिसिपेटरी बजटिंग : चुनौती और समाधान

प्रश्न: पार्टिसिपेटरी बजटिंग के विचार और भारत के लिए इसके महत्व की विवेचना कीजिए। साथ ही, भारत में पार्टिसिपेटरी बजटिंग को मुख्यधारा में लाने के समक्ष आने वाली चुनौतियों की पहचान कीजिए।

दृष्टिकोण

  • पार्टिसिपेटरी बजटिंग की संक्षिप्त अवधारणा प्रस्तुत करते हुए भारत के लिए इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।
  • भारत में इसे मुख्य धारा में लाने के समक्ष विद्यमान विभिन्न चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
  • आवश्यक उपायों का सुझाव देते हुए निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

इंटरनेशनल बजट प्रोग्राम (IBP) के अनुसार, पार्टिसिपेटरी बजटिंग वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा नागरिक अंतिम बजट के लिए सार्वजनिक संसाधनों के वितरण पर विचार-विमर्श और वार्ता करते हैं।

यह दो भिन्न किंतु परस्पर संबद्ध आवश्यकताओं- राज्य के प्रदर्शन में सुधार और लोकतंत्र की गुणवत्ता में वृद्धि को संबोधित करता है। पार्टिसिपेटरी बजट कार्यक्रम “सिटिज़नशिप स्कूल” के रूप में भी कार्य करता है, जो नागरिकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के साथ-साथ सरकार के उत्तरदायित्व को बेहतर ढंग से समझने के लिए सशक्त बनाता है। पार्टिसिपेटरी बजट कार्यक्रमों के विचार को व्यवस्थित रूप से अपनाने के लिए निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए :

  • वर्तमान में जारी नीतिगत विचार-विमर्श में योगदान देने में इच्छुक और सक्षम सिविल सोसाइटी।
  • सामान्यतः सहयोगात्मक राजनीतिक वातावरण जो विधि निर्माताओं के हस्तक्षेप से पार्टिसिपेटरी बजटिंग को सुरक्षित करे; और
  • नागरिकों द्वारा चयनित परियोजनाओं के वित्तीयन हेतु वित्तीय संसाधन।

भारत के लिए पार्टिसिपेटरी बजटिंग का महत्व :

  • पार्टिसिपेटरी बजट निर्माण प्रक्रिया नागरिकों को सशक्त बनाने के साथ-साथ समावेशी नीति निर्माण और बजटीय आबंटन को सक्षम बनाती है क्योंकि इस प्रक्रिया में समाज के हाशिए पर स्थित वर्गों की भी भागीदारी होती है।
  • इसके परिणामस्वरूप अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता आ सकती है,क्योंकि नागरिक अधिकारियों को उत्तरदायी ठहराने के साथ ही अभिशासन की प्रक्रिया में अधिक ज्ञान और अनुभव के साथ एक नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाते हैं।
  • यह स्वच्छ जल, विद्युत, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक परिवारों की पहुंच सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
  • यह नागरिकों को सरकारी तौर-तरीकों के बारे में जानने और विचार-विमर्श करने, चर्चा करने एवं बजट आवंटन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करने का अवसर देता है।
  • जैसा कि विश्व बैंक द्वारा रेखांकित किया गया है, इसमें सरकारी अक्षमता को सीमित करने और क्लाइंटेलिज्म (व्यक्तिगत गुण के स्थान पर व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित राजनीतिक व्यवस्था), संरक्षण और भ्रष्टाचार को रोकने की क्षमता है।

भारत में पार्टिसिपेटरी बजटिंग को मुख्य धारा में लाने में चुनौतियां :

  • लोगों के मध्य शिक्षा और जागरुकता की कमी, विशेष रूप से बजट और मुख्य शब्दावली की विभिन्न अवधारणाओं के संबंध में, उनकी प्रभावी भागीदारी में प्रमुख बाधा बनी हुई है।
  • ढांचागत चुनौतियों जैसे कि डिजिटल डिवाइड के कारण समाज के कुछ क्षेत्रों और वर्गों की भागीदारी बाधित हो सकती है।
  • निम्न कर आधार और राजस्व के अल्प स्रोत एक चुनौती बन सकते हैं क्योंकि इससे जनसामान्य की मांगों को पूरा करने में परेशानी आ सकती है।  इससे बजटिंग सरकार की विवेकाधीन प्रक्रिया के रूप में स्थापित हो सकती है।
  • क्षमता का अभाव: कई सार्वजनिक संस्थानों में नागरिकों को संलग्न करने के लिए आवश्यक संसाधनों और क्षमता की कमी होती है।
  • असफलता का भय: बजटीय प्रक्रिया में विचारों की विविधता और अनावश्यक देरी के कारण इस बजटीय प्रकिया में भागीदारी की प्रकृति ही इसे आलोचना के लिए सुभेद्य बना देती है।

इस संदर्भ में, भारत द्वारा ब्राजील के पार्टिसिपेटरी बजटिंग के अनुभवों से सीख ली जा सकती है और प्रक्रिया के कार्यान्वयन में आगे बढ़ा जा सकता है। साथ ही एक सुदृढ़ पार्टिसिपेटरी प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराके चुनौतियों से निपटा जा सकता है। इसने शासन में सुधार तथा नागरिकों के सशक्तिकरण के माध्यम से ब्राजील में लोकतंत्र की गुणवत्ता को बढ़ाया है।

ये चुनौतियाँ लोगों को जुटाने और उन्हें संगठित करने के लिए मौजूदा नागरिक नेटवर्क का उपयुक्त दोहन करने की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। अतः दिशा फाउंडेशन जैसे गैर सरकारी संगठनों (NGOs) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि वे हाशिए पर स्थित वर्गों के परिप्रेक्ष्य में बजट विश्लेषण के संदर्भ में कार्य कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, जागरुकता निर्माण और बजट संबंधी ज्ञान को आंतरिक क्षेत्रों तक भी पहुँचाए जाने की आवश्यकता है।

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