हरित क्रांति के प्रतिप्रभाव: पंजाब में उग्रवादी हिंसा का प्रस्फुटन

प्रश्न: हरित क्रांति के प्रतिप्रभाव, पंजाब की समस्या को हल करने में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप की प्रकृति एवं राजनीति के बढ़ते सांप्रदायिकरण के परिणामस्वरूप पंजाब में उग्रवादी हिंसा का प्रस्फुटन हुआ। सविस्तार वर्णन कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • पंजाब में उग्रवाद का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • राज्य में उग्रवाद के प्रस्फुटन में तीनों कारकों की भूमिका को समझाइए।
  • राज्य के वर्तमान परिदृश्य पर टिप्पणी के साथ निष्कर्ष दीजिए।

उत्तरः

1970 से 1990 के दशक के आरंभ तक लगभग डेढ़ दशक की अवधि के दौरान पंजाब अभूतपूर्व उग्रवादी हिंसा का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। यह कई कारकों का सम्मिलित परिणाम था।

यथा: राजनीति का सांप्रदायिकरण: सांप्रदायिक पंचाट ने स्वतंत्रता से पूर्व ही सांप्रदायिकता के बीज बो दिए थे। हालांकि, स्वतंत्रता के शीघ्र पश्चात् राजनीति का सांप्रदायिकरण तीव्र हो गया। इसके निम्नलिखित परिणाम थे:

  • सिख बहुलता के साथ सिख सुबह (Sikh Subah) की मांग
  • आधिकारिक भाषा के रूप में केवल गुरुमुखी लिपि में पंजाबी भाषा का प्रयोग

1966 में भाषाई आधार पर एक पृथक राज्य के रूप में पंजाब के निर्माण के पश्चात् कुछ राजनीतिक वर्गों ने चुनावी लाभ हेतु अपनी राजनीति में सांप्रदायिक तत्वों की तीव्रता में वृद्धि करना प्रारम्भ कर दिया। अलगाववादी प्रवृत्तियाँ धारण कर तथा एक पृथक धर्मशासित राज्य की मांग करते हुए उन्होंने पंजाब की नदियों के जल बंटवारे और चण्डीगढ़ को पंजाब को हस्तांतरित करने समेत विभिन्न धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मांगों का द्वेषपूर्ण अभियान शुरू किया।

कालांतर में, आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का कार्यान्वयन सबसे प्रमुख मांगे बत गई। इस सांप्रदायिक परिदृश्य से अधिक अतिवादी तत्व उभरे, जिन्होंने उग्रवाद को प्रश्रय दिया। ऐसे में उन्हें प्रतिस्पर्धी राजनीति के कारण कुछ राजनीतिक वर्गों द्वारा समर्थन भी प्राप्त हुआ।

हरित क्रांति: इसके कारण यंत्रीकृत कृषि की शुरुआत हुई, किंतु जनसंख्या का एक बड़ा भाग इसके लाभों से वंचित रह गया। इसके अतिरिक्त, इसने छोटे किसानों और ग्रामीण मजदूरों की तुलना में केवल समृद्ध बड़े भूस्वामियों को ही लाभ पहुंचाया, जिससे पहले से विद्यमान वर्ग विभाजन और अधिक बढ़ गया। ऐसे में बेरोजगार शहरी युवाओं और किसानों ने भिंडरावाले जैसे कट्टरपंथी नेताओं की ओर रुख किया तथा बेरोजगार ग्रामीण युवा और मजदूर उग्रवाद की ओर आकर्षित होकर उसका मुख्य आधार बने।

केंद्र द्वारा हस्तक्षेप: प्रारंभ में, केंद्र एक पृथक पंजाब राज्य की मांगों पर ध्यान नहीं देता था, किंतु जब आंदोलन अधिक तीव्र हुआ, तो इसने पूर्ववर्ती पूर्वी पंजाब राज्य को पंजाब और हरियाणा में विभाजित कर दिया। तब तक इस मुद्दे को लेकर सांप्रदायिकता की जड़ें गहरी हो चुकी थीं। भिंडरावाले जैसे नेताओं के नेतृत्व में उग्रवाद का उदय हुआ, जिसके परिणामस्वरूप राजनेताओं, अधिकारियों, पुलिसकर्मियों, हिंदू और उदारवादी सिखों पर आतंकवादी हमले हुए और इसके पश्चात् गुरुद्वारों पर कब्जे हुए।

अकाली दल के द्वंद्वपूर्ण रवैये और केंद्र की अनिर्णय की स्थिति ने उग्रवाद को प्रोत्साहन दिया। अंततः जब स्थिति, विस्फोटक हो गई, तब राज्य के हस्तक्षेप को स्थगित नहीं किया जा सका। ऐसे में स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984) की शुरुआत की गयी। सिखों ने इसे अपने धर्म पर हमला माना और इसने उनके मध्य अत्यधिक असंतोष उत्पन्न किया।

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के कारण विशेषकर दिल्ली और उत्तर भारत के कुछ भागों में सिख विरोधी दंगे हुए। अंत में, राजीव-लोंगोवाल समझौते (1985) का कार्यान्वयन न होने, पाकिस्तान के हस्तक्षेप को प्रतिबंधित करने में विफल रहने, पंजाब की सांप्रदायिकता को कम करने में राज्य सरकार की असमर्थता और इसके पश्चात् सरकार गिरने से स्थिति और ख़राब हो गयी। कालांतर में, 1991 के मध्य में उग्रवाद से निपटने के लिए एक कठोर नीति की शुरुआत गई, जिसके पश्चात् उग्रवाद का अंत हुआ।

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