गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) के विनियमन

प्रश्न: IL&FS संकट के संदर्भ में, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) के विनियमन में शिथिलता के कारण अर्थव्यवस्था के समक्ष आने वाले जोखिमों की व्याख्या कीजिए।

दृष्टिकोण

  • IL&FS संकट का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • NBFCS के विनियमन में व्याप्त शिथिलता का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 
  • वित्तीय क्षेत्रकों और अर्थव्यवस्था पर NBFCS के खराब विनियमन के प्रभाव को रेखांकित कीजिए।
  • भविष्य में इस प्रकार के संकट से बचने हेतु उपायों का सुझाव देते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज़ (IL&FS) एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) है। यह एक व्यवस्थित रूप से महत्वपूर्ण तथा जमा स्वीकार न करने वाली कोर निवेश कंपनी (CIC-NDSI) है। यह कंपनी अवसंरचनात्मक  परियोजनाओं का वित्त पोषण करती है। हाल ही में अपने ऋण चुकता न कर पाने (डिफ़ॉल्ट की स्थिति) के कारण यह चर्चा में रही।

NBFC की इस प्रकार की समस्याओं के कारण इन पर कठोर विनियमन आरोपित करने की आवश्यकता का अनुभव किया गया। बैंकों की तुलना में NBFCs को, अपने सेग्मेंट्स (जिन्हें वे अपनी सेवाएं देते हैं) के सम्बन्ध में निम्नलिखित विनियमन प्रावधानों के विषय में छूट प्रदान की गयी थी जैसे- क्षेत्रक संकेंद्रण मानदंड (sector concentration norms), स्वीकार्य संपार्श्विक, क्रेडिट मानक और प्रक्रियाएँ (जो गैर-वित्तीय सूचना पर निर्भर करती हैं), तृतीय पक्ष विक्रय साधनों का उपयोग, पुनर्णाप्ति प्रक्रियाएं आदि। इसके अतिरिक्त, NBFCs पर विनियमनों की बहुलता होती है जिसके कारण अत्यधिक भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।

हालांकि, भारत में समग्र ऋणों में NBFCs के हिस्से में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है, अत: ऐसे शिथिल विनियमन निम्नलिखित तरीके से अर्थव्यस्था के समक्ष खतरा उत्पन्न करते हैं: 

  • NBFCs का परिसम्पत्ति-देयता असंगति तरलता संकुचन (लिक्विडिटी कंच) की स्थिति उत्पन्न करता है। यह उनकी ऋण प्रदान करने की क्षमताओं के समक्ष अवरोध उत्पन्न करता है जिससे पूँजी बाजार की तरलता प्रभावित होती है।
  • NBFCS द्वारा ऋण का भुगतान न करने का जोखिम उनकी क्रेडिट रेटिंग और ऋण तक पहुंच को प्रभावित करता है।यह NBFCs के माध्यम से विदेशी निवेश को हतोत्साहित करता है।
  • बैंक, म्यूच्यूअल फंड्स इत्यादि के रूप में ऋण प्रदाता संस्थाओं पर संसर्ग-प्रभाव (Contagion effect)। NBFCs का अधिकांश वित्त पोषण बैंकों द्वारा किया जाता है जिससे NPA भार में और अधिक वृद्धि हो जाती है।
  • MSMEs पर प्रभाव क्योंकि NBFCs इस क्षेत्र हेतु वित्तीय मध्यस्थता का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। मोचन दबावों (redemption pressures) तथा ऋण बाजार में बिकवाली (sell-off) के कारण शेयर बाजार पर प्रभाव।
  • अवसंरचना पर व्यय में कमी- पूँजी व्यय का अभाव अवसंरचना और रियल एस्टेट क्षेत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है जो वित्त पोषण हेतु NBFCS और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों पर अत्यधिक निर्भर होते हैं।
  • यदि धोखाधड़ी का पता नहीं लगता है तो उस स्थिति में व्यवस्थित रूप से महत्वपूर्ण NBFCs के बचाव का दायित्व करदाता पर आ जाएगा।

ये सभी कारक अर्थव्यवस्था में मंदी और ऋण प्रवाह (credit offtake) में कमी करेंगे तथा अंततः अर्थव्यवस्था में निवेश को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेंगे। यह वित्तीय क्षेत्र को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा जो पहले से ही बैड लोन्स (वे ऋण जिनका भुगतान पूर्व निर्धारित शर्तों के अनुसार नहीं हो रहा) की समस्या से ग्रसित है।

आगे की राह

  • वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (FSLRC) द्वारा क्षेत्रकों में जोखिम में कमी की निगरानी करने हेतु एक निकाय (उपयुक्त शक्ति सहित) की स्थापना की अनुशंसा की गई है।
  • इसके अतिरिक्त, लागत स्फीति को न्यूनतम करने हेतु अवसंरचना परियोजनाओं की समयबद्ध स्वीकृति सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  • वित्तीय बाजार में विश्वास को पुनर्स्थापित करने हेतु क्रेडिट रेटिंग प्रणाली में सुधार किए जाने की आवश्यकता है।
  • कोटक पैनल की अनुशंसाओं के क्रियान्वयन करते हुए कॉर्पोरेट शासन मानदंडों को सुदृढ़ करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए तथा कंपनी स्तर पर किसी भी प्रकार की विसंगतियों की जाँच करने हेतु शेयरधारकों की जागरूकता में वृद्धि की जानी चाहिए।
  • दीर्घकालिक वित्त पोषण तक पहुंच को सहज बनाने हेतु भारत में एक कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार के विकास को सुनिश्चित करने हेतु सरकार और RBI को एकसाथ मिलकर कार्य करना चाहिए।

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