निबंध: भारत की सामाजिक सांस्कृतिक विविधता (Essay: Socio cultural diversity of India)

प्रसिद्ध व्यक्तियों के कथन (Quotes of famous personalities)

  • “विविधता, किसी समाज के एक-साथ रहने में कठिनाई उत्पन्न कर सकती है किन्तु इसका अभाव समाज के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक हो सकता है।” – डब्ल्यू. एस. कॉफिन जूनियर
  • “जब हम औरों से अलग होने का अधिकार खो देते हैं, तब हम स्वतंत्र होने का विशेषाधिकार भी खो देते हैं।” – सी. ई. ह्यूज
  • “शिक्षा का सर्वोत्कृष्ट परिणाम सहिष्णुता है।” – हेलेन केलर
  • “हमारे पास विभिन्न धर्म, विभिन्न भाषाएं, विभिन्न रंग की त्वचा हो सकती है, परंतु हम सभी एक मानव जाति से संबंधित हैं।” – कोफी अन्नान
  • “सभ्यता परिपक्वता के स्तर तक केवल तब पहुंच पाएगी जब यह चरित्र और विचारों की विविधता के मूल्यों को सीख लेगी।” – आर्थर सी. क्लार्क

लघु कथा (Short Story)

“दूध में चीनी की तरह” – जादी राणा और पारसी प्रवासियों के मध्य मुलाकात

  • जब पारसियों ने शरण देने का अनुरोध किया, तो जादी राणा ने दूध से भरा एक कटोरा उनके सामने रखकर यह संकेत दिया कि उनके राज्य में शरणार्थियों को शरण देने के लिए जगह नहीं है।
  • इन शरणार्थियों के मुखिया ने उस दूध के कटोरे में थोड़ी सी चीनी मिलाकर यह समझाने का प्रयास | किया कि जिस प्रकार दूध से भरे हुए कटोरे में चीनी घुल-मिल जाती है और अधिक मिठास उत्पन्न करती है, उसी प्रकार वे भी वहां के समुदाय में घुल-मिल जाएंगे और अधिक सौहार्दपूर्ण तरीके से एक-साथ रहेंगे। इस तर्क से प्रभावित होकर जादी राणा ने प्रवासियों को शरण दी और उन्हें स्वतंत्र रूप से अपने धर्म और परंपराओं के आचरण की अनुमति प्रदान की।

भारतीय समाज में, विविधता अस्थायी एवं स्थानिक दोनों रूपों के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के सभी पहलुओं में व्याप्त है।

जापान के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA)

  • जापान के साथ CEPA संपन्न होने की प्रक्रिया के दौरान, जापानी अधिकारियों ने यह तर्क दिया कि भारतीय दवा कंपनियों को रियायतें देना संभव नहीं है क्योंकि उन्होंने अपनी दवाओं का परीक्षण मंगोलाइड समूह के लोगों पर नहीं किया था।
  • अतः, भारतीय अधिकारियों ने तत्परता से उनका ध्यान इस तथ्य पर आकृष्ट किया कि कंपनियों ने पहले से ही पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों पर अपने उत्पादों का परीक्षण किया है जोकि मंगोलाइड समूह से संबंधित हैं। अंततः, भारतीय अधिकारी CEPA के एक भाग के रूप में भारतीय कंपनियों को रियायतें प्रदान करवाने हेतु अपने जापानी समकक्षों को विश्वास में लेने में सक्षम हुए।

परिचय (Introduction)

प्राय: यह कहा जाता है कि विविधता की अवधारणा अपने आप में इतनी विविधतापूर्ण है कि इसकी एक समान और मानक परिभाषा तय करना कठिन हो जाता है।हालांकि, विविधता की मुख्य एवं आवश्यक विशेषताओं के संदर्भ में इसे परिभाषित किया जा सकता है।

विविधता को निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर परिभाषित किया जा सकता है –

  • यह समझना कि प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय और अलग है। यह भिन्नता प्रजाति, नस्ल, लिंग,
    लैंगिक अभिविन्यास, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और राजनीतिक मान्यताओं जैसे विभिन्न
    आयामों में हो सकती है।
  • इन भिन्नताओं की पहचान करना।
  • आपसी सहिष्णुता और इन मतभेदों की स्वीकार करना, प्रत्येक व्यक्ति में अन्तर्निहित
    विविधता के समृद्ध आयामों को अपनाना और उनका सम्मान करना।

भारतीय समाज विभिन्न धर्मों, भाषाओं, खान-पान की आदतों, रीति-रिवाजों, पहनावे, त्योहारों, विश्वासों आदि के रूप में व्यक्त होने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक विविध समाज का सबसे प्रभावशाली दृष्टान्त प्रस्तुत करता है। मुगलों, अंग्रेजों आदि के आक्रमणों से लक्षित होने के बावजूद इसे सर्वाधिक प्राचीन उत्तरजीवी सभ्यता (लगभग 5000 वर्ष पुरानी) के रूप में भी जाना जाता

सहिष्णुता, आपसी सम्मान, असंतोष और विचार-विमर्श के मूल्य भारतीय समाज की स्थायी विशेषता रहे हैं। इसने लोगों को अपनी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए पर्याप्त स्थान देने के साथ ही विश्व के अन्य भागों से आने वाले लोगों को अपनाने और समाज के साथ एकीकृत करने में सक्षम बनाया है।

जैसा कि शशि थरूर ने कहा है, “यदि अमेरिका को एक मेल्टिंग-पॉट मान लें, तो भारत एक प्लेट है जिसमें अलग-अलग कटोरों में भव्य व्यंजन रखे गए हैं। इनमें से प्रत्येक का स्वाद अलग है, और यह आवश्यक रूप से अगले के साथ मिश्रित नहीं होता है, लेकिन वे एक ही प्लेट पर एक साथ हैं, और भोजन को संतोषजनक बनाने में एक-दूसरे के पूरक हैं।”

भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता की अभिव्यक्ति

(Manifestation of India’s Socio-Cultural Diversity)

नृजातीय/नस्लीय विविधता (Racial Diversity)

  • नृजाति अथवा नस्ल का आशय लोगों के एक ऐसे समूह से है जिनमें विशिष्ट शारीरिक विशेषताएँ यथा त्वचा, रंग, नाक का प्रकार, बालों का रूप आदि पाई जाती हैं।
  • भारतीय उपमहाद्वीप, पूर्व और पश्चिम दोनों ही दिशाओं से से बड़ी संख्या में प्रवासी नृजातीय
    समूहों के आगमन का एक प्रमुख केंद्र रहा है।
  • भारत को प्रायः एक नृजातीय संग्रहालय (ethnological museum) के रूप में वर्णित किया
    जाता है जिसमें छह मुख्य नृजातीय समूह शामिल हैं
नृजातीय समूह भारतीय उपसमूह
निग्रिटो दक्षिण भारत, बंगाल की खाड़ी में अंडमान द्वीप समूह आदि की कुछ जनजातियां;
प्रोटो-आस्ट्रेलायड मध्य भारत की जनजातियां
मंगोलायड पूर्वोत्तर क्षेत्रों में
मेडिटेरियन तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में
पश्चिमी बैकीफलसे ओडिशा में, बॉम्बे के पारसी
नॉर्डिक गुजरात की बनिया जातियां; बंगाल के कायस्थ, आदि

 

विरोधाभास और चुनौतियाँ (Paradoxes & Challenges)

यद्यपि प्रजातियों का प्रवासन और विविधता पुरातन समय से चली आ रही एक सतत घटना है, किन्तु इसके बाद भी भारत में नस्लवाद और जेनोफोबिया के उदाहरण देखे गए हैं। उदाहरण के लिए अफ्रीकी नागरिकों पर हालिया हमले। ऐसी स्थित में पूर्वोत्तर के लोगों और अफ्रीकी देशों के लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ा है।

भौगोलिक विविधता (Geographical Diversity)

  • भारत शुष्क मरुस्थल, सदाबहार वन, हिमालय पर्वत, लंबी तट रेखा और उपजाऊ मैदानों
    जैसी अनेक विविध भौगोलिक विशेषताओं से संपन्न है।
  • जलवायु- मैदानी क्षेत्रों में अत्यधिक उष्णता सर्वाधिक उष्ण अफ्रीका के उष्ण स्थानों) से लेकर
    हिमालय के हिमांक बिंदु तक शीत जलवायु।
  • उर्वरता – गंगा के मैदानों को विश्व के सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्रों में से एक माना जाता है, जबकि
    थार मरुस्थल जैसे अन्य क्षेत्र अत्यधिक अनुत्पादक हैं।
  • वर्षा- भारत मानसून पर अत्यधिक निर्भर है, देश भर में वर्षा की मात्रा समान नहीं है।
    पश्चिमी घाट के कुछ स्थानों और पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित मासिनराम और चेरापूंजी में अत्यधिक
    वर्षा होती है, जबकि सिंध और राजस्थान जैसे स्थानों में वार्षिक वर्षा बहुत कम होती है।
  • जलवायु की इस अनियमितता ने भारत में विभिन्न वनस्पतियों और जीवों के विकास में भी
    योगदान दिया है। वास्तव में, भारत विश्व के 17 मेगा-डायवर्सिटी (वृहद जैव विविधता संपन्न देश) देशों में शामिल है। इसके अतिरिक्त, भारत में 3 जैव विविधता हॉटस्पॉट भी पाए जाते
विरोधाभास और चुनौतियाँ (Paradoxes & Challenges)

  • यद्यपि भौगोलिक विविधता ने भारत में जलवायु स्थितियों, मृदा, जैव विविधता आदि की विविधताओं के अस्तित्व को सक्षम बनाया है, तथापि भारत में इसके कारण विभिन्न समस्याएँ भी उत्पन्न हुई हैं। इन समस्याओं में भौगोलिक उपेक्षा, अवसंरचना तक अपर्याप्त पहुँच, लोगों और शासन की नीतियों के मध्य सामंजस्य का अभाव आदि शामिल हैं।
  • उदाहरण के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र को निरतंर उपेक्षित किया गया है और पूर्वोत्तर के लोगों के मध्य अलगाव की बढ़ती समस्या विद्यमान है। इसी प्रकार की स्थिति जनजातीय क्षेत्रों के संदर्भ में भी विद्यमान है। इसके अतिरिक्त पहाड़ी क्षेत्रों, वन क्षेत्रों आदि में सार्वजनिक सेवा वितरण संबंधी चुनौतियाँ निरंतर बनी हुई हैं।

धार्मिक विविधता – आध्यात्मिकता और दर्शन की भूमि

(Religious Diversity – Land of Spirituality and Philosophy)

  • भारत विश्व के 4 प्रमुख धर्मों जैसे हिंदू धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म का उद्गम स्थल
  •  इनके अतिरिक्त, प्रवासन और भारतीय समाज की ग्रहणशील प्रकृति के कारण इस्लाम धर्म,
    ईसाई धर्म, पारसी धर्म आदि के अनुयायी निरंतर हमारी जनसंख्या का एक प्रमुख हिस्सा बने
    रहे हैं।
  • हमारी सभ्यता के आरंभ अर्थात वैदिक और उत्तर वैदिक युग के समय से ही वैदिक (न्याय,
    वेदांत आदि) और गैर-वैदिक (चार्वाक, बौद्ध धर्म आदि) अवधारणाएं विद्यमान थीं।

इस प्रकार धार्मिक विविधता और उनकी मान्यताओं के विभिन्न स्तर देखे जा सकते हैं, यथाः

  • एक ईश्वर से बहुत से देवी-देवताओं तक तथा ईश्वर की मान्यता को नकारने तक।
  •  केवल शाकाहारी भोजन से लेकर मांसाहारी भोजन तथा सात्विक भोजन तक।
  • ज्ञान का अनुसरण करने, तपस्या का अनुसरण करने जैसे मुक्ति प्राप्त करने के विभिन्न
    साधनों तक।
विरोधाभास और चुनौतियां (Paradoxes & Challenges)

यद्यपि धार्मिक विविधता भारतीय सभ्यता का प्रतीक रही है, किन्तु इसके बाद भी यह विभिन्न समस्याओं का कारण बनती है। इन समस्याओं में – धार्मिक संघर्ष, धार्मिक ध्रुवीकरण; तुष्टिकरण की राजनीति; सांप्रदायिकता; आदि शामिल हैं। ये विदेशी राष्ट्रों को भी भारतीय समाज को हानि पहुँचाने और अस्थिर करने में सहायता करती है। प्राय: पाकिस्तान द्वारा इनका लाभ उठाया जाता है।

जातिगत विविधता (Caste Diversity)

  • यद्यपि जातीय समूह मुख्य रूप से हिंदू समाज की विशेषता हैं, किन्तु वर्तमान में वे अन्य समुदायों जैसे इस्लाम, ईसाई धर्म आदि के भी प्रमुख घटक बन गए हैं।
  • जाति व्यवस्था की उत्पत्ति चतुर्वर्ण सिद्धांत से हुई तथा कालांतर में यह वंशानुगत और कठोर बन गई।
  • परंपरागत रूप से चार वर्ण होते हैं – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। यद्यपि, निम्न स्तर पर कई प्रमुख जातियां और उपजातियां विद्यमान हैं।
  •  इन जातियों के अलग-अलग व्यवसाय, अनुष्ठान,विवाह और भोजन आदि के अलग-अलग नियम आदि होते हैं।
विरोधाभास और चुनौतियाँ (Paradoxes & Challenges)

  • यद्यपि जाति प्राचीन समय से भारतीय समाज की एक मूल इकाई रही है और इसकी उत्पत्ति
    व्यावसायिक आधार पर हुई थी; तथापि यह समय के साथ अनम्य और शोषणकारी बन गई।
  • परिणामस्वरूप, इसने जाति संघर्ष के रूप में विशेषत: निम्न जातियों के विरुद्ध समस्याओं की श्रृंखला को उत्पन्न किया है, जिसमें जाति आधारित हिंसा; जाति आधारित आरक्षण के लिए अथवा विरुद्ध विरोध प्रदर्शन तथा वोट बैंक राजनीति की घटनाएँ शामिल हैं। उदाहरण के लिए, हाल ही में मराठों और पटेलों द्वारा आरक्षण के लिए विरोध; महाराष्ट्र में दलितों के विरुद्ध हिंसा के मामले आदि देखे गए हैं।

भाषायी विविधता (Language Diversity)

  • भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है।
  • हालांकि, भारतीय भाषाई सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में 780 भाषाएं और 86 लिपियां
    विद्यमान हैं।
  • भारत के संदर्भ में प्रायः यह कहा जाता जाता है कि प्रत्येक 4 मील की दूरी पर भाषा
    परिवर्तित हो जाती है।
विरोधाभास और चुनौतियाँ (Paradoxes & Challenges)

यद्यपि भारत में विभिन्न भाषाओं के बावजूद यहाँ एकता और कार्यात्मक शासन विद्यमान है; तथापि भाषाई विविधता ने विभिन्न समस्याओं और चुनौतियों को भी उत्पन्न किया है:

  • राज्यों का विभाजन – स्वतंत्रता के 70 वर्षों के बाद भी यह एक निरंतर अनसुलझा मुद्दा बना हुआ है।
    और हरित प्रदेश (यूपी), बोडोलैंड (असम), सौराष्ट्र (गुजरात) आदि के संदर्भ में या कुछ अन्य रूपों में इसे बार-बार उभरते हुए देखा जा सकता है।
  • संवैधानिक मान्यता- यद्यपि, भारत में बहुत सी भाषाएं विद्यमान हैं परन्तु संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत केवल 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है।
  • भाषायी अतिवाद (Language Chauvinism)- संपूर्ण भारत में हिंदी को अधिरोपित करने और इसे राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्रदान करने के प्रयास बढ़ रहे हैं जिसके कारण गैर-हिंदी भाषी जनसंख्या में असंतोष उत्पन्न हुआ है। उदाहरण के लिए, हिंदी को अधिरोपित करने के विरुद्ध तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन।

पारिवारिक विविधता (Family Diversity)

परिवार भारतीय समाज की सबसे महत्वपूर्ण संस्था रही है। हालांकि, परिवार के स्वरूप और
संरचना में भी वृहद स्तर पर भिड़ताएं पायी जाती हैं

  • उत्तरी भारत में अधिकांश परिवारों में पितृसत्तात्मक स्वरूप पाया जाता है, जबकि केरल
    की जनजातियों और नायरों में मातृसत्तात्मक स्वरूप पाया जाता है।
  • भारत में एक विशिष्ट संयुक्त परिवार प्रणाली पायी जाती है, जिसे शायद ही कभी किसी
    समाज में देखा गया है। वर्तमान में, परिवार प्रणाली के स्वरूप का कामकाजी महिलाओं के परिवार सहित एकल परिवार प्रणाली, लिव इन रिलेशनशिप, सिंगल पेरेंट फॅमिली आदि में परिवर्तन हुआ है।
  • LGBT समुदाय का उद्भव एक प्रमुख परिवर्तन है, जिसमें विषम परिवारों की तुलना में एक विशिष्ट लैंगिक अभिविन्यास पाया जाता है।
विरोधाभास और चुनौतियाँ

यद्यपि भारत में विभिन्न प्रकार की पारिवारिक संरचनाएं विद्यमान हैं, तथापि महिलाओं की निरंतर खराब स्थिति के साथ-साथ सिंगल पेरेंट फॅमिली, LGBT जैसे नए पारिवारिक स्वरूपों को मान्यता मिलने से समस्याएं उत्पन्न हुई हैं।

खान पान की आदतें, पहनावा, संगीत, त्यौहार

(Food Habits, Dress Code, Music, Festivals)

  • भोजन की आदतें भिन्न-भिन्न होती हैं जो मांसाहारी से शाकाहारी तक; गेहूं केंद्रित से चावल
    केंद्रित; मसालेदार से मीठे और गैर-मसालेदार भोजन तक विस्तृत होती हैं। यहां तक कि
    सार्वभौमिक रूप से पायी जाने वाली पानी-पूरी के बहुत से क्षेत्रीय नाम और विविध प्रकार हैं।
  • पहनावा – सलवार-सूट; साड़ी; धोती इत्यादि।
  • संगीत – हिंदुस्तानी, कर्नाटक, पश्चिमी, लोक संगीत इत्यादि।
  • त्यौहार – दिवाली; होली; गणेश चतुर्थी; ईद; दुर्गा पूजा; लोक त्योहार आदि।
विरोधाभास और चुनौतियां (Paradoxes & Challenges)

यद्यपि खान-पान की आदतों में विविधता, पहनावा और त्यौहारों ने एक समग्र संस्कृति के विकास को उत्पन्न किया है, वहीं कुछ मुद्दे भी हैं, यथा- कपड़ों के संबंध में मोरल पोलिसिंग की समस्या; बीफ बैन आदि जैसे कुछ खाद्य पदार्थों पर प्रतिबंध लगाने संबंधी मुद्दे; कुछ क्षेत्रों में कुछ त्योहारों के उत्सव का निषेध आदि।

राजनीतिक विविधता (Political diversity)

  • विभिन्न विचारधाराएं – कांग्रेस की तरह केंद्रवादी; बीजेपी की तरह दक्षिणपंथी; CPI की
    तरह वामपंथी; AAP जैसे भ्रष्टाचार-विरोधी दल; तथा BSP, SP, DMK, TDP आदि जैसे
    क्षेत्रीय दल उपस्थित हैं।
  • विभिन्न दबाव समूह, NGOs, सिविल सोसायटी संगठन आदि; यथाःFiCCI; MKS; ADR
    इत्यादि।
विरोधाभास और चुनौतियां (Paradoxes & Challenges)

  • यद्यपि राजनीतिक विविधता ने भारत में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थानों की सफलता को सक्षम बनाया है, तथापि इसने कई समस्याओं को भी उत्पन्न किया है; उदाहरणार्थ: विविध हितों के साथ समझौता; पार्टियों का प्रसार, दबाव समूह इत्यादि।
  • इसके अतिरिक्त, NGO समूह जो लोगों के कल्याण के लिए थे, वर्तमान में वे लाभ अर्जित करने के लिए एक साधन बन गए हैं। वे अपने कामकाज में अपारदर्शी बन गए हैं और उनके द्वारा विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम-2010 के निरंतर उल्लंघन की जानकारी प्राप्त होती है।

सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता पर विचार-विमर्श

(Debate on Socio-Culture Diversity)

  •  सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता समाज के लिए वरदान है अथवा अभिशाप, इस संदर्भ में लगातार
    विवाद जारी है। एक वरदान के रूप में:

 मानव प्रकृति के लिए स्वाभाविक

  • विविधता मनुष्यों में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होती है। यह हमारे अस्तित्व का आधार है।
  • उदाहरण – हमारी शारीरिक विशेषताएं; विचार प्रक्रिया; प्राकृतिक प्रतिभा आदि।

 मानसिक आयामों को खोलना और विस्तृत करना; बौद्धिक विकास

  • तर्क-वितर्क की संस्कृति और मूल्यों की विविधता, भारतीय समाज का एक अभिन्न अंग रहे हैं।
  • अमर्त्य सेन की पुस्तक ‘आर्गुमेंटेटिव इंडियन’ के अनुसार वैदिक काल के समय प्राचीन
    भारतीय समाज ने सभा और समिति जैसी संस्थाओं के माध्यम से वाद-विवाद और चर्चा
    को बढ़ावा दिया था।
  • यह परंपरा अशोक और अकबर के समय इबादत खाना के रूप में निरंतर बनी रही।
    आधुनिक भारत में, यह लोकतंत्र के मंदिर – संसद और राज्य विधायिका के रूप में प्रकट
    होती है।

विवादों का समाधान करने के लिए विचार-विमर्श और चर्चा के साधन

  • विविधता समाज को विवादों के समाधान हेतु हिंसा अथवा अपराध के बजाय विचार
    विमर्श का प्रयोग करने में सक्षम बनाती है।
  • उदाहरण के लिए ज्याँ द्वेज और रितिका खेरा द्वारा केस स्टडी से निष्कर्ष निकाला गया है।
    कि उच्च लिंगानुपात वाले समाज में अपराध दर कम होती है। इसी क्रम में भारत में राष्ट्रीय एकीकरण की समस्या तथा पूर्वोत्तर विद्रोह की समस्या आदि को देखा जा सकता
  • भारत संघर्षग्रस्त देशों और आतंकवाद, चरमपंथ, अलगाववाद आदि की समस्याओं का
    सामना कर रहे देशों के लिए एक परीक्षण का विषय बन गया है।

आर्थिक विकास

  • आधुनिक नगरों का उदाहरण – मुंबई और हैदराबाद जैसे नगर अपनी महानगरीय
    संस्कृति और विविधता की ग्रहणशीलता के कारण विकास का केंद्र बन गए हैं।
  • संगठनों का उदाहरण- जिन कंपनियों ने लैंगिक विविधता, क्षेत्र सम्बन्धी विविधता
    इत्यादि को अपना लिया है उन्होंने अपने संबंधित क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति की है। उदाहरण के लिए ISRO, अमूल, बायोकॉन इत्यादि।
  • IMF प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड के अनुसार, श्रम बल में महिलाओं की अधिक भागीदारी से
    भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद में 27% की वृद्धि कर सकता है।

आधुनिक समस्याओं के लिए दूरदर्शी और प्रभावी समाधान

  • आधुनिक समाज तुलसी, नीम आदि के गुणों को अपना रहे है जो पहले केवल स्थानीय
    लोगों द्वारा उपयोग में लाये जाते थे।
  • अब एकाग्रता, फिटनेस इत्यादि को बढ़ाने के लिए वैश्विक स्तर पर योग की संभाव्यता
    स्वीकार की गई है। उदाहरण अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को मनाना।

विदेश नीति को प्रोत्साहन

  • अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रतिनिधित्व;
  • योग दिवस को मान्यता
  • भारतीय डायस्पोरा की भूमिका जिसे अपने विविध विचारों और अन्य संस्कृतियों के साथ एकीकृत करने की क्षमता के कारण मान्यता प्राप्त है। उदाहरण के लिए माइक्रोसॉफ्ट के CEO के रूप में सत्य नडेला अथवा गूगल के CEO के रूप में सुंदर पिचाई।

समन्वयात्मक संस्कृति का विकास

  • बौद्ध धर्म, जैन धर्म, भक्ति आंदोलन, पारसी, सूफी आंदोलन आदि का उदय
  • दृश्य कला, निष्पादन कला, वास्तुकला इत्यादि पर प्रभाव – इस्लाम धर्म, ईसाई धर्म,  ग्रीक-रोमन इत्यादि का प्रभाव।।
  • उदाहरण के लिए गुजरात में मुस्लिम समुदाय की लड़कियों ने रमजान के महीने में रोज़ा रखने में सहजता के लिए योग का अभ्यास किया तथा हाल ही में श्री वर्धमान स्थानकवासी के संरक्षक के तहत वैश्विक शांति के लिए 5000 जैनों द्वारा 36 लाख बार नवकार मंत्र का जाप किया।
संगठनात्मक विविधता – कार्यस्थल पर विविधता (Organizational Deiversity- Diversity at workplace)

  • वैश्विक मंचों पर वैश्विक स्तर पर मानवीय आवागमन में वृद्धि के साथ ही; प्रवासन, समावेश,
    अनुकूलन और संगठनात्मक विविधता से संबंधित राजनीति के मुद्दों पर प्रभावशाली तरीके से चर्चा की जा रही है। इस प्रकार वर्तमान में, संगठनों अथवा कार्यस्थल पर विविधता एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है।
  • विभिन्न देशों में संगठनों को विभिन्न विविधता संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए यूरोप के विभिन्न देशों में हाल के वर्षों में प्रवासन में वृद्धि होने से दीर्घकालिक एकल सांस्कृतिक परिदृश्य में परिवर्तन हुआ है। इससे विविधता को आत्मसात करने के सन्दर्भ में  गंभीर बहस हुई है। यहाँ तक की अमेरिका, जो एक लम्बे समय से बहु-सांस्कृतिक परंपराओं के लिए उदार बना हुआ है, में अब प्रजाति-संबंध विविधता की बहस के केंद्र में हैं। फिलीपींस की राजधानी मनीला में (जहां सन लाइफ फाइनेंशियल का एशिया का प्रमुख सर्विस सेंटर है) एक सशक्त और उन्मुक्त LGBT समुदाय की उपस्थिति, कार्यस्थल को उदार और भेदभाव मुक्त बनाने के लिए विविधता धारकों को अधिदेशित करती है।
  • कार्यस्थल को अनेक प्रकार से राष्ट्र के एक लघु रूप में देखा जाता है। वस्तुतः यह जाति, लिंग, नृजातीयता, संस्कृति, धर्म, लैंगिक अभिविन्यास के आधार पर विभिन्न प्रकार के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है – जिसमें सभी एक ही स्थान पर, एक ही लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्य करते
  • भारत को विश्व के सर्वाधिक विविध राष्ट्रों में से एक के रूप में देखा जाता है। इसके बाद भी पूर्वोत्तर भारत के लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली समस्याएँ एक समाज के रूप में हमारे व्यवहार, आत्मसात करने में समस्याओं और मतभेदों की स्वीकृति के अभाव को दर्शाती हैं।
  • पूर्वाग्रह सामाजिक व्यवस्था का भाग हो सकता है, परन्तु एक नैतिक संस्थान के रूप में, एक संगठन को यह सुनिश्चित करना होता है कि व्यक्तिगत कर्मचारी अपने सहयोगियों के साथ वार्ता करते समय कार्यस्थल पर ऐसी पक्षपातपूर्ण अभिवृत्तियों का प्रदर्शन नहीं करते हैं।
  • भाषा संबंधी अवरोध, भर्ती के समय पूर्वाग्रह, कामकाजी अथवा गर्भवती माताओं आदि पर  नीतियों का अभाव जैसी चुनौतियों के बावजूद विभिन्न संगठनों की संस्कृति में विविधता और समावेशन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

विविधता में एकता (Unity in Diversity)

विविधता में एकता’ शब्द का आशय अत्यधिक विविधता की उपस्थिति के बावजूद एकजुटता अथवा एकत्व की भावना से है।

विविधता में एकता की अवधारणा को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है:

  • लोगों के विविध समूहों का आपसी सहयोग एवं समन्वय से एक इकाई के रूप में कार्य करना,
  • विभिन्न क्षेत्रों अथवा राज्यों का एक देश के रूप में एकीकरण,
  • विभिन्न समूहों द्वारा अपने मतभेदों को अलग रखते हुए एक साझे लक्ष्य की ओर बढ़ना।

भारतीय समाज को विविधता का पर्याय माना जाता है। यह विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक विशेषताओं, धार्मिक मान्यताओं एवं सांस्कृतिक प्रतिरूपों को प्रस्तुत करता है। इसे अनेक भाषाओं का उत्पत्ति का स्थल माना जाता है तथा सामान्यतः ‘विश्व गुरु’ की उपाधि से संदर्भित किया जाता है।

यद्यपि ,यह विविधता प्राचीन काल से एकता के तत्वों के साथ जुड़ी हुई है -:

  • भौगोलिक एकता – प्राचीन समय से ही भारत को ‘भारत वर्ष’ नाम से जाना जाता था जोकि इसकी मौलिक एकता का प्रतीक है। इसके अतिरिक्त, यहाँ के धर्माचार्यों, राजनीतिक दार्शनिकों तथा कवियों ने सदैव भारत को एक इकाई के रूप में संदर्भित किया है।
  • राजनीतिक एकता – भारत के शासकों ने भी संपूर्ण देश में अपना शासन स्थापित किया और एक इकाई के रूप में इस पर विचार किया। ऐसे प्रमुख शासकों में अशोक, समुद्रगुप्त तथा अकबर को शामिल किया जा सकता है। वर्तमान समय में राजनीतिक एकता को भारत का संविधान, संसद और नौकरशाही प्रमुख रूप से अखिल भारतीय सेवाओं द्वारा सुनिश्चित किया जाता है।
  • धार्मिक एकता – भारत चार प्रमुख धर्मों का उत्पत्ति स्थल है। यह भी संपूर्ण भारत की एकता का
    मुख्य कारण है। विभिन्न नामों से विष्णु तथा शिव की पूजा उत्तर और दक्षिण भारत में प्रचलित है। रामायण तथा महाभारत को संपूर्ण भारत में पढ़ा जाता है।
  • सांस्कृतिक एकता – दिवाली, दशहरा, ईद आदि जैसे त्यौहारों को संपूर्ण देश के लगभग सभी भागों में मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त, सहिष्णुता, पारस्परिक सम्मान, परिवार के प्रति सम्मान जैसे मूल्य पूरे भारत में प्राप्त होते हैं तथा क्रिकेट, बॉलीवुड फिल्मों आदि से भी भारतीय एकता प्रतिबिंबित होती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

  • विविधता से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद भी, भारतीय समाज को सतत रूप से बनाए रखने और
    विकास में सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर किसी प्रकार का संदेह नहीं किया जा सकता है।
  • समस्या विविधता की नहीं है, अपितु भारतीय समाज में विविधता के प्रबंधन की है, जिससे क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता, जातीय संघर्ष जैसी समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। वस्तुतः विकास का सभी स्थानों तक समान रूप से वितरण नहीं किया गया है अथवा कुछ समूहों की संस्कृतियों को उचित महत्व नहीं प्रदान किया गया।
  • उदाहरण के रूप में: पंजाब में यह समस्या नगण्य औद्योगिकीकरण के कारण युवाओं के निरंतर बेरोजगार रहने से और अधिक विकट हो गई है; उत्तर-पूर्व के राज्यों में विद्रोह मुख्यतः बेरोजगारी एवं उनकी संस्कृति को उचित महत्व प्रदान न किए जाने के कारण है।
  • अतः इस संदर्भ में संविधान एवं उसके मूल्यों द्वारा समाज के मार्गदर्शक सिद्धांतों का निर्माण करना चाहिए। भारत के संविधान में विविधता का सम्मान (पंथ निरपेक्ष राज्य; मौलिक अधिकार; DPSP; सकारात्मक कार्यवाही; अनुसूची 5,6,8 की व्यवस्था) करने के साथ ही राष्ट्रीय पहचान के विकास का भी समर्थन किया गया है।
  • जब किसी समाज द्वारा सभी को एक-रुपी (होमोजेनाइज़) करने का प्रयास किया जाता है तब निश्चित रूप से उस समाज में अस्थिरता ही देखी जाती है जो अंत में उसके पतन का कारण बनती है। इसके सबसे प्रमुख उदाहरण के रूप में पाकिस्तान को देखा जा सकता है, जहां पूर्वी पाकिस्तान पर पश्चिमी पाकिस्तान की संस्कृति अधिरोपित करने का प्रयास किया गया, जिसका परिणाम अंततोगत्वा बांग्लादेश के निर्माण के रूप में सामने आया।
  • भारत को सदैव विविधता में एकता’ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तथा भारत को स्वयं भी इसे प्रोत्साहित तथा संरक्षित करने का प्रयास करते रहना चाहिए। संविधान एवं उसके मूल्यों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अनेक बार दोहराया है। कि – “संविधान हमारी पवित्र पुस्तक है।
  • प्राचीन ग्रंथों के द्वारा हमें विचारों और विचारधारा की विविधता को स्वीकृत करने तथा उनका सम्मान करने का मूल्य प्राप्त होता है। ऋग्वेद का प्रसिद्ध उद्धरण, “महान विचार प्रत्येक स्थान से प्राप्त होते है”; हमें विचारों की विविधता को स्वीकार करने हेतु प्रेरित करता है।
  • विविधता का सम्मान एवं राष्ट्रीय पहचान को पोषित करना भारतीय समाज का उद्देश्य होना चाहिए। वर्तमान समय में जब विश्व अपने मार्गदर्शन के लिए भारत को देख रहा है – तब विश्व गुरु भारत द्वारा अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता को कम करने का कोई भी प्रयास सर्वोच्च स्तर की त्रासदी होगी।

जैसा कि गांधी जी ने कहा – “विविधता में एकता को प्राप्त करने की हमारी क्षमता, हमारी सभ्यता की परीक्षा का सर्वश्रेष्ठ उपहार होगा।

  • विविधता के सार को ऋग्वेद के निम्नलिखित उद्धरण में बड़ी सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है, “एकं सत् विप्र बहुधा वदन्ति।” (अर्थात ऐसे अनेक मार्ग हैं जो ईश्वर की ओर ले जाते हैं और लोगों द्वारा इसके लिए भिन्न-भिन्न नामों तथा रूपों का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार विभिन्न मार्गों के बावजूद, मूल उद्देश्य समान है।)

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UPSC – 1994 – चौराहे पर भारतीय समाज। (The Indian society at the crossroads.)

UPSC – 1998 – भारत की समग्र संस्कृति। (The composite cu!:re of India.)

UPSC – 2000 – वर्तमान भारतीय संस्कृति: एक मिथक या वास्तविकता? (Indian culture today: A myth or a reality?)

 

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