निबंध: कृषि (Essay on Agriculture in India)
कृषि से संबंधित उद्धरण (Quotes on Agriculture)
- “कृषि मानव का सबसे स्वस्थ्यपूर्ण, सबसे उपयोगी और सबसे उत्कृष्ट रोजगार है।” – जॉर्ज वाशिंगटन
- “सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन कृषि नहीं।” – जवाहरलाल नेहरू
- ” कृषि की खोज सभ्य जीवन की ओर मानव का प्रथम कदम था।” – आर्थर कीथ
- “कृषि सभ्यता है।” – ई. एम्मोंस
- “कृषि सभ्यता और किसी भी स्थिर अर्थव्यवस्था की नींव है।” – एलन सवोरी
- “कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।” – एम. के. गांधी
- “जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान!” – अटल बिहारी वाजपेयी
- “यदि कृषि विफल हो जाती है, तब सब कुछ विफल हो जाएगा।”- एम. एस. स्वामीनाथन
- “हमारे किसान हमारे राष्ट्र का गर्व है।” – नरेंद्र मोदी ।
- हमें कृषि में एक “सदाबहार क्रांति” की आवश्यकता है। – ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
निबंध: कृषि (Essay on Agriculture in India in Hindi)
परिचय (Introduction)
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु द्वारा उद्धृत किया गया कि “सब कुछ इंतजार कर सकता है लेकिन कृषि नहीं”। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि भारतीय सभ्यता में कृषक और कृषि गतिविधियों को पवित्र दर्जा दिया गया था। हिंदू धर्म में देवी अन्नपूर्णा आहार और पोषण की देवी हैं।
वर्तमान समय में, भारत ने कृषि के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां अर्जित की हैं जैसे- उदाहरणार्थ यह दुग्ध का सबसे बड़ा उत्पादक; चावल, गेहूं, फल और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक तथा पोल्ट्री का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक देश है। हालांकि कुपोषण, किसानों की दरिद्रता, किसान आत्महत्या, फसल कटाई के पश्चात होने वाली क्षति, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां इत्यादि समस्याओं से ग्रसित है। अतः, भारत में कृषि क्षेत्र द्वारा विभिन्न उपलब्धियों को अर्जित करने के वजूद भी इसे विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
परिभाषा (Definition)
कृषि को प्राथमिक आर्थिक गतिविधि के रूप में परिभाषित किया जाता है। दूसरे शब्दों में, यह खेती का विज्ञान अथवा पद्धति है, इसके अंतर्गत फसल उत्पादन के लिए मृदा की जुताई तथा भोजन, उन एवं अन्य उत्पादों की प्राप्ति हेतु पशुपालन को शामिल किया जाता है।
हालांकि, मानव जीवन और मानव समाज के लिए कृषि के उपयोग सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, पारिस्थितिक, सुरक्षा, सामरिक इत्यादि दृष्टि से अत्यधिक व्यापक हैं। इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि कृषि (एग्रीकल्चर) संभवतः एकपत्र आर्थिक गतिविधि है जिसमें ‘कल्चर’ (संवर्द्धन) प्रत्यय के रूप में प्रयोग किया जाता है जो इसके विविध और बहु-आयामी प्रभावों की पुष्टि करता है।
कृषि के प्रकार (Types of Agriculture)
कृषि एक समरूप गतिविधि नहीं है बल्कि इसके विभिन्न प्रकार भौतिक और मानवीय कारकों पर निर्भर हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
निर्वाह कृषि (Subsistence agriculture)
- यह प्राचीन तकनीकों द्वारा भारवाहक पशुओं और परिवार के सदस्यों की सहायता से छोटी और बिखरी हुयी जोतों में की जाने वाली कृषि है। यह विश्व के अधिकांश किसानों द्वारा की जाती है।
चलवासी पशुचारण (Nomadic Herding)
- यह प्राकृतिक चारागाहों में पशुपालन-आधारित कृषि है। यह कृषि अर्द्ध -शुष्क और शुष्क क्षेत्रों के निवासियों द्वारा की जाती है। उत्तरी अफ्रीका, अरब प्रायद्वीप के कुछ भाग और उत्तरी यूरेशिया के कुछ भाग इस प्रकार की कृषि के विशिष्ट क्षेत्र हैं। यह एक प्रकार की जीवन-निर्वाह की गतिविधि है।
रोपण कृषि (Plantation agriculture)
- भारत में इसका प्रारंभ अंग्रेजों द्वारा किया गया था। इसमें फसल को विक्रय के उद्देश्य से उगाया और उसका प्रसंस्करण किया जाता है। उदाहरणों में चाय, रबर, कॉफी, कोको आदि के बागान शामिल हैं। यह कृषि मुख्य रूप से असम, उप-हिमालयी, पश्चिम बंगाल, नीलगिरी, अन्नामलाई और कार्डमम पहाड़ियों में की जाती है।
स्थानान्तरी कृषि (Shifting agriculture)
- इसमें वृक्षों की कटाई एवं दहन के माध्यम से वन भूमि को साफ करके फसल उत्पादन किया जाता है। मृदा की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाने के 2-3 वर्ष पश्चात भूमि को छोड़ दिया जाता है। यह कृषि लगभग 250 मिलियन लोगों द्वारा (विशेषरूप से दक्षिण अमेरिका, मध्य और पश्चिम अफ्रीका तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में) की जाती है।
पशुपालन कृषि (Livestock Ranching)
- कृषि की इस प्रणाली के तहत पशुपालन पर प्रमुख बल दिया जाता है। इस प्रकार की कृषि में किसान चलवासी पशुचारण के विपरीत एक व्यवस्थित जीवन व्यतीत करते हैं। इस प्रकार की कृषि विश्व के उन क्षेत्रों में वाणिज्यिक आधार के रूप में विकसित हुई है जहां भूमि के वृहद भूखंड पशु चराई के लिए उपलब्ध हैं जैसे- उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के निम्न वर्षा वाले क्षेत्र।
वाणिज्यिक अनाज कृषि (Commercial Grain Farming)
इस प्रकार की खेती कृषि मशीनीकरण की प्रतिक्रिया है और यह मुख्यतः कम वर्षा एवं जनसंख्या वाले क्षेत्रों में प्रचलित है। इसके अंतर्गत बोई जाने वाली फसलें मौसम और सूखे की अनियमितताओं से ग्रसित हैं। यहां सामान्यतः गेहूं की एकल कृषि की जाती है। दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के प्रेयरी, स्टेपी और समशीतोष्ण घास के मैदान इस प्रकार की कृषि के मुख्य क्षेत्र
भारत में कृषि- एक क्रमविकास (Agriculture in IndiaA Timeline)
आरंभिक इतिहास
- 9000 ईसा-पूर्व से गेहूं, जौ, बेर को भारतीय उपग्रहाद्वीप में स्थानिक रूप से उगाया जाने लगा
था। इसके पश्चात भेड़ और बकरी को पालतू पशु बनाया गया। - सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान, कपास उद्योग बेहतर रूप से विकसित था। सिंधु घाटी सभ्यता में
चावल की खेती भी की जाती थी। - मिश्रित कृषि व्यवस्था ने सिंधु घाटी अर्थव्यवस्था को आधार प्रदान किया। इसके अतिरिक्त, 4500
ईसा पूर्व के आसपास सिंचाई प्रणाली विकसित हुई थी।
वैदिक काल – महाजनपद काल के पश्चात (1500 ईसा पूर्व- 200 ईसा)
- उत्तर वैदिक ग्रंथों (1000-500 ईसा पूर्व) में लोहे का अनेक बार उल्लेख किया गया है। अनाज,
सब्जियों और फलों की विस्तृत श्रेणी में कृषि की जाती थी। मांस और दुग्ध उत्पाद आहार के भाग थे क्योंकि पशुपालन महत्वपूर्ण था। मृदा की अनेक बार जुताई की जाती थी। बीज प्रसारित किए जाते थे। परती भूमि और फसल का एक निश्चित अनुक्रम अनुशंसित किया गया था। गाय के गोबर का खाद के रूप में प्रयोग किया जाता था। सिंचाई प्रणाली भी प्रचलित थी।
मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व)
- मृदा को वर्गीकृत किया गया और कृषि उपयोग के लिए मौसम संबंधी अवलोकन तैयार किए गए थे।
- इसके अतिरिक्त, प्रशासन ने बांधों के निर्माण और रखरखाव तथा अश्व-चालित रथों की सुविधा प्रदान की थी।
प्रारंभिक सामान्य युग- उच्च मध्य युग (200-1200 ईस्वी)
- तमिल लोगों ने चावल, गन्ना, बाजरा, काली मिर्च, विभिन्न अनाज, नारियल, सेम, कपास आदि जैसी फसलों की विस्तृत श्रेणी की कृषि की।
- सतत कृषि के लिए व्यवस्थित जुताई, खाद, खरपतवार, सिंचाई और फसल संरक्षण संबंधी कार्य किए जाते थे।
- मसालों के व्यापार में तेजी आई क्योंकि भारत ने भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में मसालों का समुद्री मार्ग से व्यापार करना प्रारंभ कर दिया था।
उत्तर मध्य युग- प्रारंभिक आधुनिक युग (1200-1757 ईस्वी)
- चावल, गेहूं अथवा बाजरा उत्पादन में कृषि क्षेत्रों के विभाजन के साथ सिंचाई प्रौद्योगिकियों में प्रगति हुई थी।
- तंबाकू की खेती (पुर्तगालियों द्वारा आरंभ) का तेज़ी से विस्तार हुआ। मालाबार तट मसालों (विशेषकर काली मिर्च) के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र बन गए।
- फल की नई प्रजातियां, जैसे अनानास, पपीता, और काजू भी पुर्तगालियों द्वारा लायी गईं।
- भूमि प्रबंधन की व्यवस्था विशेष रूप से अकबर के शासनकाल के दौरान सुदृढ़ थी जिसके अंतर्गत टोडरमल ने कृषि प्रबंधन के लिए विस्तृत पद्धतियों का निर्माण और कार्यान्वयन किया।
औपनिवेशिक युग (1757-1947 ईस्वी)
- इस समयावधि को भारत में कृषि के पतन काल के रूप में चिह्नित किया गया। भू-राजस्व प्रणाली के नए तरीकों ने वृहद पैमाने पर कृषि संकट और निर्धनता की समस्याओं को उत्पन्न किया।
- इसके अतिरिक्त, सुनियोजित विऔद्योगीकरण ने भूमि पर वृहद दबाव को उत्पन्न किया जिससे निर्धनता में और भी अधिक वृद्धि हुई।
- खाद्य फसलों की अपेक्षा वाणिज्यिक फसलों पर बल दिए जाने से अकालों की बारंबारता तथा कृषि के लिए जोखिम में वृद्धि हुई।
- युद्ध काल के दौरान कृषि की स्थिति अत्यंत दयनीय थी क्योंकि जनसंख्या वृद्धि उच्च थी किन्तु खाद्य उत्पादन लगभग स्थिर था। यह संकट बंगाल में सर्वाधिक तीव्र था जिसके कारण बंगाल को 1943 के भीषण अकाल का सामना करना पड़ा।
भारतीय गणराज्य (1947 ईस्वी के पश्चात)
- स्वतंत्रता के पश्चात, भारत को खाद्य कमी, शरणार्थी संकट और पाकिस्तान के साथ युद्ध का सामना करना पड़ा। इसलिए, खाद्य कमी से निपटना महत्वपूर्ण प्राथमिकता बन गई और यह प्रथम पंचवर्षीय योजना का आधार बना।
- क्रमशः, कृषि विकास के लिए सुसंगत और संतुलित दृष्टिकोण अपनाया गया।
- “भूमि सुधारों के एजेंडा” ने कृषि विकास की रणनीति का नेतृत्व किया तत्पश्चात बांधों के विकास को “आधुनिक भारत के मंदिर” के रूप में चिन्हित किया गया।
- ग्रो मोर फूड कैंपेन (1940) और इंटीग्रेटेड प्रोडक्शन प्रोग्राम (1950) को क्रमशः खाद्य एवं नकदी फसलों की आपूर्ति पर केंद्रित किया गया। इसके अतिरिक्त भूमि सुधार, भूमि विकास, मशीनीकरण, विद्युतीकरण, विशेष रूप से रसायनों-उर्वरकों का उपयोग तथा सरकारी पर्यवेक्षण के अंतर्गत शीघ्र ही एकल पहलू को बढ़ावा देने के बजाय कार्यों की एक व्यवस्था अपनाने के लिए कृषि उन्मुख ‘पैकेज एप्रोच’ का विकास किया गया।
- 1960 से उत्पादन क्रांतियों की एक श्रृंखला का प्रारंभ-: हरित क्रांति; पीली क्रांति (तिलहन उत्पादन से संबंधित – 1986-1909), ऑपरेशन फ्लड (डेयरी – 1970-1996), और नीली क्रांति (मत्स्य पालन- 1973-2002) इत्यादि।
- संस्थागत समर्थन – भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद; डेयरी विकास बोर्ड; राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD)
- 1991 के पश्चात – पूर्व में किए गए सुधारों तथा कृषि प्रसंस्करण एवं जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवाचारों के फलस्वरूप कृषि क्षेत्र में वृद्धि।
- वर्तमान में- खाद्य सुरक्षा के साथ ही वैश्विक निर्यात का केंद्र; कृषि में ई-कॉमर्स के साथ अनुबंध कृषि, कृषि क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है; जैविक कृषि में निर्यात के लिए अपार संभावनाएं मौजूद है
- चुनौतियां – सार्वजनिक व्यय में कमी, लघु जोत, कृषि-वस्तुओं की वैश्विक आधिक्य से प्रतिस्पर्धा, अपर्याप्त शासन क्षमता, भारत के किसानों के लिए निरंतर समस्याएं उत्पन्न करते है
कृषि का महत्व (Importance of Agriculture)
राजनीतिक
- यह सबसे बड़े वोट बैंक को सृजित करता है क्योंकि भारत का 50% से अधिक शेयबल कृषि
और इससे संबद्ध गतिविधियों में संलग्न हैं। - कृषिगत प्राथमिकताएँ और अन्य संबंधित मुद्दे प्रत्येक पार्टी के घोषणापत्र का प्रमुख हिस्सा बन
गए हैं। 2014 में बीजेपी ने एक मूल्य स्थिरीकरण निधि स्थापित करने एवं एकल ‘राष्ट्रीय कृषि बाजार’ विकसित करने तथा लोगों की आहार संबंधी आदतों से संबद्ध क्षेत्र विशिष्ट फसलों और सब्जियों को बढ़ावा देने का प्रस्ताव रखा। कांग्रेस पार्टी ने सिंचाई, कृषि मूल्य श्रृंखला, शीत भंडारण और गोदामों आदि में निवेश बढ़ाकर कृषि उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने का वादा किया। - विशेष रूप से प्याज से संबंधित खाद्य मुद्रास्फीति 2004 के लोकसभा चुनावों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गई।
- किसान और किसान आंदोलन भारतीय समाज की एक सतत विशेषता रही है। कुछ सबसे प्रमुख आन्दोलनों में चंपारण सत्याग्रह, खेड़ा किसान संघर्ष, गुजरात में बारदोली आंदोलन, मालाबार में मोपला विद्रोह, तेलंगाना में किसान विद्रोह आदि शामिल हैं।
- प्रायः यह कहा जाता है कि जो भी दल कृषि क्षेत्र की उपेक्षा करता है वह चुनाव हारने के लिए बाध्य हो जाता है।
सामाजिक
- कृषि, ग्रामीण जीवन के आधार का निर्माण करती है; यह सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के प्रत्येक पहलू में प्रवेश कर चुकी है। कृषि उत्पादन और उत्पादकता बढ़ने के कारण कृषि अधिशेष में वृद्धि के परिणामस्वरूप विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक कल्याण में सुधार होता है।
- कृषि संस्कृति के प्रत्येक पहलू (विश्वास/आस्था, भोजन, त्योहार, पोशाक इत्यादि) को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए मकर संक्रांति, बैसाखी, ओणम, पोंगल आदि फसल कटाई से संबंधित त्योहारों के उदाहरण हैं।
- भारतीय संस्कृति में पीपल जैसे विभिन्न वृक्ष और गाय जैसे पशु पूजनीय हैं।
- कृषि की स्थिति महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और स्थिति पर एक वृहद प्रभाव उत्पन्न करती है। इसे कुपोषण से निपटने के लिए सबसे बेहतर साधन माना जाता है।
आर्थिक
- कृषि रोजगार-गहन क्षेत्रों में से एक है। वास्तव में, उच्च स्तर की प्रच्छन्न बेरोजगारी भारतीय कृषि क्षेत्र की एक प्रमुख विशेषता है।
- यह अन्य विनिर्माण (कच्चे माल के रूप में) और सेवा क्षेत्रों (सेवाओं का समर्थन करने के लिए) के लिए आधार का निर्माण करता है। औद्योगिक उत्पादन जैसे- कपास, जूट, गन्ना, तंबाकू इत्यादि में उपयोग किये जाने वाले अनेक प्रकार के कच्चे माल और आगतों (इनपुट) की कृषि क्षेत्र द्वारा आपूर्ति की जाती है। इस प्रकार के उत्पादन संबंध यह दर्शाते हैं कि कृषि उत्पादन में 10% की वृद्धि के परिणामस्वरूप औद्योगिक उत्पादन में 5% की वृद्धि होती है।
- कृषि आधारित स्टार्ट-अप में कृषि क्षेत्र, उद्यमिता के लिए एक केंद्र बन रहा है उदाहरण के लिए, कमल किसान जो विशिष्ट रूप से निर्मित (customized) कम लागत वाले कृषि उपकरण विकसित कर रहा है; निन्जाकार्ट जो एक तकनीकी आधारित आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन प्रणाली है।
सुरक्षा और सामरिक
- खाद्य राष्ट्र के लिए सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
- विश्व युद्धों के दौरान, खाद्य ले जाने वाले जहाजों/पनडुब्बियों पर हमला करना, युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बन गया था।
- खाद्य पदार्थों की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि अरब स्प्रिंग के दौरान मध्य-पूर्व में अनेक शासन व्यवस्थाओं के अंत का कारण बनी।
- विगत कुछ समय से, अनेक देश कृषि के लिए विदेशों में भूमि का क्रय कर रहे हैं। उदाहरण के लिए 80 से अधिक भारतीय कंपनियों ने पूर्वी अफ्रीका, इथियोपिया, केन्या, मेडागास्कर, सेनेगल और मोजाम्बिक जैसे देशों में बड़े बागानों के क्रय के लिए £1.5 बिलियन (लगभग 11,300 करोड़ रुपये) का निवेश किया है जिसका उपयोग घरेलू बाजार में खाद्यानों की आपूर्ति के लिए फसल उत्पादन में किया जाएगा।
पारिस्थितिक
- ऊर्जा क्षेत्र के पश्चात वानिकी और अन्य भूमि उपयोग सहित कृषि क्षेत्र ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है।
- कृषि क्षेत्र की भावी गहनता में वृद्धि की संभावनाओं से विश्व के गैर-कृषि स्थलीय और जलीय पारिस्थितिक तंत्र पर वृहद हानिकारक प्रभाव होंगे।
- विगत 35 वर्षों के दौरान कृषि खाद्य उत्पादन में दोगुनी वृद्धि का संबंध नाइट्रोजन उर्वरक में 6.87 गुना वृद्धि, फॉस्फोरस उर्वरक में 3.48 गुना वृद्धि, सिंचित फसल भूमि की मात्रा में 1.68 गुना वृद्धि से था।
- कृषि गैर-कृषि पारिस्थितिक तंत्र की क्षमता को प्रभावित करती है जो मानवता के लिए महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करता है।
भारत में कृषि की स्थिति (Status of Agriculture in India)
भारत में कृषि एक अत्यंत विरोधाभासी स्थिति का प्रतिनिधित्व करती है – उम्मीद की स्थिति बनाम संकट की स्थितिः ।
- खाद्य सुरक्षा बनाम पोषण –ग्लोबल हंगर इंडेक्स, 2017 में भारत 119 देशों में से 100वें स्थान पर था; भारत ने विश्व की तीव्र गति से बढती अर्थव्यवस्था के अपने टैग को बनाए रखा है; किसानों द्वारा निरंतर सरकार की उदासीनता के विरोध में सब्जियां, फल, दूध फेंक दिए जाते हैं, किसान आत्महत्या।
- कृषि निर्यात में वृद्धि बनाम कृषि क्षेत्र, किसानों को लगभग दो दशकों से लाभ प्रदान करने के लिए पर्याप्त राजस्व का सृजन नहीं कर रहा है (OECD द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार)।
- भारत को खाद्य क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने वाले अधिकांश किसान समय-समय पर स्वयं भुखमरी का सामना करते है।
इस प्रकार की स्थिति के कारण (Reasons for such a situation)
भूमि और मृदा (Land and Soil)
- विश्व बैंक के अनुसार, भारत में कुल भूमि का 60% भाग कृषि-योग्य है और यह वैश्विक स्तर पर दूसरी सर्वाधिक कृषि-योग्य भूमि है।
- हालांकि, भूमि सुधार एजेंडा अभी भी एक अपूर्ण एजेंडा बना हुआ है।
- नवीनतम कृषि जनगणना के अनुसार, भारत की 67% कृषि भूमि पर सीमांत किसानों (<1 हेक्टेयर) का अधिकार है।
- इसके अतिरिक्त भारत के केवल 5% किसानों का 32% भूमि पर नियंत्रण है।
- भारत की मृदा का लगभग एक तिहाई हिस्सा समस्याग्रस्त हो चुका है। मृदा के कार्बनिक (जैविक) पदार्थ में अत्यधिक कमी आई है तथा यह गिरकर 0.3% – 0.5% के स्तर तक पहुँच गया है। किन्तु इस तथ्य के बावजूद मृदा के इस निम्नीकरण की अभी तक उपेक्षा ही की गयी है।
- इसके बाद, मृदा की लवणता, मृदा क्षरण, मरुस्थलीकरण और मृदा अपरदन की पारंपरिक समस्याएं बनी हुई हैं।
प्रस्तावित सुधार
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केस स्टडीज / सर्वोत्तम प्रथाएं
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बीज (Seeds)
- कृषि उत्पादकता का लगभग 20-25% भाग बीज की गुणवत्ता पर निर्भर करता है जिसके कारण
बीज को कृषि में एक महत्वपूर्ण आगत के रूप में देखा जाता है। - यद्यपि, अत्यधिक मांग आपूर्ति अंतराल के कारण भारत निराशाजनक बीज प्रतिस्थापन अनुपात से ग्रसित है।
- विस्तार सेवा (extension service) की विफलता और बीज क्षेत्र से (विशेष रूप से 1991 के बाद से) राज्य एजेंसियों की वापसी के कारण बीज उत्पादन में अविश्वसनीय प्रौद्योगिकियों का आरम्भ हुआ है।
- हाल ही में, जागरूकता के अभाव और सलाहकारी नियामक ढांचे की अनुपस्थिति के कारण संकर बीजों के उद्भव ने किसानों की दक्षता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है।
- उदाहरण के लिए GM सरसों DMH-11 पर विवाद एक प्रमुख मामला रहा है।
प्रस्तावित सुधार
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केस स्टडीज/सर्वोत्तम प्रथाएं
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सिंचाई (Irrigation)
- भारत के शुद्ध बोए गए क्षेत्र का केवल 46% सिंचित है और शेष मानसून पर निर्भर है।
- यह समस्या अत्यधिक क्षेत्रीय असंतुलन जैसे- वर्षा और जल की उपलब्धता से बढ़ी है।
- इसके अतिरिक्त, सिंचाई अवसंरचना का एक उप-इष्टतम उपयोग है। उदाहरण के लिए चीन, ब्राजील और यूएसए जैसे अन्य प्रमुख कृषि देशों की तुलना में भारत प्रमुख खाद्य फसलों की एक इकाई का उत्पादन करने के लिए 2-4 गुना जल का उपयोग करता है।
- इसके अतिरिक्त, भारतीय कृषि वृहद पैमाने पर 60% से अधिक निर्भरता के साथ भूमिगत जल पर निर्भर है।
प्रस्तावित सुधार
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केस स्टडीज / सर्वोत्तम प्रथाएं
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उर्वरक (Fertilizer)
- भारतीय उर्वरक क्षेत्र अनेक समस्याओं से ग्रसित है। यूरिया की 80%आवश्यकताओं की पूर्ति घरेलू
उत्पादन द्वारा ही हो जाती है, परन्तु पोटेशियम और फॉस्फोरस का उत्पादन मुख्य रूप से आयात पर निर्भर है। - इसके अतिरिक्त, भारत की प्रति हेक्टेयर खपत (लगभग 146 किलोग्राम) विकसित देशों की तुलना में काफी कम है;
पोषक तत्व आधारित सब्सिडी योजना (NBS) से यूरिया को बाहर रखने के अनेक प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं:
- N:P:K अनुपात का बदतर होना। 2013-14 में यह अनुपात बिगड़ कर 8.2:3.2:1 के स्तर
तक पहुँच गया था जबकी इसका वांछित स्तर 4:2:1 है। - शैवाल प्रस्फुटन की समस्या के साथ मृदा पोषक तत्व की गुणवत्ता का खराब होना।
- नेपाल, बांग्लादेश आदि को सस्ते यूरिया की तस्करी।
प्रस्तावित सुधार
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केस प्रथाएं स्टडीज / सर्वोत्तम
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वैज्ञानिक जानकारी (Scientific Krrow-How)
- कृषि में वैज्ञानिक ज्ञान कृषि उत्पादकता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- हालांकि, भारत में प्रति 800-1000 किसानों के पास केवल 1 कृषि विस्तार कार्यकर्ता (1 extension worker) है। इसके अतिरिक्त, लगभग 60% किसानों को कृषि के सन्दर्भ में वैज्ञानिक जानकारी नहीं होती है।
- फसल चक्रण का अभाव, अनाज केंद्रित और जल-गहन फसलें भारत के कृषि परिदृश्य की मुख्य विशेषताएँ हैं।
कृषि श्रम और मशीनीकरण (Agriculture Labor & Mechanization)
- भारत में कृषि पर अधिकान्शतः मैनुअल श्रम का प्रभुत्व है। हालांकि, इस श्रम संरचना में महिलाओं, निम्न जातियों और अपनी मुख्य भूमि से हस्तांतरित जनजातियों की संख्या सर्वाधिक है।
- इसके अतिरिक्त, कृषि भी मनरेगा के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण प्रच्छन्न बेरोजगारी और श्रम के अभाव की समस्या से ग्रसित है।
- इसके अतिरिक्त, भूमि जोत के निम्न और खंडित आकार तथा उपकरणों को खरीदने के लिए अपर्याप्त पहुंच के कारण कृषि में मशीनीकरण प्रतिबंधित है।
प्रस्तावित सुधार
इसके साथ ही निम्नलिखित को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है –
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केस स्टडीज / सर्वोत्तम प्रथाएं
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ऋण (Credit)
- कई वित्तीय समावेशन कार्यक्रमों के बावजूद, लगभग 44% ग्रामीण परिवार अनौपचारिक स्रोतों से ऋण लेते हैं।
- इसके अतिरिक्त, ऋण का अधिकांश हिस्सा समृद्ध किसानों द्वारा ले लिया जाता है और इसका उपयोग उत्पादक उद्देश्यों के विपरीत उपभोग के लिए किया जाता है।
प्रस्तावित सुधार
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केस स्टडीज/सर्वोत्तम प्रथाएं
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फसल-कटाई के पश्चात् होने वाली क्षति (Post-harvest losses)
- भारत, बड़े पैमाने पर फसल-कटाई के पश्चात् होने वाली क्षति की समस्या से ग्रसित है। निम्न अवसंरचना-परिवहन और शीत भंडारण सुविधाओं का निम्नस्तर तथा अवैज्ञानिक पद्धतियों का उपयोग आदि के कारण लगभग 40% अनाज बर्बाद हो जाता है।
प्रस्तावित सुधार
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किसानों के लिए लाभकारी मूल्य(Remunerative prices for farmers)
विपणन संबंधी मुद्दे
- भारतीय कृषि नीतिगत विकृतियों और मध्यस्थों की बढ़ती संख्या जैसी समस्याओं से ग्रसित
- इसके अतिरिक्त, निम्नस्तरीय अवसंरचना, ऊर्ध्वाधर एकीकरण (vertical integration), और
राज्यों के कृषि उत्पाद बाज़ार समिति अधिनियम (APMC) द्वारा मान्यता प्राप्त आधिकारिक मंडियों की प्रधानता आदि ने प्रभावी कृषि विपणन के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में कार्य
किया है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से संबंधी मुद्दे
- इसके परिणामस्वरूप गेहूं, चावल और गन्ने की खेती पर अत्यधिक बल दिए जाने के कारण
फसल पद्धति (cropping patterns) में विकृति उत्पन्न हुई है। - इसके परिणामस्वरूप कुछ राज्यों, विशेषकर उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में जल संसाधनों में कमी,मृदा एवं जल की गुणवत्ता में ह्रास की समस्या उत्पन्न हुई है।
- अंत में, MSP के अंतर्गत खरीदी जाने वाली फसलों की मात्रा अत्यधिक कम है, विशेषकर पूर्वी राज्यों में। उदाहरण के लिए MSP के अंतर्गत 28-30% गेहूं, 30 -35% धान और 1% से भी कम मोटे अनाज की खरीद की जाती है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे
- WTO के एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर (AOA) और सब्सिडी के संबंध में अनेक चिंताएं उत्पन्न हुई है।
- उदाहरण के लिए- हाल ही में, WTO के समक्ष प्रस्तुत किया गया खाद्य सुरक्षा हेतु सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग का मुद्दा।
- विभिन्न देशों, विशेष रूप से विकसित देशों द्वारा कृषि वस्तुओं के व्यापार पर आरोपित प्रशुल्क एवं गैर-प्रशुल्क बाधाएँ।
मूल्य संवर्धन
- रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद मूल्य संवर्द्धन केवल 2% बना हुआ है जो अत्यंत निराशाजनक है।
प्रस्तावित सुधार
विपणन
MSP
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केस स्टडीज/सर्वोत्तम प्रथाएं
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सरकारी पहलें (Government Initiatives)
क्षेत्र | योजना |
भूमि और मृदा |
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बीज |
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सिंचाई |
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उर्वरक |
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वैज्ञानिक जानकारी |
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मशीनीकरण |
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ऋण (क्रेडिट) |
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फसल कटाई के पश्चात् होने वाली (पोस्ट-हार्वेस्ट) क्षति |
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विपणन |
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न्यूनतम समर्थन मूल्य
- अघोषित सभी खरीफ फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य को उत्पादन लागत का कम-से-कम 150 प्रतिशत रखा जाना चाहिए –
बजट 2018-19
सुधार-अपरंपरागत एजेंडा (Reforms-The Un conventional Agenda)
हालांकि पूर्व के भाग में आवश्यक सुधारों का सुझाव दिया गया है और समितियों एवं विशेषज्ञों की एक श्रृंखला द्वारा उन्हें अनुशंसित किया गया है, परंतु कुछ अन्य महत्वपूर्ण विचारणीय क्षेत्रों को कम प्राथमिकता प्रदान की गई है जैसे: –
दृष्टिकोण में परिवर्तन
- इसे अनंत अवसरों के एक क्षेत्र के रूप में देखा जाना चाहिए;
- किसानों को निर्धन, कमजोर इत्यादि के रूप में समझने के स्थान पर उन्हें आशावान, परिश्रमी, जोखिम लेने में तत्पर आदि के रूप में देखा जाना चाहिए।
एकीकृत दृष्टिकोण
- ग्रामीण विकास के एक भाग के रूप में कृषि के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण को अपनाने वाली नीतियों का निर्माण करने, उन्हें कार्यान्वित करने और उनकी निगरानी करने की आवश्यकता है। इस एकीकृत दृष्टिकोण के अंतर्गत कृषि, पशु संसाधन, वानिकी, जल
संसाधन इत्यादि को शामिल किया जाना चाहिए।
कृषि पर्यटन
- भारत में कृषि-पर्यटन के लिए व्यापक संभावनाएं विद्यमान है, जिसे राष्ट्रीय पर्यटन नीति के मुख्य घटक के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए।
नगरीय कृषि
- कृषि को सामान्यतः ग्रामीण गतिविधि के रूप में वर्णित किया जाता है। नगरीय कृषि जैसे- अर्द्ध-नगरीय क्षेत्रों में ट्रक फार्मिंग, रूफटॉप फार्मिंग इत्यादि को प्रोत्साहित कर इस धारणा को परिवर्तित किए जाने की आवश्यकता है।
उद्यमिता के रूप में कृषि- अगला स्टार्ट-अप क्षेत्र
- IT के समान, कृषि को भारत में नए स्टार्ट-अप क्षेत्र के रूप में बढ़ावा दिया जाना
चाहिए।
सरकारी पहल
सरकार द्वारा उठाए जाने वाले विभिन्न कदम-
- कृषि बजट
- कृषि नवाचार केंद्रों की स्थापना
- भारतीय कृषि सेवा अथवा भारतीय ग्रामीण सेवा का गठन
निर्यात क्षमता और मूल्य संवर्धन
- जैविक कृषि की व्यापक संभावनाएं, विशाल घरेलू बाजार, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, ‘शाकाहार संबंधी (वेज) आंदोलन के कारण कृषि को ‘सनराइज सेक्टर’ के रूप में देखे जाने की आवश्यकता है;
सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद
- राजकोषीय संघवाद की तर्ज पर कृषि-संघवाद
- कृषि पर राज्य ग्रामीण विकास/कृषि मंत्रियों की एक अधिकार प्राप्त समिति का गठन।
निष्कर्ष (Conclusion)
- भारत का कृषि क्षेत्र संरचनात्मक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है जिसके कारण इसके समक्ष नई चुनौतियां एवं अवसर उत्पन्न हो रहे हैं। सरकार द्वारा कृषि विपणन के क्षेत्र में अनेक सुधार किए गए हैं। साथ ही, कृषि में प्रौद्योगिकी के उपयोग को व्यापक रूप से प्रोत्साहन दिया गया है तथा छोटे एवं सीमांत किसानों को विस्तार सेवाएँ, क्रेडिट एवं अन्य इनपुट (आगत) का समयबद्ध वितरण सुनिश्चित करने हेतु प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) को भी अपनाया गया है।
- हालांकि, कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान केवल सरकार द्वारा नहीं किया जा सकता है। कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु निगमों, सिविल सोसाइटी संगठनों, बुद्धिजीवी वर्ग एवं समाज के अन्य सभी वर्गों को शामिल किए जाने की आवश्यकता है।
- यद्यपि भूमि, सिंचाई, बीज इत्यादि जैसे संरचनात्मक सुधार आवश्यक हैं तथापि सांस्कृतिक परिवर्तनों, कृषि कार्यों हेतु सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने और संबंधित धारणा में परिवर्तन भी आवश्यक है। इस संदर्भ में हमारा अतीत हमें मार्गदर्शन प्रदान करता है जहां भूमि का उपयोग बौद्धिक कौशल युक्त लोगों को उपहार के रूप में देने में किया जाता था। इसे पवित्र माना जाता था।
- प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन ने कहा है कि – “यदि कृषि विफल हो जाती है, तो अन्य सब कुछ विफल हो जाएगा”। यह हम पर निर्भर करता है। कि हम क्या चुनते हैं!
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग
तथ्य :
चुनौतियाँ :
सरकारी योजनाएंः
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किसान आत्महत्या
किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या की समस्या से निपटने हेतु सुझाए गए उपाय
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कृषि आय पर कर निर्धारण
पृष्ठभूमि
तर्क
चुनौतियां
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कृषि-वानिकी
खेतों में फ़सल के साथ वृक्षारोपण की पद्धति लाभ
सरकारी पहल
राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति, 2014 की मुख्य विशेषताएं:
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पशु संसाधन
पशु संसाधन क्षेत्र –
तथ्य
तथ्य
चुनौतियाँ
सरकारी योजनाएं
मत्स्य पालन
चुनौतियां
सरकारी योजनाएं
चर्चित शब्द
|
बागवानी
प्रवृति
कारण
बढ़ती आय और शहरीकरण
अवसंरचना
फॉरवर्ड लिंकेज
सरकारी सहायता
चुनौतियां
सरकारी योजनाएं
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Very nice sir great information
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Sir, PDF me provide Kara dijiye
Aapne agriculture in hindi ke baare mein achi jankari di hai.
Thanks.
Thanks sar and mem aap sabi ko mayre tarf say thanks