इलेक्ट्रिक वाहन : तकनीकी और व्यावसायिक चुनौतियाँ

प्रश्न: इलेक्ट्रिक वाहनों से संबद्ध कई लाभों के बावजूद, उन्हें मुख्यधारा में लाने के मार्ग में कई तकनीकी और व्यावसायिक चुनौतियाँ हैं। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भूमिका में, इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की आवश्यकता का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • EVs से संबद्ध विभिन्न लाभों का उल्लेख कीजिए।
  • भारत में EVs के बाजार द्वारा सामना की जाने वाली तकनीकी और व्यावसायिक चुनौतियों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • आगे की राह के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

तीव्र गति से कम होते जीवाश्म ईंधन, ऊर्जा लागतों में अत्यधिक वृद्धि और जलवायु परिवर्तन से संबंधित चिंताओं के आलोक में इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर स्थानांतरण अनिवार्य हो गया है। EVs के अनेक लाभ हैं, जैसे कि:

  • EVs की परिचालन लागत बहुत कम होती है, जिसके परिणामस्वरूप किराए में कमी हो सकती है तथा यह व्यापक जन समूह को लाभान्वित कर सकता है।
  • EVs का प्रयोग आयातित जीवाश्म ईंधनों पर हमारी निर्भरता को उल्लेखनीय रूप से कम कर सकता है।
  • नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्ट्रिक वाहन वर्ष 2030 तक भारत की ऊर्जा मांग में 64% तक तथा कार्बन उत्सर्जन में 37% तक कटौती कर सकते हैं।
  • EVs हेतु उभरते बाजार के कारण भारत में परिवहन बाजार में विविधता को बढ़ावा मिलेगा तथा अधिक आर्थिक अवसरों का सृजन होगा।

इन लाभों को ध्यान में रखते हुए, भारत द्वारा शीघ्र ही FAME (फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) के द्वितीय चरण की दिशा में कार्य करने की योजना बनाई जा रही है, ताकि बाजार निर्माण और मांग में वृद्धि करते हुए EVs के अंगीकरण को प्रोत्साहित किया जा सके।

हालांकि, EVs से संबंधित अनेक लाभों के बावजूद उनकी तकनीकी और व्यावसायिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के मार्ग में विभिन्न चुनौतियाँ विद्यमान हैं:

  • चार्जिंग अवसंरचना और सुदृढ़ परिवेश का अभाव EVs की तकनीकी और व्यावसायिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने में सबसे बड़े बाधक हैं।
  • चार्जिंग स्टेशनों को किनके द्वारा स्थापित किया जाना चाहिए तथा क्या ये स्टेशन नवीकरणीय ऊर्जा या जीवाश्म ईंधन से संचालित होंगे आदि के संबंध में स्पष्टता का अभाव।
  • पेट्रोल/डीजल वाहनों की कम औसत कीमतें निकट भविष्य में EV के उपयोग के समक्ष बाधा उत्पन्न करेंगी।
  • लिथियम-आयन बैटरी के निर्माण में प्रयुक्त कच्चे माल की कमी, जिसमें लिथियम, कोबाल्ट, निकल, मैंगनीज और ग्रेफाइट शामिल हैं।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों की निजी खरीद के लिए प्रोत्साहन पर सीमित ध्यान केंद्रित करना।
  • EVs प्रौद्योगिकी में अनुसंधान एवं विकास का निम्न स्तर होने के कारण परम्परागत आंतरिक दहन इंजनों की तुलना में इनकी कीमतें अधिक होती हैं।

उपर्युक्त वर्णित चुनौतियों के साथ-साथ दीर्घकालिक लाभों के आलोक में, इलेक्ट्रिक गतिशीलता तथा व्यापक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग संबंधी लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता करने हेतु केंद्र को राज्य सरकारों के साथ मिलकर संयुक्त रूप से परिवहन क्षेत्रक के लिए एक नीतिगत रुपरेखा निर्माण करना समय की मांग है।इसके साथ ही, भारत को मुख्य लक्ष्य के रूप में “मेक इन इंडिया” को ध्यान में रखते हुए इलेक्ट्रिक वाहन घटकों के आयात शुल्क के लिए एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

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