पूंजी खाते का उदारीकरण : पूंजी खाते के उदारीकरण की आवश्यक पूर्व-शर्त

प्रश्न: परीक्षण कीजिए कि क्या भारत के लिए पूंजी खाते के पूर्ण उदारीकरण की शुरुआत करने का समय आ गया है।

दृष्टिकोण

  • पूंजी खाते का उदारीकरण और पूंजी खाते को नियंत्रित करने के पीछे के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  • पूंजी खाते के उदारीकरण की आवश्यक पूर्व-शर्तों और इस सन्दर्भ में भारत के प्रदर्शन के बारे में विस्तृत विवरण दीजिए।
  • पूंजी खाते के उदारीकरण के लाभों का विवरण प्रदान कीजिए और बताइए कि क्या भारत को इसके लिए कदम उठाना चाहिए।

उत्तर

[महत्वपूर्ण नोट: छात्रों को ध्यान देना चाहिए कि हां अथवा नहीं में उत्तर देने के बजाय, यह महत्वपूर्ण है कि विश्लेषण कीजिए कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था अस्थिर एवं कमजोर है और क्या इसमें आंतरिक और बाह्य आघातों से निपटने की क्षमता है।]

पूंजी खाता उदारीकरण (Capital Account Liberalisation: CAL) देश की सीमाओं पर पूंजी प्रवाह (अंतर्वाह और बहिर्वाह दोनों) पर प्रतिबंधों के सरलीकरण की प्रक्रिया है। यह पूर्णत: अप्रतिबंधित हो सकता है या आंशिक रूप से विनियमित भी हो सकता है।

एक देश अंतरराष्ट्रीय पूंजी प्रवाह में उतार-चढ़ाव से संबद्ध जोखिमों से स्वयं को बचाने के लिए पूंजी खाते को नियंत्रित करने का प्रयत्न करता है तथा अपनी घरेलू बचत को विदेश में बहिर्वाह से बचाता है। वर्तमान समय में, भारत एक नियंत्रित पूंजी खाता व्यवस्था का अनुसरण करता है।

पूंजी खाते के उदारीकरण के लिए समष्टि-आर्थिक स्थिरता आवश्यक होती है। पूंजी खाते की पूर्ण परिवर्तनीयता पर तारापोर समिति ने भी कुछ पूर्व-शर्तों को निर्धारित किया, जिनमें सकल राजकोषीय घाटे के GDP से अनुपात में कमी, एक स्थिर और नियंत्रित मुद्रास्फीति दर तथा बैंकिंग क्षेत्र की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के स्तर में कमी शामिल हैं।

पूँजी खाते के उदारीकरण के लिए आवश्यक पूर्व-शर्ते और उससे संबंधित भारत की स्थिति निम्नानुसार है:

आवश्यक पूर्व-शर्ते(Essential Conditions) भारत का प्रदर्शन (India’s Performance) 
राजकोषीय समेकन (Fiscal Consolidation) भारत की मध्यम अवधि की राजकोषीय रणनीति वर्ष 2020-21 तक राजकोषीय घाटे को राजकोषीय समेकन GDP के 3% तक कम करने और प्राथमिक घाटे को समाप्त करने की है जो राजकोषीय (Fiscal Consolidation)  समेकन में सहायक होगा।
मुद्रास्फीति नियंत्रण (Inflation Control) मौद्रिक नीति समिति का अधिदेश वार्षिक मुद्रास्फीति को 6% की सहनीय ऊपरी सीमा और 2% की सहनीय निम्न सीमा के साथ वर्ष 2021 तक 4% की दर पर बनाए रखना है।
NPAS का निम्न स्तर भारतीय अर्थव्यवस्था में सकल NPAS वर्ष 2018 में 10.35 लाख करोड़ रूपए के स्तर पर है।भारत सरकार ने स्थिति से निपटने के लिए दिवालियापन और शोधन अक्षमता संहिता प्रस्तुत की एवं RBI दबावग्रस्त परिसम्पत्तियों के आंतरिक पुनर्गठन को नियंत्रित कर रहा है। फिर भी, ट्विन बैलेंस शीट की समस्या बनी हुई है।
कम और धारणीय चालू खाता घाटा  वर्ष 2018 के दौरान भारत का चालू खाता घाटा (CAD) सकल घरेलू उत्पाद का लगभग खाता घाटा 2.6% हो गया। इसकी परिवर्तनशीलता यह तय करती है कि भारत विदेशी निवेश के लिए एक स्थिर गंतव्य है अथवा नहीं
 सुदृढ़ वित्तीय बाजार भारत के पूँजी बाज़ार ने कई बार आर्थिक दबावों का सफलतापूर्वक सामना किया है-जैसे एशियाई वित्तीय संकट (1997-98), वैश्विक वित्तीय संकट (2007-09) और “टेंपर टैंट्रम” घटना (2013) इत्यादि।
वित्तीय संस्थानों का वित्तीय संस्थानों का  भारत में वित्तीय संस्थानों का पर्यवेक्षण और विनियमन कई स्वायत्त संस्थानों जैसे कि RBI, विवेकपूर्ण पर्यवेक्षण SEBI, IRDA द्वारा किया जाता है।

उपर्युक्त मापदंडों के आधार पर भारतीय वित्तीय परिवेश का प्रदर्शन यह दर्शाता है कि अपने NPA और CAD का समाधान करने के पश्चात, यह अंततः पूंजी खाता उदारीकरण का कदम उठा सकता है। यह भारत को आगे वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत होने में सहायता तथा आर्थिक विकास और रोजगार के लिए आवश्यक पूंजी प्रदान करेगा। यह भारत को विदेशी तकनीकी और प्रबंधकीय जानकारी के हस्तांतरण की सुविधा भी प्रदान करेगा तथा नीति-निर्माताओं को प्रतिस्पर्धा और दीर्घकालिक विकास के संदर्भ में स्पष्ट लाभ के साथ सार्थक नीतियों को अपनाने और बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसके अतिरिक्त, किसी भी प्रतिबंध को अधिक समय तक बनाए रखना उचित नहीं है क्योंकि लोग उस प्रतिबंध से बचने के नए तरीके खोज लेते हैं।

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