धरातलीय स्थलाकृति : उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध की पछुवा पवनों के मध्य अंतर

प्रश्न: सोदाहरण व्याख्या कीजिए कि धरातलीय स्थलाकृति क्षेत्रीय और ग्रहीय पवन प्रणालियों को किस प्रकार प्रभावित करती है। साथ ही, उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध की पछुवा पवनों के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • पवन प्रणालियों पर स्थलाकृतिक विशेषताओं के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
  • सतही पवन प्रणाली के एक भाग के रूप में पछ्वा पवनों का वर्णन कीजिए।
  • उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में पछुवा पवनों के मध्य प्रमुख अंतरों को सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर:

पृथ्वी की धरातलीय स्थलाकृति की परिवर्तित होती विशेषताएं वायुमंडलीय परिघटनाओं, विशेष रूप से पवन प्रणालियों को प्रभावित करती हैं। इसमें अंतर्निहित मूल कारण स्थल और समुद्री भागों के मध्य ऊष्मीय विशेषताओं में अंतर है।

पवनों पर स्थलीय क्षेत्र के अनुपात का प्रभाव

उत्तरी गोलार्ध में दक्षिणी गोलार्ध की तुलना में अत्यधिक व्यापक स्थल-क्षेत्र विद्यमान है। इससे क्षेत्रीय स्तर पर एक सशक्त तापीय प्रभाव उत्पन्न होता है और यह विशेष रूप से सतह के निकट परिसंचरण को बाधित करता है। दक्षिणी गोलार्ध में पवन प्रणाली प्रमाणिक रूप से अधिक समरूप और सशक्त है।

उच्चावच विशेषताओं का प्रभाव

पर्वतीय अवरोध भी स्थानीय पवनों (जो जलवायु का एक महत्वपूर्ण तत्व हैं) के निर्माण और उनके संचालन में सहायक होते हैं। जब पवनों का प्रवाह पवनविमुख ढाल के सहारे नीचे की ओर होने लगता है तो ये पवनें संपीड़ित, अत्यधिक सघन और उष्ण हो जाती हैं। परिणामतः सशक्त पवनों की उत्पत्ति होती है, जैसे कि शक्तिशाली और मौसम से असंगत उष्ण चिनूक पवनें जो रॉकी पर्वत के पूर्वी भाग में प्रवाहित होती हैं।

घर्षण बल के कारण प्रभाव

पृथ्वी के सतह की अनियमितता घर्षण के रूप में पवनों की गति के लिए अवरोध उत्पन्न करती है। यह घर्षण पवन की उस दिशा को निर्धारित करता है जिस पर पवनें समदाब रेखाओं के सहारे प्रवाहित होती हैं, साथ ही यह पवनों की गति को भी निर्धारित करता है।

उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध की पछुवा पवनों के मध्य अंतर:

पछुवा पवनें प्रमुख धरातलीय पवनें हैं जो प्रत्येक गोलार्ध के मध्य अक्षांशों में प्रवाहित होती हैं। दक्षिणी गोलार्ध में पछुवा पवनें अधिक सशक्त और स्थायी हैं। इसके विपरीत उत्तरी गोलार्ध में पछुवा पवनें बल और दिशा के संदर्भ में अधिक परिवर्तनीय होती हैं। दक्षिणी गोलार्ध में इनके प्रवाह में स्थलीय क्षेत्र का न्यूनतम अवरोध होता है। ये अत्यधिक सामर्थ्य के साथ वर्ष भर प्रवाहित होती हैं और इन्हें गरजती चालीसा, प्रचंड पचासा और चीखता साठा भी कहा जाता है। हालांकि, उत्तरी गोलार्ध में धरातलीय उच्चावच की अनियमितता और स्थलीय क्षेत्रों पर स्थानीय दाब के प्रतिरूप का उतार-चढ़ाव पवन प्रवाह में परिवर्तनशीलता उत्पन्न करता है।

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