लोकतांत्रिक व्यवस्था : स्वतंत्रता को जवाबदेही के साथ संतुलित किया जाए

प्रश्न: किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में, यह अत्यावश्यक है कि स्वतंत्रता को जवाबदेही के साथ संतुलित किया जाए। भारत में न्यायपालिका के संदर्भ में चर्चा कीजिए। (250 शब्द)

दृष्टिकोण

  • न्यायिक स्वतंत्रता के महत्व और न्यायपालिका को जवाबदेह बनाने की आवश्यकता की संक्षिप्त चर्चा करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए।
  • न्यायपालिका को जवाबदेह बनाने वाले मौजूदा तंत्र की अपर्याप्तता तथा इस स्थिति से उत्पन्न परिणामों का उल्लेख कीजिए।
  • संतुलित निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

स्वतंत्र न्यायपालिका एक जीवंत लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए अत्यावश्यक शर्त है। न्यायिक स्वतंत्रता का संरक्षण करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि न्यायपालिका न केवल संविधान की अंतिम व्याख्याकार होती है, बल्कि यह किसी भी मनमाने उल्लंघन के विरुद्ध मूल और विधिक अधिकारों को संरक्षित एवं प्रवर्तित करती है। भारत के संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने हेतु अनेक प्रावधान किए गए हैं। ध्यातव्य है कि न्यायिक स्वतंत्रता लोक विश्वास पर आधारित होती है और इसके संरक्षण हेतु न्यायाधीशों को सत्यनिष्ठा के उच्च मानकों का अनुपालन करना चाहिए और उन्हें जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।

हालाँकि, विभिन्न व्यक्तियों द्वारा न्यायपालिका को जबावदेह बनाने हेतु मौजूदा तंत्रों को अपर्याप्त माना जाता है। इसे निम्नलिखित उदाहरणों की सहायता से समझा जा सकता है: 

  • संविधान के अनुच्छेद 124(4), 217(1) के तहत न्यायाधीशों को उनके पद से हटाने संबंधी प्रावधान न केवल न्यायिक जवाबदेही को कम करते हैं, बल्कि यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया भी है।
  • न्यायपालिका के आंतरिक जांच तंत्र में पारदर्शिता की कमी: न्यायपालिका द्वारा अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने हेतु भ्रष्टाचार, यौन उत्पीड़न आदि के मामलों से निपटने हेतु एक ‘आंतरिक जांच तंत्र’ स्थापित किया गया है। हालांकि, इस तंत्र को हाल ही में CJI के विरुद्ध लगे यौन उत्पीड़न संबंधी आरोपों की जाँच के मामले में अप्रभावी पाया गया।
  • न्यायिक नियुक्तियाँ: भारत में कॉलेजियम प्रणाली का अनुपालन किया जाता है। इसके तहत राष्ट्रपति द्वारा उच्चतर न्यायपालिका के सदस्यों की नियुक्ति करने हेतु न्यायाधीशों से परामर्श किया जाता है। हालाँकि, पारदर्शिता की कमी, भाई-भतीजावाद, पक्षपात और पूर्वाग्रह के आधार पर इस प्रणाली की आलोचना की गई है। इसके अतिरिक्त, इस संदर्भ में संसद में पारित 99वें संविधान संशोधन अधिनियम (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग: NJAC) को उच्चतम न्यायालय ने अधिकारातीत (ultra vires) माना है।
  • न्यायालय की अवमानना: कुछ मामलों में यह आरोप लगाया गया है कि न्यायपालिका द्वारा इसकी न्यायसंगत आलोचना किए जाने को भी ‘न्यायालय अवमानना अधिनियम’ का संदर्भ देते हुए दबा दिया जाता है।

न्यायिक सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता से समझौता करने वाले आचरण को बढ़ावा देकर न्यायिक जवाबदेही से समझौता न केवल विधि के शासन को कमजोर बनाता है, बल्कि न्यायाधीशों और न्यायपालिका के प्रति लोगों के विश्वास को भी कम करता है। यह दीर्घकालिक रूप से न्यायिक स्वतंत्रता को भी प्रत्यक्षतः प्रभावित करता है।

इसलिए, न्यायपालिका की क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर, दोनों प्रकार की जबावदेहिता को बढ़ाने और न्यायिक प्रणाली को अधिक पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है। हालांकि, इस प्रकार के तंत्र को न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के साथ-साथ न्यायपालिका की जबावदेहिता सुनिश्चित करने की चुनौती को ध्यान में रखते हुए स्थापित किया जाना चाहिए।

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